शोध आलेख:गतांक से आगे
आधुनिक हिन्दी साहित्य में राष्ट्र भक्ति
इकाई-5 राष्ट्र भक्ति के प्रणेता साहित्यकार-4
-तुलसी देवी तिवारी
श्री अटल बिहारी वाजपेयी(24 दिसम्बर 1924-16 अगस्त 2018)-
राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रखर प्रचारक, पांचजन्य,वीर अर्जुन,राष्ट्रधर्म जैसे पत्र पत्रिकाओं के यशस्वी संपादक,तीन बार देश के प्रधान मंत्री रहे श्री अटल बहारी वाजपेयी जी ने अविवाहित रह कर अपना संपूर्ण जीवन देश को ही समर्पित कर दिया। उनकी शिक्षा ग्वालियर के लक्ष्मी बाई कॉलेज में हुई। राजनीति शास्त्र से स्नातकोत्तर, एल.एल.बी अटल जी वैचारिक रूप से श्यामाप्रसाद मुखर्जी और दीन दयाल उपाध्याय से प्रभावित थे। सन् 2015 में भारत के सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से सम्मानित अटल जी ने देश भक्ति को ही एक मात्र अपने जीवन का उद्देश्य माना , देश के यशोगान के साथ ही इसकी विसंगतियों पर भी प्रकाश डाला क्योंकि वे देश के हर गली-कोने को ज्ञान के आलोक से आलोकित देखना चाहते थे। देश के बँटवारे का भयानक मंजर उनकी आँखें के सामने से गुजरा था, सीमा पर चलने वाली गोलिया उन्हें चैन से सोने नहीं देतीं फिर भी वे पत्थर की छाती पर अंकुर उगाना चाहते थे, पिछली बातें भूल कर कुछ नया करना चाहते थे। जिससे देश-दुनिया का कल्याण हो-
टूटे हुए तारें से फूटे बासंती स्वर, पत्थर की छाती पर उग आया नव अंकुर, झरे सब पीले पात, कोयल की कुहुक रात, प्राची में अरूणिम की रेख देख पाता हूँ गीत नया गाता हूँ। टूटे सपनों की कौन सुने सिसकी? अन्तर को चीर व्यथा पलको पर ठिठकी। हार नहीं मानूंगा रार नहीं ठानूंगा, काल के कपाल पर लिखता मिटाता हूँ, गीत नया गाता हूँ।
आजादी के बाद देश में फैली अव्यवस्था से उनका हृदय व्यथित होता था, उन्हें लगता था कि जब तक जन-जन को उनका हिस्सा नहीं मिल जाता आजादी अधूरी ही है–रावी तट पर पूर्ण स्वराज्य की जो शपथ ली गई थी वह अभी पूर्ण नहीं हुई –
आजादी अभी है अधूरी , सपने पूरे होने हैं बाकी, रावी की सपथ न पूरी है, जिनकी लाशों पे पग रख कर, आजादी भारत में आई , वे अब तक हैं खाना बदोश, गम की काली बदली छाई। कलकत्ते के फुटपाथों पे जो, आंधी-पानी सहते हैं। उनसे पूछो पन्द्रह अगस्त के बारे में , क्या कहते हैं? हिन्दू के नाते यदि उनका दुःख, कहते तुम्हें लाज अती है तो, सीमा के उस पार चलो! सभ्यता जहाँ कुचली जाती है, इंसान जहाँ बेचे जाते हैं ईमान खरीदा जाता है। ईस्लाम सिसकियाँ भरता है, डालर मन में मुस्काता है। भूखों को गोली नंगों को हथियार, पिन्हाये जाते हैं। सूखे कंठों से जेहादी नारे लगवाये जाते है। लाहौर, करांची ढाका पर है मातम की काली छाया, पख्तूनो पर गिलगित पर है गमगीन गुलामी का छाया। बस इसीलिए तो कहता हूँ आजादी अभी अघूरी है, कैसे उल्लास मनाऊँ मैं? थोड़े दिन की मजबूरी है। दिन दूर नहीं खंडित भारत को, पुनः अखंड बनायेंग, गिलगित से गारो पर्वत तक, आजादी पर्व मनायेंगे।
