-आलेख महोत्सव-
आजादी के अमृत महोत्सव के अवसर पर ‘सुरता: साहित्य की धरोहर’, आलेख महोत्सव का आयोजन कर रहा है, जिसके अंतर्गत यहां राष्ट्रप्रेम, राष्ट्रियहित, राष्ट्र की संस्कृति संबंधी 75 आलेख प्रकाशित किए जाएंगे । इस आयोजन के इस कड़ी में प्रस्तुत है डॉ. शोभा उपाध्याय द्वारा लिखित आलेख ”आत्मनिर्भर भारत-भारत का उज्जवल भविष्य”।
गतांक- आलेख महोत्सव: 5. स्वतंत्रता संग्राम में हिन्दी भाषा का योगदान-विनोद नायक
आत्मनिर्भर भारत-भारत का उज्जवल भविष्य
-डॉ. शोभा उपाध्याय
परिचयः-
भारत एक विकासशील देश है। हर देश के विकास में देश के नागरिकों, शिक्षा, उपलब्ध संसाधनों, सूचना तकनीकी, कुशल नेतृत्व आदि अहम भूमिका अदा करते है। भारत विविधताओं का देश है। विविधताओं के कारण यह भाषावाद क्षेत्रीयवाद, आंतकवाद से ग्रस्त रहा है, जिसने इसे विकासशील से विकसित देश बनने में हमेशा बाधा डाली है। इन सारी बाधाओं के बावजूद भी इसने अपने आप को आत्मनिर्भर बनाने का प्रयास किया है। आत्मनिर्भर भारत, भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी की भारत को एक आत्मनिर्भर राष्ट्र बनाने सम्बन्धी एक विजन है। इसका पहली बार सार्वजनिक उल्लेख उन्होंने 12 मई 2020 को किया था जब विश्व कोविड-19 के महामारी के कारण आर्थिक संकट से गुजर रहा था तो भारत की आधुनिक पहचान बनाने तथा उसे आर्थिक संकट से बचाने के लिए एक ये अभूतपूर्व दृष्टिकोण दिया गया।
आत्मनिर्भर भारत के पाँच स्तम्भ हैः-
आत्म निर्भरता के पॉंच स्तम्भ हैं-
- अर्थ व्यवस्था
- बुनियादी ढांचा
- प्रौद्योगिकी
- मांग
- जनसांख्यिकी
आत्मनिर्भर भारत के लिए कुछ अन्य तत्व जो शामिल है वह हैः-
(1) महिला सशक्तिकरण को प्रोत्साहनः-
पंडित जवाहर लाल नेहरू जी ने कहा था ‘‘लोगों को जगाने के लिए महिलाओं को जागृत करना जरूरी है। एक बार जब वो अपना कदम उठा लेती है, परिवार आगे बढ़ता है, गाँव आगे बढ़ता है और राष्ट्र विकास की ओर उन्मुख होता है।’’ समाज में महिलाएँ जितना सशक्त होगी देश का भविष्य उतना ही उज्जवल होगा। अतः महिला शिक्षा व रोजगार को प्रोत्साहन मिलना चाहिए तथा प्राचीन समय से चली आ रही कुरीतियों का अंत होना चाहिए।
(2) लैगिक भेदभाव का अन्तः-
‘‘समानता एक सुंदर और सुरक्षित समाज की वह नींव है जिस पर विकास रूपी इमारत बनाई जा सकती है। भारतीय समाज पितृसत्तात्मक समाज है, इसे पुरूष प्रधान समाज भी कहा जा सकता है। इसमें महिलाओं को आज भी बराबर नहीं समझा जाता बल्कि उसे एक जिम्मेदारी समझा जाता है। महिलाओं को सामाजिक और पारिवारिक रूढ़ियों के कारण विकास के कम अवसर मिलते है, जिससे उनके व्यक्तित्व का पूर्ण विकास नहीं हो पाता है। आत्मनिर्भर भारत के लिए यह परम आवश्यक है कि स्त्री-पुरूष के भेदभाव का अन्त किया जाये। दोनों समाज का महत्वपूर्ण हिस्सा है। किसी भी एक के बिना समाज की कल्पना नहीं की जा सकती है। देश के आत्मनिर्भर होने में लैगिक भेदभाव बाधा डालती है।
(3) शिक्षा के क्षेत्र में आवश्यक सुधारः-
