-आलेख महोत्सव-
आजादी के अमृत महोत्सव के अवसर पर ‘सुरता: साहित्य की धरोहर’, आलेख महोत्सव का आयोजन कर रहा है, जिसके अंतर्गत यहां राष्ट्रप्रेम, राष्ट्रियहित, राष्ट्र की संस्कृति संबंधी 75 आलेख प्रकाशित किए जाएंगे । इस आयोजन के इस कड़ी में प्रस्तुत है स्वतंत्रता संग्राम में हिन्दी भाषा का योगदान पर श्री विनोद नायक का आलेख ‘”तुम भूल न जाना हिन्दी” ।
गतांक- आलेख महोत्सव: 4. राष्ट्रीय कर्तव्य ही राष्ट्रभक्ति है-शोभा रानी तिवारी
स्वतंत्रता संग्राम में हिन्दी भाषा का योगदान-“तुम भूल न जाना हिन्दी”
-विनोद नायक

मानव का जीवन चक्र भाषा के बिना असंभव है –
सूर्य का प्रकाश मात्र प्रकाश भर नहीं बल्कि सृष्टि का सृजनदाता भी हेै। पेड़-पौधे, पशु-पक्षी, जीव-जंतु, नदी-सागर सभी इसके अधीनस्थ अपना जीवन चक्र का निर्वाह करते हैं। मेरे कहने का तात्पर्य यह है कि मानव का जीवन चक्र भी भाषा के बिना असंभव है। भाषा मानव संवेदनाओं को आदान-प्रदान करने का माध्यम तो है ही साथ ही साथ मानव की उन्नति भी इस पर ही निर्भर है। भाषा जितनी समृद्ध होगी राष्ट्र उतना ही समृद्ध होगा।
स्वतंत्रता संग्राम में हिन्दी भाषा का योगदान-
हम नही भूल सकते कि- हिन्दी भाषा ने हमें समृद्ध भी बनाया है और राष्ट्र को परतंत्रता से आजाद कराने में अहम भूमिका भी अदा की है। हम स्वतन्त्रता के 75 वें अमृत महोत्सव मनाते हुए, भारत माँ पर बलिदान हुृए लाडले सपूतों को तो कोटि-कोटि नमन करते ही हैं साथ में हिन्दी भाषा के उन कलमकरों को नमन करते हैं जिनके एक-एक लेख ने आजादी की मशाल को कई गुना प्रकाशवान बनाया।
स्वतंत्रता संग्राम में हमारी कला, संस्कृति व भाषा का योगदान –
देश की आजादी दिलाने में हमारी कला, संस्कृति व भाषा का योगदान अग्रणी रहा है। इनके कारण ही देश एकसूत्र में बंधा रहा और देश दमनकारी नीतियों का डटकर मुकाबला करता रहा। ब्रिटिश शासन इन्हें तबाह करने हेतु नये-नये षडयंत्र रचता रहा। परंतु कला, संस्कृति व भाषा के प्रति जनमन की श्रद्धा व विश्वास को डिगाने में सदैव असफल रहा। भारतीय जन-जन में हिन्दी के प्रति चाहत ही थी जो समुद्र की लहरों की भांति उठकर ब्रिटिश शासन को डुबाने में सफल हुई थी। ये है कला, संस्कृति व भाषा की शक्ति। शक्तिशाली राष्ट्र की पहचान ही उसकी भाषा होती है। और हिन्दी भारत की पहचान ही नहीं बल्कि करोड़ों ह्रदय की धड़कन है।
हिन्दी की लोकप्रियता-
आज हिन्दी रूपी पुष्प की महक मात्र हिंदुस्तान में ही नही बल्कि पूरे विश्व में फैल रही है। वैसे भारत अनेक भाषाओं के पुष्पों से गंधमय व सुसज्जित है। लेकिन हिन्दी के प्रति जो जन-जन का प्रेम है यह आनंदित व उत्साहित करता है। इसकी वजह भी है कि हिन्दी वैज्ञानिक दृष्टिकोण से तो सटीक है ही किंतु व्याकरण रूप से भी अत्यंत परिष्कृत है। हिन्दी देवनागरी में लिपिबद्ध संस्कृत से जन्मी भाषा है परंतु आज इस भाषा में सागर की भांति अनेक भाषाओं के शब्द नदी के रूप में समाहित हैं। ये इसकी लोकप्रियता के कारण ही संभव हो सका है।