वाजपेयी जी की आँखों में जीवन के अंत तक अखंड भारत का सपना पलता रहा। और खंडित देश का दर्द आँखों का पानी बन कर बहता रहा।
पंचपीठाधीश्वर आचार्य धर्मेन्द्र (सन् 1942 में जन्म )-
महात्मा रामचंद्र वीर और सुमित्रा देवी के अंश से आचार्य धर्मेन्द्र जी का जन्म गुजरात के मालवाड़ा में अपने नाना के घर पर हुआ। आठ वर्ष की आयु से ही आप अपने तपस्वी पिता के साथ हो लिए । आप शनैः शनैः अपने पिता को अपने अंदर उतारते गये। उस समय देश में आजादी नई-नई आई थी। देश के कर्णधार, जिन्होंने आजदी की सुंदर परिकल्पना कर रखी थी, उसे साकार करने के लिए व्यग्र थे। गोरक्षा आंदोलन बड़े जोरों पर चल रहा था। आपके पिता श्री की इस आंदोलन में मुख्य भूमिका थी। 1966 में आपने अपने पिता श्री के साथ 52 दिनों का उपवास किया। आपकी भार्या श्रीमती प्रतिभा देवी ने महिला मोर्चे की कमान संभाली, ऐसा वक्त भी आया की उन्हें अपने तीन बच्चों के साथ कारावास करना पडा़।
13 वर्ष की आयु में आपने वज्रांग नाम का अखबार निकाला और 16 वर्ष की आयु में आपके ‘दो महात्मा’ नामक लेख ने खूब धूम मचाया। आप गांधीवाद के कटु आलोचक हैं, आप का मानना है कि विशेष धर्म के लोगों को खुश करने के लिए देश का विभाजन स्वीकार कर गांधी जी ने अक्षम्य अपराध किया। उससे भी बड़ा अपराध जिन्होंने धर्म के नाम पर देश के टुकड़े किये उन्हें देश से जाने अथवा यहाँ रहने की इजाजत देकर किया। आप विश्व हिन्दू परिषद के केन्द्रीय मार्ग दर्शक मंडल में शामिल हैं। आपने अपना जीवन हिन्दी, हिन्दूत्व और हिन्दुस्तान के उत्कर्ष के लिए समर्पित कर दिया है। आप ने अपने पिता श्री की राह पर चलते हुए अपने आप को अनशनों, सत्याग्रहों, जेल यात्राओं में लगा कर अपने जीवन का सदुपयोग किया। 8 वर्ष की उम्र से अब तक का जीवन मानवता के उत्थान के लिए सतत् तप में बीता है। आपकी अमोघ, वाणी, साहस पूर्ण लेखन और कर्म अद्भुत् हैं, आप हिन्दी के ओजस्वी कवि और गायक हैं । आपने जो कुछ लिखा राष्ट्र के लिए लिखा, जो कुछ सोचा राष्ट्र के लिए सोचा, जो कुछ किया राष्ट्र के लिए किया। हिन्दी भाषा के प्रति उनके हृदय में असीम आदर और पे्रम है। अंग्रेजी के बढ़ते प्रभाव से वे क्षुब्ध रहते हैंं, भारत का ’इंडिया’ कहा जाना उन्हें बिल्कुल पसंद नहीं है। इसे आप मानसिक गुलामी का नाम देते हैं। देखते हैं उनकी चंद पंक्तियाँ –