शिक्षा ही वह यन्त्र है जो समाज में परिवर्तन लाती है, शिक्षा के बिना समाज या देश उत्थान नहीं कर सकता है अतः शिक्षा में समय-समय पर आवश्यक संशोधन होते रहना चाहिए तथा वह देश काल व परिस्थितियों के अनुसार बदलते रहना चाहिए। वर्तमान में नई शिक्षा नीति 2020 लागू की गई है जिसमें आवश्यक सुधान किया गया है।
(4) सूचना प्रोद्यौगिकी में सुधारः-
सूचना एवं संचार की तकनीकियों ने मानव जीवन को न केवल सरल व सुगम बनाया अपितु कम श्रम में अधिकतम उपयोग का मार्ग प्रशस्त किया है। आज इस तकनीकी का प्रयोग मनोरंजन, स्वास्थ्य, व्यवसाय एवं शिक्षा में किया जा रहा है। शिक्षा प्रक्रिया के प्रत्येक स्तर व पक्ष में इन तकनीकियों का उपयोग किया जा रहा है चाहे वह दूरस्थ शिक्षा हो या मुक्त शिक्षा, प्रश्न पत्र निर्माण हो या मूल्यांकन प्रक्रिया इन साधनों का प्रयोग किया जा रहा है।
(5) स्वदेशी तत्वों को बढ़ावा देनाः-
सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ है। भारत आत्मनिर्भर तभी बन सकता है जब वह स्वदेशी चीजों को बढ़ावा देगा। विदेशी चीजों की मांग और खपत कम होगी तब अपने देश का पैसा अपने देश में ही रह सकता है तथा स्वदेशी कारीगरों का उत्थान होगा उन्हें भी वह मौका मिलेगा जिससे उनके समान को अच्छे मूल्य और अच्छे बाजार प्राप्त हो सकें।
(6) मूल्य आधारित शिक्षा को महत्वः-
भारतीय संस्कृति प्राचीनतम संस्कृतियों में से एक है इसकी अपनी कुछ परम्पराएँ एवं मूल्य है। जो आज के भौतिकवादी युग में कमजोर पड़ती जा रही है। भौतिकवादी युग से द्वेष, प्रतिस्पर्धा व स्वार्थी रिश्तों का जन्म हुआ तथा हमारे मूल्य दया, परोपकार निस्वार्थ सेवा जैसे मूल्य कहीं खो गए है। सन्तुलित और सर्वोन्मुखी विकास के लिए वर्तमान में मूल्य आधारित शिक्षा की व्यवस्था होनी चाहिए ताकि बालक जो देश का भविष्य होता है उसका नैतिक, चारित्रिक आध्यात्मिक, सामाजिक व सांस्कृतिक विकास हो सकें।
(7) कुशल नेतृत्वः-
कुशल नेतृत्व आत्मनिर्भर भारत के लिए परम आवश्यक तत्व है। यदि सरकार पूर्ण बहुमत से है तो वह अपना कार्य बिना किसी दबाव के तथा स्वतंत्र फैसले करेगी। कुशल नेतृत्व में विपक्षी दल का मजबूत होना भी अहम भूमिका निभाता है अगर विपक्षी दल मजबूत है तो वह सरकार के कार्यो व नीतियों की समय-समय पर आलोचना करके आवश्यक सुधार करवाने से सफल हो सकती है।
(8) सूचारू कानून व्यवस्थाः-
किसी भी राज्य, शहर अथवा क्षेत्र में शांति बनाए रखने के लिए, अपराधों पर रोक लगाने के लिए, और जनमानस की सुरक्षा के लिए कानून व्यवस्था एक मुख्य अंग है। कानून व्यवस्था आम जनता के लिए अच्छे समाज और अच्छा माहौल का निर्माण करती है। सामाजिक सुरक्षा प्रदान करती है तथा दहशत के माहौल को कम करती है। जब भी राजनीतिक या सामाजिक लड़ाई या तनाव उत्पन्न होता है। कानून व्यवस्था के लिए संकट खड़ा हो जाता है तथा अशांति व असुरक्षा का माहौल बन जाता है।
(9) सशक्त मीडियाः-
