आलेख महोत्‍सव: 3.राष्ट्रीय एकता के बाधक तत्व-मनोज श्रीवास्‍तव

-आलेख महोत्‍सव-

आजादी के अमृत महोत्‍सव के अवसर पर ‘सुरता: साहित्‍य की धरोहर’ आलेख महोत्‍सव का आयोजन कर रहा है, जिसके अंतर्गत यहां राष्‍ट्रप्रेम, राष्ट्रियहित, राष्‍ट्र की संस्‍कृति संबंधी 75 आलेख प्रकाशित किए जाएंगे । इस आयोजन के तीसरी कड़ी के रूप में श्री मनोज श्रीवास्तव का आलेख प्रकाशित किया जा रहा है ।

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राष्ट्रीय एकता के बाधक तत्व

-मनोज श्रीवास्‍तव

आलेख महोत्‍सव: 3.राष्ट्रीय एकता के बाधक तत्व-मनोज श्रीवास्‍तव
आलेख महोत्‍सव: 3.राष्ट्रीय एकता के बाधक तत्व-मनोज श्रीवास्‍तव

जनतंत्र में राष्ट्रीय एकता का होना अत्यंत आवश्यक होता है-

भूमिका- हमारा देश सार्वभौमिक एकता को मानने वाला देश है। हमारी भावनाएं वसुधैव कुटुंबकम की हैं। हमने इतिहास के आरंभ से वर्तमान दौर तक संपूर्ण विश्व के कल्याण की कामना ही की है। हमने आवश्यकता पड़ने पर विश्व के किसी भी देश की सहायता ही की है। किसी भी देश के विकास और उसके उत्तरोत्तर प्रगति के लिए उस देश के जनतंत्र में राष्ट्रीय एकता का होना अत्यंत आवश्यक होता है। हमारा देश संपूर्ण विश्व के लिए राष्ट्रीय एकता का सशक्त उदाहरण है किंतु 21वीं सदी में पाव रखते रखते हमारे देश में भी अनेक परिवर्तन हुए हैं तथा राष्ट्रीय एकता पर भी प्रभाव पड़ा है।

राष्ट्रीय एकता के बाधक तत्व-

राष्‍ट्रीय एकता एक राष्‍ट्र के समग्र विकास के लिए पहली प्राथमिकता होती है । राष्‍ट्रीय एकता को बनाये रखने के लिए इनके बाधक तत्‍तवों का पहचान करना आवश्‍यक है, जिससे उन बाधाओं को दूर किया जा सके । आजादी के इस 75वें वर्षगांव पर यदि हम सिंहावलोकन करने पर राष्‍ट्रीय एकता के कई बाधक तत्‍व दृष्टिगत होने लगे हैं । विशेषकर वैश्‍वीकरण और आधुनिकता के दौर में । इन बाधक तत्‍वों का संग्रहीकरण करने प्रमुख बाधक तत्‍व इस प्रकार उभर कर आते हैं-

उदात्त विचारों का अभाव –

आज लोगों के भीतर सामंजस्य नहीं है लोगों में धैर्य का अभाव देखा जाता है। आज लोगों में उदात्त विचारों का अभाव भी देखा जाता है। आज  ऐसा परिवेश निर्मित हो चुका है कि लोग केवल अपने बारे में सोचने लगे हैं, स्वार्थ के बारे में सोचने लगे हैं, उनका विचार व्यापक न होकर संकुचित होता जा रहा है जिसके कारण राष्ट्र में पारिवारिक, सामाजिक और राष्ट्रीय विघटन की शुरुआत हो रही है, निश्चित रुप से देश के लिए यह सबसे बड़ी समस्या है। यह घातक समस्या है और भविष्य में राष्ट्रीय एकता के लिए बड़ी  बाधा के रूप में परिलक्षित हो रही है।

एकाकी भावना –

आज देश एकाकीपन की भावना व्याप्त होती जा रही है जिसके कारण लोगों के भीतर अकेले रहने की आदत या व्यवहार वर्तमान में परिलक्षित हो रही है आज लोग अपने संयुक्त परिवार को छोड़कर अकेले रहने की दिशा में अग्रसर हो रहे हैं जिसके कारण संयुक्त परिवार बिखर रहा है तथा लोगों के मन में एकता की भावना भी खंडित हो रही है लोग केवल अपने बारे में ही सोच रहे हैं, यहीं से लोगों के मन में एकता के प्रति खंडन की भावना की शुरुआत होती है जो राष्ट्रीय एकता के लिए सबसे बड़े खतरे के रूप में दिखाई देता है या दिखाई दे रहा है।

