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ग़ज़ल: बहरयुक्‍त कुछ छत्‍तीसगढ़ी ग़ज़ल

ग़ज़ल: बहरयुक्‍त कुछ छत्‍तीसगढ़ी ग़ज़ल

बहरयुक्‍त कुछ छत्‍तीसगढ़ी ग़ज़ल

-रमेश चौहान

गज़ल एक तुकबंदी कविता न होकर एक पैमाने में लिखी गई कविता होती है जिसे बहर कहते हैं, बहर के साथ-साथ रदिफ और काफिया का भी ध्‍यान रखा जाता है । ऐसी कुछ छत्‍तीसगढ़ी गज़ल आपके लिए प्रस्‍तुत है ।

बहरयुक्‍त कुछ छत्‍तीसगढ़ी ग़ज़ल
बहरयुक्‍त कुछ छत्‍तीसगढ़ी ग़ज़ल

बहरयुक्‍त कुछ छत्‍तीसगढ़ी ग़ज़ल

1. गाँव का कम हे शहर ले (गाँव पर कविता)

बहर- फाइलातुन मुरब्‍बस सालिम (2122 2122)

गाँव का कम हे शहर ले
देख ले चारों डहर ले

ऊँहा के सुविधा इँहो हे
आँनलाइन के पहर ले

हे गली पक्की सड़क हा
तैं हा बहिरी धर बहर ले

ये कलेचुप तो अलग हे
शोरगुल के ओ कहर ले

खेत हरियर खार हरियर
बचे हे करिया जहर ले

ऊँचपुर कुरिया तने हे
देख के तैं हा ठहर ले

2.काम चाही काम चाही काम चाही आदमी ला (बेरोजगारी पर कविता)

बहर- फाइलातुन मुसम्‍मन सालिम (2122, 2122, 2122, 2122)

काम चाही काम चाही काम चाही आदमी ला
काम करके हाथ मा तो दाम आही आदमी ला

काम ले तो आदमी के मान अउ सम्मान हे
जेब खाली होय संगी कोन भाही आदमी ला

कोढ़िया ला कोन भाथे कोन खाथे रोज गारी
दाम मिलही जब नता मा तब सुहाही आदमी ला

लोभ नो हय मोह नो हय काम जरूरी हे जिये बर 
साँस बर जइसे हवा हे ये जियाही आदमी ला

छोड़ फोकट के धरे के लोभ अपने काम मांगव
लोभ फोकट के धरे मा लोभ खाही आदमी ला

काम दे दौं काम दे दौं भीख झन दौं थोरको गा
ये बुता हर पोठहर मनखे बनाही आदमी ला

सिख हुनर तैं काम के गा तब न पाबे काम तैं हा
लाख पोथी ले बने ये काम लाही आदमी ला

3.बेटी ला शिक्षा संस्कार दौ (बेटी, संस्‍कार पर कविता)

बहर- फाइलुन मुसद्दस सालिम (212, 212, 212)

बेटी ला शिक्षा संस्कार दौ ।
जिनगी जीये के अधिकार दौ ।।

बेटी होथे बोझा जे कहे,
मन के ये सोचे ला टार दौ ।

दुनिया होथे जेखर गर्भ ले,
अइसन नोनी ला उपहार दौ ।

मन भर के उड़ लय आकाश मा,
ओखर डेना पांखी झार दौ ।

बेटी के बैरी कोने हवे,
पहिचानय अइसन अंगार दौ ।

बैरी मानय मत ससुरार ला
अतका जादा ओला प्यार दौ ।

टोरय मत फइका मरजाद के,
अइसन बेटी ला आधार दौ ।

ताना बाना हर परिवार के,
बाचय अइसन के संस्कार दौ ।

4. नेता मन आही अब तोर गाँव (नेता पर कविता)

बहर-फाइलातुन मुसम्‍मन मजहूप

(2121, 2121, 2121, 2121)

नेता आही तोर गाॅँव, आत हे ग अब चुनाव
अब तो कर ही चाँव-चाँव, आत हे ग अब चुनाव

आनी बानी गोठ करही, ऊँच-नीच खेल करहीं
अउ लगाहीं तोर भाव, आत हे ग अब चुनाव

कतका दिन के भूले भटके, तोर सुध ल अब तो लेही
खोज-खोज तोर ठाँव, आत हे ग अब चुनाव

ओ बजाही बासुरी ल, अऊ घुमाही अपने हाथ
जइसे खेल जादू दांव, आत हे ग अब चुनाव

जीते बर गा बाटे दारू, बाटे पइसा थोर थोर
राख बर हे गा हियाव, आत हे ग अब चुनाव

जीते बर चुनाव ओ हा, कुछुु च करही कुछु च करही
धरही गिरही तोर पाँव, आत हे ग अब चुनाव

-रमेश चौहान

2 responses to “ग़ज़ल: बहरयुक्‍त कुछ छत्‍तीसगढ़ी ग़ज़ल”

  1. चोवा राम 'बादल' Avatar
    चोवा राम ‘बादल’
    1. Ramesh kumar Chauhan Avatar

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