
भोलेपल और मासूमियत से भरा होता है। वह बोलना सीखता है। वाक्य बनाना सीखता है। कुछ कल्पनायें करता है । फिर उस कल्पना को साकार करना चाहता है। कभी कभी यह कल्पना अनोखी होती है।
वह सोचता है पेड़ पौधे बातें कर रहे हैं। उनके चेहरे को देखकर बोलता है –“माँ आज चिड़िया भूखी है, उसे खाने को दो”।
“माँ देखो, बंदर की तबीयत खराब है -तभी वह उदास बैठा है।”
सजीव के साथ साथ बचपन निर्जीव के बारे में भी सोचता है। यह बाल गीत बच्चों को कल्पना लोक मे ले ही जायेगी और उसे उनके यथार्थ को भी बतायेगी। इन गीतों मे बच्चे के आसपास के परिवेश के ही बारे में बताया गया है। पानी की बूंदे ,जो बच्चों के लिये अनोखी होती है, पानी में बुलबुले बनते हैं और फिर कुछ दूरी तक बहने के बाद, फूट जाते है। मन उसके साथ दौड़ता है और बच्चा भी कूदने लगता है।
हर मौसम का आनन्द वह अपने अनोखे तरीके से लेता है। हाथी ,बंदर ,फिरकी, चींटी -सब उसके आसपास के हैं, जिससे वह कुछ सीखता है। उनकी भावनायें उनकी हरकतें, खाने की चीजें, और रोज की दिनचर्या, बच्चे के व्यक्तित्व निर्माण में सहायक होती है।गीतों में गेयता आवश्यक नहीं, अभिनयात्मक ढंग से पढ़ते हुए,बच्चों को सिखाया जा सकता है। अभिनय का प्रभाव बच्चों।पर बहुत अधिक पड़ता है। इससे बच्चे कुछ सीखते हैं अभिनयात्मक शब्दों का प्रभाव बच्चों पर जल्दी पड़ता है,–क्योंकि बच्चे नकल जल्दी करते हैं। उनमें ग्रहणशक्ति तीव्र होती है।
नबाल मनोविज्ञान कहता है कि बच्चे अपने परिवेश से सीखते हैं। हम उस परिवेश से सीखते बच्चों को एक दिशा दे दें तो खेल से सीखी हुई सीख को, वह जीवन भर नहीं भूलता है। वही बातें उनके व्यक्तित्व में दिखाई देती है। तीन से पाँच साल तक की उम्र में बच्चे के मस्तिष्क का पूर्ण विकास हो जाता है। हमें उस बाल रुप में ही बच्चों को नैतिकता सिखानी चाहिये ।
आपके हाथ में “अलबेले बुलबुले” गीत संग्रह हैं। अब आप इसे चित्रों के माध्यम से बच्चों को पढ़ायें।
मेरा बचपन गीतों और कहानियों के बीच ही बीता है। मैं प्रकृति के बीच में बहुत कुछ सीखी थी।माँ बहुत लोक कथायें सुनाती थी। मेरे पिताजी जब भी मुझे साइकिल पर बैठाकर घुमाने ले जाते ,तो हर दृश्य को गुनगुना कर बताते। साथ में मैं भी वैसे ही बोलती।
मेरी लाडली पोती “आद्या” कोविद के दूसरे चरण में पैदा हुई थी। घर पर सब लोग थे। मैं उसे हवा, पंखा, पर्दे पर कविता सुनाते रहती थी। बोलने लायक हुई, तो वह दोहराने लगी। उसी समय इन गीतों ने जन्म लिया। आज “आद्या ” हिंदी अँग्रेजी में बहुत से गीतों को सुनाते रहती है। मैनें “आद्या” के साथ एक दुनिया बसा ली। बाल मन की उत्सुकता को गीतों के माध्यम से बताना बहुत ही सुखद होता है। वह नहाते समय, खेलते समय बस गाते रहती है। मैं बहुत से गीतों को उसे सुना चुकी हूँ। आज मैं अपने इस बाल गीत संग्रह को अपनी लाडली पोती “आद्या” को समर्पित करती हूँ।
सुधा वर्मा
प्लाट न. 69,”सुमन“
सेक्टर1,गीतांजली नगर रायपुर ,
छत्तीसगढ़
पिन -492001
मो. 94063 51566
https://www.surta.in/wp-content/uploads/2025/09/नन्ही_सी_दुनिया_बसायें_-1.pdf
1.मधुमक्खी
प्यारी-सी मक्खी हूँ मैं
कम मत समझना
हर जगह पहुँच है मेरी
कीटाणुओं को पहुँचाना
काम है मेरा
गीत गाते घूमती हूँ
हाथ न किसी के आती
फूलों की दुलारी हूँ मैं।
2.प्यारी अम्मा मेरी
अम्मा मेरी प्यारी अम्मा
रोज़ सुबह उठाती है।
