अनुष्‍टुप छंद की परिभाषा और नियम उदाहरण सहित

अनुष्‍टुप छंद की परिभाषा और नियम उदाहरण सहित

-रमेश चौहान

अनुष्‍टुप छंद की परिभाषा और नियम उदाहरण सहित
अनुष्‍टुप छंद की परिभाषा और नियम उदाहरण सहित

अनुष्‍टुप छंद की परिभाषा-

अनुष्‍टुप छंद एक वैदिक वार्णिक छंद है । इस छंद को संस्‍स्‍कृत में प्राय: श्‍लोक कहा जाता है या यों कहिये श्‍लोक ही अनुष्‍टुप छंद है । संस्‍कृत साहित्‍य में सबसे ज्‍यादा जिस छंद का प्रयोग हुआ है, वह अनुष्‍टुप छंद ही है । अनुष्‍टुप छंद वार्णिक छंद है इसमें वर्णो की गिनती की जाती है ।

अनुष्‍टुप छंद एक वार्णिक छंद है जिसमें चार चरण और दो पद होते हैं, प्रत्‍येक चरण में आठ-आठ वर्ण होते हैं । विषम चरण के अंतिम तीन वर्ण गुरू होते हैं जबकि सम चरण में अंतिम तीन वर्ण गुरू लघु गुरू होता है । इसकी सबसे बड़ी विशेषता यह कि यह दो पंक्ति में अपना संपूर्ण भाव संप्रेषित कर लेता है ।

अनुष्‍टुप छंद

अनुष्‍टुप छंद का विधान-

1. वर्ण संरचना की दृष्टि से-

अनुष्‍टुप छंद 4 चरणों एवं दो पदों का वार्णिक छंद हैं जिसके प्रत्‍येक चरणों में 8-8 वर्ण होते हैं । इन आठ वर्णो में गुरू-लघु का नियम होता है । संस्‍कृत में तुक की अनिवार्यता नहीं थी, हिन्‍दी में तुक का ज्‍यादा प्रचलन है इसलिये इस छंद में तुकांत को ऐच्छिक रखा गया चाहे रचनाकार तुकांत रखे चाहे तो न रखें । इसके नियम को निम्‍नवत रेखांकित किया जा सकता है-

  • विषम चरण – वर्ण क्रमांक पाँचवाँ, छठा, सातवाँ, आठवाँ क्रमशः लघु, गुरू, गुरू, गुरू
  • सम चरण – वर्ण क्रमांक पाँचवाँ, छठा, सातवाँ, आठवाँ क्रमशः लघु, गुरू, लघु, गुरू
  • तुकांतता-ऐच्छिक

2. भाव संरचना की दृष्टि से-

अनुष्‍टुप छंद में भाव संयोजन इस प्रकार होना चाहिए कि इनके दो पंक्तियों कहन का पूरा अर्थ आ जाए । अपने अर्थ को व्‍यक्‍त करने के लिए यह दूसरे छंद पर निर्भर न हो । इसे संस्‍कृत छंद का मुक्‍तक माना जाता है । मुक्‍तक का अर्थ यह है कि अनुष्‍टुप छंद की दो पंक्ति ही अपनी भाव संप्रेषण सक्षम होता है । कवि जो कहना चाहता हे इन्‍ही दो पंक्तियों व्‍यक्‍त कर देता है पाठक भी कवि के उस भाव को समग्रता के साथ ग्रहण कर लेता है ।

अनुष्‍टुप छंद की परिभाषा अनुष्‍टुप छंद में-

आठ वर्ण जहां आवे, अनुष्टुपहि छंद है ।
पंचम लघु राखो जी, चारो चरण बंद में ।।

छठवाँ गुरु आवे है, चारों चरण बंद में ।
निश्चित लघु ही आवे, सम चरण सातवाँ ।।

अनुष्टुप इसे जानों, इसका नाम श्लोक भी ।
शास्त्रीय छंद ये होते, वेद पुराण ग्रंथ में ।।

अनुष्‍टुप छंद का उदाहरण-

राष्ट्रधर्म कहावे क्या, पहले आप जानिये ।
मेरा देश धरा मेरी, मन से आप मानिये ।।

मेरा मान लिये जो तो, देश ही परिवार है ।
अपनेपन से होवे, सहज प्रेम देश से ।।

सारा जीवन है बंधा, केवल अपनत्व से ।
अपनापन सीखाये, स्व पर बलिदान भी ।।

सहज परिभाषा है, सुबोध राष्ट्रधर्म का ।
हो स्वभाविक ही पैदा, अपनापन देश से ।।

अपनेपन में यारों, अपनापन ही झरे ।
अपनापन ही प्यारा, प्यारा सब ही लगे ।।

अपना दोष औरों को, दिखाता कौन है भला ।
अपनी कमजोरी को, रखते हैं छुपा रखे ।।

अपने घर में यारों, गैरों का कुछ काम क्या ।
आवाज शत्रु का जो हो, अपना कौन मानता ।।

होकर घर का भेदी, अपना बनता कहीं ।
राष्ट्रद्रोही वही बैरी, शत्रु से मित्र भी बड़ा ।।

-रमेश चौहान

इसे भी देखें-छंद एवं छंद के अंग 

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