-आलेख महोत्सव-
आज़ादी के अमृत महोत्सव में राष्ट्र स्वरुप : चिंतन-मंथन
आजादी के अमृत महोत्सव के अवसर पर ‘सुरता: साहित्य की धरोहर’, आलेख महोत्सव का आयोजन कर रही है, जिसके अंतर्गत यहां राष्ट्रप्रेम, राष्ट्रियहित, राष्ट्र की संस्कृति संबंधी 75 आलेख प्रकाशित किए जाएंगे । आयोजन के इस कड़ी में प्रस्तुत है-डॉ अलका सिंह द्वारा लिखित आलेख ”आज़ादी के अमृत महोत्सव में राष्ट्र स्वरुप : चिंतन-मंथन’।
गतांक – आलेख महोत्सव: 18. राष्ट्रीय एकता के बाधक तत्व-अनिता चन्द्राकर
आज़ादी के अमृत महोत्सव में राष्ट्र स्वरुप : चिंतन-मंथन
-डॉ अलका सिंह
आज़ादी के अमृत महोत्सव में राष्ट्र स्वरुप : चिंतन-मंथन
विजय और विकास पथ पर बढ़ते हुये 15 अगस्त 2022 को हम आज़ादी के अमृत महोत्सव के स्वर्णिम अध्याय रच रहे होंगे। विश्व में तिरंगे की गरिमा और हमारी अनेकता में एकता की अद्वितीय छटा स्वतः ही मानवीय गुणों और मूल्यों का प्रतीक रहा है। आज़ादी के पचहत्तर वर्ष मना रहे इस अमृत महोत्सव में हम एक ऐसे अवसर के साक्षी हैं जहाँ हम सभी अपनी बहुआयामी संस्कृति को देख कर गौरवान्वित होते हैं। भारत का मानचित्र विश्व में अपने आदर्श इतिहास, विलक्षण भूगोल और सभ्यता के स्थायित्व को प्रदर्शित करता है। हमारी भाषायें , धर्म , सामाजिक प्रथायें या यूँ कहें की हमारी पारिवारिक व्यवस्था समूह जाति की व्याख्या, परम्पराएं, रीति रिवाज़, त्योहार, पशु- पक्षी, प्रकृति आदि का पारिस्थितिकीय समीकरण, हमारी सदियों पुरानी विचारधाराओं से होते हुये मानव जीवन के उद्देश्य, स्वाभिमान स्ववलम्बन और स्वतंत्रता की अविस्मरणीय गाथा है।
यह समय है समीक्षा का, स्वतंत्रतता की परिभषा को समझने का, स्वराज और आत्मनिर्भरता के पारस्परिक सम्बन्ध को समझने का, देश प्रेम और राष्ट्र निर्माण में व्यक्ति के योगदान के आकलन का, शिक्षा व्यवस्था में व्यवहारिक ज्ञान के पक्षों पर चर्चा-परिचर्चा का, शूर और वीरों की इस धरती पर रचे गए अनूठे अप्रतिम रण की व्याख्या का । साथ ही यह समय है देश भक्ति के अनंत रंगों में शक्ति, विविधता और वीरांगनाओं के प्रेरणात्मक गुण और रहस्य से भरे नेतृत्व के क्षमताओं को समझने के हमारे साहित्य, काव्य, महाकाव्य, संगीत, नृत्य, नाटक, रंगमंच और विचारधाराओं में शौर्य और ऊर्जा के उत्सव के उत्सव को आत्मसात करने का और उसके महत्व को जीवन में स्थान देने की। १८५७ की क्रांति, स्वतंत्रता की अलख जगाने वाले मंगल पाण्डे का ऐतिहासिक वृत्तांत एक संस्थागत स्वरुप है, जहाँ से आज़ादी की क्रांति की लहरों में लक्ष्य को साधने और शौर्य की संस्कृति को जानने के अनेक अध्यायों का जन्म हुआ। आज भी बाल मन थकता नहीं रानी लक्ष्मी बाई के बलिदान को अनायास ही दोहराते हुए । इसे देखते हुए हमारा दायित्व है कि हम बच्चों को बतायेँ क़ि रानी लक्ष्मी बाई क्यों स्वतंत्रता और स्वायत्तता की अभिव्यक्ति हैं , कैसे वो बन गयीं हरबोलों की जुबानी :
“सिंहासन हिल उठे राजवंशों ने भृकुटी तानी थी,
बूढ़े भारत में आई फिर से नयी जवानी थी,
गुमी हुई आज़ादी की कीमत सबने पहचानी थी,
दूर फिरंगी को करने की सबने मन में ठानी थी।
चमक उठी सन सत्तावन में, वह तलवार पुरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी। ( 1)
