परिवर्तन और परिवर्तन शीलता

    समय, सूर्योदय, सांध्य-वेला से निशा में परिणित होकर दिन महीने से गुजर, ॠतु और वर्ष में बदलते रहता  है। सृष्टि,विध्वंस और पुनर्निर्माण की गाथा है।  परिवर्तन के सांसारिक नियम की पराकाष्ठा देखकर खुद को समय अनुरूप ढालने का प्रयास अनवरत चलते रहा है। वर्ष बदलते ही हम  कैलेंडर बदल लेते हैं । कोरोना की विभीषिका ने हमे प्रत्येक चुनौती के लिए तत्पर रहने, बेहतर से बेहतरीन होने की उम्मीद जगायी है ।  कोविड-19 की चुनौती ने हमें सुरक्षा के इंतजाम के साथ मुस्तैद रहना सिखाया है । देश ने माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में विकास के नए आयाम गढ़े तो छत्तीसगढ़ प्रदेश में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के साथ हम सतत विकास की राह पर मजबूती से कदम बढ़ा रहे हैं। 
  पुरानी शिक्षा नीति में बदलाव के साथ शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2010 लागू होने और समतुल्यता परीक्षा के स्थान पर मुक्त विद्यालय के माध्यम से सीधा दसवीं कक्षा की परीक्षा देने की व्यवस्था ने प्राइमरी स्कूल छोड़ चुके विद्यार्थियों को शिक्षा की मुख्यधारा में शामिल करते हुए उच्च शिक्षा के मार्ग  प्रशस्त किया है। हालाकि यह शाला-त्यागी बच्चों को शिक्षा की मुख्यधारा में लाने की चुनौती से पीछा छुड़ाने शासन की नीति का हिस्सा है। केंद्रीय शिक्षानीति का राज्य स्तर में अनुशरण के साथ नीतिगत परिवर्तन और प्रयोगधर्मिता से सदैव नये राह खुलते रहे हैं। 

जब हम समय के साथ बदलाव की दिशा में कदम बढ़ाते हैं,तभी विकास की गाथा गढ़ सकते है। एक बच्चा कब तक अपनी माँ की गोद में बैठा रहेगा ? जब वह मॉं की गोद से उतर धरती में चलने लगता है तब अवस्थानुकूल  परिवर्तन के परिणामस्वरूप उसकी व्यक्तिगत विकास की इबारत लिखी जाने लगती है। लोहार जब हथौड़ा बनाता है तब लोहा पिघल जाने की हद तक गर्म किया जाता है और घन एवं हथौड़ी के आवश्यकतानुरूप प्रहार से हथौड़ा की शक्ल देकर ठंडा जल डाल किसी मजबूत लकड़ी की बेंठ लगाई जाती है, तब कोई हथौड़ा किसी पत्थर को चकनाचूर करने के काबिल हो पाता है । जीवन में संघर्षरत  व्यक्ति  सूरज की तरह तपकर ही अपने कीर्ति के प्रखर किरणों से समाज में व्याप्त अंधेरा दूर करने सक्षम हो पाता हैं,नहीं तो सूरज नाम किसी का भी हो सकता है जो दुनिया को अंधेरा के सिवा कुछ दे ही  नहीं पाता  ।  
      जलवायु परिवर्तन के खतरों से भला कौन वाकिफ नही है ?  इनसे  निपटने दुनिया भर के प्रतिनिधि चिंतन कर रहे हैं ।  लेकिन इस पर सार्थक परिणाम तभी निकल सकता है जब  विश्व के नागरिक अपना कर्तव्य समझेगे और ईमानदारी पूर्वक अपनी कर्तव्यनिष्ठा का पालन करेंगे। 
     प्राकृतिक आपदा से पूरा विश्व परेशान है। कहीं सूखे से परेशान हैं लोग तो कहीं बाढ़ की विभीषिका से पहाड़ों पर बसे शहर के शहर दलदल की तरह बहकर नदियों की धार में बह जाते हैं। कहीं गर्मी से रेल की पटरी मुड़ जाती है तो कहीं सर्दी से पानी की पाइप फट जाती है । पिछले साल  यूरोपीय और अमेरिकी महाद्वीपीय भीषण गर्मी के प्रकोप झेले, महीनों तक अमेरिका और दक्षिण अफ्रीका के जंगल जलकर राख में तब्दील होते रहे । कहीं लोग बरस बर्फीले तूफान का कहर झेल रहे हैं । 

