बाबा धाम बैजनाथ कांवर यात्रा की यादें
-रमेश चौहान
सावन का महिना जहॉं चारो ओर हरियाली है, रिमझिम-रिमझिम बारिश की बूँदें सभी के मन को आह्लादित कर रही हैं वहीं मेरा मन खिन्न हैं । मेरा मन सावन में बाबा बैजनाथ के कांवर यात्रा करने, बाबा के द्वार जाने के लिए मचल रहा है । नाश हो इस कोरोना का जिसके कारण विगत वर्ष से यह यात्रा बंद है किन्तु मेरे मन में 2017 से 2019 तक किए गए कांवर यात्रा की यादें बार-बार जागृत हो रही हैं । अपनी इन यादों को जीवंत बनाए रखने के लिए इसे कलमबद्ध करने की इच्छा हो रही है ।
सावन का महिना बाबा भोलेनाथ की अराधना के लिए शास्त्रीय रूप से पावन एवं मंगलकारी माना जाता है । पूरे सावन महिने में बाबा भोले नाथ की जयकारा गूंजायमान होती है । लोग उपवास रखते हैं, नाना प्रकार से अभिषेक करते हैं तो बहुत से लोग कांवर यात्रा करते हैं । मैं भी तीन वर्षो तक बाबा बैजनाथ के कांवर यात्रा में सम्मिलित हुआ और आगे भी जाना चाहता हूं किन्तु कोरोना प्रकोप के चलते इसकी अनुमती नहीं होने के कारण विवशता है ।
बाबा धाम बैजनाथ कांवर यात्रा 2017 की यादें-
मैं पहली बार 2017 के सावन मास में अपने छोटे भइयों श्री हुलास सिंह भुवाल और श्री श्रीकांत ठाकुर के साथ कांवर यात्रा पर गया था । बिलासपुर से जसीडीह स्टेशन तक हमलोगों का रिजर्वेशन था किन्तु हम लोग जैसे ही बिलासपुर स्टेशन पहुंचे, हमारी गाड़ी निकल रही थी हम लोग छूट गए जैसे-तैसे हम जसीडीह स्टेशन पहुँचे । जैसे ही हम स्टेशन पर कदम रखे अपने चारो और केसरिया वस्त्र पहने अनेक यात्री देखे ऐसा लग रहा था कि पूरा स्टेशन ही केसरिया रंग में रंगा हो । कुछ लोग यात्रा पूरा करके वापस जा रहे थे तो कुछ लोग अपनी यात्रा प्रारंभ करने के लिए उत्साहित थे । जगह-जगह रह रहकर बोल बम का नारा गुंजायमान हो रहा था इन नारों से मन प्रफल्लित और अपनी कांवर यात्रा प्रारंभ करने को अधीर हो रहा था, हालांकि लौटते हुए अनेक कांवड़ यात्रियों के पैरों में सूजन और छाले देखे किन्तु मन में घबराहट होने के बजाए उत्साह हो रहा था ।
जसीडीह जंक्शन –
जसीडीह जंक्शन से एक सड़क सीधे ही बैद्यनाथ धाम तक आती है और इसकी लंबाई तकरीबन 6 किलोमीटर ही पड़ती है यहां तक पहुंचने के लिए जसीडीह जंक्शन से बस टैक्सी या ऑटो रिक्शा वगैरह आसानी से मिल जाते हैं अगर आप केवल बाबा वैद्यनाथ के ही दर्शन करना चाहते हैं तो आप आसानी से मंदिर तक पहुँच सकते हैं । किन्तु हम लोग कांवर यात्रा के लिए गए थे और यह यात्रा जसीडीह अर्थात देवघर से लगभग 110 किलोमीटर दूर सुल्तानगंज स्थित उत्तरवाहिनी गंगा से प्रारंभ होती है । सुल्तानगंज जाने के लिए जसीडीह से कई प्रकार के साधन उपलब्ध सार्वजनिक बस, टैम्पो, प्राइवेट कार आदि । इस साल हम लोग प्राइवेट कार करके सुल्तानगंज पहुॅचे । सुल्तानगंज जाते हुए रास्ते में कांवड यात्रियों का रेला देखा हजारों की संख्या में कांवड यात्री बोल बम नारे की सहायता से आगे बढ़े जा रहे थे, नारों की बोल और कांवड यात्रियों के कदम ताल देख कर मन में एक विशेष आनंद की अनुभूति हो रही थी ।
सुल्तानगंज –