आधुनिकता –

आज राष्ट्रीयता के समक्ष बाधक के रूप में सबसे बड़ी चुनौती आधुनिकता भी है आज science हर क्षेत्र में तरक्की कर रहा है, आगे बढ़ रहा है लेकिन लोग नैतिक और चारित्रिक रुप से पीछे हो रहे हैं लोग भौतिक रुप से विकास तो कर रहे हैं किंतु स्वभाव में, व्यवहार में, बुद्धि में, प्रेम, स्नेह, भाईचारा, दया और एकता की भावना कम होती जा रही है जिसके कारण ऐसा प्रतीत होता है कि यह प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से राष्ट्रीय एकता के समक्ष बाधक के रूप में दिखाई दे रही है।

बालपन का संस्कार –

आज की पीढ़ी में संस्कारों का अभाव देखने को मिलता है। पहले प्रारंभ से ही बालक में संस्कारों का स्वभाविक समावेश होता था क्योंकि समाज और परिवार का  परिवेश ही संस्कारमय होता था उसी किंतु आज बच्चों के साथ-साथ माता पिता भी आधुनिक हो गए हैं उन्हें संस्कार की अपेक्षा बच्चों को अधिक सुविधाएं देने में ज्यादा आनंद प्राप्त होता है वह बच्चों की वांछित अवांछित सभी प्रकार के इच्छाओं की पूर्ति करने के लिए हर संभव प्रयास करते हैं जिसके कारण आज का बालक अभाव एवं समस्याओं को नहीं जान पाता है तथा प्रदत्त सुविधाओं का दुरुपयोग करता है और उसे किसी प्रकार का दायित्व का बोध नहीं होता है फलस्वरुप वह केवल वही करता है जो उसके मन में होता है, जो उसे वर्तमान परिवेश में दिखाई देता है और आगे चलकर यही राष्ट्रीय एकता में  सबसे बड़ी बाधा का कारण होता है।

स्कूली पाठ्यक्रम –

आज शिक्षा संस्कार का बहुत बड़ा माध्यम है लेकिन यह देखा जा सकता है कि आज से 20-30 साल पहले स्कूलों का पाठ्यक्रम सशक्त हुआ करता था, उसमें सैद्धांतिक और व्यवहारिक पहलूओं में जोर दिया जाता था। हर पाठ बालक अथवा छात्र के लिए प्रेरणा का कार्य करता था किंतु आज यह देखा जाता है कि आज के पाठ्यक्रम में कुछ विशेष प्रेरणादाई स्रोत नहीं है आज देश की देश की समस्याओं पर विशेष जोर नहीं दिया जाता बल्कि केवल श्रृंगार और अनावश्यक तथ्यों को पाठ्यक्रम में शामिल किया जाता है जिससे छात्रों को कुछ प्रेरणा नहीं मिल पाती है और उनमें देश भक्ति की भावना का विकास उस तरह से नहीं हो पाता है जिस तरह कुछ वर्ष पूर्व हुआ करता था। निश्चित रुप से आज के पाठ्यक्रम में, हमारे देश की शैक्षणिक रणनीति में बहुत बड़े परिवर्तन की आवश्यकता है जिससे छात्रों में सामाजिक दायित्व का बोध, देश भक्ति का बोध, परिवार और समाज के प्रति उत्तरदायित्व का बोध हो और यह सब तभी हो सकता है जब हमारे स्कूल का पाठ्यक्रम मजबूत होगा सशक्त होगा और प्रभावी होगा। 

सद्साहित्य का अभाव –

आज बाजार में सदसाहित्य का अभाव भी देखा जाता है पहले बाजार में अनेक अच्छे साहित्य पर्याप्त मात्रा में मिलते थे जिसमें देश, समाज और राष्ट्र के विचारों का बहुत ही गूढ़ प्रभाव देखने को मिलता था। ऐसे साहित्य की अधिकता थी जिसमें देश की समस्याओं के साथ-साथ लोगों में दायित्व बोध का आभास होता था लेकिन आज अनर्गल और अवांछित साहित्य मार्केट में उपलब्ध हैं जिसके कारण छात्रों में, नागरिकों में अपने दायित्व का बोध नहीं होता और नकारात्मकता की ओर आकृष्ट होते हैं जिसके कारण राष्ट्रीयता की भावना उन के भीतर समाहित नहीं हो पाती है और वह किसी नकारात्मक दिशा की ओर बढ़ने लगते हैं जो कही न कही राष्ट्रीय एकता में बाधा उत्पन्न करती है।

