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अखाड़ा परिषद: हिंदू धर्म का प्रहरी

अखाड़ा परिषद: हिंदू धर्म का प्रहरी

प्रस्तावना

हिंदू धर्म की समृद्ध विरासत और अखाड़ा परिषद की भूमिका

हिंदू धर्म, विश्व की प्राचीनतम धर्म प्रणालियों में से एक है, जिसकी जड़ें वेद, उपनिषद, और पुराणों में गहराई से निहित हैं। यह धर्म केवल आध्यात्मिकता का ही नहीं, बल्कि जीवन के हर पहलू का मार्गदर्शन करता है। सहिष्णुता, विविधता, और समावेशिता पर आधारित हिंदू धर्म ने सहस्राब्दियों से न केवल भारतीय समाज को आकार दिया है, बल्कि विश्व संस्कृति पर भी गहरा प्रभाव डाला है।

इस अद्वितीय धर्म को संरक्षित और प्रचारित करने में संतों और साधुओं का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। इन्हीं संतों और साधुओं की संगठित शक्ति का प्रतीक है अखाड़ा परिषद, जो हिंदू धर्म के रक्षक और प्रचारक के रूप में कार्य करता है। अखाड़ा परिषद केवल एक धार्मिक संगठन नहीं है, बल्कि यह धर्म, संस्कृति और समाज की रक्षा और मार्गदर्शन के लिए एक सशक्त मंच है।

अखाड़ा परिषद का परिचय: हिंदू धर्म के प्रहरी के रूप में इसकी स्थापना और उद्देश्य

अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद (ABAP), हिंदू साधुओं और संतों के 14 प्रमुख संगठनों का संघ है। इसकी स्थापना हिंदू धर्म की रक्षा, साधु-संत परंपराओं को संरक्षित करने, और धर्म के प्रचार-प्रसार के उद्देश्य से की गई थी। अखाड़ा परिषद का आधार 8वीं शताब्दी में आदि शंकराचार्य द्वारा रखी गई उस परंपरा में है, जिसने धर्म, दर्शन और समाज के नैतिक मूल्यों को सशक्त करने के लिए अखाड़ों की स्थापना की।

अखाड़ा परिषद ने सदियों से न केवल धार्मिक अनुष्ठानों को बढ़ावा दिया है, बल्कि समाज में नैतिकता और आध्यात्मिकता के प्रसार में भी अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। कुंभ मेले के दौरान अखाड़ों की शोभायात्राएँ, नागा साधुओं की उपस्थिति, और संतों की दीक्षा प्रक्रियाएँ, अखाड़ा परिषद की धार्मिक शक्ति और सामाजिक प्रासंगिकता का अद्वितीय उदाहरण हैं।

पुस्तक का उद्देश्य

यह पुस्तक “अखाड़ा परिषद: हिंदू धर्म का प्रहरी” अखाड़ा परिषद की संरचना, इतिहास, और हिंदू धर्म के संरक्षण और प्रसार में इसकी भूमिका को विस्तार से समझने का प्रयास है।
पुस्तक में निम्नलिखित पहलुओं पर प्रकाश डाला गया है:

  1. इतिहास: अखाड़ों का उद्भव, उनके विकास का सफर, और भारतीय इतिहास में उनका योगदान।
  2. संरचना: अखाड़ा परिषद के अंतर्गत आने वाले प्रमुख अखाड़ों की संरचना और उनकी विशेषताएँ।
  3. धार्मिक भूमिका: कुंभ मेले और अन्य धार्मिक आयोजनों में अखाड़ों की भूमिका।
  4. सामाजिक प्रासंगिकता: समाज को नैतिक, धार्मिक, और सांस्कृतिक दिशा देने में अखाड़ा परिषद का योगदान।
  5. आधुनिक युग की चुनौतियाँ: धर्म के व्यवसायीकरण, फर्जी बाबाओं, और धर्म के प्रति घटती रुचि के संदर्भ में अखाड़ा परिषद की भूमिका।

इस पुस्तक का उद्देश्य पाठकों को अखाड़ा परिषद के महत्व और इसकी व्यापक भूमिका से परिचित कराना है। यह प्रयास करता है कि पाठक केवल अखाड़ा परिषद के ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व को ही न समझें, बल्कि इसे हिंदू धर्म और भारतीय समाज के संरक्षक के रूप में देखें।