प्यारी-सी पप्पी गालों पर लेकर
बगीचे की सैर कराती है।
चिड़ियों को है दाना देती
पौधों को नहलाती है।
फिर वापस आकर
मुझे दूध पिलाती है।
रोज़ दोपहर को फल खिलाती
मेरा होमवर्क भी कराती है।
मेरे साथ क्रिकेट, फुटबॉल खेलती
शाम को खूब थकाती है।
रात को खाना
अपने हाथों से खिलाती।
मधुर गीत सुना-सुनाकर
सपनों में ले जाती है।
कहानियाँ सुना-सुनाकर
सपनों की दुनिया में ले जाती है।
आँचल से मुँह ढककर
रोज मुझे सुलाती है।
3.अम्मा मेरी
अम्मा देखो अम्मा देखो
छोटा बछड़ा नाच रहा है।
तुम्हारे आँचल को चाट रहा है
अपनी माँ को मार रहा है।
गय्या उसे चाट रही है
बार-बार वह पूँछ उठा रहा है।
अम्मा तुम भी मुझे पप्पी लो
अपने आँचल से मुझे ढक लो
अम्मा मेरी प्यारी अम्मा
सबसे न्यारी प्यारी अम्मा
4.सर्कस
बैठ साइकिल पर चाचा की
मीना चली देखने सर्कस।
सोनू भी संग में था
मोहन मामा भी भागे झटपट।
टोपी पहनी हाथी ने
भालू साइकिल चला रहा।
शेर भी करतब दिखा रहा
बंदर देखो नाच रहा।
इस झूले से उस झूले पर
उस झूले से इस झूले पर।
कूद रही सुंदर बाला
बात नहीं है कहीं भी डर की।
जोकर ने पहने वस्त्र रंगीले
काले पीले हरे और नीले।
हँस-हँस सबको हँसा रहा
जीने की कला सिखा रहा।
5.क्यों मिली छुट्टी
एक नटखट बंदर मोनु
मुश्किल से मैं उसको झेलूँ
कभी चढ़ा कुर्सी पर
तो कभी छत पर
परीक्षा का बुखार है उतरा
तो क्रिकेट के मैदान पर उतरा
घुटने पर चढ़ी पट्टी
फिर भी चढ़ रही मस्ती
टी.वी. की तो खैर नहीं
महफिल घर पर ही जमी
क्रिकेट की बॉल गुमी
वीडियो गेम की तार टूटी
दो चार पुस्तकें गुमीं
होने लगी घर पर
छीना-झपटी
पंद्रह दिन में आया बुखार मुझे
शिक्षा विभाग से होने लगी
शिकायत मुझे
क्यों मिलती है इतने दिनों की
छुट्टी उसे।
6.छुट्टियाँ आई
छुट्टियाँ आईं छुट्टियाँ आईं
बहुत-सी खुशियाँ लाई।
कॉपियाँ रखो एक तरफ
पुस्तकें रखो दूसरी तरफ
गर्मी का मौसम आया
पसीने की बूँदें लाया।
बर्फ का गोला आया
रंग-बिरंगे मीठे स्वाद लाया।
ख़ूब नहायें पानी में
छुट्टियाँ आई खुशियाँ लाई
गर्मी आई बर्फ के गोले लाई।
पीला मीठा आम आया
लाल तरबूज साथ में लाया।
मीठे आम ने हमें ललचाया
लाल गोला हमें भाया।
आओ खेलें पानी में
खूब नहायें पानी में।
7.चंदा मामा
चंदा मामा चंदा मामा
दूध कहाँ से लाते हो।
चंदा मामा चंदा मामा
छुप-छुपकर पी जाते हो।
चंदा मामा चंदा मामा
हमें क्यों नहीं दे जाते हो।
चंदा मामा चंदा मामा
कहाँ खो जाते हो।
एक एक कदम बढ़ा
धीरे-धीरे आते हो।
सूरज से हो डरते मामा
रोज भाग जाते हो।
सूरज के जाते ही तुम
दौड़े चले आते हो।
चंदा मामा चंदा मामा
फिर कहाँ खो जाते हो।
8.वर्षा रानी
छम-छम करती आई वर्षा
धरती की सारी प्यास बुझाई।
पत्ता-पत्ता नाच उठा
नाच उठा मन सारा।
धरती नाची फूल नाचे
नाच उठा जग सारा।
पौधों ने पहनी हरी साड़ी
हरा-हरा श्रृंगार सारा।
9.रेलगाड़ी
छुक-छुक करती रेल आई
डिब्बे के पीछे डिब्बे आई।
रेल रुकी रेल रुकी
कालू चढ़ा रामू चढ़ा।
रेल चली रेल चली
कालू गया रामू गया।
छुक-छुक करती रेल आई
डिब्बे के पीछे डिब्बे आई।
10.जंगल की ओर
चलो चलें जंगल की ओर
पंछी करते जहाँ पर शोर।
तोता मैना और मोर
रहते सब अंदर की ओर।
हाथी शेर गीदड़ बंदर
ये भी रहते जंगल के अंदर।
तेंदू महुआ आम बाँस
नीम बरगद बेर पलास।
जंगल होते घने जहाँ
खूब बरसते बादल वहाँ।
लगातार शेष अगले भाग में …………………………………






Leave a Reply