जातिवाद –

आजादी के 70 साल बाद आज जातिवाद एक बहुत ही बड़ी समस्या है। यह देश के लिए घातक समस्या है, एक तरफ हम 21वीं सदी में कदम रख चुके हैं जहां पर हमारी जनसंख्या विश्व में बहुतायत है और हम और विकास के लिए आगे की ओर बढ़ रहे हैं वहीं दूसरी ओर जातिवाद के कारण लोगों में ईर्ष्या, वैमनस्यता, और हिंसा की भावना पैदा होती है और निश्चित रुप से यह राष्ट्रीय एकता के लिए बहुत बड़ी बाधा है, इससे न केवल राष्ट्रीय एकता में बाधा पहुंचती है बल्कि देश का विकास भी अवरुद्ध होता है और शत्रु देश के लोगों को सम्बल मिलता है।

क्षेत्रवाद-

आज राष्ट्रीयता के लिए क्षेत्रवाद बहुत बड़ी समस्या है। हम सभी जानते हैं कि कुछ वर्ष पहले दक्षिण भारत में भाषा के आधार पर क्षेत्र के आधार पर अलग राज्य बनाने की मांग की तथा हिंसात्मक घटनाएं भी हुई जो देश के लिए बहुत बड़ी समस्या है। भविष्य में इससे कोई अच्छी प्रेरणा नहीं मिलेगी बल्कि लोगों में इस तरह की भावना का विकास होगा और अलग-अलग क्षेत्रों में लोग ऐसी अपेक्षा रखना आरंभ कर देंगे तब क्षेत्र और भाषा के आधार पर हमारे देश में विखण्डन की स्थिति निर्मित हो जाएगी जो राष्ट्रीयता के लिए बहुत बड़ी बाधा है।

मीडिया-

मीडिया का कार्य होता है कि समाज और राष्ट्र के सामने सच्चाई को उजागर करें, वही आज की मीडिया एक तरफ सच्चाई को उजागर तो करती है लेकिन मीडिया के ऐसे भी रूप  देखने को मिल जाते हैं जो कि लालच और भ्रष्टाचार में शामिल होकर नकारात्मक पहलू समाज और देश को दिखाती है जिससे लोगों में भ्रम पैदा होता है लोगों में मीडिया के प्रति सकारात्मक सोच नहीं रहती और लोगों में भ्रामक विचार उत्पन्न होते हैं जिससे राष्ट्रीय एकता में बाधा पहुचने की काफी हद तक संभावना बढ़ जाती है इसलिए जो लोकतंत्र का चौथा स्तंभ माना जाता है उस मीडिया को राष्ट्रीय एकता के लिए प्रेरणादाई माध्यम बनने की ओर ध्यान देना चाहिए जिससे वह राष्ट्रीय एकता का सशक्त माध्यम बन सके।

ओछी राजनीति-

बडे ही दुख की बात है कि आज हमारे देश की राजनीति बहुत ही ओछी हो चुकी है। जो राजनीति आरम्भिक स्थिति में देश के कल्याण के लिए गठित की गई थी आज वही राजनीति स्वार्थ के लिए, भ्रष्टाचार के लिए अपना जा रही है और इस राजनीति को गंदा करने में कोई कसर नहीं छोड़ा जा रहा है। राजनीति के कारण आज देश में हिंसा, भ्रष्टाचार,लड़ाई-झगड़े और हिंसात्मक घटनाओं को अंजाम दिया जा रहा है जो घटिया राजनीति को बढ़ावा देने के लिए उत्तरदाई है। आज लोग जनप्रतिनिधि बनने के लिए लाखों खर्च करते हैं, सत्ता में आने के लिए अवैध पैतरे अपनाते हैं और साथ ही लोगों से जनता से झूठे वादे भी करते हैं, अनेक प्रकार की झूठी घोषणाएं भी करते हैं, जनता को लालच दिलाते हैं, रुपए पैसे शराब का वितरण करते हैं जिससे लोगों में भी गलत मार्ग के प्रति झुकाव उत्प्न्न हो रहा है और एक गलत परंपरा की शुरुआत हो गई है जिसके कारण कहीं न कहीं लोगों में देश के प्रति सम्मान नहीं है व लोगों में भ्रष्टाचार स्वार्थ की भावना पनप रही है, निश्चित रुप से यह राष्ट्रीय एकता के लिए बहुत बड़ी बाधा है।

