यात्रा संस्‍मरण : पत्थरों पर गीत-जीवन के मीत भाग-6

पत्थरों पर गीत-जीवन के मीत

श्रीमती तुलसी देवी तिवारी

गतांक से आगे

भाग-6 अजन्ता एलोरा दर्शन-1

अजन्ता एलोरा दर्शन
अजन्ता एलोरा दर्शन

सुन्दर पार्क, पेड़-पौधे, समतल सड़कें और नजरों के सामने विश्व को आश्चर्य में डाल देने वाली कारीगरी का नमूना, अजन्ता द्वार। गुफाओं तक पहुँचने के लिए बनी सीढ़ियाँ, चैड़ी और सामान्य ऊँचाई वाली, अजन्ता पहाड़ की ऊँचाई 56 मीटर और लम्बाई 550 मीटर है। चोटी तक जाने के लिए हम लोग सीढ़ियों पर चढ़ने लगे। इस समय पानी बन्द हो गया था। सीढ़ियाँ खुरदरी होने के कारण गिरने का भय लगभग नहीं था, चन्द्रा दीदी की साँस फूलती देख, शकुन्तला दीदी ने बलात् उन्हें डोली में बैठा दिया , 800 रू. में घूमाकर नीचे लाने की शर्त पर। जैसे ही चार आदमी उन्हें लेकर आगे चले, शीला और ज्योति गाने लगी, ‘चलो रे डोली उठाओ कहार, पिया मिलन की रीतु आई’ चन्द्रा दीदी के होठो पर मंद स्मित खेलने लगी। हमारे दल के साथ ही अन्य सैलानियों के चेहरे भी मुस्कुरा उठे।

कई लोग हमारे पास पूछने आ रहे थे – ‘‘मैडम गाइड चाहिए’’ ? बाबू जी गाइड चाहिए’’ ? हमारे मना करने पर वे दूसरी ओर लपक लेते। हमारे पास कोई दूसरा आ जाता। चन्द्रा दीदी की डोली वालों में एक आगे बढ़कर हमें गुफाओं की जानकारी देने लगा। किसी ने समझा गाइड होगा, बाद में बवाल करेगा। ‘‘हमें गाइड की आवश्यकता नहीं है। हम लोग हिस्ट्री वाले हैं’’। किसी ने धीमे से कहा।

‘‘मइ गाइड नइ जी, आप का डोली वाला जी’’। उसने बताया। अब तो सबने उसका स्वागत किया। वह हमारे कैमरे से हमारी फोटो उतारने लगा। गुफाओं का परिचय देने लगा।

शुकन्तला दीदी ने यहाँ भी टिकिट ली, हम सभी लाइन से गुफा नं. एक में प्रवेश करने लगे। लाइन काफी लम्बी थी, वहाँ से अजन्ता की सारी गुफाओं को मैं देख रही थी। ऊपर पहाड़ देखकर नहीं लगता कि इनके उदर में संसार प्रसिद्ध शिल्प मुंह छिपाये बैठा है।

यह एक विहार है, बरामदा, सभा मंडप, परिक्रमा पथ आदि सभी कुछ ठीक हालत में दिखाई दिया। गर्भ गृह में बुद्धदेव की अनुपम मूर्ति विराज रही हैं। इस मूर्ति को दो बाजुओं से देखने पर ध्यानावस्था सहित भिन्न-भिन्न भाव प्रकट होता होता है। सभा मंडप चट्टानों को ऊपर से काटकर नीचे लाते हुए मोटे-मोटे स्तम्भों पर टिका हुआ है। सभा मंडप के तीसरे स्तंम्भ पर एक अद्भुत शिल्प तराशा गया है, इसमें चार हिरनों के शरीर का मुख एक ही है। इसके निर्माण की बारीकी देखकर हम दंग रह गये। मुझे ऐसा लगा जैसे कलाकार बताना चाह रहा हो – ‘‘मनुष्य के शरीर के अन्य भाग पशुओं से कई गुना अधिक बलशाली हैं, उसकी विवेक बुद्धि ही उसे मनुष्य के नाम से परिभाषित करती है, या फिर इन्द्रियों का राजा मन है’’ वह जैसे चलायेगा शेष शरीर भी उसी प्रकार चलेगा। हमने बायें हाथ की ओर से गुफा देखना प्रारंभ किया। प्रवेश द्वार के बगल की दीवार पर पत्थरों को तराशकर चित्र बनाये गये हैं। शिवि महाराज शरण में आये बाज को अभयदान दे रहे हैं, दूसरे चित्र में पक्षी के वजन के बराबर अपने शरीर का माँस शिकारी को दे रहे हैं आगे एक और चित्र है जिसमें तराजू राजा शिवि का पुत्र एवं कुछ दासियाँ दिखायी गईं हैं।