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अखाड़ा परिषद: हिंदू धर्म का प्रहरी

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अंतिम शब्द

यह पुस्तक अखाड़ा परिषद की समृद्ध परंपराओं और उसके ऐतिहासिक, सामाजिक, और धार्मिक योगदान का एक समग्र चित्रण प्रस्तुत करती है। यह धर्म, समाज और संस्कृति को जोड़ने वाली उस शक्ति का परिचय कराएगी, जिसने सदियों से हिंदू धर्म को संरक्षित और सशक्त किया है।
पुस्तक के पन्नों में अखाड़ा परिषद की यात्रा, इसकी संरचना, और इसकी भूमिका के अद्भुत पहलुओं को जानने के लिए आइए, एक साथ इस अद्वितीय यात्रा का आरंभ करें।

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अध्याय 1: अखाड़ा परिषद: हिंदू धर्म का संरक्षण और प्रसार

अखाड़ा प्रणाली का उद्भव और धर्म के प्रति इसकी प्रतिबद्धता

अखाड़ा प्रणाली की स्थापना प्राचीन भारत में धर्म और संस्कृति की रक्षा और प्रसार के लिए की गई थी। यह प्रणाली 8वीं शताब्दी में आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित की गई, जब भारत पर बाहरी आक्रमणों और सांस्कृतिक चुनौतियों का संकट गहराने लगा था। शंकराचार्य का उद्देश्य वैदिक परंपराओं को पुनर्जीवित करना और समाज को धर्म, अध्यात्म, और नैतिकता से जोड़ना था।

‘अखाड़ा’ शब्द का शाब्दिक अर्थ कुश्ती का मैदान है, लेकिन धर्म और अध्यात्म के संदर्भ में यह उन संगठनों को दर्शाता है, जो धर्म के प्रचार-प्रसार, संरक्षण, और समाज की रक्षा के लिए समर्पित थे। वास्तव संत साधु अख्खड़ स्वभाव के होते हैं, इसी स्वभाव के कारण इनकेसमूह को अखाड़ा की संज्ञा दी गइ है । आदि शंकराचार्य ने चार मठों—बद्रीनाथ (उत्तर), रामेश्वरम (दक्षिण), जगन्नाथ पुरी (पूर्व), और द्वारका (पश्चिम)—की स्थापना की। इन मठों का उद्देश्य धर्म की रक्षा और वैदिक परंपराओं को सुदृढ़ करना था।

अखाड़ों की स्थापना का उद्देश्य

अखाड़ों का गठन शंकराचार्य के इस दृष्टिकोण पर आधारित था कि धर्म और अध्यात्म की रक्षा के लिए शारीरिक और मानसिक शक्ति का संतुलन आवश्यक है।

  1. धर्म का संरक्षण:
    वैदिक परंपराओं और धर्म के मूल सिद्धांतों को संरक्षित करना।
  2. सामाजिक कल्याण:
    समाज को नैतिक, धार्मिक, और आध्यात्मिक मार्गदर्शन प्रदान करना।
  3. धर्म रक्षा:
    विदेशी आक्रमणकारियों और बाहरी प्रभावों से धर्म और संस्कृति की रक्षा करना।
  4. आध्यात्मिकता का प्रसार:
    लोगों को वैदिक संस्कृति और धर्म के सिद्धांतों से जोड़ना।

आदि शंकराचार्य के समय में सात प्रमुख अखाड़े स्थापित किए गए। बाद में, 1565 में मधुसूदन सरस्वती के प्रयासों से अखाड़ों का विस्तार हुआ और इन्हें सैन्य संरचना के रूप में विकसित किया गया।

प्राचीन भारत में अखाड़ों की भूमिका

1. धर्म और संस्कृति की रक्षा

प्राचीन भारत में अखाड़ों ने धर्म और संस्कृति की रक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। मुस्लिम आक्रमणों और अन्य बाहरी शक्तियों ने हिंदू धर्म, परंपराओं, और मंदिरों पर बार-बार हमले किए। ऐसे समय में अखाड़ों ने संगठित होकर हिंदू समाज और धार्मिक स्थलों की रक्षा की। ये अखाड़े केवल आध्यात्मिक साधना के केंद्र नहीं थे, बल्कि धार्मिक और सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करने वाले सैन्य संगठन भी थे। अखाड़ों के संतों और साधुओं ने समाज में धर्म और नैतिकता की स्थापना के साथ-साथ हिंदू धर्मावलंबियों को संगठित कर आक्रमणकारियों का सामना किया।