‘देश नहीं यह प्यारी माँ है, हम सब हैं इसकी संतान। भारत को मत कहो इंडिया, करो न यूँ इसका अपमान। सिंधु समझ में आता सब को , सिंधु हिन्दू बन बनता हिन्द। सुन जय हिन्द मंत्र हम सब के, खिल उठते हैं उर अरविंद। किंतु इंड , इंडस या इंडिया, क्या है इन सबका इतिहास? क्या ये उनकी देन नहीं, जिनने हमे बनाया दास। ईष्ट इंडिया कंपनी पूरी, लंपट शठ शातिर शैतान, भारत को मत कहो …… सात समंदर पार से आये, गोरी चमड़ी के वो लोग, रचा-बसा था उनके मन में, विस्तार वाद का रोग। ढाका की मलमल के , बुनकरों के कोमल हाथ, कटवा कर जिन प्रेतों ने, किया कलंकित अपना माथ। श्रवण करो वह करुण कथा, जो कहता जलियाँ वाला बाग, मरे जन निर्दोष हजारों, मिटे शुचि सिंदूर सुहाग। दो सदियों तक रहे रौंदते, वहीं हमारी माँ की आन। भारत को मत कहो…….। सरल मना भारत संतानें, नहीं समझ पाईं षड़यंत्र, रही झेलती और भोगती, क्रूर ब्रिटिश अधिनायक तंत्र। सोलह वर्षीय झाँसी की , रानी का अद्भुत् संग्राम, लक्ष्मीबाई नाम था जिनका , दुर्गा काली जैसा काम। तात्याटोपे मंगल पांडे, कुँअर सिंह या तिलक सुभाष, भगत सिंह ने खुदीराम ने , फैलाया उषा प्रखर प्रकाश। अस्फाकुल्ला के बिस्मिल के, मत भुलो पावन बलिदान। भारत को मत कहो…….. लाला लाजपत हरदयाल, अस मैडम कामा परमानंद। उधम सिंह चंद्रशेखर या , दयानंद अरु श्रद्धानंद। बंकिम चंद्र चटर्जी एवं , श्री काजी नजरुल इस्लाम। मालवीय महराज एवं रविंद्रनाथ, के मत भूलों तुम नाम! किनके कारण सावरकर ने, अंडमान में भोगी जेल, चक्की चला जुते घानी में , बनकर बैल निकाला तेल। क्रूर कौन अंग्रजों सम, धीर कौन इन सुतों समान । भारत को मत कहो इंडिया, करो न यूँ इसका अपमान
आप रामजन्म भूमि आंदोलन के प्रमुख योद्धा रहे। आप अपने देव स्थानों को मात्र भगवान् का घर ही नहीं मानते इन्हें हिन्दू अस्मिता का जीवित प्रतिनिधि भी मानते हैं। हिन्दुओं के स्वभिमान के प्रतीक मथुरा और काशी की मुक्ति उनका श्रेष्टतम् अभिष्ट है। अखंड भारत का सपना उनकी जागती आँखों का स्वर्णिम स्वप्न है।
गुरूदत्त- (1894 से 1989)-
विज्ञान के छात्र और पेशे से बैद्य गुरूदत्त जी ने अपने दो सौ उपन्यास, जीवनियों, रिपोतार्जों के साथ हिन्दी गद्य साहित्य में अपना महत्त्वपूर्ण स्थान बनाया। ये स्वामी दयानंद सरस्वती से बहुत प्रभावित थे। देश की आजादी के लिए होने वाले संघर्ष के 1921 से 1948 तक और नवनिमार्ण काल के भी प्रत्यक्षदर्शी थे। वे अपने आप को तिलक के गर्मदल के सदस्य के रूप में देखते थे। वे क्रांतिकारियों के गुरू के नाम से भी अपनी पहचान रखते हैं, उन्होंने भारतीय इतिहास, धर्म , दर्शन संस्कृति एवं वैदिक लौकिक साहित्य को अपने लेखन का आधार बनाया। वेदों से परिचय के सरल माध्यम हिन्दी को अपने साहित्य की भाषा हेतु चयनित किया। इन्होंने भारतीय इतिहास लेखन को नई दिशा दी। ’स्वाधीनता के पथ पर’ से आरंभ करके वर्तमान् दुरावस्था का समाधान हिन्दू राष्ट्र,हिन्दूत्व की यात्रा, सदा वत्सले मातृभूमे,आदि देश भक्ति से भरपूर उपन्यास लिखे ।
वृन्दावनलाल वर्मा (9 जनवरी 1889-1969)
