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बाल कविता संकलन (2021): सूसा, नीली चिड़िया और गिरगिट भाग-1-प्रो रवीन्द्र प्रताप सिंह

बाल कविता संकलन (2021): सूसा, नीली चिड़िया और गिरगिट भाग-1-प्रो रवीन्द्र प्रताप सिंह

बाल कविता संकलन (2021): सूसा, नीली चिड़िया और गिरगिट भाग-1

-प्रो रवीन्द्र प्रताप सिंह

बाल कविता संकलन (2021): सूसा, नीली चिड़िया और गिरगिट भाग-1-प्रो रवीन्द्र प्रताप सिंह
बाल कविता संकलन (2021): सूसा, नीली चिड़िया और गिरगिट भाग-1-प्रो रवीन्द्र प्रताप सिंह

बाल कविता संकलन (2021) ‘सूसा,नीली चिड़िया और गिरगिट’ को हम धारावाहिक रूप से प्रकाशित कर रहे हैं। इसमें पचास कवितायेँ हैं। प्रथम कड़ी में 11 कवितायेँ हमारे पाठकों के समक्ष सादर प्रस्तुत हैं। आपकी प्रतिक्रिया का स्वागत है।

1.आसमान चिड़ियों का

एक आसमान चिड़ियों का
तरह तरह के रंग ,
चिड़िया उड़ती इठलाती ,
बातें लिए हजार ।

दूर दूर चिड़िया हो आतीं ,
नदी पहाड़ों के ऊपर ,
जंगल के कोने कोने की ,
आकर बात बतातीं ।

चिड़िया को मालूम है ,
कितने सुंदर गांव उधर
दूर पहाड़ी के पीछे ,
जंगल से आगे बढ़कर ।

2.नीली चिड़िया और गिरगिट

एक डाल पर ज्यों आ बैठी
प्यारी नन्ही नीली चिड़िया ,
उसे देख कर गिरगिट बोला
बहन तुम्हारा क्या है नाम ?

चिड़िया बोली गिरगिट भाई ,
मैने कल ही तुम्हे बताया
भूल गए क्या एक ही दिन में ,
भूखे हो क्या कुछ न खाया।

3.चिड़िया और कपास

था कपास का खेत हरा सा
सुंदर सुंदर फूल और फल
आकर चिड़िया बैठ गई
एक बड़े से फल पर ।

चोंच में केवल रेशे आए ,
कच्ची रुई भरी थी ,
उसे देख कर तोता बोला ,
चिड़िया बहन ,यही धोखा है ।

जैसा जो भी दिखता है ,
वह नही हमेशा वैसा होता ।

यह कपास है उपयोगी ,
पर खाने हेतु नहीं है ।

देखो परखो तब समझो ,
क्या है हमको उपयोगी ।

4.एक कीड़ा पेड़ पर

एक कीड़ा पेड़ पर
रंग हरा है पत्ती जैसा,
गीत गा रहा है छिपकर
कोई नही जान पाता ।

खुश है नन्हा कीड़ा इससे ,
गीत गा रहा छिप छिप कर ,
कोई नही समझ पाता है,
खुश है खुद की कला समझकर ।
पानी बरस रहा है झमझम
बाहर निकलें , भीगें हम।
छोटे छोटे कीड़े नाचें ,
पीले मेढक साथ में गाते ,
मौसम लहरा हमें बुलाये ,
हम भी निकलें , हम भी जाएँ।
पानी बरस रहा है झमझम
बाहर निकलें , भीगें हम।

5.पानी बरसा जोर जोर से

पानी बरसा जोर जोर से
मेढक खूब हँसे चिल्लाये।
उन्हें देखकर सब बच्चे ,
घर से निकले ,बाहर आये।
मोर पास में उड़कर आये ,
खुश होकर सब लगे नाचने ,
चिड़िया ने भी गाना गाया।
बच्चों ने भी साथ साथ
गाने को दोहराया।

6.वर्षा गीत

आयी वर्षा सतरंगी
झूम झूम कर बादल आये ,
जैसे कितने हुड़दंगी
कभी चीखते , कभी गरजते
काले बादल , भूरे बादल ,
कभी रुपहले बन चाँदी से ,
मन को ललचाते बादल।
भीगी मिटटी , सड़कें भीगीं,
भीगी पेड़ों की डाली
चमक उठी हैं धुली पत्तियां ,
हर जगह आज खुशियां छायीं।
वर्षा आयी सतरंगी।

