-आलेख महोत्सव-
आज का भारत
आजादी के अमृत महोत्सव के अवसर पर ‘सुरता: साहित्य की धरोहर’, आलेख महोत्सव का आयोजन कर रही है, जिसके अंतर्गत यहां राष्ट्रप्रेम, राष्ट्रियहित, राष्ट्र की संस्कृति संबंधी 75 आलेख प्रकाशित किए जाएंगे । आयोजन के इस कड़ी में प्रस्तुत है-श्री कन्हैया लाल बारले द्वारा लिखित आलेख ”आज का भारत’।
गतांक – आलेख महोत्सव: 19. आज़ादी के अमृत महोत्सव में राष्ट्र स्वरुप : चिंतन-मंथन -डॉ अलका सिंह
आज का भारत
-कन्हैया लाल बारले
राष्ट्र की अवधारणा-
भारत एक सशक्त एवं समृद्ध राष्ट्र है। राष्ट्र एक शाश्वत अवधारणा है। पंडित जवाहर लाल नेहरू ने अपने डिस्कवरी ऑफ इंडिया में बताया है कि ” वह निश्चित भूभाग जिसकी अपनी सीमा ,जनसंख्या, सेना तथा सरकार हो व किसी निश्चित एवं विशिष्ट क्षेत्र में रहने वाले लोग जिसकी भाषा और रीति रिवाज एक से होते हैं। वह राष्ट्र कहलाता हैं।” ये सभी शर्ते हमारे भारत देश में लागू है । इसमें कोई शंका नहीं है कि हमारा देश भारत एक महान राष्ट्र है, जो कि विश्व पटल पर हीरे की भांति जगमगा रहा है।
गुलामी से आज तक
आज हमारा राष्ट्र लगभग 300 वर्षों के लंबी गुलामी के पश्चात स्वतंत्र हुए 75 वर्ष पूरे होने को है, अर्थात हम आजादी के अमृत महोत्सव मनाने जा रहे हैं। हम आज महोत्सव मनाने के काबिल हैं क्योंकि हमारे पास सुख, शांति और समृद्धि अकूत मात्रा में हैं। जहां अनेक संत महात्मा ऋषि महर्षि और देवताओं ने यहां मानव के रूप में जन्म लिया। हमारा भारत गांधी, गौतम ,नेहरू, सुभाष ,भगत सिंह की भूमि है । यहां तुलसी, सूर, मीरा ,कबीरा ने भक्ति की धारा बहायी है। इसकी मिट्टी में स्वयं परमात्मा परम पिता परमेश्वर राम व कृष्ण के रूप में जन्म लेकर क्रिडाएं की है । यहां अनेक संत, साहित्यकार, समाज सुधारक व ज्ञान विज्ञान को बतलाने वाले कई वैज्ञानिक पैदा हुए ।हमारी इस भूमि पर गंगा, यमुना ,सरस्वती जैसे अनेक नदियां बहती है। जिनके किनारे अनेक सभ्यताएं पली बढ़ी है। अनेक राजा महाराजाओं ने इस भारत भूमि पर न्योछावर होकर इनका मान बढ़ाया है। हमारा भारत सोना एवं कोहिनूर हीरा का उत्पादक है। यहां के हर एक बालक राम व कृष्ण की तरह है तो बालिकाएं राधा और सीता समान है।
भारत का नामकरण और ऐतिहासिक गौरव-
आज हम वर्तमान भारत के विषय में चर्चा करने जा रहे हैं। इतने बड़े राष्ट्र के वर्तमान जानने के लिए हमें इसका संक्षिप्त इतिहास जानना आवश्यक है ,नहीं तो बिना नीव के चमकते कंगूरे के विषय में बात करनी जैसी हो जाएगी ।
वैसे तो भारत का इतिहास पर चर्चा करेंगे तो स्वतंत्र इस विषय पर एक लंबा आलेख तैयार किया जा सकता है ।अभी तो हमें केवल वर्तमान भारत पर फोकस ज्यादा करना है ।इसलिए भारत का इतिहास को समझने के लिए भारत का नामकरण के कारणों को यदि जाने तो हमारा भारत देश कितना पुराना व समृद्धशाली है इनकी भान हो जावेगी। प्राचीन काल से भारत भूमि के अलग-अलग नाम रहे हैं मसलन जंबूद्वीप,भारतखंड ,सिंवर, बदनावर ,भारतवर्ष, आर्यवर्त, हिंद, हिंदुस्तान और इंडिया ,
इनमें से भारत सबसे ज्यादा लोकमान्य और प्रचलित रहा है। इन नामों में कभी भूगोल उभर कर आता है तो कभी जातीय चेतना और कभी संस्कार ।
हिंदूस्तान ,हिंद ,इंडिया जैसे नामों में भूगोल उभर रहा है ।इन नामों में मूल रूप से सिंधु नदी प्रमुखता से नजर आ रही है, परंतु सिंधु एक नदी मात्र नहीं है ।सिंधु का अर्थ सागर भी है, जो सप्त सिंधु के नाम से प्रचलित है ।