  • नागा साधु और सैन्य परंपरा:
    नागा साधु अखाड़ों के सबसे प्रमुख योद्धा थे, जो शस्त्र और शास्त्र दोनों में निपुण थे। वे अपने निर्वस्त्र और वैराग्यपूर्ण जीवन के लिए जाने जाते थे, जो उनके संसारिक बंधनों से मुक्त होने का प्रतीक था। कठिन अनुशासन और सैन्य प्रशिक्षण के माध्यम से वे मंदिरों और तीर्थस्थलों की रक्षा के लिए हमेशा तैयार रहते थे। नागा साधु धर्म की रक्षा के लिए अपनी जान न्योछावर करने से भी नहीं हिचकिचाते थे। उनकी सैन्य परंपरा का उद्देश्य केवल युद्ध कौशल विकसित करना नहीं था, बल्कि धार्मिक स्थलों और आध्यात्मिक परंपराओं की सुरक्षा सुनिश्चित करना भी था।
  • शस्त्र और शास्त्र का संतुलन:
    आदि शंकराचार्य ने मठ और मंदिरों की सुरक्षा के लिए शस्त्र के उपयोग को भी वैध बताया। उनके इस दृष्टिकोण ने अखाड़ों को केवल आध्यात्मिक शिक्षा के केंद्र तक सीमित नहीं रहने दिया, बल्कि उन्हें सैन्य संगठनों के रूप में भी विकसित किया। अखाड़ों में साधुओं को शास्त्र (धार्मिक ज्ञान) और शस्त्र (युद्ध कला) दोनों की शिक्षा दी जाती थी। इस संतुलन ने साधुओं को धर्म और समाज की रक्षा के लिए सक्षम बनाया। अखाड़ों की यह परंपरा उस समय की आवश्यकता थी, जब भारत को आंतरिक और बाहरी खतरों से बचाने के लिए एक सशक्त संगठन की जरूरत थी।

अखाड़ों ने प्राचीन भारत में धर्म, संस्कृति, और आध्यात्मिकता को सुरक्षित रखने में एक अभूतपूर्व भूमिका निभाई। वे न केवल धार्मिक स्थलों की रक्षा के लिए लड़ाई करते थे, बल्कि धर्म और समाज को एकजुट रखने का कार्य भी करते थे। आज भी अखाड़े भारतीय संस्कृति और परंपराओं के महत्वपूर्ण संरक्षक बने हुए हैं।

2. धार्मिक प्रचार और शिक्षा

अखाड़ों ने केवल धर्म और संस्कृति की रक्षा करने तक अपनी भूमिका सीमित नहीं रखी, बल्कि ज्ञान और शिक्षा के प्रसार में भी अग्रणी भूमिका निभाई। वे समाज में धार्मिक सिद्धांतों को समझाने, नैतिक मूल्यों को बढ़ावा देने, और आध्यात्मिक ज्ञान को सुलभ बनाने का महत्वपूर्ण कार्य करते थे। इन अखाड़ों ने धर्म के जटिल सिद्धांतों को समाज के हर वर्ग तक पहुंचाने का कार्य किया, जिससे लोगों में आत्मज्ञान और धर्म के प्रति आस्था बढ़ी।

वेद और उपनिषद का अध्ययन

अखाड़े प्राचीन भारतीय ज्ञान के भंडार थे। यहां साधु-संत वेद, उपनिषद, भगवद्गीता, और अन्य धर्मग्रंथों का गहन अध्ययन और अनुसंधान करते थे।

  • अखाड़ों में धार्मिक शिक्षा की परंपरा ने वैदिक ज्ञान को जीवित रखा।
  • साधु-संतों ने धर्मग्रंथों के अध्ययन के साथ-साथ इनका व्यावहारिक उपयोग समाज को सिखाया।
  • ये ग्रंथ धर्म, दर्शन, और आध्यात्मिकता के स्रोत हैं, जिनका प्रचार-प्रसार अखाड़ों ने अपनी शिक्षाओं और प्रवचनों के माध्यम से किया।