आपने राष्ट्रभक्ति से भरपूर ऐतिहासिक उपन्यास , नाटक कहानियाँ आदि लिखकर हिन्दी के साहित्य को न केवल संमृद्ध किया अपितु समय के अनुरूप समाज की उत्प्रेरणा का दायित्व भी बखूबी निभाया। इनके नायक-नायिकाएं राष्ट्र प्रेम में पगे दृढ़ चरित्र और देश के उज्जवल इतिहास की साक्षी हैं, चाहे विराटा की पद्मिनी हो या झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई, मृगनयनी हो या अमरपुर के अमर वीर , सभी जातीय गौरव की रक्षा में तन- मन धन न्यौछावर करने को तत्पर दृष्टिगोचर होते हैं।
सूर्य कांत त्रिपाठी निराला( 1899-1961 छायावादी युग के महाकवि)-
कहानी , निबंध, काव्य संग्रह के अलावा स्फुट काव्य भी इन के साहित्य में महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है। इनके समूचे साहित्य में मणि के समान जड़ी देश वंदना की यह कविता इन्हें अपने समय के कवियों में बहुत ऊँचे स्थान पर बैठाती है-
भारति जय विजय करें, कनक शस्यकमल धरे, लंका पदतल शतदल, गर्जितोर्मि सागर जल धोता शुचि चरण युगल, स्तव कर बहु अर्थ भरे। तरु तृण बहु लता वसन, अंचल में खचित सुमन,। गंगा ज्योर्तिजल - कण धवलधार हार गले, मुकुट शुभ्र हिम- तुषार , प्राण प्रणव ओंकार।, ध्वनित दिशाएं उदार,, शतमुख -शतरव- मुखरे।
पंडित दीन दयाल उपाध्याय (25 फरवरी 1916 से 11 फरवरी 1968 )-
वीर प्रसूता भारत माता के लाड़ले लाल दीन दयाल उपाध्याय जी एक महान् राजनेता, ,उच्चकोटि के विचारक,विचारवान् संपादक और अमर साहित्य साधक थे। मासिक पत्रिका राष्ट्रधर्म,साप्ताहिक पांचजन्य, दैनिक समाचार स्वदेश का प्रकाशन एवं संपादन किया। इनकी प्रमुख रचनाओं में राष्ट्र चिंतन,राष्ट्र जीवन दशा और दिशा, शंकराचार्य की जीवनी, तथा नाटक चंद्रगुप्त मौर्य आदि उल्लेखनीय हैं। सन्1931 में उत्तर प्रदेश के सह प्रान्त प्रचारक भाउराव देवरस की बाल सेवकों की शिक्षा हेतु कोई अच्छी पुस्तक न होने की चिंता दूर करने के लिए रातों रात’चंद्रगुप्त मौर्य ’ नामक देश भक्ति से सराबोर नाटक की रचना की, यह एक प्रमाणिक ऐतिहासिक पुस्तक है, इसमें चन्द्रगुप्त को राष्ट्रवाद का पर्याय चित्रित किया गया है। राज्य से बढ़कर राष्ट्र होता है,इसलिए हमें राष्ट्र की भक्ति और उसकी सुरक्षा का विचार करना चाहिए। घननंद के मिस उन्होंने तत्कालीन परिस्थति पर प्रकाश डाला है यदि विलासी सत्ता सारा धन अपने ही सुख के लिए खर्च करने पर आमादा हो तो ऐसी सत्ता का तख्ता पलट देना देश भक्तेंा का दायित्व बन जाता है।
15 अगस्त सन् 1947 को देश आजाद हुआ इसके पूर्व 14 को ही बँट भी गया,अंगे्रजों की फूट डालो और राज करो वाली नीति के कारण देश का विभाजन हुआ। विपुल पैमाने पर जन धन की हानि हुई। भारत में शामिल होने से कतराने वाले काश्मीर के राजा हरिसिंह ने विवश होकर विलय संधि पर हस्ताक्षर किये और बहादुर भारतीय सेना ने तब अपना जौहर दिखाया। सन् 1962 में चीन ने देश पर अप्रत्याशित युद्ध थोप दिया, इसी