इसी तरह भारत नाम के पीछे सप्तसिंधु क्षेत्र में पनपी अग्निहोत्री संस्कृति की पहचान है।
सबसे ज्यादा प्रचलित कथन शकुंतला और दुष्यंत पुत्र भरत ही भारत नामकरण के उत्तरदायी है। क्योंकि भरत बचपन में सिंहों के साथ खेला करता था और जब राजा बने तो लंबे समय तक अखण्ड भारत के अधिपति रहे हैं ।
त्रेता युग में राम के अनुज भरत राम के वन गमन के पश्चात 14 वर्ष तक श्रेष्ठ राजा की तरह राज्य किए।
वेदों में जड़ भरत (संत) व भरतमुनि नाट्यशास्त्र के महर्षि का भी उल्लेख मिलता है।
मनुवादी लोग मनु को सृष्टि में प्रथम मानव बताया। जिसे ब्रह्मा ने अपनी प्रजा जन का भरण पोषण हेतु नियुक्त किया था। शायद इन अर्थों में भी मनु को भारत कहा जाता था ।
भरत जन अग्निपूजा अग्निहोत्र व यज्ञ प्रिय थे, वैदिक युग में भरत/ भरथ का अर्थ विश्व रक्षक लोकपाल एक राजा का नाम है, जो कि सरस्वती नदी के किनारे पर राज करता था। संस्कृत में भर का अर्थ युद्ध समूह या जन गण और तीसरा अर्थ भरण-पोषण हैं। इन तीनों में जन गण श्रेष्ठ अर्थ है ।जिनसे कोई जन, गण की तरह भरण पोषण कर्ता होते थे, जिन्हें भरत कहा जाता था।
माना जाता है कि हिंदूकूश के पार जो आर्य थे उनका संघ ईरान कहलाया और पूरब में जो थे उनका संघ आर्यवर्त कहलाया।
जंबूद्वीप एशिया महाद्वीप के उस भूखंड को कहा जाता था जहां जामुन फल वृक्ष की बहुतायत थी। जामुन की बहुलता के कारण इस अखंड भारत को जंबूद्वीप कहा जाता था । इसके अलावा और अनेक तथ्य है हमारे देश को भारत कहने का परंतु कुछ भी हो हमारा भारत देश विश्व में अद्वितीय है ।
आत्मनिर्भर भारत –
हमारा भारत एक आत्मनिर्भर राष्ट्र है । हमारे पास उन्नत कृषि, व्यवसाय ,उद्योग और खनिज संसाधन हैं, तभी तो जनसंख्या की दृष्टि से विश्व में दूसरे स्थान पर होने के बावजूद अपनी जनता के लिए खाद्य सामग्री व रोजमर्रा के उपयोगी संसाधन हमारे ही भारत में उपजा कर उनकी समुचित पूर्ति की जाती है।
हमे इनके लिए दूसरे देशों पर निर्भर नहीं रहना पड़ता है। अन्न में धान ,गेहूं ,कोदो, कुटकी, मक्का, ज्वार, बाजरा ,राई, दलहन , तिलहन, फल ,सब्जी आदि भरपूर मात्रा में पैदा होती है। हमारे देश में खपत के बाद जो बच जाता है उसे अन्य देशों में निर्यात करते हैं। खनिज में लोहा, कोयला, एलुमिनियम आदि की भण्डार प्रचुर मात्रा हमारे देश में है । छोटी सी सुई से लेकर वायुयान बनाने की कारखाना हमारे देश में है । इसके लिए हमें दूसरे देशों पर निर्भर नहीं रहना पड़ता है। प्रत्येक हाथ को काम देकर उसे आर्थिक रूप से सुदृढ़ बनाने की अवधारणा को पूरा करने के लिए हमारे देश के प्रत्येक राज्य में रोजगार गारंटी योजना चलाई जा रही है। हमारे देश में जलयान वायुयान व वाहनों की बढ़ोतरी हुई हैं ।मेट्रो रेल इसमें विशेष है। भारत में शिक्षा और स्वास्थ्य के प्रति सभी सजग हैं। हमारे देश मे शिक्षाविदों की कमी नही है। वे आवश्यकता अनुरुप राष्ट्रीय शिक्षा नीति तैयार करते है, जो विशिष्ट होती है । स्वास्थ्य के क्षेत्र में हमारा भारत आरोग्य सेतु निर्माण कर चुके हैं। अंग प्रत्यंग की प्रत्यारोपण की जा रही है। आयुर्वेद को अपनाया जा रहा हैं ।योग एवं प्राणायाम को अपनाकर लोग तन को स्वस्थ एवं आत्मा को उन्नत कर रहे हैं। हमारे योग एवं प्राणायाम को दूसरे देश के लोग भी अपनाते जा रहे हैं। यज्ञ हवन से प्रकृति को भी शुद्ध बनाया जा रहा है।