शास्त्रार्थ: धर्म के सिद्धांतों का प्रचार

अखाड़े शास्त्रार्थ (वैचारिक बहस) की परंपरा के लिए प्रसिद्ध थे।

  • शास्त्रार्थ का उद्देश्य धार्मिक और दार्शनिक सिद्धांतों को स्पष्ट करना था।
  • यह एक ऐसा मंच था, जहां साधु और विद्वान अपने विचारों और धर्म के सिद्धांतों पर चर्चा करते थे।
  • शास्त्रार्थ ने न केवल धार्मिक शिक्षा को समृद्ध किया, बल्कि समाज में धर्म के गूढ़ विषयों को सरल और सुलभ भाषा में प्रस्तुत करने का कार्य भी किया।
  • इन बहसों ने समाज को अंधविश्वास और धर्म के प्रति भ्रम से मुक्त करने में मदद की।

धार्मिक प्रचार और शिक्षा में अखाड़ों की भूमिका केवल धार्मिक सीमाओं तक सीमित नहीं थी, बल्कि उन्होंने समाज में शिक्षा और ज्ञान के प्रसार का कार्य भी किया। वेद, उपनिषद, और गीता जैसे ग्रंथों का अध्ययन और शास्त्रार्थ के माध्यम से उनके सिद्धांतों को स्पष्ट करना, अखाड़ों को भारतीय धार्मिक और सांस्कृतिक शिक्षा के स्तंभ के रूप में स्थापित करता है। अखाड़ों की यह परंपरा आज भी भारतीय समाज में धर्म और शिक्षा के समन्वय का एक अनूठा उदाहरण है।

3. कुंभ मेले में भूमिका

कुंभ मेले की परंपरा अखाड़ों के आपसी समागम और धर्म प्रचार का प्रतीक है।

  • शाही स्नान:
    अखाड़ों की शोभायात्रा, जिसमें नागा साधु प्रमुख होते हैं, कुंभ मेले का मुख्य आकर्षण है।
  • धर्म का आदान-प्रदान:
    कुंभ मेला अखाड़ों के लिए धर्म और संस्कृति के आदान-प्रदान का केंद्र बन गया।

अखाड़ों की संरचना और संगठन

1. प्रमुख अखाड़े और उनके संप्रदाय

आज भारत में 14 प्रमुख अखाड़े हैं, जो तीन मुख्य संप्रदायों में विभाजित हैं:

  • शैव संप्रदाय:
    शिव और उनके अवतारों को मानने वाले। इसमें 7 अखाड़े शामिल हैं, जैसे जूना अखाड़ा, महानिर्वाणी अखाड़ा, और निरंजनी अखाड़ा।
  • वैष्णव संप्रदाय:
    भगवान विष्णु को मानने वाले। इसमें 3 अखाड़े हैं, जैसे श्री दिगंबर अनी अखाड़ा और श्री पंच निर्मोही अनी अखाड़ा।
  • उदासीन संप्रदाय:
    सिख-साधुओं का संप्रदाय, जो सनातन धर्म को मानते हैं। इसमें 3 अखाड़े शामिल हैं, जैसे श्री पंचायती बड़ा उदासीन अखाड़ा।

2. अखाड़ों का प्रशासन

अखाड़ों में महामंडलेश्वर का पद सर्वोच्च होता है। महामंडलेश्वर साधु चरित्र और शास्त्रीय ज्ञान में पारंगत व्यक्ति होते हैं।

  • अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद:
    1954 में स्थापित परिषद का उद्देश्य अखाड़ों के बीच वर्चस्व की लड़ाई को रोकना और उनकी गतिविधियों को संगठित करना था।

प्राचीन भारत में धर्म और संस्कृति की रक्षा में अखाड़ों की भूमिका

प्राचीन भारत में अखाड़ों ने न केवल आध्यात्मिक और धार्मिक उद्देश्यों की पूर्ति की, बल्कि समाज और संस्कृति के संरक्षण में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। भारत का इतिहास इस बात का साक्षी है कि जब-जब हिंदू धर्म पर बाहरी आक्रमणों और सांस्कृतिक चुनौतियों का संकट आया, तब-तब अखाड़ों ने अग्रणी भूमिका निभाई। अखाड़ा परिषद ने आधुनिक समय में हिंदू धर्म और संस्कृति को पुनर्जीवित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

