-आलेख महोत्सव-
आखिर कब रोशन होगा गरीब का घर….?
आजादी के अमृत महोत्सव के अवसर पर ‘सुरता: साहित्य की धरोहर’, आलेख महोत्सव का आयोजन कर रही है, जिसके अंतर्गत यहां राष्ट्रप्रेम, राष्ट्रियहित, राष्ट्र की संस्कृति संबंधी 75 आलेख प्रकाशित किए जाएंगे । आयोजन के इस कड़ी में प्रस्तुत है-श्री अजय अमृतांशु द्वारा लिखित आलेख ”आखिर कब रोशन होगा गरीब का घर….?’।
गतांक – राष्ट्रीय एकता के साधक तत्व
आखिर कब रोशन होगा गरीब का घर….?
-अजय अमृतांशु
आखिर कब रोशन होगा गरीब का घर….?
आजादी के 75 सालों बाद भी इस प्रश्न का जवाब नहीं मिल पाया है । देश मे सरकारें आई और चली गई लेकिन यह यक्ष प्रश्न आज भी जनता के सामने खड़ा हुआ है । आखिर कौन नहीं चाहेगा कि दिवाली के पावन पर्व पर गरीबों का घर भी रोशन हो, परन्तु सरकारी योजनाओं से निकली रौशनी अंतिम व्यक्ति के घर तक पहुंचते पहुँचते विलुप्त हो जाती है। इन सवालों के जवाब ढूंढने में न जाने और कितने वक़्त लगेगें ?
सबसे पहले हम शहरी इलाकों की बात करते हैं। शहरी इलाकों में छोटे बड़े रोजगार के पर्याप्त अवसर होते हैं । गरीब तबके का जीवन स्तर उस पर निर्भर करता है जिस रोजगार से वह जुड़ा हुआ है उसे वह कितनी इमानदारी से करता है। ऐसे कुशल कामगार जो बढ़ई, मिस्त्री, वेल्डर,फिटर, मिल मिस्त्री आदि हैं जिनकी माँग हमेशा बनी रहती है उन श्रमिकों को चाहिए कि वे अवसर का पर्याप्त लाभ उठाएं । लेकिन ज्यादातर यह देखा जाता है कि यह वर्ग काम को अधूरा छोड़ कर अपने पैर में खुद ही कुल्हाड़ी मार लेते हैं। अब अब ऐसे कुशल कामगारों को कौन समझाए? सारी बातें सरकार के ही ऊपर नहीं छोड़ी जा सकती आम जनता को स्वयं से होकर अपने जीवन स्तर को सुधारना होगा।
गरीब तबके का अशिक्षित होना सबसे बड़ा अभिशाप है। शिक्षा की कमी के कारण वे आजीवन यह नहीं समझ पाते कि उनके जीने का मकसद क्या है? अशिक्षा के कारण ही गरीब परिवारों में जनसंख्या की दर सबसे ज्यादा होती है। परिवार बढ़ने से कई प्रकार की समस्याएं उत्पन्न होती है, क्योंकि कमाने वाले तो केवल एक या दो ही होते हैं। अब इतनी कम आय में केवल भरण-पोषण ही हो सकता है उससे ज्यादा कुछ नहीं। इन परिस्थितियों में गरीब तबका समस्याओं से घिर जाता है और आजीवन उबर नहीं पाता है।
गाँवों में हालात और भी दयनीय है। गांवों में लगभग 6 महीने तो काम रहता है लेकिन 6 महीने पूरी तरीके से ग्रामीण बेरोजगार होते हैं। उनके पास और कोई संसाधन नहीं है कि वे 6 महीने कोई और काम कर सके । इन परिस्थितियों के चलते भी ग्रामीण अर्थव्यवस्था चरमराई हुई है। गांव के ज्यादातर व्यक्ति बेरोजगार होते हैं । वैसे भी गांव में संयुक्त परिवार के चलते घर का एक व्यक्ति काम करता है बाकी लोग उनके आश्रित होते हैं जिससे कारण भी बेरोजगारी बढ़ती है। गरीब परिवार के माँ बाप अपने बच्चों को स्कूल भी नहीं भेजते हैं। कई परिवार तो पलायन के चलते बाहर चले जाते हैं और अपने बच्चों को गांव में ही परिजनों के पास छोड़ जाते हैं इससे उन बच्चों का भविष्य पूरी तरह से बर्बाद हो जाता है। किसी भी तरह से हाईस्कूल तक की शिक्षा यदि मिल भी जाए तो आगे की शिक्षा संभव ही नहीं होती।