आगे बढ़ने पर हमने देखा, महात्मा बुद्ध अपने चचेरे भाई नंद को धर्म दीक्षा दे रहे हैं। नंद राज वैभव का त्यागकर भगवे वस्त्र धारण कर रहे हैं। एक तरफ नंद की पत्नी सुन्दरी पति के विरह में मूर्छित पड़ी हैं। इसके बाद शंखपाल जातक की कथा है।

हम आगे बढ़ रहे थे। कुछ शिकारी जंगल से गुजर रहे हैं, उनकी वेशभूषा अनेक रंगों की है। लगता है शिकार न मिलने के कारण खिन्न है। एक नागराज रास्ते के बगल में झाड़ी में आरामकर रहे थे। शिकारी उन्हें शिकार समझकर खींचने लगे। पीड़ा से वे कराह रहे थे। कलार नाम का व्यापारी अपनी बैलगाड़ी पर जाता हुआ चित्रित है। नागराज की पीड़ा देख द्रवित होकर शिकारियों को बहुत सारा धन देकर उन्हें छोड़वाते हुए दिखाई देता है।

गुुफा में प्रकाश बहुत हल्का था, हाॅल बहुत विस्तृत है, खंभों पर टिका हुआ, प्रत्येक खंभे पर चित्र हैं जिन्हें समझने के लिए बहुत समय की आवश्यकता है। आगे एक सुन्दर स्त्री का चित्र बना है, जिसकी पीठ ही दिखाई देती है, परन्तु ऐसा लग रहा था जैसे वह हमसे बातें कर रही हों। आगे राज दरबार का दृश्य जीवन्त हो उठा है। राजा उदास मुद्रा में राज सिंहासन पर बैठे हैं, रानी मानो धैर्य बंधा रहीं हैं। सामने ही राज नर्तकी नृत्य कर रही है आगे राजा उपदेश की याचना करते हुए बैठे हैं।

तीसरे चित्र में नगर द्वार से घोड़े पर सवार राजकुमार चित्रित है। विदायी का स्पष्ट भाव परिलक्षित हो रहा है। दास-दासियाँ सभी शोकाकुल से खड़े हैं। सामने एक जहाज समुद्र में डूबता दिख रहा है, सामने के खंभे पर दो बलशाली वृषभ एक दूसरे को टक्कर मार रहे हैं।

पश्चिमाभिमुख दीवार पर बुद्ध हाथ में भिक्षा पात्र लिए चक्रगणों के साथ बैठे हैं, एक जगह राजकुमार नहा रहे हैं।

आगे बढ़ने पर बोधिसत्व पद्मपाणि का सुवर्ण कान्तियुक्त खड़ी मुद्रा में बना चित्र अपनी आकर्षक मुद्रा के कारण आगे बढ़ने से रोक रहा था। पास ही उनकी पत्नी निराश मुद्रा में खड़ी चित्रित की गईं हैं। यहाँ एक मिथुन मूर्ति भी बनी है, अन्तःपुर में।

