आलेख महोत्‍सव: 17. प्रजातंत्र बंदी है-श्रीमती शिरोमणि माथुर

-आलेख महोत्‍सव-

प्रजातंत्र बंदी है

आजादी के अमृत महोत्‍सव के अवसर पर ‘सुरता: साहित्‍य की धरोहर’, आलेख महोत्‍सव का आयोजन कर रही है, जिसके अंतर्गत यहां राष्‍ट्रप्रेम, राष्ट्रियहित, राष्‍ट्र की संस्‍कृति संबंधी 75 आलेख प्रकाशित किए जाएंगे । आयोजन के इस कड़ी में प्रस्‍तुत है-श्रीमती शिरोमणि माथुर द्वारा लिखित आलेख ”प्रजातंत्र बंदी है’।

गतांक –राष्ट्र विकास में एक व्यक्ति का योगदान

प्रजातंत्र बंदी है

-श्रीमती शिरोमणि माथुर

आलेख महोत्‍सव: 17. प्रजातंत्र बंदी है-श्रीमती शिरोमणि माथुर
आलेख महोत्‍सव: 17. प्रजातंत्र बंदी है-श्रीमती शिरोमणि माथुर

प्रजातंत्र बंदी है

ब्रिटिश सरकार द्वारा भारतीय जनता पर होने वाले अत्याचारों से द्रवित हो कर स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने इस देश को उनके चंगुल से मुक्त होने के लिये कठिन संघर्ष किये व अपने प्राणों की आहुतियाँ दीं। कठिन संघर्ष के बाद देश को आजादी तो मिली और देश ने विकास भी किया परन्तु देश मे जो स्थितियां है क्या उन स्थितियों के लिये ही उन्होंने अपने प्राणो की आहुतियॉ दीं थी यह प्रश्न बार बार उठता है? सर्वत्र असंतोष व अराजकता का माहौल है विभिन्न नामों से विभिन्न स्थानों पर कई संगठन या लोग मनमानी कर रहे हैं, जिसने प्रजातंत्र की व्याख्या ही बदल कर रख दी है। धर्म, क्षेत्रवाद, जातिवाद ने प्रजातंत्र को बंदी बना रखा है जिसके प्रभाव स्वरूप हर किसी को स्वछन्द आचरण करने की छूट मिल गई है। राजनीतिक सामाजिक, धार्मिक अलगाववादी हर सगंठन कुतर्को द्वारा अपने को सही व उचित ठहराने की कोशिश भी कर रहा है, और लगभग पूरा भारत इन सगठनों के कारनामों की सजा भोग रहा है।

धर्म के नाम पर मजहबी उन्माद फैलाया जा रहा है। मजहबी उन्माद फैलाने वालों का कोई मजहब नहीं होता। धर्म या मजहब कोई उन्माद नही लाता, तबाही नही लाता, बर्बरता नही फैलाता, जो इस देश मे फैलायी जा रही है धर्म सबके रोटी सेकने का साधन बन गया है और कुछ लोग स्वयं को धर्म का खैरख्वाह समझने लगे हैं। एक समय था लोग देश के लिये अपनी जान दे देते थे और आज धर्म का मुखौटा लगा कर एक दूसरे की जानें ले रहे हैं, मुखौटा चाहे किसी भी धर्म का हो सब अपने अपने दृष्टि कोण से अपनी नेतागीरी चमका रहें हैं।

प्रजातंत्र और चुनाव एक दूसरे के पूरक हैं और प्रजातंत्र में चुनाव अपरिहार्य है। हर राजनैतिक पार्टी चुनाव में ऐसे ही लोंगो को अपना प्रत्याशी बनाती है, जो ऐन केन प्रकारेण चुनाव जीत सके साथ ही पार्टियां चुनाव में प्रयोग होने वाले हथकंडो को अनदेखा करते हुये सिर्फ चुनाव जीत सकने वाले उम्मीदवारों को ही महत्व देती है। ऐन केन प्रकारेण चुनाव जीत कर गये लोग जब सत्ता पर बैठते हैं तो उनका उद्येश्य भी सत्ता पर काबिज बने रहना होता है और वे चुनाव में हुये भारी खर्च की भरपाई करने व पुनः चुनाव जीतने के लिये आर्थिक साधन जुटाने में ही उनका अधिक समय लगता है। ऐसे सत्तासीन लोगो से देशहित व जनता के हित की कल्पना नहीं की जा सकती। वर्तमान में सत्ता लोंगो के आकृर्षण का केन्द्र हो गई है सत्ताधीशो को मिलने वाली – सुविधाओं ने उन्हें अधिक आरामतलब व सविधाभोगी बना दिया है। अत्याधिक सम्मान व सुख सुविधा पाने के कारण वे भी अपने को ” सुपर परसन” मानते हुये हर विषय का मास्टर या विशेषज्ञ समझने लगते है, सत्ता के मद मे चूर होकर कभी कभी तो वे अशोभनीय कार्य भी कर डालते है जबकि वे किसी तरह चुनाव जीतकर पहुंचे हुये बाहुबली या धनबली होते है।

