-आलेख महोत्सव-
राष्ट्र विकास में एक व्यक्ति का योगदान
आजादी के अमृत महोत्सव के अवसर पर ‘सुरता: साहित्य की धरोहर’, आलेख महोत्सव का आयोजन कर रही है, जिसके अंतर्गत यहां राष्ट्रप्रेम, राष्ट्रियहित, राष्ट्र की संस्कृति संबंधी 75 आलेख प्रकाशित किए जाएंगे । आयोजन के इस कड़ी में प्रस्तुत है-श्रीमती सीमा यादव द्वारा लिखित आलेख ”राष्ट्र विकास में एक व्यक्ति का योगदान’।
गतांक –आखिर कब रोशन होगा गरीब का घर….?
राष्ट्र विकास में एक व्यक्ति का योगदान
-सीमा यादव
राष्ट्र किसी भी समाज का वह व्यापक कर्णधार होता है. जिनसे समूचे समाज के नागरिकों का सम्पूर्ण अस्तित्व निहित या खड़ा होता है.राष्ट्र अखण्ड, अटूट एवं एकता की महान इमारत होता है. इसके बिना किसी व्यक्ति के विकास की कल्पना नहीं की जा सकती है. यदि कोई व्यक्ति घर परिवार में गलती कर बैठता है तो परिवार या समाज के लोग उसको बहिष्कृत कर सकता है.किन्तु राष्ट्र ऐसे बहिष्कृत व्यक्ति को शरण देकर उसकी सुरक्षा की जिम्मेदारी उठाता है. और उसके जीवनयापन की व्यवस्था करके न्यायोचित सरंक्षण देता है. इस तरह से राष्ट्र की गरिमा अथाह है. राष्ट्र के प्रति व्यक्ति को व्यक्ति को सजग, सतर्क एवं समर्पित होना चाहिए. हमारा उद्देश्य संकीर्ण न होकर व्यापक स्तर का होना चाहिए. एक ऐसा उद्देश्य जो राष्ट्रीय एकता, समृद्धि, शान्ति, सुरक्षा इत्यादि के आधार पर राष्ट्र को सशक्त, सुदृढ़ व मजबूत बना सकें.
राष्ट्र के उत्थान एवं विकास में एक अकेला व्यक्ति किस प्रकार योगदान दे सकता है? इस पर प्रकाश डालने की कोशिश करते हैं कि यदि कोई व्यक्ति अपने को घर -परिवार व समाज से तिरस्कृत समझता है. और इसलिए वह स्वयं को हताशा,निराशा व तन्हाई की स्थिति में पाता है तो उसे चाहिए कि वह आगे की जिंदगी को राष्ट्र भक्ति में समर्पित कर दें. क्योंकि सेवा और भक्ति से बढ़कर इस दुनिया में कोई सम्पत्ति नहीं है. सेवा में वशीकरण मंत्र होता है. सेवा और भक्ति में पराये को भी अपना बनाने की रामबाण औषधि होती है. जो कि सबसे सरल, सुगम एवं सुन्दर परमार्थ से भरे कार्य होते है.
आज के मतलबी युग में ऐसे सेवा भाव वाले व्यक्तित्व यदा -कदा ही देखने को मिलते हैं. भ्रष्ट, बेईमान एवं चापलूस लोगों के समूह में रहकर कार्य करना एक ईमानदार व्यक्ति के लिए बहुत ही दुर्लभ स्थिति बन जाती है. सफेदपोश लोगों की काली करतूतों की वजह से सारा मानव समाज कलंकित होने लगा है. यदि ऐसे गंदले माहौल एवं वातावरण में रहकर भी जिसने अपनी मानवता की सीमा की लाज रख पाने में सक्षम हैं वे सचमुच ही बहुत ही सौभाग्यशाली हैं. क्योंकि अन्याय, झूठ, कपट, षड्यंत्र इत्यादि अधर्म के कारकों के द्वारा हर कोई अपनी साख जमाना चाहता है.विरले ही होंगे जो सादा जीवन और उच्च विचार की भावना से ओत -प्रोत होकर परमार्थ की दिशा में कार्य करते होंगे. यदि समाज का एक छोटा- सा हिस्सा भी नेक, सच्चाई एवं धर्म की राह में समर्पित होकर परस्पर भाईचारे के साथ जीवनयापन करने लगे तो वो दिन दूर नहीं जब हमारा भारत ‘अखण्ड भारत’ बन जायेगा.
आज की शिक्षा प्रणाली में भी हमें राष्ट्रीय चेतना के पाठ्यक्रम को शामिल करना होगा. तभी हमारे नन्हें -मुन्ने बच्चों के मन में राष्ट्र प्रेम के बीज बो सकेंगे. तभी वह बीज अंकुरित होकर सारे समाज में राष्ट्रीय चेतना की भावना को प्रश्फुटित कर पायेगा. बच्चों के मन में राष्ट्रीय प्रेम, एकता व अखंडता की भावना को कूट -कूटकर भरना होगा. तभी हम अपने राष्ट्र को और भी सशक्त,सुदृढ़, शक्तिशाली बनाने में कामयाब हो सकेंगे. इसके लिए स्वयं को स्वयं से जोड़ना होगा अर्थात् जब तक हम खुद में राष्ट्रीयता का भाव नहीं जगायेंगे, तब तक औरों में वह परिवर्तन या क्रांति नहीं ला सकेंगे. इसके लिए स्वयं के प्रति पहल करनी होगी. यदि शुरुआत खुद से होगी तो उसकी नींव और भी मजबूत होगी. जिससे अपेक्षित लक्ष्य की प्राप्ति कर सकने में सफलता प्राप्त कर सकेंगे.
सीमा यादव, मुंगेली
मोबाइल नम्बर 7772062203
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-संपादक
सुरता: साहित्य की धरोहर
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