भाषा की शब्द सामर्थ्य-
हम कैसे भूल सकते हैं कवि चंद्रवरदाई की इन पंक्तियाँ को “चार बाँस चौबीस गज अँगुल अष्ट प्रमाण, ता ऊपर सुल्तान है मत चूके चौहान।” इन पंक्तियों ने पृथ्वीराज चौहान की फोड़ी आँखों में उजाला भर दिया था और पलक झपकते ही सम्राट् पृथ्वीराज चौहान ने मोहम्मद गौरी को मौत के घाट उतार दिया था। अपने वाण का शिकार कर लिया था। क्या हम भूल गये मंगल पांडे की एक आवाज की चिंगारी पूरे भारत में जंगल की आग तरह फैल गई थी। हम नहीं छूएंगे चर्बीबाले कारतूस, नही छुएंगे। ये गर्जना भरी थी 1857 की क्रांति में मंगल पांडे ने। झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई की मर्दना आवाज मैं अपनी झाँसी नहीं दूँगी। ये शब्द नारियों में ही नही बल्कि मर्दो की भी धधकती ज्वाला बन गये थे।
हिन्दी का आजादी के महायुद्ध का शंखनाद –
हिन्दी नारों का हुंकार-
स्वामी विवेकानंद जी के शिकागो में दिये हिन्दी भाषण को तो आज भी अमेरिका तक नही भूला है तो हम कैसे भूल सकते हैं? उनके दिए शब्द- ‘‘उठो, जागो! जब तक मत रूको, तब तक लक्ष्य प्राप्त न हो जाए।” आज भी युवा में सकारात्मक ऊर्जा का संचार करते हैं। यही नही बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय की रचना वन्देमातरम् ने आजादी का बिगुल बजा दिया था। फांसी पर झूलते हुए भी बलिदानियों की जुबा पर वन्देमातरम् था। नेताजी सुभाषचंद्र बोस की हुंकार ”तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूँगा” के आगे फिरंगी पस्त हो गये थे तो इंकलाब जिंदाबाद ने ब्रिटिश शासन को हिला कर रख दिया था और चंद्रशेखर आजाद के शब्द ‘आजाद ही रहे हैं, आजाद ही रहेंगे’ ने फिरंगीयों की ईंट से ईंट बजा दी थी। बालगंगाधर तिलक ने ‘स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है, इसे मैं लेकर रहूँगा’ आवाज बुलंद की तो अंग्रेज़ों की नींद हराम हो गई थी। महात्मा गाँधी के ‘करो या मारो’ के नारे ने पूरे भारत में मानों आजादी के महायुद्ध का शंखनाद कर दिया था। ऐसे हिन्दी के नारे पूरे भारत में गुंजायमान हुए जिनके आगे फिरंगियों को नतमस्तक होना पडा़ और देश 15 अगस्त 1947 को परतंत्रता की बेड़ियाँ तोड़ने में सफल हुआ।
हिन्दी नाट्य मंचन –
हिन्दी के नारे ही नही बल्कि हिन्दी गीत, भजन, कविता, कहानी, नाटकों व लेखों ने जन-जन में आजादी का जोश भरा। चाहे बालगंगाधर तिलक द्वारा मनाया जाने वाला गणेशोत्सव हो या फिर गुजरात प्रांत से मनाया जाने वाला दुर्गात्सव, गरबा नृत्य ने जनसमुदाय को एकत्रित कर आजादी की ज्योत जलाई। तो यह कहना गलत नही होगा कि नाटक राजा हरिश्चंद्र हो या रामलीला के जगह -जगह मंचन देश की आजादी में महायोगदान से कम न थे।
