(उपरोक्तत आलेख मान्यता के आधार पर मेरे गांव के गाँव के ब्रह्मलीन बाबा विश्वैश्वर नाथ के प्रति सम्मान सहित संस्मरण है।
-प्रोफेसर अर्जुन दूबे)
मैं जिसकी महिमा का गुणगान करने जा रहा हूँ वे हमारे गाँव मीठाबेल, जिला गोरखपुर के हमारे ही कुलपूर्वज ब्रह्म लीन बाबा विश्वैश्वर नाथ हैं। उनका प्रताप ऐसा है कि वे पूरे गाँव के व्यक्ति चाहे किसी भी जाति और धर्म के हो, श्रद्धा के साथ वंदनीय हैं।
उनका काल मुगल साम्राज्य के दौरान का माना जाता है। बाबा जी सतासी स्टेट आज का रुद्रपुर, जिला देवरिया के महामंत्री थे। वे प्रजा के बीच बहुत ही लोकप्रिय थे। राज्य का सेनापति द्वेष वश राजा का कान भरना शुरू कर दिया कि असली राजा तो महामंत्री विश्वैश्वर नाथ हैं। तब राजा ने मीठाबेल क्षेत्र जो 12 मील के क्षेत्रफल में फैला हुआ था के उपर राज्य कर लगा दिया जिसका बाबा ने विरोध किया। फिर भी राजा नहीं माने, तब बाध्य होकर बाबा ने लखनऊ नबाब, जिसके अधीन सभी रियासतें आती थी, के यहाँ अपील कर दिया। यहाँ यह उल्लेख करना चाहूंगा कि बाबा के कई पीढ़ी पहले हमारे पूर्वज नौगढ स्टेट से यहाँ आये थे। ऐसा कहा जाता है कि हमारे पूर्वज नौगढ स्टेट के राजगुरु थे। राजा ने गुरु के सम्मान में एक भव्य महल बनवा कर रहने के लिए दिया था।
एक समय की बात है कि राजा की नई रानी ने गुरु का महल अपने महल से देखा तो राजा से व्यंग्य रुप में कह दिया कि यहाँ कोई अन्य राजा भी रहता है? यह बात किसी ने राजगुरु को बता दिया। तब राजगुरु जो दो भाई थे उसी समय महल और राज्य त्याग कर चल दिए और सतासी स्टेट आ पहुंचे। यहाँ के राजा ने इनका बहुत सम्मान किया और रहने के लिए 12 मील का क्षेत्रफल दे दिया। यहाँ यह उल्लेखनीय है कि यह क्षेत्र राजा के आदेश से सदैव करमुक्त रहेगा, ऐसी व्यवस्था बन गयी थी।
कालांतर में जब बाबा महामंत्री बने और राजा ने कर लगा दिया तो बाबा ने राजा के ही पूर्वजों द्वारा करमुक्त क्षेत्र का हवाला देकर नबाब के यहाँ अपील कर दिया। नबाब के यहाँ से बाबा के पक्ष में न्याय मिल गया।
राजा इसे अपना अपमान समझा और बाबा की हत्या की योजना बनाने लगा लेकिन प्रजा में से कोई भी तैयार नहीं हुआ, यहाँ तक कि सेनापति भी!तब राजा स्वयं सरयू-राप्ती नदी के आस पास बाबा की गोली मारकर हत्या कर दिया। साथ में बाबा का वफादार कुत्ता जो झपटा बाबा को बचाने के लिए वह भी शहीद हो गया।
यह खबर चारो ओर फैल गई। राजा ब्रह्म हत्या के श्राप से मुक्त नहीं हो पाया। उसका संपूर्ण खानदान नष्ट हो गया,बाद में राजा की अपनी पीढ़ी का भी कोई सदस्य नहीं बचा। ऐसा सुना जाता है कि जो राज्य की देख रेख करते थे चाहते थे कि मीठाबेल से दूबे खानदान के लोग आवें और राजा उनका आतिथ्य कर प्रायश्चित कर सके। लेकिन तब कोई जल भी नहीं ग्रहण करता था। स्टेट तो नष्ट हो गया लेकिन इससे संबंधित कथा मीठाबेल के निवासियों को कंठस्थ है! बाबा की पिंडी मीठाबेल में स्थापित है साथ में उस स्वामिभक्त श्वान की भी। जब भी हम लोग बाबा का दर्शन करने जाते हैं तो उसी श्रद्धा भाव से उनके कुत्ते को भी नमन करते हैं।
बाबा की हत्या चतुर्दशी तिथि को हुई थी, इसी लिए चतुर्दशी तिथि पक्ष कृष्ण अथवा शुक्ल हो, पूरे कौशिक गोत्रीय दूबे खानदान की मान तो है ही अन्य बिरादरी के लोग भी इस तिथि को शुभ कार्य करने से बचते हैं।
यह बाबा की पूरे गाँव वासियों के उपर कृपा है कि समर्पण भाव से मांगी हुई कामना पूरी होती है। यह बाबा की अनुकम्पा है कि इतना पुराना गाँव इतने सारे लोग बर्षो से एक साथ रहते हैं, झगड़ा, मारपीट हो जाना स्वाभाविक है फिर भी समझौता हो जाता है और उसी भाईचारे के साथ रहने लगते हैं।
बाबा के बारे में कितना लिखूँ, भाव और शब्द का कभी अंत नही होता!
जय बाबा विश्वेश्वर नाथ की