दिन प्रतिदिन गिरते राजनैतिक मूल्यों व जोड़तोड़ की राजनिति व राजनीतिक गणित के कारण सुधीजन वहां अपने को व्यवस्थित नही कर पाते। भीड़भाड़ • चमकदमक दोहरे चरित्र भड़काउ भाषणों के बीच बौद्धिक मन की भूख शांत नही हो पाती है इसलिये बौद्धिक क्षमताओं और राजनितिक योद्धाओं की दूरी बढ़ती जाती है। देश का विकास व देश की समस्यायें दोनों के सहयोग से ही हल हो सकती है, उच्चकोटि की योजनाओं के क्रियान्वयन के लिये सरकारी सहयोग व मशीनरी दोनो जरूरी है।

देश भयावह समस्याओं से जूझ रहा है आंतकवाद, उग्रवाद, नक्सलवाद, मंहगाई, बेरोजगारी, गरीबी, अकाल, अवर्षा सम्प्रदायवाद देश को खाये जा रहे है। देश की आजादी के बाद से यह समस्यायें बढ़ती ही जा रही है, तो क्या यह समस्याये हमारी बढ़ती लापरवाही व गलत नीतियों का परिणाम नही है ? देश जब भयावह कठिनाईयों में फँसा हो और राजनीतिज्ञ सत्ता हथियाने के हथकंडो में व्यस्त हों तो उस नेता से आप देश के विकास की आशा कैसे कर सकते है? देश में नयी समस्यायें पैदा करने वाले राजनीतिज्ञों से देश की समस्याओं के समाधान की कल्पना करना मूर्खता नही है तो और क्या है?

इस समय देश में हुये भयावह साम्प्रदायिक दंगो ने मानवीय संवेदनाओं को सुखा दिया। दिल दहलाने वाली लूटपाट, मारकाट छुरेबाजी, आगजनी, हत्यायें, महिलाओं के साथ अत्याचार बलात्कार सभी कुछ हुआ और तो और गर्भवती माताओं को भी नहीं बख्शा गया जो भी कुछ हुआ कहने की हिम्मत नही होती, सैकड़ो लोग बेघरवार हो गये, करोड़ो की सम्पत्ति बरबाद हो गई, अभी भी पूरी तरह शान्ति नही है। तूफान, भूकंप, साम्प्रदायिक दंगो के बाद अकाल, अवर्षा और चुनाव सब कुछ देश को झेलना है। कभी “सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सतुं निरामया” व “सर्वजन हिताय व सर्वजन सुखाय ” के आधार पर जिस देश में राज्य व धर्म कर्म किये जाते रहे हों उस देश में राजनीति का ऐसा घिनौना रूप देखा जा रहा है, कितने शर्म की बात है।

आज प्रजातंत्र के नाम पर बाहुबली व धनबली ऐन केन प्रकारेण चुनाव जीतकर सत्ता पर काबिज है और धर्म व मानवता को पैरो तले रौंद कर स्वार्थ सिद्धि कर रहे है। इसी देश का लंगोटीधारी गांधी सत्य अंहिसा की लाठी लेकर जिसके सामाज्य मे कभी सूर्य अस्त न होता हो उस बिट्रिश सत्ता से – टकराया था और भारत में ही नहीं सम्पूर्ण विश्व में प्रकाश-पुंज बनकर उन्होने भारत को पराधीनता की बेड़ियों से मुक्त करवाया था और आज का मनीषी, बुद्धिजीवी निरीह होकर सबकुछ देख और भोग रहा हैं आखिर क्यों ?

जो लोग समय और परिस्थितियों के साथ नहीं चल पाते वे पिछड़ जाते है, ऐसा ही देश व समाज के साथ भी होता है, समय आ गया है सत्ताधीशों को मिलने वाली सुविधाये कम की जायें जिससे सत्ता का सम्मोहन कम हो रोजगार की व्यवस्था किये बिना सिर्फ नारेबाजी के लिये युवाओं को बहुत दिनों तक साथ नहीं रखा जा सकता। भूखे पेट युवा पीढ़ी कब तक राजनैतिक पार्टियों के लिये नारेबाजी करती रहेगी। युवावर्ग देश की बहुत बड़ी शक्ति होती है जिस पर देश के साथ परिवार की भी बड़ी जिम्मेदारियां रहती है। जब युवा वर्ग बेरोजगार हो तो तब उस वर्ग की स्थिति क्या होगी? यह अनुभवजन्य बात है। आज राजनीतिज्ञ उनके विकास के लिये योजना न बनाकर ढकोसला करते हुये उनसे नारेबाजी करवाते है युवा पीढ़ी निराशा में जी रही। देश में विकास की संभावनायें हैं आवश्यकता है सिर्फ रोजगारोन्मुखी योजनाये बनाकर ईमानदारी से उन्हें अमल में लाने की ।

अपने अपने स्वार्थो के लिये कहीं नक्सली कही आंतकवादी कहीं उग्रवादी कहीं धर्म कहीं जाति कहीं क्षेत्र कहीं जनजाति- यही सब आज के प्रजातंत्र पर हावी है। समस्याओं पर समस्यायें हावी है। जिनका समाधान नही हो पा रहा है आखिर कहीं तो कोई सोच होनी चाहिये जिससे इस देश का भला हो, आज जबकि भौतिकता नैतिकता पर हावी है, सच्चाई झूठ के आगे धाड़धाड़ रो रही है और भ्रष्टाचार ईमान को नचा रहा है, फिर भी आशा की किरन बाकी है और वो है हमारे बुद्धिजीवी वर्ग ।

श्रीमती शिरोमणि माथुर
दल्ली राजहरा
मो.न. – 98937-42299

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-संपादक
सुरता: साहित्‍य की धरोहर

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