व्यथा-कथा:आंदोलन के नाम पर, करो न अत्याचार
-रमेश चौहान
व्यथा-कथा:’आंदोलन के नाम पर, करो न अत्याचार’ सचमुच देश की आमजनता की व्यथा कथा है । देश में हो रहे विभिन्न विरोध के नाम किए जा रहे आंदोलन के उग्र होने से जनता का मन व्याकुल है । इस व्याकुलता को शब्द देने का यह प्रयास है ।
/दोहा/
आंदोलन के नाम पर, करो न अत्याचार ।
देश धरा है आपका, लोग आपके यार ।।
/चौपाई/
रीत विरोधी काहे बाढ़े । सोचो कोई उपाय काढ़े
कभू सड़क को रोके छेके । कभू पुलिस पर पत्थर फेके
कभू सड़क को रोके बैठे । ऊँपर से रहते ऐढ़े ऐढ़े
कभू किसी के वाहन फूँके । खाक हुए सारे धूँ-धूँ के
कभू रेल के पात उखारे । गाड़ी बोगी इंजन बारे
जन जीवन को ढप कर राखे । देश विरोधी भाखा भाखे
चढे लाल कीला पर जाये । दिल्ली की सड़को पर धाये
किसका विरोध करते भाई । तनिक समझ हमको ना आई
/दोहा/
हो विरोध सरकार का, जो सबका अधिकार ।
देशमान संपत्ति का, क्यों तुम करे उजार ।।
/चौपाई/
देश धरा संपत्ति यहॉं का । मेरा तेरा नहीं जहॉं का
भरे टैक्स हम करे कमाई । तभी बने संपत्ति सुहाई
खून पसीना लोग लागए । तब जाके यह संपत्ति बनाए
तोड़-फोड़ करके क्या पाए । नाहक ही क्यों आग लगाए
अपने धन को आप उजारे । वह धन अपना भी है प्यारे
नहीं तुम्हें अधिकार मिला है । जो यह तुमने आग ढिला है
आग लगाने वालों को यूँ । छुप-छुप कर ईंधन देते क्यूँ
कौन धौकनी बन ठाढ़े । जिनके बल आंदोलन बाढ़े
पक्ष विपक्ष दोनों दोषी । मरती क्यों जनता निर्दोषी
पक्ष विपक्षा दोनों जानें । देश दशा अब तो पहचानें
तनिक सोचें सरकार विरोधी । देश न एक अकेले मोदी
उन पर भड़ास भले निकालो । पर यूँ तुम ना देश उजारो
/दोहा/
राज्य केन्द्र सरकार सब, सुनो कान को खोल ।
उग्रवाद की सोच को, तनकि न दो तुम पोल ।।
नेता सभी विपक्ष के, तनिक धरो तुम ध्यान ।
उग्रवाद को हवा दे, मेटे क्यों अभिमान ।।