आज़ादी के अमृत काल में शिक्षा संवाद-प्रो रवीन्द्र प्रताप सिंह

आज़ादी के अमृत काल में शिक्षा संवाद

-प्रो रवीन्द्र प्रताप सिंह

aazadi ke amrit kal me shiksha sawand
aazadi ke amrit kal me shiksha sawand

यह हमारे लिए अत्यंत गर्व का विषय है कि हम अपनी स्वतंत्रता के अमृत काल में राष्ट्र के उन्नत आदर्शों को याद कर रहे हैं और उनपर अमल करने का प्रण कर रहे हैं। स्वतंत्रता के इस असीमित उल्लास में हमें अपनी स्वतंत्रता के साथ आयी आत्मनिर्भरता , जिम्मेदारियों तथा उन जिम्मेदारियों के निर्वहन के लिए प्रयासों की तरफ भी हमारी दृष्टि जानी चाहिये । इस सन्दर्भ में हमें उचित शिक्षा के महत्व पर भी चिंतन मनन करने कि जरूरत है। कभी कभी कुछेक ऐसे समाचार मिलते हैं , जहाँ लगता है कि हम इस दिशा में सोचें कि शिक्षा का सम्यक प्रभाव हमारे व्यक्तित्व पर किस रूप में पड़ रहा है। उचित शिक्षा हमें जाति , धर्म , सम्प्रदाय , वर्ग , लिंग आदि के खाँचो से उपजी भिन्नता एवं अलगाव से मुक्त कराती है। स्वतंत्रता विचारों की भी होती है , एक जिम्मेदार शिक्षा प्रणाली जिसका स्वरुप समग्रतापरक एवं सकारात्मक हो हमारे स्वतंत्र विचारों को जीवंत और गतिशील रख सकती है। उच्च शिक्षा के दर्शन तथा शिक्षा की व्यापक एवं वैज्ञानिक सोच को समाज , कालक्रम एवं समय कि जरूरतों से जोड़ते हुए हमने आज़ादी के पछहत्तर वर्ष पूरे किये हैं। हमने देश में अपनी अनूठी अकादमिक संस्कृति का निर्माण किया है। इसी परिप्रेक्ष्य में देश में राष्ट्रीय नयी शिक्षा नीति २०२० लायी गयी है जिसमे जहाँ दर्शन , शोध एवं चिंतन में एक ओर वैश्विकता की दमक है ,वहीँ दूसरी ओर राष्ट्रीय एवं क्षेत्रीय आकांक्षाओं के प्रति रुझान । हमारी नयी शिक्षा नीति के अंतर्गत मातृभाषा कि शक्तियों को पहचाना गया है और उसे शिक्षा प्राप्त करने के माध्यम में उचित स्थान दिया गया है। इसके द्वारा समेकित शैक्षिक विकास को लक्षित किया गया है। इसके विचारों के साथ हम गतिशील हो गए हैं हैं।

भारतीय शिक्षा संस्थानों ने अपने सीमित संसाधनों के साथ ज्ञान प्राप्ति की असीम उड़ान को पंख दिए हैं। आये दिन हमारे सुदूर क्षेत्रों में शिक्षकों के शैक्षिक नवाचारों की चर्चा होती रहती है। शिक्षा प्राप्त करने में संसाधनों के आभाव को आत्मबल और कठिन परिश्रम से दूर किया जा सकता है। हमारे सांस्कृतिक ग्रंथों में यह कहा गया है कि जिसके पास साहस है और जो मेहनत करता है उसके लिए कुछ भी अप्राप्य नहीं है।