सुल्तानगंज में उत्तरवाहिनी गंगा बहती है उत्तर वाहिनी का मतलब यह हुआ कि गंगा जी सुल्तानगंज के उत्तर दिशा में बहती है जहां जहां भी गंगा उत्तर दिशा में बहती हैं वह क्षेत्र धार्मिक दृष्टि से जो भाग्यशाली माना जाता है सावन के महीने में कांवर चढ़ाने की परंपरा काफी लोकप्रिय है इस दौरान हमारे देश के अनेक शोधों में शिव भक्त गंगा जल चढ़ाते हैं लेकिन बैद्यनाथ धाम इस मामले में भी सबसे अनोखे हैं यहां साल भर करता है मेरे जानकारी में यह एक मात्र स्थान है जहां किसी भी महीने में शिव जी को कवर चढ़ाया जाता है सावन के महीने में तो सुल्तानगंज से लेकर बैजनाथ धाम तक का सारा इलाका देश-विदेश से आए शिव भक्तों से छा जाता है केसरिया रंग के कपड़ों और कंधे पर सजी-धजी कावड़ लिए शिव भक्तों का रेला देखने लायक होता है इन कार्यों में भारी संख्या में महिलाएं भी शामिल रहती है ।
कांवर यात्रा प्रारंभ-
सुल्तानगंज पहुंचकर हम लोग सबसे पहले अपने लिए कांवड़ खरीदे मैं और हुलास भुवाल पिट्ठुल लेना तय करे । चूंकि यह मेरी पहली यात्रा थी इसलिए मैं कांवड के बजाए पिट्ठुल लेना ज्यादा उचित समझा । यहां बतलाना आवश्यक है कि सुल्तानगंज से बाबा बैद्यनाथ यह यात्रा कई प्रकार से होती है जैसे डाक बम, कांवड़ बम्ब, पिट्ठुल बम्म आदि । यात्रा के लिए आवश्यक खरीदारी करने के पश्चात हम लोग गंगा तट पहुंचे वहां गंगा स्नान करने के बाद अपने अपने लिए दो पात्रों में गंगा जल भरे फिर सुल्तानगंज में गंगा उठाने के पहले बाबा अजगैबीनाथ का दर्शन नमन किए । पंडित से इन पात्रों की बाकायदा पूजा अर्चना और संकल्प लेने का कार्य किया । संकल्प लेने का अर्थ यह हुआ कि इस गंगाजल को अब केवल शिवजी को ही अर्पित किया जाएगा पूजा-अर्चना और संकल्प के बाद हम लोग बोल बम के उद्घोष के साथ ही कांवर/जलपात्र उठा कर ‘बोल बम का नारा है बाबा एक सहारा है’ इसी मंत्र के सहारे सुल्तानगंज से गंगाजल लेकर चले । यात्रा प्रारंभ करने के पहले हम यात्रा संबंधी सभी आवश्यक जानकारी एकत्र कर लिये थे ऐसे भी मेरे साथी हुलास और श्रीकांत इससे पहले भी कांवर यात्रा कर चुके थे इसलिए इन्हें इनके बारे पहले से जानकारी थी इस जानकारी को मेरे साथ साझा किया गया ।
सुल्तानगंज से बाबा बैद्यनाथ धाम की दूरी-
सुल्तानगंज बिहार के भागलपुर जिले में आता है और एक बड़ा रेलवे स्टेशन भी है सुल्तानगंज से बाबा बैद्यनाथ धाम की दूरी 110 किलोमीटर का है यह फासला हम कांवरियों को पैदल ही पार करना होगा 110 किलोमीटर के इस रास्ते में उबड-खाबड़ पथरीली जमीन नदी नाले पहाड़ी की चढ़ाई वगैरह सभी तरह की परेशानियां झेलनी होगी लेकिन कांवरिया इसकी परवाह नहीं करते उन्हें तो बाबा शंकर के अलावा और कुछ भी दिखाई नहीं देता बोल बम का नारा उन्हें अपने साथ बहा ले जाता है एक बार कावर उठा लेने के बाद शिवभक्त कुछ और ही बन जाता है वह शिव के धुन में समाकर शिवमय हो जाता है उसके मन में बस एक ही धुन सवार हो जाती है अपने आराध्य देव शिवजी को गंगा जल अर्पित करने की । चाहे कुछ भी हो जाए उसे ऐसा करने के अलावा और कोई ताकत रोक नहीं सकती अटल निश्चय कांवर का संकल्प सिर्फ मौत ही तोड़ सकती है और कोई नहीं बोल बम के छोटे से शब्द में अजीब शक्ति है इसी मंत्र के सहारे हर कांवरिया 110 किलोमीटर का लंबा सफर तय करेगा जिसमें कम से कम 18-20 घंटों से लेकर चार-पांच दिनों तक भी लग सकते हैं यह सब निर्भर करता है यात्रा के प्रकार और उसकी रफ्तार पर ।
कांवर यात्रा के प्रकार-