हिन्दी गीत-कविताओं की क्रांति-
गीत ‘कदम-कदम बढ़ाये जा, खुशी के गीत गाये जा’, ‘वन्देमातरम्’ , ‘विजयी विश्व तिरंगा प्यारा, झंडा ऊँचा रहे हमारा’ जैसे हिन्दी गीतों ने देश की आजादी में हवन में घी का काम किया। वहीं कविताएँ – ”खूब लड़ी मर्दानी वो तो झाँसीवाली रानी थी, बुंदेले हरबोले के मुँह हमने सुनी कहानी थी”, ”सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है, देखना है जोर कितना बाजूएं कातिल में है” । आजादी का इतिहास कहीं काली स्याही लिख पाती है, इसको लिखने के लिए खून की नदी बहाई जाती है। ”मुझे तोड़ लेना वन माली देना उस पथ में तुम फेंक मातृभूमि पर शीश चढ़ाने जिस पथ जायें वीर अनेक”। कंचन की पर्याय रही है किस धरती की माटी है त्याग और बलिदानों की किस धरती में परिपाटी है। ”हे मातृभूमि तेरी जय हो सदा विजय हो, तेरे विशाल नभ में सुख सूर्य का उदय हो” जैसी हिन्दी कविताओं ने राष्ट्रप्रेम की मशाल जन-जन के ह्रदय में प्रज्ज्वलित की।
अंग्रेजी शासन की जड़ों को उखाड़ने के लिए हिन्दी फिल्मों व गीतों से आजादी प्राप्ति की जो आग फैली उसे अंग्रेज़ शासन बुझा न सकी। अपनी आजादी को हम हरगिज़ मिटा सकते नही, सर कटा सकते हैं लेकिन सर झुका सकते नही, ए वतन, ए वतन, तुझको मेरी कसम, तेरी राहों में जाँ तक लुटा जायेंगे या फिर मेरा रंग दे बसंती चोला, माई रंग दे बसंती चोला जैसे गीत गाकर बच्चों से बूढ़े तक अपने प्राण न्यौछावर करने के लिए घर-घर से निकले।कवि प्रदीप की कलम आग उगल रही थी तो भरत कुमार की फिल्में देशभक्तों के मन-मस्तिष्क में गोला-बारूद भर रही थी। यह थी भारत में हिन्दी की शक्ति जो फिरंगी शासन को भारत आजाद करने को विवश कर रही थी। जैसे रोटियाँ तबे पर सिकती हैं वैसे ही देशभक्ति हिन्दी साहित्य से सिक रही थी। तब देश के कोने -कोने में हिन्दी साहित्य का सम्मान भारत माँ के सम्मान से कहीं भी कम न था।
हिन्दी का विश्व मानवता का संदेश-
भारत माँ हमें विभिन्न संपदा दे रही है तो हिन्दी के प्रकाश से हम विश्व को मानवता का संदेश दे रहे हैं। पूर्व प्रधानमन्त्री अटल बिहारी वाजपेयी का अमेरिका में दिया हिन्दी भाषण विश्व मानव कल्याण जाग्रति व वासुदेैव कुटुंबकम् की भावना को जगत में स्थापित करने हेतु आज भी जगत पथप्रदर्शक है। यही नही अमेरिका व अन्य देशों में, वर्तमान भारत के प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी के दमदार हिन्दी भाषणों ने भारत के साथ हिन्दी का परचम भी फहराया और हिन्दी की शक्ति विश्व में अभिव्यक्त की है।
हाल ही में सम्पन्न हुए टोक्यो ऑलम्पिक में खेल रहे भारत के विभिन्न राज्यों के खिलाड़ियों से भारत के प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी ने फोन पर हिन्दी में बातचीत कर उनका आत्मविश्वास बढ़ाया बल्कि खिलाड़ियों की आँखों को देशप्रेम के आँसूओं से नम कर दिया तो खिलाड़ियों ने अपना सर्वश्रेष्ठ देते हुए कई पदक हासिल कर राष्ट्रगान का मान बढ़ाते हुए देश का सीना चौड़ा कर दिया।