सबका साथ एवं सबका विकास का नारा देकर सभी जनों को विकास की धारा से जोड़ा जा रहा है ।
सशक्त लोकतंत्र-
आजादी के पश्चात 26 जनवरी 1950 को भारत का संविधान लागू किया गया , जिनसे सशक्त लोकतंत्र की स्थापना हुई है । इसमें व्यवस्थापिका, न्यायपालिका एवं कार्यपालिका लोकतंत्र को सफल बनाने का मूलाधार है । व्यवस्थापिका जनता के हित हेतु कानून का निर्माण करती हैं। कार्यपालिका उसे कार्य रूप में अमल में लाती है। प्रशासनिक व्यवस्था लागू करना भी इनका कार्य है ।तो न्यायपालिका कानून के अनुरूप न्याय दिलाने का कार्य करती है ।जो लोग कानून का उल्लंघन करते हैं उनके लिए न्यायोचित दंड का भी प्रावधान करती है। न्यायपालिका निष्पक्ष रुप से न्याय करती है। उनकी नजरों में भारत की प्रत्येक जनता बिना किसी भेदभाव के समानता का अधिकार रखती है ।
डिजिटल इंडिया – डिजिटल का अर्थ वह इलेक्ट्रॉनिक तकनीक है जो बाईनरी सिस्टम पर कार्य करें। इस तकनीक के आने पर सभी कार्यों में तीव्रता आ गई है । इसे कामकाज के सभी क्षेत्रों में अपनाए जाने लगा है। इसका उपयोग शिक्षा, स्वास्थ्य ,बैंकिंग, मार्केटिंग ,संचार ,मीडिया आदि क्षेत्रों में बखूबी से की जा रही है। इसमें डाटा का संधारण सरल हो गया है। कार्य में शुद्धता व तेजी आ गई है। आजकल प्रत्येक हाथ में मोबाइल आ जाने से लेनदेन डिजिटल हो गया है । एक ही बटन दबाते ही बहुत से कार्य चुटकी में संपादित हो जाते हैं। जैसे बैंकिंग क्षेत्र में एक ही क्लिक पर खाताधारक हितग्राहियों के खाते में मनी ट्रांसफर हो जाती हैं।
विश्व में भारत की पहचान –
दुनिया के सबसे ताकतवर देशों की सूची में भारत है तीसरे नंबर पर, हमसे आगे हैं अमेरिका और रूस ।1.4 – 1.5 लाख करोड़ के पार पहुंचा जीएसटी का मासिक टैक्स कलेक्शन, जिनसे भारत की अर्थव्यवस्था सुदृढ़ हो रही है। नए सौर ऊर्जा संयंत्र लगाने में अमेरिका व जापान को पीछे छोड़कर भारत पहुंचा दूसरे स्थान पर ।भारत की जीडीपी आसमान छू रही है ।भारत की जीडीपी 8.2% चीन की 6.7% और अमेरिका की 4.2% है ।जल थल और आकाश तीनों क्षेत्रों में सुपर सोनिक मिसाइल दागने वाला दुनिया का पहला देश बना भारत, हमारे पास अब राफेल भी है। जम्मू कश्मीर में मिली सेनाओं को 2500 बुलेट प्रूफ स्कॉर्पियो का सुरक्षा कवच। भारत अर्थव्यवस्था में फ्रांस को पीछे धकेल कर छठवें स्थान प्राप्त किया है ।ऑटो मार्केट में जर्मनी को पीछे छोड़कर चौथा स्थान प्राप्त किया है ।बिजली उत्पादन में रूस को पीछे धकेल कर तीसरा स्थान पर है ।मोबाइल उत्पादन में वियतनाम को पीछे छोड़कर दूसरे स्थान पर है ।स्टील उत्पादन में जापान को पीछे छोड़कर दूसरे स्थान पर है ।चीनी उत्पादन में ब्राजील को पीछे छोड़कर प्रथम स्थान हासिल किया है । भारत को विश्व गुरु माना जा रहा है। दुनिया की नजरें हमारे भारत पर टिकी हुई है।
नारी सशक्तिकरण –
हमारे देश में नारी सशक्तिकरण पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है ।नारी की जो स्थिति वैदिक काल में देवी तुल्य रही है वह आज भी कायम है। नारियां पुरुषों के साथ कदम से कदम मिलाकर चल रही है या यूं कहे कि सभी क्षेत्रों में नारियां पुरुषों से आगे चल रही है ।वर्तमान में भारत के सर्वोच्च पद पर श्रीमती द्रोपति मुर्मू भारत के 15 वें राष्ट्रपति के पद पर पदस्थ हैं। फिर भी शासन द्वारा महिलाओं के उत्थान हेतु प्रत्येक नौकरियों में आरक्षण की सुविधा देती है।