  1. आक्रमणकारी शक्तियों के विरुद्ध संघर्ष:
    8वीं से 12वीं शताब्दी के दौरान जब भारत पर मुस्लिम आक्रमणकारियों ने हमला किया, तो अखाड़ों ने धर्म और संस्कृति की रक्षा के लिए सशस्त्र साधुओं की परंपरा शुरू की। 1565 में मधुसूदन सरस्वती ने अखाड़ों को सैन्य बलों के रूप में तैयार किया। नागा साधु, जो अपनी कठोर तपस्या और युद्धकला के लिए प्रसिद्ध थे, उन्होंने हिंदू मंदिरों और तीर्थस्थलों की रक्षा में अहम भूमिका निभाई।
  2. धार्मिक प्रचार और शिक्षा:
    अखाड़ों ने धर्म की रक्षा के साथ-साथ ज्ञान और शिक्षा का भी प्रसार किया। इन संस्थाओं ने वेद, उपनिषद, गीता और अन्य धार्मिक ग्रंथों के अध्ययन और प्रचार को बढ़ावा दिया। अखाड़े शास्त्रार्थ (वैचारिक बहस) के माध्यम से धर्म के सिद्धांतों को स्पष्ट करते थे और समाज को वैदिक संस्कृति से जोड़ने का कार्य करते थे।
  3. कुंभ मेले में अखाड़ों की भूमिका:
    कुंभ मेले की परंपरा अखाड़ों के आपसी समागम और धर्म प्रचार का प्रतीक है। यह मेला अखाड़ों के लिए धर्म और संस्कृति के आदान-प्रदान का केंद्र बन गया। नागा साधुओं की शोभायात्रा, धार्मिक अनुष्ठान और संतों की उपस्थिति ने कुंभ को धर्म के प्रचार का सशक्त माध्यम बनाया।
  4. सामाजिक संरक्षक के रूप में अखाड़े:
    प्राचीन काल में जब समाज में वर्ग और जाति के आधार पर असमानता थी, तब अखाड़ों ने धार्मिक एकता और सामाजिक समरसता का संदेश दिया। अखाड़ों ने साधु और संतों के माध्यम से यह सिखाया कि धर्म का उद्देश्य मानवता की सेवा और आत्मिक उन्नति है।
  5. सांस्कृतिक संरक्षण:
    अखाड़ों ने सनातन धर्म की परंपराओं को जीवित रखा और उन्हें समाज के साथ जोड़ा। अखाड़ा परिषद का अस्तित्व हिंदू धर्म और भारतीय संस्कृति की रक्षा और प्रसार का अद्वितीय उदाहरण है। यह प्रणाली न केवल धर्म और अध्यात्म के संरक्षण में सहायक रही है, बल्कि समाज में नैतिकता और आध्यात्मिकता को सुदृढ़ करने में भी अग्रणी भूमिका निभाती है। अखाड़ों की स्थापना से लेकर उनकी वर्तमान भूमिका तक, यह स्पष्ट है कि अखाड़ा परिषद ने भारतीय संस्कृति को न केवल संरक्षित किया है, बल्कि उसे एक नई दिशा भी दी है।
  6. स्वतंत्रता संग्राम में योगदान:
    अखाड़ों ने भारत के स्वतंत्रता संग्राम में भी भाग लिया। आजादी के बाद, इनका सैन्य स्वरूप समाप्त हो गया, लेकिन धार्मिक और सांस्कृतिक भूमिका बनी रही।

अखाड़ा परिषद का अस्तित्व केवल धार्मिक अनुष्ठानों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह हिंदू धर्म और भारतीय संस्कृति की रक्षा और प्रसार का एक अद्वितीय उदाहरण है। इसकी प्रणाली ने न केवल धर्म को संरक्षित किया, बल्कि समाज में नैतिकता और आध्यात्मिकता को भी सुदृढ़ किया। प्राचीन काल से लेकर आज तक, अखाड़ा परिषद हिंदू धर्म का प्रहरी बनकर इसे संजोने और आगे बढ़ाने का कार्य कर रही है।

अगले अध्याय में हम अखाड़ों के ऐतिहासिक विकास और आदि शंकराचार्य द्वारा उनकी स्थापना के विशिष्ट पहलुओं पर विस्तार से चर्चा करेंगे।

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