हिन्दी मनिषियों को नमन-
हिन्दी की चर्चा हो और मुंशी प्रेमचंद की चर्चा न हो तो ये असंभव है। यूँ तो अनेक साहित्यकारों ने देश की आजादी के लिए अपने प्राण व कलम को भारत माँ पर अर्पित कर दिये। उन्हीं में मुंशी प्रेमचंद का योगदान महत्वपूर्ण है। जब उनकी कलम हिन्दी में लेख लिख, देशभक्तों में आजादी का जागरण कर रही थी तो फिरंगियों ने उनकी कलम को ही बेड़ियों में जकड़ लिया। तब उन्होंने अपना असली नाम धनपतराय से बदल कर मुंशी प्रेमचंद कर हिन्दी लेखन से देशभक्तों का मार्गदर्शन करते रहे। हिन्दी कलमकार बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय, जयशंकर प्रसाद, भीष्म साहनी, सूरदास, कबीरदास, तुलसीदास, कमलेश्वर, मीराबाई, भारतेन्दु हरिश्चन्द्र, हरिशंकर परसाई, महादेवी वर्मा, सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला, फणीश्वरनाथ रेणु, जयशंकर प्रसाद, मैथिलीशरण गुप्त, रसखान, रामधारी सिंह दिनकर, बिहारी, मलिक मोहम्मद जायसी ने तनमन से देश की आजादी के लिए एक नही कई रचनाएँ व गान लिखे और रवीन्द्रनाथ टैगोर के जन गण मन गान सुनकर तो फिरंगी शासन भी हिन्दी प्रेमी हो गये थे अौर टैगोरजी को साहित्य का नोबल पुरस्कार हिन्दी की बड़ी उपलब्धि है। फिरंगी शासन को समाप्त करने हेतु हिन्दी भूकम्प के स्वरूप दिखलाई दी जिसे देख ब्रिटिश शासन कांप कर भाग खड़ी हुई। आजादी के दौरान हिन्दी राष्ट्रीय एकता की भाषा बन गई थी। ये जन-जन की भाषा हो गई थी। ऐसे हिन्दी मनिषियों को सादर नमन ।
तुम भूल न जाना हिन्दी-
आज अंग्रेजी की लहर में, हम हिन्दी से दूर होते जा रहे हैं। अंग्रेजी माध्यम के विद्यालय-महाविद्यालय के शिक्षण से हिन्दी भूलते जा रहे हैं। कम्प्यूटर, मोबाईल, लैपटॉप, टी.वी., सिनेमा व अनेकोनेक इलेक्ट्रिक साधनों तथा नौकरी की चाह ने अंग्रेजी का गुणगान किया है। इन कारणों से देश की कला, संस्कृति व हिन्दी का मोह कम हुआ है। इन्हें देखकर यही कहा जा सकता है कि – ऐ, मेरे वतन के लोगों, तुम भूल न जाना हिन्दी।
- विनोद नायक
77-B, श्री हनुमानजी मंदिर के पास, खरबी रोड़,
शक्तिमातानगर, नागपुर 440024 भारत
आलेख महोत्सव का हिस्सा बनें-
आप भी आजादी के इस अमृत महोत्सव के अवसर आयोजित ‘आलेख महोत्सव’ का हिस्सा बन सकते हैं । इसके लिए आप भी अपनी मौलिक रचना, मौलिक आलेख प्रेषित कर सकते हैं । इसके लिए आप राष्ट्रीय चिंतन के आलेख कम से कम 1000 शब्द में संदर्भ एवं स्रोत सहित rkdevendra@gmail.com पर मेल कर सकते हैं ।
-संपादक
सुरता: साहित्य की धरोहर
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