7.मुस्काता नन्हा सा पौधा

पानी बरसा , मिटटी भीगी
सूसा का मन हर्षाया।
उसने कई महीने से ,
कुछ रख छोड़ा था ,
घर के बाहर मिटटी में
नन्हे नन्हे बीज दबा कर।
रोज़ देखती जा- जा कर
क्या होगा , पौधा निकलेगा ?
अरे अचानक आज सवेरे ,
नन्हा सा पौधा निकला।
मुस्काता नन्हा सा पौधा ,
सूसा उसे देख मुस्काई।
तभी बगल में उड़ता तोता ,
बोला , “सूसा तुम्हे बधाई !
कुछ दिन तक करना निगरानी
न कोई इसे दबाये ,
यह बड़ा बनेगा , वृक्ष बनेगा
यही तुम्हारा दोस्त बनेगा।
यह फल फूलों से लद जायेगा ,
तुम्हे देख यह मुस्कायेगा ,
दोस्त तुम्हारा बन जायेगा।”

8.चिड़िया हरियाली

हरी पत्तियों में छिपती है
कभी डालियों पर दिखती है ,
इधर उधर उड़ती रहती है
छोटी चिड़िया हरियाली।
वैसे नाम नहीं हरियाली
कोई अलग नाम होगा ,
हरी हरी दिख रही हमें यह
रखा नाम तभी हरियाली।

9.कौए का घोसला

कौए का घोसला गिरा ,
तेज हवा थी ,आँधी थी।
वर्षा से भीगा था पेड़ ,
हिली जोर से उसकी डाली।
बच्चा देख रहा खिड़की से ,
डरा बेचारा , चिल्लाया,
कौवा बोला ,प्यारे बच्चे ,
इसे देखकर मत रोओ ,
हमको नहीं है इसकी चिंता ,
हम कहीं घोंसले में क्या रहते !
पूरी धरती है घर मेरा ,
हम आसमान में उड़ सकते।
वैसे तो हम रोज़- रोज़ ही
आकर तुमसे बातें करते ,
जब चाहोगे नया घोंसला
घंटे भर में बन जायेगा।
हमको तो बस प्यारे बच्चों
तुम लोगों के साथ खेलना ,
साथ चहकना , साथ ही खाना
बातें सुनना, कुछ बात बताना।

10.सूसा, नन्ही चिड़िया और धागा

नन्ही चिड़िया लेकर आयी
पकड़ चोंच में छोटा धागा ,
और बुलाया सूसा को ,
बोली तुम ले सकती हो आधा।
सूसा बोली , “इसे काटकर
छोटा करना ठीक नहीं ,
चलो बाँधते हैं इसको
दो छोर उधर दो कोनों पर।
सुबह देखना कितनी बूँदें ,
इससे आ आ कर लटकेंगीं ,
बन जायेगी मोती माला
इतनी लम्बी प्यारी सी।

11.छाता लेकर निकली बिल्ली

छाता लेकर निकली बिल्ली ,
बोली धूप बड़ी है तेज़
चूहे बोले , बिल्ली मैडम
वो तो तुम कहती हो रोज़ ,
कहीं हमें धोखा देने की
यह तो कोई चाल नहीं।
आज सुहाना मौसम है
कहाँ धूप लगती है तेज़ !
बिल्ली थोड़ा मुस्काई
फिर थोड़ा सकुचाई ,
बोली , “होगा तुम्हे सुहाना ,
मुझको लगती धूप तेज़ !”

प्रो रवीन्द्र प्रताप सिंह के विषय में
प्रो रवीन्द्र प्रताप सिंह लखनऊ विश्वविद्यालय में अंग्रेजी के प्रोफेसर हैं। वे अंग्रेजी और हिंदी लेखन में समान रूप से सक्रिय हैं । फ़्ली मार्केट एंड अदर प्लेज़ (2014), इकोलॉग(2014) , व्हेन ब्रांचो फ्लाईज़ (2014), शेक्सपियर की सात रातें (2015) , अंतर्द्वंद (2016), चौदह फरवरी (2019),चैन कहाँ अब नैन हमारे (2018)उनके प्रसिद्ध नाटक हैं। बंजारन द म्यूज(2008) , क्लाउड मून एंड अ लिटल गर्ल (2017),पथिक और प्रवाह (2016) , नीली आँखों वाली लड़की (2017), एडवेंचर्स ऑव फनी एंड बना (2018),द वर्ल्ड ऑव मावी(2020), टू वायलेट फ्लावर्स(2020) प्रोजेक्ट पेनल्टीमेट (2021) उनके काव्य का प्रतिनिधित्व करते हैं। उन्होंने विभिन्न मीडिया माध्यमों के लिये सैकड़ों नाटक , कवितायेँ , समीक्षा एवं लेख लिखे हैं। लगभग दो दर्जन संकलनों में भी उनकी कवितायेँ प्रकाशित हुयी हैं। उनके लेखन एवं शिक्षण हेतु उन्हें स्वामी विवेकानंद यूथ अवार्ड लाइफ टाइम अचीवमेंट , शिक्षक श्री सम्मान ,मोहन राकेश पुरस्कार, भारतेन्दु हरिश्चंद्र पुरस्कार, डॉ राम कुमार वर्मा बाल नाटक सम्मान 2020 ,एस एम सिन्हा स्मृति अवार्ड जैसे सत्रह पुरस्कार प्राप्त हैं ।
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