कुछ लोग बस या कार से भी कांवर लेकर जाते हैं जाहिर है इन्हें कुछ घंटे ही लगते हैं लेकिन जो लोग पैदल ही यह यात्रा करते हैं उनमें सबसे जल्दी पहुंचने वाले होते हैं डाकिया डाक बम और सबसे ज्यादा समय लेने वाले कावड़िए वह होते हैं जो साष्टांग लेटकर अपनी यात्रा पूरी करते हैं सबसे तेज चलने वाले डाकिया डाकबम की खासियत यह होती है कि सुल्तानगंज से एक बार कावर उठा लेने के बाद यह लोग बैजनाथ धाम और बासुकीनाथ में शिव जी को गंगा जल चढ़ाने से पहले बिल्कुल नहीं रुकते यह पड़े हैरानी की बात है कि 110 किलोमीटर की पूरी यात्रा के दौरान डाक कावड़ के पैर कभी नहीं थकते यह लोग ना तो रुकते हैं और ना ही सुस्ताते हैं बस यूं ही चलते रहते हैं यह चलते चलते ही पानी पीते हैं और फलाहार वगैरा करते रहते हैं । इसी तरह लगातार चलते हुए यह डाक बम 22-24 घंटों में 1110 किलोमीटर की लंबी और तोड़ देने वाली यात्रा पूरी करते हैं । प्रत्येक डाक बम का बाकायदा रजिस्ट्रेशन होता है सुल्तानगंज जिला प्रशासन को रजिस्टर करने के बाद एक टोकन नंबर जारी करता है जो उसकी पहचान होती है यह खास बंदोबस्त इसलिए किया जाता है ताकि डाक बाम्म के रास्ते में कोई रुकावट ना आ सके सिर्फ यही नहीं जहां आम कांवडि़या बैजनाथ धाम पहुंचकर शिवलिंग पर जल चढ़ाने के लिए कतार में खड़े होकर अपनी बारी की प्रतीक्षा करते हैं वही डाक बम को इस कानून से मुक्त रखा गया है ये लोग बिना रुके शिवलिंग पर जल चढ़ाते हैं क्योंकि यही उनका संकल्प होता है ।
डाकबम्म –
डाक बम्म के बाद यात्रा का एक प्रकार होता है- खड़ा कावड़ । ऐसे भक्त अपने सफर के दौरान कई जगह रुक रुक कर और विश्राम आदि करते हुए आगे बढ़ते हैं लेकिन इन्हें भी कुछ परहेजों का पालन करना पड़ता है जैसे कि गंगा जल से भरे पात्रों वाला कांवर यह लोग हमेशा कंधों पर ही रखते हैं विश्राम या नहाने धोने के दौरान इनके कांवर किसी और खड़ा कांवर के कंधे पर ही रखा जाता है कहने का तात्पर्य यह है कि कांवर हर हाल में कंधे पर ही रहना चाहिए खड़ा कावर अपनी यात्रा 2 से 4 दिनों में पूरी करते हैं ।
साधारण कांवर यात्रा-
डाक बम्म के अलावा साधारण कांवर भी होते हैं जो तीन-चार दिनों में अपनी यात्रा पूरी करते हैं बस फर्क यही होता है कि यह लोग अपने कांवर किसी आसन पर रखकर विश्राम आदि कर सकते हैं इनके लिए जरूरी नहीं कि अपना कांवर कंधों पर ही रखें ।
साष्टांग लेट कर यात्रा-
साष्टांग लेट कर यात्रा करने वाले शिव भक्तों का कांवर उसके सहायक कांवियार के कंधे पर होता है यह लोग भी विश्राम आदि करते हुए अपनी यात्रा पूरी करते हैं जहां भी ठहरते हैं वहां लगे निशान से आगे एक कदम भी नहीं बढ़ते विश्राम वगैरह के बाद दोबारा उसी जगह से साष्टांग लेट कर यात्रा शुरू करते हैं । ऐसे कावडि़यों को बैजनाथ धाम पहुंचने में कई कई दिन लग जाते हैं । किसी-किसी को दो ढाई महीने भी लग जातें हैं ।
साप्ताहिक कांवर यात्रा –
एक प्रकार के भक्त साप्ताहिक कांवर यात्रा करते हैं ऐसे भक्त सावन के प्रत्येक रविवार को सुल्तानगंज से गंगाजल उठाकर सोमवार को हर हाल में बाबा बैजनाथ पहूँच जाते हैं ऐसे ही भक्तों में एक महिला कांवड़ यात्री जिसका नाम कृष्णा बम है, कांवड़ यात्रियों के बीच बहुत प्रसिद्ध है । लोग कृष्णा बम के एक झलक पाने के लिए उत्साहित रहते हैं । यही कारण उसके साथ प्रशासनिक सुरक्षा भी साथ-साथ चलता है ।
कांवर यात्रा के कई नियम-कायदा –