बोधि वृक्ष के नीचे बुद्ध ध्यान मग्न हैं। मार राक्षस आक्रमण कर रहा है। उससे लड़ने के लिए असंख्य बुद्ध चित्रित किय गये हैं, सभा मंडप में वज्रपाणि का चित्र बना है जिसमें विविध प्रकार के गहने चित्रित किये गये हैं। अजन्ता की काली रंग वाली रानी के शरीर की एक एक रेखा स्पष्ट ढंग से बनी हुई है। आँखों में पड़े लाल डोरे तक जैसे रानी की मनोदशा का वर्णन कर रहे हैं। इसके आगे चंदेय जातक की मूर्ति है जो शंखपाल से मिलती जुलती है। राजा के सामने नागराज को पकड़कर जादूगर खेल दिखा रहा। एक जगह नागराज प्रवचन कर रहे हैं।

प्रवेश द्वार से अन्दर घुसे तो दाहिने हाथ की ओर सभामंडप बना हुआ है। दीवारों पर बने चित्रों को विद्वान पुलकेशिन का मानते हैं। गुफा में 10 मिनट से अधिक ठहरने की अनुमति नहीं है। गार्ड सीटी बजाने लगे। शीला और ज्येाति मैडम गुफा में घुसकर चिल्ला रही थी, ‘‘हम यहाँ है …ऽ….ऽ… वे आनंद विभोर लग रहीं थीं। बाहर निर्देश लिखा है कि गुुफा में घुसकर चीखे चिल्लाये नहीं, इसके प्रतिरोध में ही शायद वोे चिल्लाकर अपनी आवाज की प्रतिध्वनि सुन रही थी, उनके आग्रह पर मैंने उनकी फोटो भी उतारी।

यह गुफा बुद्ध भगवान् के पूर्व जन्म की कथाओं के चित्रों से भरी हुई हैं। शिल्पकारों ने पहाड़ कैसे इतने सलीके से काटा होगा ? कैसे शिखर से नींव तक की रचना की होगी ? कैसे इतनी सुन्दर चित्रकारी की होगी ? जैसे अनेकों प्रश्न मन में उठ रहे थे। मैं परिक्रमा पथ पर सबसे पीछे थी। और साथी भी आसपास ही थे, बाहर निकलकर हम लोग गुफा नंबर दो में प्रविष्ट हुए। यह एक विहार गृह है, बरामदे की छतों और दीवारों पर भांति-भांति के चित्र उत्कीर्ण हैं जो एक एक भाव को प्रकट करने में समर्थ है। मुख्यतः भगवान् गौतम बुद्ध से संबंधित चित्र एवं मूर्तियाँ हैं। जभौल हारित के चित्र के बाये हाथ की ओर, हँस जातक की कथा के चित्र हैं, उसके बाद बुद्ध के जन्म की कथा के चित्र हैं, रानी महामाया अपना सपना राजा को बता रहीं हैं। पंडित सब का अर्थ समझा रहा है। रानी का मुँह नीचे किये हुए चित्रत है। आगे लुम्बिनी के उद्यान में बुद्ध के जन्म के साथ ही सात कदम चलने के चित्र हैं। कई चित्रों में बुद्ध भगवान् के अलौकिक ज्ञान को प्रदर्शित किया गया है।