अब तो चेत जाओ, अपनी भूलों का प्रायश्चित कर लो! मौसम में अप्रत्याशित बदलाव जीवन अस्तित्व के लिए संकट पैदा कर रहा है। तापमान की अनियमितता आसन्न संकट की भयावहता का प्रतीक है। यह खतरा हमारे दरवाजे तक पहुंच चुका है, इसे नजरन्दाज नही किया जा सकता । यथाशीघ्र पुख्ता इंतजाम की जरूरत है, जिससे 20वीं शताब्दी में अंधाधुंध बढ़ रहे विज्ञान के प्रयोग के दुष्परिणाम और विकास रथ में सवार मानव , प्राकृतिक आपदाओं से सुरक्षित रह सके। इस हेतु विकसित देशों के पास पर्याप्त संसाधन मौजूद है लेकिन गरीब देशों को इसके लिए वित्तीय एवं तकनीकी सहयोग की जरूरत होती है । नागरिकों की व्यक्तिगत जागरूकता, जिम्मेदारी और सकारात्मक पहल समय की मांग है। आज प्रदूषण नियंत्रण एवं पर्यावरण संरक्षण की दिशा में ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है।

प्रयोगात्मक परिवर्तन की बानगी विकास रथ में सवार छत्तीसगढ़ राज्य में भी देखने मिल रहा है। नरवा,गरवा, घुरवा,बाड़ी के चार प्रायोगिक व्यवस्था विश्व में कीर्तिमान गढ़ने आतुर है । जरूरत है तो इस पर ईमानदारीपूर्वक कार्य करने की। एक समय था जब गोबर और घुरवा राष्ट्रीय स्तर में निकृष्टता को प्राप्त होकर रह गए थे और गाय हिंदुत्ववादी संगठनों की साख बचाने का साधन बनकर। ऐसे समय में भूपेश बघेल की सरकार ने गोबर और उससे बनने वाले विभिन्न उत्पाद की खरीदी-बिक्री से किसानो और गोपालकों को आर्थिक उन्नति का साधन दिया है। राज्य में  दीपक , गमला, पेंट, कंडा, केचुवा खाद, अगरबत्ती आदि गोबर से बने उत्पादों की विशाल श्रृखला समाज को आर्थिक उन्नति की दिशा प्रदान की है और लोगों के बीच कौतुहल जगा रही है। मिट्टी को उपजाऊ बनाने, रोजगार की नयी राह सजाने और प्राकृतिक संतुलन बनाने में गाय ,गोबर और गोठान की भूमिका सिद्ध हुई है। फसलों की सिंचाई के लिए नरवा का पानी, अच्छी उपज के लिए घुरवा का खाद और  पोषक तत्वों से तर बारी की तरकारी प्रान्तवासियों के लिए वरदान साबित हो रहे हैं ।