कांवर यात्रा के कई नियम-कायदा भी जिसे हर यात्री को इसका पालन करना आवश्यक होता है । चावल नमक इत्यादि खाना पड़े तो यात्रा शुरू करने से पहले स्नान आवश्यक है प्याज लहसुन या मांसाहार का तो सवाल ही नहीं होता । अगर झपकी भी आ गई तो बिना नहाए यात्रा नहीं हो सकती इसी तरह शौच आदि के बाद स्नान करना होता है । इस प्रकार यात्रा दौरान अधिकांश समय कांवर यात्री गीले कपड़ों में ही अपनी यात्रा करते रहते हैं क्योंकि यात्रा के दौरान बार-बार नहाना पड़ जाता है ।
हमारी कांवर यात्रा-
बोल बम्म-बोल बम्म के जयघोष के साथ हमने अपनी यात्रा शुरू की । अभी सुल्तानगंज से बाहर भी नहीं निकले थे कि बारिश होने लगी और हम लोग बरसते हुए पानी में असंख्य कांवड़ यात्रियों के साथ बोल बम्ब बोलते हुए आगे बढ़ते रहे । इस पहले दिन की यात्रा में थकान का नामों निशान नहीं था करीब 12 किमी की यात्रा के पश्चात मैं और हुलास रात्रि विश्राम के लिए रूके । श्रीकांत हमसे आगे बढ़ चला था । चूंकि मेरी गति धीमी थी वो तो भला हो हुलास का जो मेरे साथ, साथ देते हुए चल रहा था । दूसरे दिन चाफा मनिहारी गोगाचक को पार करते हुए कुमारसार तक पहुॅचे यहां तक पहुँचते-पहुँचते मेरे पैरों में छाले तो नहीं हुए किन्तु जलन और दर्द होने लगा था । कुमारसार में लगे सेवार्थ संस्था में पैरों की सिकाई और मालिश कराने के बाद हम लोग आगे बढ़े । जिलेबिया, टगेश्वर को पार करते हुए सुईया पहाड़ के कुछ पहले रात्रि विश्राम किए ।
यात्रा में कठिनाई-
अगले दिन सुईया पहाड़ पार करते हुए शिव लोक, भूल-भुलईया को पार किए अभी दर्शनिया भी नहीं पहुँचे थे कि श्रीकांत का फोन आया उनका स्वास्थ्य अचनाक खराब हो गया उसे साथ देने के लिए हुलास का वहां जाना जरूरी था इसलिए वह मुझे छोड़कर तेज गति से आगे बढ़ गया । अब मैं कांवर यात्रियों के भीड़ में बहता हुआ अकेले चलने लगा । इस बीच मेरे दाए पैर के नशों में खिंचाव हो गया । एक कदम चलना भी भारी पड़ रहा था । पैरों में असहनीय दर्द हो रहा था । यात्रा की दूरी अभी भी 15 किमी बाकी था । दर्द कह रहा था यात्रा छोड़ दिया जाए किंतु यात्रा छोड़ने को मन तैयार नहीं था, यहां तक यात्रा छोड़ना पड़ जाएगा यह सोचकर मैं कई बार रोया भी किन्तु किसी तरह अपने आप को सम्भाला । आगे चलने के लिए रास्ते में पड़े हुए एक पुराने बांस की कमचील उठाकर उसको सहारा बनाया । जहां मैं पहले एक घंटे में 4 से 5 किमी चल पा रहा था अब पैरों के दर्द के कारण एक घंटा में कठिनाई से एक किमी चल पा रहा था रोते-कराहते आखिर मैं झारखंड की सीमा तक पहुँचा वहां से बाबा बैजनाथ महज 8 किमी की दूरी पर था यहां मैंने रात्रि विश्राम करना तय किया और अगले दिन पुन: यात्रा प्रारंभ की । बिहार सीमा तक कांवर यात्रा पथ मुलायम था क्योंकि इन रास्तों में रेत बिछाया गया था किन्तु अब झारखंड सीमा से पक्की सड़क की कठोरता पर चलना था विश्वास कीजिए एक पग आगे बढ़ना बहुत ही कठिन हो रहा था ।
रोते-बिलखते बाबा बैद्यनाथ को पुकार रहा था –
बार-बार मन ही मन रोते-बिलखते बाबा बैद्यनाथ को पुकार रहा था कि हर स्थिति में मेरी यह यात्रा पूरी कर दें । यह बाबा का ही आर्शीवाद और प्रेरणा रहा कि असहनीय दर्द होते हुए भी मन को कठोर कर मैं रास्ते में तिल-तिल बढ़ता रहा और आखिर कर लंबे संघर्ष के बाद शिवगंगा तट पहुँच ही गया । शिवगंगा तट पर हुलास और श्रीकांत पहले से पहुँच कर मेरी प्रतीक्षा कर रहे थे । हम तीनों मिलकर शिवगंगा स्नान किए संकल्प तोड़ने का पूजा अर्चन कराये फिर गंगाजल चढ़ाने बाबा के दर्शन के लिए चले ।
दर्शन से ही मन गदगद हो रहा था –