आतंकवाद व नक्सलवाद-

आज आतंकवाद और नक्सलवाद हमारे देश के लिए सबसे बड़ी चुनौती है। आतंकवादी और नक्सलवादी अपने विचारों को अंजाम देने के लिए हमारे देश में हमला करते हैं, हमारे नौजवानों को शहीद करने की दिशा में अग्रसर होते हैं, हमारे देश की संपत्तियों को नुकसान पहुंचाते हैं, लोगों में भय और अराजकता उत्पन्न करने का अनर्गल प्रयास करते हैं जिसके कारण कहीं न कहीं लोगों के मन में भय उत्पन्न होता है। आतंकवाद हमारे राष्ट्र एकता को खंडित करने के लिए ही ऐसा प्रयास करते हैं तथा युवाओं को भी इस दुष्कार्य के लिए प्रेरित करते हैं ताकि वे भी उनके साथ सम्मिलित होकर राष्ट्रीय एकता को बाधा पहुंचाए। निश्चित रुप से नक्सलवाद और  आतंकवाद राष्ट्रीय एकता के लिए सबसे बड़ी बाधा है।

बढ़ते अपराध नरम कानून-

आज हमें अभी स्वीकार करना होगा कि आज लोग और महिलाएं भय के वातावरण में जीवन जी रहे हैं। आज हमारे देश में अपराध की संख्या बढ़ चुकी है। बालाओं की अस्मत लगातार लूटी जा रही है। चोरी, डकैती, हत्या और अन्य गंभीर अपराध निरंतर होते जा रहे हैं, कहीं न कहीं हमारा कानून इसे रोकने में अथवा नियंत्रित करने में कमजोर पड़ रहा है। आज कोई एक गंभीर अपराध होता है तो वही अपराध अगले दिन, फिर उसके अगले दिन लगातार दुहराता है जिसके कारण लोगों में भय का माहौल रहता है। आज महिलाएं सुरक्षित नहीं है तथाकथित कानून तो बहुत है किंतु उसका पालन कठोरता से नहीं हो पाता है जिसके कारण लोगों में सविधान और कानून के प्रति आस्था कम होती जा रही है। कड़े कानून के अभाव में अपराधी बचकर निकल जाते हैं जिसके कारण जो आम नागरिक हैं उनमें कानून के प्रति श्रद्धा का भाव नहीं होता है और निश्चित रुप से यह राष्ट्रीय एकता को खंडित करता है, राष्ट्रीय एकता को बाधित करता है। इसलिए कानून और सशक्त होना चाहिए, अपराधियों को अपराध सिद्ध होने पर ऐसी कड़ी सजा मिलनी चाहिए जिसके बाद उनकी आने वाली पीढियां भी अपराध करने के पहले कांप जाए क्योंकि यह मुद्दा भी राष्ट्रीय एकता के समक्ष सबसे बड़ी बाधा है।

निष्कर्ष-

किसी भी देश के विकास में उसका इतिहास नींव के समान होता है। राष्ट्रीय एकता ही ऐसी शक्ति है जिसके बल पर सम्पूर्ण सफलता को सहज रूप में प्राप्त किया जा सकता है अतः  संपूर्ण नागरिकों को अपने अधिकारों के साथ अपने कर्तव्यों का बोध होना अति आवश्यक है साथ ही देश के ऐसे जिम्मेदार व्यक्तित्व जो शीर्ष में बैठकर अपनी जिम्मेदारी निभा रहे हैं उन्हें राष्ट्र के सूक्ष्म से सूक्ष्म पहलुओं पर गंभीरता से विचार करना होगा, राष्ट्र और समाज के नकारात्मक पहलुओं को समाप्त करना होगा तभी जाकर हमारी राष्ट्रीय एकता पूर्ण रूप से सफल एवं सार्वभौमिक हो पाएगी तथा देश परं वैभव को प्राप्त कर पाएगा।

-मनोज श्रीवास्‍तव
नवागढ़, जिला बेमेतरा (छ.ग.)


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-संपादक
सुरता: साहित्‍य की धरोहर

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