 प्रयोगधर्मिता के नये उदाहरण स्वरूप रक्षा मंत्रालय ने लैंगिक भेद खत्म करने की दिशा में बड़ा कदम उठाते हुए सशस्त्र बल मे महिला अधिकारियों की भर्ती के  दरवाजे खोलने का फैसला लिया है। देश के जाबाँज जवानों की तरह कार्य- व्यवहार एवं समतुल्यता प्राप्त करने संघर्षरत महिला अफसरों एवं समाज में लैंगिक समानता स्थापित करने  प्रयासरत संगठनो के लिए निश्चय ही मील का पत्थर है ।  
 हमारे विभिन्न धर्म ग्रंथों जैसे - रामायण , महाभारत  आदि मे सेना के क्षेत्र  मे पुरूष सैनिकों के वर्चस्व का प्रत्यक्ष प्रमाण हैं ।  अब कुछ मिथक टूट रहे हैं । हमारे देश के इतिहास में ऐसे कई उदाहरण है, जहॉं वीरांगनाओं ने पुरुषों के वर्चस्व को चुनौती देकर अपनी शौर्य प्रतिभा का लोहा मनवाया है। देवासुर संग्राम में महारानी कैकेयी की युद्धकला मे निपुणता इसका श्रेष्ठ उदाहरण है। रानी दुर्गावती, अहिल्याबाई होल्कर,रानी लक्ष्मी बाई, रजिया सुल्तान जैसी वीरांगनाओं के जौहर ऐतिहासिक धरोहर हैं । आदिकाल से युद्ध , रक्तपात और क्रूरता का प्रतीक रहा है। युद्ध मे विरोधी को पराजित करने नीति विरुद्ध सारे कार्य,अमानवीयता की पराकाष्ठा हुआ करती थी। क्रूर मुस्लिम आक्रमणकारियों ने भारतीय संस्कार और संस्कृति को रौंदकर नारियों पर अत्याचार की सीमा लाँघ दी थी । मुस्लिम शासकों के लगातार हमलों से सचेत रहने तात्कालीन राजा - महाराजा अपने राज्य के किशोर -किशोरियों को बराबर शस्त्र विद्या मुहैया कराते थे और सुकोमलांगी समझे जानी वाली किशोरियों को  युद्धकला मे निपुण  बना कर हर परिस्थितियों से निपटने तैयार कराते थे । 

अब जेंडर न्यूट्रल होती सेना में कथनी और करनी का अंतर मिट रहा है । लड़कियों को कोमलांगी समझकर सेना में शामिल होने से रोकती व्यवस्था में बदलाव उन शौर्य बालाओं के लिये स्वर्णिम अवसर है जिनमे देश प्रेम का केवल जज्बा ही नही अपितु देश की सुरक्षा हेतु जीवन समर्पण की अदम्य शक्ति है ।आधुनिक समय मे सारे अवरोध हटाकर, पारंपरिक पुरुषवादी सोच के सारे धूल झाड़ कर भारतीय सेना नए कलेवर में सामने है।

सशस्त्र बल , अंतरिक्ष विज्ञान, खगोल विज्ञान, भूविज्ञान, चिकित्सा विज्ञान आदि के साथ-साथ सामाजिक और राजनीतिक क्षेत्र मे स्त्री शक्ति का वर्चस्व प्रमुखता से बढा़ है । यह सब यूँ ही नहीं हो गया इसके लिए नारी शक्ति ने परमानेंट कमिशन हासिल कर, कठिन मोर्चों पर स्वयं को सशक्त साबित कर अपने जज्बे और न्याय के मंदिर के सहयोग से लक्ष्य प्राप्ति के लिए सतत प्रयास करती रही हैं।
समतामूलक समाज निर्माण से भारत विश्व स्तर में सशक्त राष्ट्र की श्रेणी में शिखर की ओर अग्रसर है ।
हमें राष्ट्रहित को सर्वोपरि रख कर दलगत राजनीति से ऊपर उठकर विकसित राष्टृ निर्माण हेतु उठाए जा रहे आवश्यक कदम के समर्थन में पुरजोर कार्य करने की जरूरत है ।
व्यवस्थापिका, कार्यपालिका , न्यायपालिका के साथ-साथ प्रशासनिक व गैर प्रशासनिक तथा विभिन्न सामाजिक संस्थाओं के कार्य प्रणाली मे योजनाबद्ध परिवर्तन कर सुदृढ़ नेतृत्व के माध्यम से आर्थिक उन्नति, सामाजिक समरसता, और पर्यावरण संतुलन के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य का भविष्य में निश्चित ही सुखद परिणाम प्राप्त होगा।

   मधुर साहित्य परिषद् जिला बालोद की वार्षिक पत्रिका साहित्यकारों ने जन चेतना को लक्ष्य मानकर राष्टी़य एकता, अखण्डता सामाजिक विकृतियों पर बेबाक कलम चलायें तो परिवर्तन एवं प्रयोगधर्मिता के सशक्त उदाहरण हो सकते हैं। 

डॉ.अशोक आकाश

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