मेरे पैरों में अभी तक दर्द तो था किंतु मंदिर प्रांगण पहुँचते ही मेरे दर्द की तीव्रता कम होने लगी । लंबी कतारों की रेलों के साथ बहते हुए हम आगे बढ़ रहे थे, बोल बंम का घोष तन और मन को तंदुरुस्त कर रहा था । अब मुझे पैरों का दर्द का एहसास भी नहीं रहा क्योंकि मन तो बाबा के दर्शन कि प्रतीक्षा में खो गया था । घंटों की प्रतीक्षा के बाद हम लोग बाबा भोलेनाथ के द्वार तक पहुँच गए भीड़ इतनी ज्यादा थी इसे नियंत्रित करने के लिए सुरक्षा व्यवस्था बहुत ही कड़ी थी और केवल एक सेकझउ में कावडि़यों को दर्शन कर आगे बढ़ने मजबूर कर रहे थे, जिस बाबा के दर्शन के लिए असहनीय कष्ट सहा उसे केवल एक सेकण्ड में एक झलक देख कर संतोष करना था । बाबा को देखते हुए हाथ में रखे गंगाजल को द्वार से शिवलिंग तक लगे साधन जल गिराए प्रणाम भी नहीं कर पाया कि सुरक्षा बल हमें वहां से हटा दिया । खैर इस एक क्षण के दर्शन से ही मन गदगद हो रहा था ।
बाबा बासुकीनाथ दर्शन-
बाबा बैजनाथ के दर्शन करने के पश्चात हमलोग यात्रीबस से बाबा बासुकीनाथ के लिए निकले मान्यता के अनुसार बासुकीनाथ के दर्शन के बिना कांवर यात्रा अधूरी मानी जाती है ऐसे भी कांवर के दो पात्र में लाए गए जल में एक पात्र बाबा बैजनाथ को अर्पित किया जाता है और दूसरा बाबा बासुकीनाथ को । लगभग दो घंटे की यात्रा के पश्चात हमलोग बाबाबासुकीनाथ धाम पहुॅच गए । बस स्टैंण्ड से मंदिर की दूरी लगभग 1 किमी है जिसे पैदल ही चलना होता है । मेरे पैरों में अभी तक दर्द तो था किन्तु असहनीय नहीं इसलिए मैं धीरे-धीरे बाबा बासुकीनाथ के द्वार तक पहुॅच गया । मंदिर में दर्शन की दो प्रकार की व्यवस्था एक साधारण पंक्ति लगा कर दूसरा पास द्वारा । मैंने अपने लिए पास खरीदा और सीधे बाबा का दर्शन किया । इस प्रकार अब हमारी कांवर यात्रा पूरी हुई ।
वापसी-
बाब बासुकीनाथ की यात्रा से देर रात हमलोग फिर से देवघर आ गए क्योंकि इसी रात करीब 2 बजे हमारे वापसी के लिए गाड़ी था । वापसी में किसी प्रकार की कोई कठिनाई नहीं हुई । इस वापसी यात्रा के दौरान मैंने इस यात्रा के संस्मरण के आधार पर दो गीत भी लिखे-
बाबा की नगरी चल रे, बाबा के द्वारे चल-
बाबा की नगरी चल चल रे, बाबा के द्वारे चल-चल ।
पाँव-पाँव चलता चल भक्ता, बन जायेगा तेरा कल ।।
चल चल
बाबा की नगरी चल चल रे, बाबा के द्वारे चल-चल ।
कावर साजो अथवा पिठ्ठुल, साजो पहले निज मन ।
बोल बम्म के नारोंं से, ऊर्जा भरलो अपने तन ।
बैद्यनाथ कामना लिंग है, देंगे तुझको वांक्षित बल ।
चल चल
बाबा की नगरी चल चल रे, बाबा के द्वारे चल-चल ।
उत्तर वाहिनी गंज गंगा, लेकर इसके पावन जल ।
अजगैबीनाथ पाँव धर कर, चल रे भक्ता चलता चल ।
चाफा मनिहारी गोगाचक, कुमारसार पथ बढ़ता चल ।।
चल चल
बाबा की नगरी चल चल रे, बाबा के द्वारे चल-चल ।
जिलेबिया नाथ टगेश्वर चल, बढ़ता चल चल सुइया पथ
शिवलोक भूल भुलईया, दर्शनिया तक तन को मथ ।
फिर शिवगंगा बाबानगरी, देगें तुझे शांति के पल ।
चल चल
बाबा की नगरी चल चल रे, बाबा के द्वारे चल-चल ।
चाहे पड़े पाँव में छाले, चाहे चूर-चूर हो तन ।
बोल बम्म कहता चल भक्ता, बाबा काे धरकर मन ।
बैद्यनाथ की महिमा प्यारी, भर देंगे तुझमें बल।
चल चल
बाबा की नगरी चल चल रे, बाबा के द्वारे चल-चल ।
नन्हे नन्हे बालक चलते, चलते लाखों नारी नर ।
झूम झूम कर बोल रहे सब, हर बोल बम्म बढ़-चढ़ कर ।
बीस कोस की भुइया पैदल, चल रहे सभी हैं प्रतिपल ।
चल चल
बाबा की नगरी चल चल रे, बाबा के द्वारे चल-चल ।