कुछ आगे चले तो दो स्तम्भ वाले कमरे दिखाई दिये, स्तम्भों पर शंख निधि और पद्मनिधि के चित्र हैं। श्रावस्ती में हुए अचरज को भी चित्रित किया गया है, जिसमें एक ही समय में बुद्ध भगवान् विभिन्न स्थानों पर दर्शन देने की घटना है। सीधे हाथ की ओर धनपति जभाल और उसकी पत्नी के चित्र हैं। नीचे में शिक्षक हाथ में छड़ी लेकर बच्चों को अनुशासित करने का प्रयास कर रहा है। इसके बाद दीवार पर तीन जातक बने हैं। जिनमें विदुर पंडित का चित्र सर्वश्रेष्ठ है। नागराज कुमारी झूला झूल रहीे हैं। यक्ष मुग्ध भाव से उन्हें देख रहा है। सभा में चर्चा हो रही है नीचे एक छोटा जहाज है जिसमें सब ओर जातक कथायें चित्रित हैं। ये चित्र स्पष्ट नहीं है, यहाँ चित्रित नर्तकी के शरीर की सुन्दरता अजन्ता का सबसे बड़ा आकर्षण है। हम सभी इस समय अन्तरमुखी हो गये थे। लगता था बातें करने की बन्दिश हो हम स्वयं में खोये हुए चित्रों के बारे में सोच रहे थे। गुफा से बाहर आकर हमने अपने जूते चप्पल लिए। चन्द्रा दीदी का डोली वाला जल्दी मचा रहा था, हमें एलोरा भी जाना था। वैसे अजन्ता दर्शन जल्दी बाजी का काम कदापि नहीं था।

पर्वत पर घटाएँ झुकीं हुईं थीं, पानी अभी बन्द था, किन्तु कब बरसने लगेगा कहना कठिन था।

हम लोग गुफा नं. 3 के आगे से गुजर कर चार में पहुँचे क्योंकि वह खाली है, गुुफा नं. 4 के खंभे सादे हैं, प्रवेश द्वार के दोनों ओर दीवारों पर मन को प्रसन्नता से भर देने वाले चित्र भी हैं। परन्तु यह गुफा अपूर्ण है।

आगे गुफा नं. 5 में जाने के लिए कुछ सीढ़ियाँ नीचे उतरना था। यहाँ प्रवेश द्वार के दोनों ओर शाल भंगिमाएँ चित्रि हैं जिनका शिलप अत्यन्त मनोहर है।

गुफा नं. 6 दो मंजिली अकेली गुफा है, हम लोग इसमें नहीं गये क्यों कि हम सभी उम्रदराज हैं। पानी गिरने से सीढ़ियाँ गीली हो गई थीं, गिरने का भय था। समयाभाव भी था।

अब हम गुफा नं. 10 में आ गये। यह अजन्ता के पाँच चैत्य गृहों में से एक है। इसमें ईसा पूर्व दूसरी शताब्दि के शिला लेख हैं जिन्हें पढ़ना हमारे लिए असंभव था। इस गुफा में कुल 31 स्तम्भ हैं, स्तूप बहुुत बड़ा है। प्रदक्षिणा पथ मंदिर से अलग हैं। दीवारों पर बुद्ध के जीवन से संबंधित चित्र बने हुए हैं। छत हाथ की पीठ जैसी है। यह बौद्धधर्म के हीन यान पंथ की गुफा है। ‘‘सभी एइसाई है मैडम चलो अब 16 नं. देख लेते हैं’’ डोली वाला हमें 16 नं. की गुफा में ले गया। यहाँ सीढ़ियों की दोनों तरफ घुटने टेके हाथी की मूर्तियाँ हैं। सामने नागराज अपनी पत्नी के साथ चित्रित हैं। सीढ़ियों की बाईं ओर एक शिलालेख मिलता है, इससे ज्ञात होता है कि इस गुफा के निर्माण में वत्स गुल्म (बाशीम) के राजा तथा वाकाटक राजाओं ने मदद की है।

इस विहार में दीवार पर सुन्दर चित्र और जातक कथायें अंकित हैं। प्रथम तो नंद के भिक्षुक बनने का दृश्य, सेवक के द्वारा मुकुट राजगृह भेजने तथा नंद पत्नी सुन्दरी की मृत्यु का चित्र है। इस चित्र के चेहरे पर मृत्यु पूर्व की पीड़ा के भाव स्पष्ट परिलक्षित हो रहे हैं। नंद का नागवारी भरे अंदाज में चित्र उद्धृत हैं। सेविकाओं की वेशभूषा आधुनिक नर्सों के सामन दिखाई गई हैं।