अध्यात्म भारत –
हमारा भारत देश जितने भौतिक संसाधनों से परिपूर्ण और विकासशील है उतने ही अध्यात्म के क्षेत्र में भी आगे हैं। हमारे देश के लोग मात्र आर्थिक रूप से संपन्नता को विकास की श्रेणी में नहीं लेते अपितु अध्यात्मिक व नैतिक विकास हो तभी पूर्ण विकास समझा जाता है ।
भारत की संस्कृति –
आज भले ही हम राजनीतिक रूप से खंड खंड हैं परंतु फिर भी सांस्कृतिक रूप से हम अखंड भारत की कल्पना को साकार रूप में देख रहे हैं ।राज्य राजनीतिक इकाई है जबकि राष्ट्र सांस्कृतिक इकाई है। जिससे चाह कर भी खंडित नहीं किया जा सकता । इसका प्रमुख उदाहरण उन देशों का दिया जा सकता है जो कभी भारत का हिस्सा हुआ करता था भारत समय समय पर विभाजित होता रहा है और वह अलग देश कहलाते हैं । वे हमारे अखंड भारत के ही अंग थे ।जैसे बांग्लादेश, पाकिस्तान ,भूटान, नेपाल ,श्रीलंका आदि । ये देश भले ही स्वतंत्र देश के रूप में अस्तित्व पर है परंतु संस्कृति की बात करें तो हमारे भारतीय संस्कृति की अनुगामी ही है । वे अपनी संस्कृति नहीं भूले हैं ।हमारे देश के सभी प्रदेशों में जो संस्कृतियां हैं जैसे तीज – त्यौहार मेला -मंडाई, सोलह संस्कार, गायन ,वादन, नर्तन आदि दिनों दिन विकास की चरम सीमा पर है।
देश के विकास में बाधक तत्व-
कहते हैं कि दुनिया के कोई भी चीज हो उनके दो पहलू होते हैं, एक सकारात्मक तो दूसरा नकारात्मक ।उसी तरह हमारे देश के विकास में बहुत से साधक तत्व है तो दूसरी ओर उनके बाधक तत्व भी मौजूद है। वे बाधक तत्व हैं – जनसंख्या में वृद्धि, संसाधनों का अभाव, महामारी, प्राकृतिक आपदा ,महंगाई, बेरोजगारी, अपराधिक तत्व, अशिक्षा ,गरीबी ,धन का विकेंद्रीकरण, राजनीति में विपक्ष की संकीर्ण विचारधारा वाली भूमिका, सत्ता पक्ष के नेताओं का सत्ताउन्माद ,नशाखोरी ,भ्रष्टाचारी, रिश्वतखोरी, जमाखोरी, कर्तव्यहीनता, हिंसा, दगाबाजी, जालसाजी, सामंजस्य की कमी, अपने को श्रेष्ठ व दूसरों को निम्नतर समझने की प्रवृत्ति ,भाई भतीजावाद, हड़ताल ,शासकीय संपत्ति का दुरुपयोग ,अलगाववाद, क्षेत्रीय पार्टियों का प्रभुत्व ,नीति क्रियान्वयन में लचर व्यवस्था, योजनाओं के क्रियान्वयन में कोताही, भिक्षावृत्ति ,तकनीकी का अभाव, रूढ़िवादिता, तश्करी इत्यादि।
उपसंहार
देश के विकास में कई बाधक तत्व होने के बावजूद हमारा देश उस विशाल बरगद की तरह है जिसकी डालियों में अनेक प्रजातियों के पक्षियाँ बसेरा करते हैं। हमारे देश में अनेक भाषा बोली बोलने वाले, रंग रुप वेशभूषा में विविधता रखने वाले एवं अनेक जाति धर्म के मानने वाले लोग एक साथ मिल- जुलकर रहते हैं ।यहां अनेकता में एकता है। एक दूसरे के खुशियों एवं गम में शरीक होते हैं ।ऐसे ही यदि हमारे देश से विभाजित होकर स्वतंत्र अस्तित्व में आए देश हमसे जुड़कर पहले की भांति अखंड भारत निर्माण में सहभागी बने तो विश्व बंधुत्व व विश्व शांति जैसे सपना को साकार किया जा सकता है।
कन्हैया लाल बारले
अध्यक्ष, मधुर साहित्य परिषद इकाई डौंडीलोहारा
ग्राम – कोचेरा
पोष्ट – भीमकन्हार
तहसील- डौंडीलोहारा
जिला- बालोद( छत्तीसगढ़)
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-संपादक
सुरता: साहित्य की धरोहर
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