चल चल रे कावड़िया चल चल-
कावड़िया चल देवघर, बोल बम्म शिव बम्म ।
बैजनाथ के श्री चरण, भक्त लगा के दम्म ।।
चल चल रे कावड़िया चल चल, बैजनाथ के द्वारे ।
शिव का आया आज बुलावा, जागे भाग हमारे ।।
कांधे कावर गंगा जल धर, मन में श्रद्धा निर्मल ।
नंगे पांव चले चल प्यारे, जैसे नदियां कल-कल ।।
हर हर महादेव हर हर, हर हर शिव ओंकारा ।
बोल बम्म बोल बम्म हर हर, गूंज रहा है नारा ।।
पुनित मास सावन बाबा के, लगा हुआ है मेला ।
बोल बम्म जयकारों से मन, नाच रहा अलबेला ।।
अवघर दानी शम्भू सदाशिव, सफल मनोरथ करते ।
हाथ पसारे जो नर मांगे, बाबा झोली भरते ।
बाबा बैजनाथ के संदर्भ में प्रचलित कथा-
बाबा बैजनाथ मंदिर भारत में 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है जिसकी गिनती झारखंड के प्रमुख पर्यटन स्थलों में होती है और इस मंदिर की स्थापना के पीछे एक बहुत ही प्रसिद्ध कहानी है इस शिवलिंग की स्थापना संबंध में एक कथा प्रचलित है जिसके अनुसार एक बार राक्षस राज रावण ने हिमालय पर जाकर शिवजी को प्रसन्न करने के लिए घोर तपस्या किया । रावण भगवान भोलेनाथ का बहुत बड़ा भक्त था यह तो हम सभी जानते हैं और रावण की भक्ति बड़ी ही विचित्र थी वह अनेक प्रकार से भोलेनाथ को मनाने का प्रयास किया जब भोलेनाथ प्रसन्न नहीं हुए तब रावण निराश होकर अपने सिर की बलि चढ़ाने लगा तो भगवान शिव प्रकट हुए और रावण के इच्छा अनुसार उनके साथ लंका जाने के लिए तैयार हो गए लेकिन उन्होंने एक शर्त रखी कि मैं तुम्हारे साथ लिंग रूप में चलूंगा लेकिन यह लिंग तुम जहां कहीं भी रख दोगे वहीं पर विराजमान हो जाऊंगा रावण को अपने बाहुबल पर बहुत ही घमंड था, उसने सोचा कि शिवलिंग कितना भी भारी हो, उसे उठाकर सीधा लंका ही ले जाऊंगा यही सोचकर उसने शिव की शर्त को तुरंत ही स्वीकार कर लिया ।
भगवान विष्णु ने देखा कि रावण शिव को लेकर लंका जा रहा था और उनको वहीं स्थापित करेगा उन्हें संसार की चिंता सताने लगी और भगवान विष्णु बालक के रूप में रावण के सामने प्रकट हो गए उसी दौरान रावण को लघु शंका लगी और उसने बालक बने विष्णु भगवान से अनुरोध किया कि शिवलिंग को अपने हाथों में थाम कर रखें जब तक कि वह लघुशंका करके नहीं आता जब रावण लघु शंका कर रहा था तो बिष्णु की माया से रावण के पेट में गंगा समा गई इसीलिए ज्यादा लंबे समय तक मूत्र विसर्जन करता रहा इसी बीच बालक बने विष्णु ने शिवलिंग को जमीन पर रख दिया जिससे शिवलिंग वहीं स्थापित हो गया रावण मूत्र त्याग करने के बाद वापस लौटा तो भूमि पर रखे शिवलिंग को देखकर बालक पर बहुत गुस्सा हुआ लेकिन वह कर भी क्या सकता था रावण ने शिवलिंग को वहां से उठाने का बहुत ही प्रयास किया लेकिन शिवलिंग वहां से टस से मस नहीं हुआ तब क्रोध में आकर रावण ने शिवलिंग के पैर पर एक लात मारी जिससे शिवलिंग के जमीन धंस गई । ब्रह्मा विष्णु सभी देवता आकर शिवलिंग की पूजा की और शिवलिंग को वहीं उसी स्थान पर स्थापना कर दी और शिवलिंग की स्तुति करते हुए वापस स्वर्ग की ओर चले गए ।
देवघर नामकरण-
देवता इस दिव्य शिवलिंग को राक्षस राज रावण को दिए जाने से प्रसन्न नहीं थे और इसलिए भगवान विष्णु ने एक ब्राह्मण का रूप धारण कर सफलतापूर्वक शिवलिंग को रावण से छुड़ा दिया और इस प्रकार से यह लिंग देवताओं के स्थान अर्थात देवघर में ही छूट गया इसलिए इस स्थान का नाम देवघर पड़ा ।