तरह 1965 ,1971 और 1999 में पकिस्तान ने सीमा पार से जो कुत्सित हरकत की उसका उत्तर भी भारतीय सेना ने बखूबी दिया। जब भी युद्ध का माहौल बनता है देश का बच्चा-बच्चा सतर्क हो जाता है। प्रत्येक नागरिक अपने देश की रक्षा के लिए बलिदानी चोला पहनने को आतुर हो उठता ह,ै लेखक, कवि अपने सैनिकों की हौसला अफजाई के लिए रचनाएं लिखने लगते हैं, हजारों ऐसी पुस्तकें हिन्दी साहित्य की शोभा बढ़ा रहीं हैं जैसे–शिवकुमार अरूर एवं राहुल सिंह द्वारा लिखी पुस्तक भारतीय शूरवीरों की शौर्य गाथाएं,मेजर जनरल ए.के. शोरी रचित भारतीय सेनाध्यक्षों का प्रेरक जीवन,ए.के शोरी एवं डॉ. रश्मि सिंह की रचना-अशोक चक्र विजेता मेजर,लेफ्टिनेंट जनरल बी.आर. राधवन प्रणीत ’ सियाचीन अंतहीन संघर्ष,मेजर जनरल इयान कारडोजो रचित,भारतीय सेना का गौरव पूर्ण इतिहास,मनोहर परिकर रचित 1965 भारत-पाक युद्ध की वीर गाथाएं ,आचार्य मायाराम ‘पतंग’ प्रणीत शौर्य पराक्रम की कहानियाँ, दिनेश कांडपाल रचित पराक्रम-भारतीय सेना के शौर्य और बलिदान की यादगार गाथाएं, मेजर जनरल इयान कारडोजोकी रचना परम वीर चक्र, लेफ्निेंट के. के. नंदा रचित 1971 भारत पाक युद्ध, रचना विष्ट प्रणीत शूरवीर-परम वीरचक्र विजेताओं की कहानियाँ, विष्ट जी की ही रचना है ’ताकत वतन की हमसे है’ युवाओं को प्रेरित करने वाली भारतीय सेना की कहानियाँ, कारगिल के परम वीर,लेखक केप्टन विक्रम वत्रा, एवं बी. एल. बत्रा ,फिल्ड मार्शल सेम करियप्पा,लेखक मेजर जनरल शुमी सूद,फिल्ड मार्शल के. एम. करियप्पा,लेखक एयर मार्शल के. सी. करियप्पा ,एक सेनाध्यक्ष की आत्म कथा ,लेखक जे, जे सिंह।( सभी प्रभात प्रकाशन से प्रकाशित) इसके अतिरिक्त असंख्य पुस्तकें, निबंध, कविताएं हर रोज रची जा रहीं हैं जिनकी चर्चा इस छोटे से आलेख का आकार बढ़ा सकतीं हैं, जितने भी स्वतंत्रता सेनानी हुए प्रायः सभी संवेदनशील लेखक और पत्रकार भी थे। आज सेना के अधिकारी कर्मचारी सुशिक्षित होते हैं, अपनी भावनाएं राष्ट्र को समर्पित करने के लिए साहित्य सृजन करके दूसरों में भी राष्ट्रभक्ति की भावना का संचार करते हैं। अपने संघर्ष की कथा और परिस्थितियों की विषमता से आम पाठक को परिचित कराते हैं जिसके द्वारा सेना की वीरता और शौर्य की जानकारी प्राप्त होती है और उनके पीछे की पंक्ति में भी वीर देश भक्तों की बहुत बड़ी संख्या देश के लिए अपने प्राणों की आहुति देने के लिए प्रतीक्षारत रहती है।
श्रीमती तुलसी तिवार, जिनकी जन्मभूमि उत्तरप्रदेश एवं कर्मभूमि छत्तीसगढ़ है, एक चिंतनशील लेखिका हैं । आप हिन्दी एवं छत्तीसगढ़ी दोनों भाषाओं में समान अधिकार रखती हैं और दोनों भाषाओं में लेखन करती हैं । आपके पिंजरा, सदर दरवाजा, परत-दर-परत, आखिर कब तक, राज लक्ष्मी, भाग गया मधुकर, शाम के पहले की स्याह, इंतजार एक औरत का आदि पुस्तकें प्रकाशित हैं ।