स्वाधीनता का अमृत काल हमें अपनी जिम्मेदारियों को भली भांति समझने के लिए प्रेरित करता है। यह हम सब के सोचने का विषय है कि राष्ट्र की विकास धारा में हम कितना योगदान दे पा रहे हैं। हमारी शिक्षा व्यवस्था में लगे सभी लोगों को , चाहे वो प्रशासक हों, शिक्षक, अभिभावक या विद्यार्थी , उन्हें इस महान देश के आदर्शों को ध्यान में रखते हुये अपने दायित्व का बोध होना चाहिए। पतंजलि के योग सूत्र में उल्लेख मिलता है , “विवेक ख्यातिरविप्लवाहानोपाया ” यानी निरंतर अभ्यास से प्राप्त निश्चल और निर्दोष विवेक अज्ञानता का नाश करता है। इस निरंतर अभ्यास में जहाँ हमें मानकों के अनुरूप उत्कृष्टता के प्रयास करने चाहिए वहीँ , आत्मिक चिंतन एवं समाज निर्माण , विश्व कल्याण का भी चिंतन करना चाहिए। ; स्वतंत्र मन से किया गया चिंतन , अवश्य ही हमें स्वयं से , समाज से एवं विश्व से जोड़ेगा।

आज जब हमारा सशक्त राष्ट्र, हमारा भारत, विश्व गुरु के पथ पर अग्रसर है तो जिम्मेदार नागरिक के तौर पर हमें शिक्षा के महत्वपूर्ण संरचना हेतु सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक और वैज्ञानिक इकाइयों, परिवेशाें आदि की संस्थागत स्वरूपों को मज़बूत दिशा देनी होगी जिससे कि हमारे संविधान में निहित उद्देश्यों के साथ हमारे छात्रों का और पठन-पाठन की प्रक्रिया में निरत हर व्यक्तित्व का सशक्त चरित्र निर्माण हो सके। इस प्रक्रिया में हमारे मानवीय मूल्य, सांस्कृतिक पाठ, साहित्य और भाषा “एक भारत श्रेष्ठ भारत” की प्रक्रिया में अमृत काल की सुंदर छवि को उकेरेगा।

प्रो रवीन्द्र प्रताप सिंह
डॉ रवीन्द्र प्रताप सिंह लखनऊ विश्वविद्यालय में अंग्रेजी के प्रोफेसर हैं। वे अंग्रेजी और हिंदी लेखन में समान रूप से सक्रिय हैं । फ़्ली मार्केट एंड अदर प्लेज़ (2014), इकोलॉग(2014) , व्हेन ब्रांचो फ्लाईज़ (2014), शेक्सपियर की सात रातें (2015) , अंतर्द्वंद (2016), तीन पहर (2018 )चौदह फरवरी (2019),चैन कहाँ अब नैन हमारे (2018) उनके प्रसिद्ध नाटक हैं। बंजारन द म्यूज(2008) , क्लाउड मून एंड अ लिटल गर्ल (2017),पथिक और प्रवाह (2016) , नीली आँखों वाली लड़की (2017), एडवेंचर्स ऑव फनी एंड बना (2018),माटी (2018 )द वर्ल्ड ऑव मावी(2020), टू वायलेट फ्लावर्स(2020) प्रोजेक्ट पेनल्टीमेट (2021),कोरोना और आम आदमी की कविता (2021), एक अनंत फैला आकाश (2022) उनके काव्य का प्रतिनिधित्व करते हैं। उन्होंने विभिन्न मीडिया माध्यमों के लिये सैकड़ों नाटक , कवितायेँ , समीक्षा एवं लेख लिखे हैं। लगभग दो दर्जन संकलनों में भी उनकी कवितायेँ प्रकाशित हुयी हैं। उनके लेखन एवं शिक्षण हेतु उन्हें स्वामी विवेकानंद यूथ अवार्ड लाइफ टाइम अचीवमेंट , शिक्षक श्री सम्मान ,मोहन राकेश पुरस्कार, भारतेन्दु हरिश्चंद्र पुरस्कार, डॉ राम कुमार वर्मा बाल नाटक सम्मान 2020 ,एस एम सिन्हा स्मृति अवार्ड जैसे सत्रह पुरस्कार प्राप्त हैं ।
संपर्क : अंग्रेजी एवं आधुनिक यूरोपीय भाषा विभाग लखनऊ विश्वविद्यालय लखनऊ 226007
ईमेल : rpsingh.lu@gmail.com
फ़ोन : 9415159137

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