लोगों के अनुसार तथा लोक मान्यताओं के अनुसार यह बैजनाथ ज्योतिर्लिंग मनोवांछित फल देता है । मंदिर के पास शिव गंगा नाम का एक तालाब है जिसमें तीर्थयात्री स्नान करके बाबा को जल चढ़ाते हैं । इसी तालाब के पास दूसरा तालाब है जिसमें कोई स्नान नहीं करता क्योंकि इसे रावण के मूूत्र से बना हुआ तालाब माना जाता है ।
जलाभिषेक करने की मान्यता-
मान्यता के अनुसार प्राचीन काल में नेताओं ने मिलकर समुद्र मंथन किया था जिसमें 14 प्रकार की वस्तुएं मिली थी जिसमें सबसे पहले विश निकला जिसे अभिषेक भगवान शिव को ठंडा करने के लिए का जलाभिषेक करना शुरू किया ।
बाबा बासुकीनाथ के दर्शन के बिना बाबा बैजनाथ की यात्रा अधूरी मानी जाती है-
ऐसी मान्यता है कि वह बैजनाथ देवघर के दरबार में अगर दीवानी मुकदमों की सुनवाई होती है तो बासुकीनाथ में फौजदारी मुकदमे की सुनवाई होती है जब तक बासुकीनाथ मंदिर में जलाभिषेक नहीं किया जाता है तब तक बाबा बैजनाथ धाम की पूजा अधूरी मानी जाती है ।
बाबा बासुकीनाथ
बाबा बासुकीनाथ, बाबा बैजनाथ धाम से लगभग 42 किलोमीटर दूर झारखंड के दुमका जिले में है और बाबा बैजनाथ मंदिर निश्चित कामना लिंग पर जलाभिषेक करने वाले कांवड़ियों अपनी पूजा करने के लिए गणेश शिवलिंग के नाम से प्रसिद्ध बासुुकीनाथ मंदिर में जलाभिषेक करना नहीं भूलते हैं अपने सुल्तानगंज के गंगा नदी से लाते हैं उनमें से एक बाबा बैजनाथ में चढ़ाया जाता है जबकि दूसरे का बाबा बासुकीनाथ को । यहां के दरबार में मांगी गई मुराद जरूर पूरी होती है ।
बाबा बासुकीनाथ के संदर्भ में प्रचलित कथा-
प्राचीन काल में बासुकीनाथ घने वनों से घिरा हुआ क्षेत्र था, जिसे उन दिनों दारू का क्षेत्र कहा जाता था । वही पौराणिक कथा के अनुसार इसमें नागेश्वर ज्योतिर्लिंग का निवास स्थान माना जाता था । शिव पुराण के अनुसार यह दारू नाम का एक राक्षस था इसीलिए दुमका का नाम भी इसी दारू के नाम पर पड़ा । लोकमान्यता के अनुसार एक बार वासु नाम का एक व्यक्ति जमीन खोद रहा था इस दौरान वासु का औजार मिट्टी के नीचे दबे शिव लिंग से टकरा गया और इससे जोर की ध्वनि हुई और तेज प्रकाश फेल गया इसे देखकर वासु वहां से दूर भागने लगा इसी दौरान आकाशवाणी हुई कि भागो मत यह मेरा निवास स्थान है तुम मेरी पूजा करो तुम्हारी हर मनोरथ सिद्ध होगा । यह आकाशवाणी सुनकर बासु वहां पूजा-अर्चना करने लगा और इसी दिन से वह इस शिवलिंग का नियमित पूजा करने लगा । इसी कारण इस शिव लिंग का नामकरण बासुकीनाथ पड़ा ।
बाबा धाम बैजनाथ कांवर यात्रा 2018-19 की यादें-
2017 में कांवर यात्रा कर लेने के पश्चात अगले वर्ष हम पुन: 2018 में कांवर यात्रा के लिए इस वर्ष हुलास भुवाल तो साथ था किन्तु श्रीकांत ठाकुर नहीं जा पाया इसके स्थान पर राजेश सोनी, ऋषि सोनी, सतीष सोनी आदि कुल छ: लोग कांवर यात्रा के लिए गए । इस वर्ष की यात्रा मेरे लिए सुखद रहा । यात्रा प्रारंभ होते ही हम सभी साथी एक दूसरे से बिछड गए किन्तु मेरे साथ हुलास भुवाल बना रहा । इस वर्ष सुईया पहाड़ के आसपास पहुँँच हुलास का स्वास्थ बिगड़ गया थकान और पैरों तो दर्द तो था ही वह दुखी मन से पैदल कांवर यात्रा को छोड़कर बस की सहायता बाबा बैजनाथ पहुॅचा । मैं अपनी यात्रा सकुशल पैदल ही पूरा किया ।