मीडिया वह माध्यम है जो सरकार व आम जनता के बीच सेतु का काम करता है वह आमजनों की आवाज को सरल तरीके से सरकार व प्रशासन तक पहुचाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। सरकार के कार्यो, विचारों और योजनाओं को जनता तक पहुंचा कर तथा आम जनता का फीडबैक सरकार तक पहुचाने में अहम भूमिका अदा करती है। यह स्वतंत्र रूप से कार्य करती है, सरकार का कोई हस्तक्षेप नहीं होता है। परिवर्तन का दूसरा नाम है मीडिया जो समय-समय पर जागरूकता फैलाने का काम करता है। कोविड-19 के महामारी में लोगों को जागरूक करने में इसने अहम भूमिका अदा की है।
(10) आतंकवाद का विरोधः-
देश के विकास में सबसे बड़ा कोई बाधक तत्व है तो वह आतंकवाद है। आतंकवाद ने भारत को हर संभव नुकसान पहुंचाने का प्रयास किया है। इससे जन, धन, सम्पदा को बहुत क्षति पहुंची है। विकास कार्यो में बहुत समय लगता है तथा उसे कुछ सैकड़ों में ही क्षतिग्रस्त किया जा सकता है। आतंकवाद ना जाति देखता है, ना धर्म ना ही वह कोई रिश्ता देखता है उसका उद्देश्य सिर्फ आतंक फैलाना होता है। जिससे समाज में दहशत का माहौल फैल जाता है, विकास का कार्य अवरूध हो जाता है तथा सरकार, सेना और पुलिस का पूरा ध्यान अन्य कार्यो से हट कर इस ओर केन्द्रित हो जाता है।
(11) जातिवाद व साम्प्रदायिकता का विरोधः-
निःसंदेह जाति प्रथा व साम्प्रदायिकता एक सामाजिक कुरीति है। देश को आजाद हुए सात दशक से भी अधिक समय बीत गया है पर आज भी हम इस सामाजिक कुरीति से मुक्त नहीं हो पाए है। यह हमारी एकता में दरार पैदा करती है तथा बालक के मन में बचपन से ही ऊंच-नीच की भावना पैदा कर देती है। इससे देश के उत्थान में बाधा उत्पन्न होती है तथा आपसी वैमनस्यता को बढ़ावा मिलता है। कुछ राजनैतिक दल भी अपने स्वार्थ पूर्ति के लिए इसका सहारा लेते है जो कि निश्चय ही देश के विकास में अवरोध पैदा करता है।
(12) संकुचित स्वार्थभावनाः-
संकुचित स्वार्थभावना भी देश के विकास में बाधा डालती है इससे व्यक्ति सिर्फ अपना लाभ ही देख पाता है उस लाभ के लिए वह किसी भी हद तक गिर जाता है इससे मूल्यों में वृद्धि, काला बाजारी, अनैतिक तत्वों को प्रोत्साहन, भ्रष्टाचार व नकली सामान को असली बता कर बाजार में बेचा जाना शामिल है। इन सब अनैतिक तत्वों से देश की अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचता है तथा विकास मार्ग में बाधा आती है।
निष्कर्षः- आत्म निर्भर भारत विश्व की आर्थिक महाशक्ति-
निसंदेह यह कहा जा सकता है कि आत्मनिर्भर भारत बनाने में सरकार के प्रयासों के साथ-साथ अन्य बहुत सारे तत्व समाहित है। आज भारत की अर्थव्यवस्था विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। 1991 से भारत में बहुत तेज आर्थिक प्रगति हुई है जब से उदारीकरण और आर्थिक सुधार की नीति लागू की गयी है भारत विश्व की एक आर्थिक महाशक्ति के रूप में उभरकर आया है।
संदर्भः-
- https://www.wikipedia.org
- https://www.hindikiduneyr.com
-डॉ. शोभा उपाध्याय
सहायक प्राध्यापक
हितकारिणी प्रशिक्षण
महिला महाविद्यालय
जबलपुर (म.प्र.)
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-संपादक
सुरता: साहित्य की धरोहर
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