आलेख महोत्‍सव: 9. भारतीय संस्कृति राष्ट्रीय एकता का मूल स्रोत -तेजराम शाक्य

-आलेख महोत्‍सव-

भारतीय संस्कृति राष्ट्रीय एकता

आजादी के अमृत महोत्‍सव के अवसर पर ‘सुरता: साहित्‍य की धरोहर’, आलेख महोत्‍सव का आयोजन कर रहा है, जिसके अंतर्गत यहां राष्‍ट्रप्रेम, राष्ट्रियहित, राष्‍ट्र की संस्‍कृति संबंधी 75 आलेख प्रकाशित किए जाएंगे । आयोजन के इस कड़ी में प्रस्‍तुत है-श्री तेजराम शाक्‍य द्वारा लिखित आलेख ”भारतीय संस्कृति राष्ट्रीय एकता का मूल स्रोत’।

गतांक-आलेख महोत्‍सव: 8.राष्ट्र विकास में एक व्यक्ति का योगदान

भारतीय संस्कृति राष्ट्रीय एकता का मूल स्रोत

-तेजराम शाक्य

आलेख महोत्‍सव: 9. भारतीय संस्कृति राष्ट्रीय एकता का मूल स्रोत -तेजराम शाक्य
आलेख महोत्‍सव: 9. भारतीय संस्कृति राष्ट्रीय एकता का मूल स्रोत -तेजराम शाक्य

वर्तमान की चिंता-

वर्ष 2020-21  हमारे लिए अत्यंत कठिनाइयों के दौर से गुजरने का वक्त रहा है । हमारा देश कोविड-19 से पूरे 2 वर्ष जूझता रहा है फल स्वरुप देश की जीडीपी इतनी नीचे गिर गई जिससे उबर पाना बहुत मुश्किल लग रहा था ,मगर देश का सौभाग्य हमने जल्दी अपनी आर्थिक स्थिति को मजबूत कर लिया। एक समय था जब भ्रष्टाचार के खिलाफ अन्ना आंदोलन ने अपनी विशिष्ट पहचान बनाई थी हालांकि देश भ्रष्टाचार के उस दौर से तो बच गया, परंतु आज भी देश में जो हालात हैं वह बहुत अच्छे नहीं कहे जा सकते। 

संसद में विपक्ष इतना कमजोर हो गया है कि सत्तारूढ़ पार्टी ने मनमानी करना शुरू कर दिया है सफल और सबल प्रजातंत्र के लिए विपक्ष का मजबूत होना अत्यंत आवश्यक है, परंतु देश में सरकारी उपक्रमों की अनदेखी कर उन्हें बेचने का जो क्रम चल पड़ा है वह देश को और हमारे प्रजातंत्र को निश्चित ही घातक है । 

एक ओर जहां देश में धन कुबेरों  की संख्या बढ़ रही है वहीं दूसरी ओर गरीबी रेखा के नीचे जीने वालों की संख्या भी नित्य प्रति बढ़ रही है। ब्रह्मचर्य और अहिंसा का पाठ पढ़ाने वाले देश में रोज बलात्कार, यौन हिंसा, साइबर अटैक जैसे अपराध की घटनाएं शर्मसार करने वाली है । सत्यमेव जयते का चिंतन करने वाले देश में किसी भी तरह से सत्ता पाना धन लाभ और अपनों का हित साधने की प्रवृत्ति दुखद है। 

सर्वधर्म समभाव और विश्व शांति की शिक्षा देने वाले देश में धार्मिक कट्टरता हिंसा एवं असहिष्णुता गंभीर चिंता का विषय  है । हम इन समस्याओं की जड़ तक जाए बिना मात्र विष वृक्ष की पत्तियों टहनियों के सिंचन उपचार में लगे हुए हैं।

अतित का गौरव- भारतीय संस्कृति राष्ट्रीय एकता

हम भूल जाते हैं की विरासत में मिली ऐसी समृद्ध संस्कृति हमारे पास है जो युगों के क्रूरतम थपेड़ों को झेल कर भी अपनी कालजई सत्ता को बरकरार बनाए हुए हैं ।