यहाँ आठ बुद्धों की जानकारी प्राप्त होती है। गौतम के पहले के छः बुद्ध और बाद के एक मैत्रय नामक बुद्ध के अवतीर्ण होने की जानकारी प्राप्त होती है। यहाँ चित्रों के नीचे आलेख भी हैं, उनके नामों का भी उल्लेख किया गया है। दीवार के कोने में दो गंधर्व हवा में उड़ते हुए चित्रित किये गये हैं। गंधर्वों की आँखों की विशेष बनावट उनमें लगा काजल अभी हाल ही में लगाया हुआ सा प्रतीत हो रहा था। हस्ती जातक सुत्तोसोम जातक की कथायें अस्पष्ट हैं। अगली दीवार पर बुद्ध के बचपन के प्रसंग रचे गये हं। विद्यार्थी बुद्ध गुरू से विद्या पढ़ते हुए, माता-महामाया और पिता शुद्धोधन के चित्र भी बड़े ही सजीव बन पड़े हैं। बुद्ध जब ध्यान में थे तब सुजाता नामक स्त्री ने खीर लाकर दिया था। वह चित्र भी यहाँ अंकित हैं। ऐसा लगता है जैसे चित्रों ने छत को उठा रखा है। छत बनी तो पत्थर काट कर ही, परन्तु लगता है जैसे लकड़ी से बनी हो। आगे एक बड़ा सा जलाशय दिखाई देता है।

इसमें बरामदे की दीवारें चित्रों से भरी हुई हैं। बाईं ओर एक बड़ा सा चक्र है। दरवाजे के सामने ही छत में छः अप्सरायें नृत्य कर रही हैं। देवदत्त के छल से मस्त थी छोड़ दिया बुद्ध के ऊपर, परन्तु उन्हें देखते ही वह शांत हो गया, बाईं ओर जातक कथाएँ अंकित हैं। तालाब के आस-पास बहुत सारे हाथियों के चित्र निर्मित हैं। एक सुन्दर सा हाथी का बच्चा पेड़ पौधों से भरे एवं अरूण सरोज से भरे हुए तालाब के पास उकेरा गया है। महा कवि जातक की कथा उत्कीर्ण है। एक बन्दर अपने भाई बन्दर के लाभ के लिए त्याग करता नजर आ रहा है। ऊँचे आसन पर दो हँस विराजमान है बोधिसत्व हँस का व्याख्यान लोग बड़े ध्यान से सुनते चित्रित हुए हैं।

सामने की दीवार पर शिकार दृश्य, पशु-पक्षी अंकित हैं। प्रदक्षिणा पथ में यशोधरा की आकृति उकेरी गई है। गर्भगृह में सेवक बुद्ध के सामने दीपक लिए खड़ा है। इसके बाद बोधिसत्य के गजजन्म की कथा चित्रित है। इसमें मातृप्रेम की चरम सीमा का लालित्य पूर्ण अंकन हुआ है। रामायण के श्रवण कुमार की कथा, एक जातक के रूप में अंकित हैं। महिष जातक की कथा, सिंहलावदान प्रसंग उद्धृत हैं। एक आधे बने स्तम्भ पर एक राजकुमारी हाथ में दर्पण लिए मणि-मोतियों की माला एवं आभूषणों से आभूषित अपने रूप पर गर्वित हो रही है। यह पूर्वकालीन चित्र कला है। आगे शिवी, हिरण की जातक कथा, मुर्गों की लड़ाई, पहलवानों के मल्ल युद्ध, बैलों की टक्करें, किन्नर आदि दर्शनीय हैं। इस गुफा की छत कपड़े के छत जैसी समतल है। गुफा में प्रकाश बहुत कम था, हम लोग मोबाइल की रोशनी के कुछ ज्यादा देखने समझने का प्रयास कर रहे थे। समय हो जाने पर बाहर बैठे गार्ड ने सीटी बजाई हम सभी गुफा से बाहर आ गये।

शेष अगले भाग में

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