यह अवसर है, हम यह भी देखें क़ि हमारे स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों द्वारा आज़ादी और सत्य का जयघोष किस प्रकार देश स्नेह में रंगा हुआ वीरता , साहस और शक्ति का अपनी मातृभूमि के प्रति न्योछावर रहा है । हम आज भी श्यामलाल गुप्त ‘पार्षद’ द्वारा लिखी गयी पंक्तियाँ निम्नलिखित पंक्तियों को बच्चों द्वारा गाते हुये देखते हैं :
“विजयी विश्व तिरंगा प्यारा,/झंडा ऊंचा रहे हमारा।/सदा शक्ति बरसाने वाला,
प्रेम सुधा सरसाने वाला,/ वीरों को हरषाने वाला,/मातृभूमि का तन-मन सारा।”(2)
राष्ट्र इस समय हमारी शिक्षण व्यवस्था की समीक्षा कर रहा है। इस परिप्रेक्ष्य में राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के अंतर्गत यह विचार निश्चय ही समीचीन होगा कि हम एक बार पुनः अपने ज्ञान दर्शन, तर्क, बुद्धि, विज्ञान, गणित, भौतिकी, साहित्य आदि की कुछ पुरानी और प्रभावशाली धर्मनिरपेक्ष परम्पराओं को अपने पाठ्यक्रमों में सम्मिलित करें। मंथन का विषय यह भी है क़ि किस प्रकार हम विद्यालयों, महाविद्यालयों, विश्वविद्यालयों की शिक्षा में सहयोगात्मक ताल-मेल का प्रयास करें, जिससे एक वैभवशाली भरत का सपना साकार हो सके। हम सुनियोजित कार्यक्रमों की श्रृंखला के द्वारा बात कर सकते हैं, सामाजिक कुरीतियों एवं कुप्रथाओं पर, बालिकाओं एवं महिलाओं के सशक्त योगदान पर, युवाओं के रोज़गार की, स्वतंत्रता संग्राम की घटनाओं की, भारतीय विचारधाराओं, उपनिषद वेदों और पुराणों की, उत्सव, मनोरंजन और खेल जगत में सृजनात्मक ऊर्जा स्रोतों की ओर बढ़ते सूचना क्रांति और अपनी सभ्यताओं में छिपे आत्मनिर्भर सभ्यता के समसामयिक महत्त्व को जीवन में उचित स्थान प्रदान करने पर ।
सन्दर्भ सूची
- सुभद्रा कुमारी चौहान : ‘ झाँसी की रानी’https://bundelkhand.in/POEM/khoob-ladi-mardani-woh-to-jhansi-wali-rani-thi
- श्याम लाल गुप्त पार्षद:”विजयी विश्व तिरंगा प्यारा,झंडा ऊंचा रहे हमारा ” (रचनाकाल १९२४) ww। ‘ http://kavitakosh.org
-डॉ अलका सिंह
(डॉ अलका सिंह के विषय में : डॉ अलका सिंह डॉ राम मनोहर लोहिया नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी लखनऊ में शिक्षक हैं।शिक्षण एवं शोध के अतिरिक्त डॉ सिंह महिला सशक्तीकरण , विधि एवं साहित्य तथा सांस्कृतिक मुद्दों पर काव्य , निबंध एवं समीक्षा क्षेत्रों में सक्रिय हैं। इसके अतिरिक्त वे रजोधर्म सम्बन्धी संवेदनशील मुद्दों पर पिछले लगभग डेढ़ दशक से शोध ,प्रसार एवं जागरूकता का कार्य कर रही है। वे अंग्रेजी और हिंदी में समान रूप से लेखन कार्य करती है और उनकी रचनायें देश विदेश के पत्र पत्रिकाओं में निरंतर प्रकाशित होती हैं। पोस्टमॉडर्निज़्म, पोस्टमॉडर्निज़्म : टेक्स्ट्स एंड कॉन्टेक्ट्स,जेंडर रोल्स इन पोस्टमॉडर्न वर्ल्ड,वीमेन एम्पावरमेंट, वीमेन : इश्यूज ऑफ़ एक्सक्लूशन एंड इन्क्लूज़न,वीमेन , सोसाइटी एंड कल्चर , इश्यूज इन कैनेडियन लिटरेचर तथा कलर्स ऑव ब्लड जैसी उनकी सात पुस्तकें प्रकाशित हैं तथा शिक्षण एवं लेखन हेतु उन्नीस पुरस्कार/ सम्मान प्राप्त हैं। अभी हाल में उन्हें उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा उच्च शिक्षा श्रेणी में राज्यस्तरीय मिशन शक्ति सम्मान 2021 प्रदान किया गया है।)
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-संपादक
सुरता: साहित्य की धरोहर
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