इकबाल ने कभी कहा था

यूनान मिस्र रोमा सब मिट गए जहां से,
कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी। 

मानव मन को अस्तित्व की उच्चतम उड़ान भरने की प्रेरणा व जीवन में मरण पर्यंत उसमें शक्ति आशा का संचार करने वाला शाश्वत सनातन प्रवाह इस संस्कृति के विचार कोष में भरा पड़ा है ।

मैक्स मूलर के शब्दों में“विश्व को शांति, एकता, समता और शुचिता का संदेश देने में यदि कोई देश समर्थ हो सकता है तो वह भारत ही है।”

भारतीय संस्कृति की प्रमुख विशेषता-

भारतीय संस्कृति की प्रमुख विशेषता इसकी विविधता में एकता है तथा सभी विरोधाभास को समन्वय करने की क्षमता है इसी के बल पर इसमें विभिन्न मत संप्रदाय एवं धर्म पनपते हैं ।कितने विदेशी आक्रांताओं ने इसके वजूद को तहस-नहस करते हुए इसके ऊपर संघातिक प्रहार किए, लेकिन वे अंत तक इसी में आकर समाहित हो गए।

रामधारी सिंह दिनकर के शब्दों में“भारतीय संस्कृति की समन्वय की अद्भुत शक्ति ही शायद इसकी सबसे बड़ी विशेषता है, जिसके आधार पर वह युगों युगों के घात प्रतिघात सहकर भी अपना वर्चस्व बनाए रखने में कायम है।”

राष्ट्रीय दर्शन –

पारिवारिक, सामाजिक एवं राष्ट्रीय दर्शन के लिए देश, धर्म ,संस्कृति ,जाति एवं मानव मूल्यों के लिए जीने एवं मर मिटने वालों की ऐसी परंपरा यहां रही है कि सिर श्रद्धा से नतमस्तक हो जाता है। आज देश समाज एवं मानव जाति के संक्रमण के ऐतिहासिक मोड़ पर है, हमें जरूरत ऐसे ही राष्ट्र के सपूतों की संस्कृति दूतों की है, जो अपनी संस्कृति के आदर्शों ,मूल्यों एवं उच्च मानदंडों को जीवन में धारण कर इनकी समयनुकुल उपयोगिता, प्रासंगिकता को सिद्ध कर सके। अपनी सांस्कृतिक आध्यात्मिक मूल से जुड़कर ही हम समाज निर्माण, राष्ट्र निर्माण, राष्ट्र उत्थान एवं राष्ट्रीय एकता की दिशा में कुछ सार्थक करने की स्थिति में होंगे अन्यथा सारी बातें मात्र पत्ते सींचने जैसे प्रयास भर बनकर रह जाएंगे। वस्तुतः आध्यात्मिकता भारतीय मन की कुंजी है,और अनंत का भाव इसमें जन्मजात है। अतः हम कह सकते हैं कि भारतीय संस्कृति धर्म के माध्यम से सभी भारतवासियों को एकजुट बनाये हुए है। सर्वे भवंतु सुखिनः एवं लोका समस्ता सुखिनो भवंतु जैसे वेद वाक्य हमारी संस्कृति की ही देन है जो हम सभी को एक सूत्र में पिरोए हुए हैं।अतः हम कह सकते हैं कि भारतीय संस्कृति राष्ट्रीय एकता का मूल स्रोत है।

-तेजराम शाक्य
पूर्व व्याख्याता,भिलाई इस्पात संयंत्र

आलेख महोत्‍सव का हिस्‍सा बनें-

आप भी आजादी के इस अमृत महोत्‍सव के अवसर आयोजित ‘आलेख महोत्‍सव’ का हिस्‍सा बन सकते हैं । इसके लिए आप भी अपनी मौलिक रचना, मौलिक आलेख प्रेषित कर सकते हैं । इसके लिए आप राष्‍ट्रीय चिंतन के आलेख कम से कम 1000 शब्‍द में संदर्भ एवं स्रोत सहित rkdevendra@gmail.com पर मेल कर सकते हैं ।

-संपादक
सुरता: साहित्‍य की धरोहर

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