चिकित्सा सुविधाओं का हाल भी कोई कम बुरा नहीं है । वर्तमान में चिकित्सा इतनी महंगी हो चुकी है कि यह निम्न मध्यम वर्ग की पहुंच से कोसों दूर है। सरकार ने हॉस्पिटल तो खोल दिए हैं लेकिन मरीजों का समुचित इलाज वहां नहीं हो पाता है और प्राइवेट हॉस्पिटलों में इलाज करा पाना गरीब परिवार के लिए संभव भी नहीं है। निजी क्षेत्रों की स्वास्थ्य सेवाएं बेलगाम हो चुकी है, सरकार का इस पर कोई नियंत्रण नहीं है । चिकित्सा के नाम पर मनमानी रकम वसूलना आम बात हो गई है। मरीज वेंटिलेटर पर पड़ा हो या मरीज मर चुका हो तब भी प्राइवेट हॉस्पिटलों का मीटर घूमते रहता है। ऐसी परिस्थितियों में यदि निम्न मध्यम वर्ग का कोई व्यक्ति बीमार पड़ जाए तो समझ लीजिए उनका भगवान ही मालिक है। गरीब आदमी तो इन प्राइवेट हॉस्पिटल में घुसने से पहले ही मर जाता है।
आजादी के बाद से सरकार ने कई कदम उठाए लेकिन स्वास्थ्य सेवाओं के क्षेत्र में वे कार्य नहीं हो सके जो होना चाहिए था। आज भी चिकित्सा गरीबों के लिए दूर की कौड़ी है। बाल श्रम कानून बनने के बाद बाल श्रमिक सार्वजनिक स्थानों पर तो दिखाई नहीं देते लेकिन लेकिन विभिन्न प्रकार की फैक्टरियों, राइस मिल, पोहा मिल, दाल मिल, फटाका व्यवसाय,कृषि आदि स्थानों में आज भी बाल श्रमिक मौजूद है क्योंकि वहाँ देखने वाला कोई नहीं है। बाल श्रमिकों के साथ जब कोई दुर्घटना हो जाती है तो उसे पैसों के दम पर दबा दिया जाता है या मामूली सी राशि देकर प्रकरण को खतम कर दिया जाता है।
निम्न आय वर्ग के लोगों की सबसे बड़ी समस्या नशे की लत है। यह वर्ग जितनी आय अर्जित करता है ज्यादातर उसे शराब या अन्य नशे में बर्बाद कर देता है। शराब के साथ जुआ और सट्टा भी इस वर्ग के लिए घातक है। समाज का यह वर्ग नशाखोरी से उबर नहीं पा रहा है । गांव,गली, मोहल्लों से लेकर शहरों तक नशे का जाल फैला हुआ है। आखिर इस नशाखोरी से आम नागरिकों को कब निजात मिलेगी यह भी ज्वलन्त प्रश्न है?
सरकारी योजनायें तो बहुत बनती है लेकिन उसका सही क्रियान्वयन नहीं हो पाता है जिसके कारण योजनाओं का लाभ उचित व्यक्ति को नहीं मिल पाता। पंच,सरपंच,पार्षद या अन्य सक्षम व्यक्ति के नाम पर गरीबी रेखा का राशन कार्ड बना मिलेगा लेकिन झाड़ू पोछा लगाकर अपना जीवन यापन करने वाली कामवाली बाई के नाम पर राशन कार्ड तक नहीं होना सरकारी योजनाओं की नाकामी का अनूठा उदाहरण है । सरकार को चाहिए कि सामाजिक और आर्थिक ढांचे में पारदर्शिता लायें । निम्न वर्ग में आखिर जागरूकता कैसे लाई जाए यह ज्वलंत प्रश्न है। जब लोगों में सामाजिक जागरूकता आएगी तभी वे इस बात को समझ पाएंगे कि उन्हें आगे बढ़ना है । उन्हें भी कुछ करना है। उनके जीने का मकसद केवल रोटी और कपड़ा नहीं है बल्कि कुछ और है। उन्हें उनके मकसद से अवगत कराना होगा । समाज का युवा वर्ग पूरी तरह नशे की चपेट में है । आखिर युवा वर्ग नशे की चपेट में क्यों और कैसे आ जाता है, इसका भी गहन अध्ययन कर निराकरण जरूरी है। अन्यथा गरीबों के उत्थान और उनके घरों को रोशन करने की बात बेमानी होगी।
अजय अमृतांशु
भाटापारा (छत्तीसगढ़)
अजय अमृतांशु के कविता
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-संपादक
सुरता: साहित्य की धरोहर
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