2019 में हमारे गांव से कांवर यात्रियों की संख्या 10 हो गई । इस बार हुलास भी किसी कारण से कांवर यात्रा पर नहीं जा सका । इस बार कांवर यात्रा में मुझे नए साथी मिला, जो कांवर यात्रा के लिए तो नया था किन्तु वह मेरा पुराना मित्र था राघवेन्द्र झा । इस बार कांवर यात्रा के दौरान मैं, राघवेन्द्र और उनके गांव का विश्वासपात्र घरेलू साथी यादवजी थे । हम तीनों साथ-साथ चल रहे थे । राघवेन्द्र के पैरों में छाले उभर आये किन्तु दात देना होगा राघवेन्द्र को कि वह अपने शारीरिक कष्ट को अपनी मानसिक मजबूती से नियंत्रित किया हुआ था । राघवेन्द्र कांवर यात्रा केे दौरान अपने कांधे पर केवल कांवर लिए चल रहा था रास्ते के आवश्यक सामाग्राी सब उसके साथी यादवजी के पास था ।
राघवेन्द्र ऐसे तो हमारे साथ-साथ ही चल रहा था किन्तु उनकी गति काफी तेज थी कई बार हमें उनके पिछे भागना पड़ता था । इसी बीच राघवेन्द्र हमसे आगे निकल कर हमसे बिछ़ड गए । कांवर यात्रा में साथियों का बिछ़डना कोई अचरज की बात नहीं क्योंकि हजारों के भीड़ में थोड़ा-बहुत आगे पिछे हुए तो पहचानना मुश्किल हो जाता है । राघवेन्द्र का बिछुड़ना आश्चर्य नहीं था दिक्कत यह था कि वह अपने साथ कुछ भी नहीं रखा था रास्ते में खर्च के लिए उनके पास पैसे भी नहीं थे क्योंकि उनका बटुआ भी यादवजी के पास था । उनका मोबाइल भी यादवजी के पास ही था । हमारे पास उनसे संपर्क करने का कोई साधन नहीं था । आशा इतनी ही थी वह किसी प्रकार हमसे संपर्क करे । लगभग चार-पांच घंटे तक मैं और यादवजी तेज दौड़ते-हॉफते आगे बढ़ते जा रहे थे और भीड़ में राघवेन्द्र का चेहरा ढूंढ रहे थे, ऐसे तैसे रात को 9 बज गए अभी हमारा संपर्क उनसे नहीं हुआ । हम दोनों रास्ते में पड़ने वाले छत्तीसगढ़ सरगुजा पंडाल में विश्राम करने की सोची किन्तु चिंता था रावेन्द्र का । हमलोग कांवर को निश्चित स्थान में रख कर बैठे ही थे की हमें फोन पुलिस चौकी से वास्तव में राघवेन्द्र वहां से हमें संपर्क किया पता चला वह महज हमसे एक किमी दूर है । स्थान सुनिश्चित होने पर मैं और यादव आगे बढ़े और राघवेन्द्रजी से हमारी मुलाकात हुई । मुलाकात होने पर राघवेन्द्र ने जो बताया वह और आश्चर्य जनक था । वह यह कि मोबाइल के जमाने में किसी को दूसरे का नंबर याद नहीं रहता, सब मोबाइल में सेव नंबर का उपयोग करते हैं, सो उसे भी मेरा नंबर याद नहीं था । आश्चर्य यह था कि उसे स्वयं का भी नंबर याद नहीं था इसलिए वह हमसे संपर्क नहीं कर पा रहा था । उसने बताया कि उसे नवागढ़ के एक मित्र का नंबर जैसे-तैसे याद था वह किसी से मोबाइल मांग कर उसे फोन किया और उससे मेरा और अपना नंबर प्राप्त किया तब जाके वह हमसे संपर्क किया । इसीलिए घटना अधिक स्मरण है । इसके बाद हम तीनों सुखद बाबा बैजनाथ और बाबा वासुकीनाथ के दर्शन किए ।
बाबा धाम बैजनाथ कांवर यात्रा के लिए मन व्याकुल है-
तीन वर्षो तक कांवर यात्रा कर लेने पर भी हर वर्ष बाबा धाम जाने को सावन में मन जरूर मचलता है । पिछले वर्ष कोरोना के कहर के यह यात्रा नहीं हो पाई । मन में संतोष रखना पड़ा चलो इस महामारी में यात्रा स्थगित करना उचित ही है किन्तु पुन: इस वर्ष कांवर यात्रा स्थगित करने की शासन-प्रशासन की विवशत है । इस विवशता से हमें बहुत निराशा हो रही है कि लगतार दूसरे वर्ष हम कांवर यात्रा नहीं कर पा रहे हैं । लेकिन इसके लिए शासन-प्रशासन को दोष नहीं दिया जा सकता । उनका निर्णय तो समाज हित में है किन्तु कांवर यात्रा न कर पाने की टिस हमारे मन में है । सावन में कांवर यात्रा के लिए मन व्याकुल है ।
-रमेश चौहान
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