छत्तीसगढ़ी बाल कविता
छत्तीसगढ़ी बाल कविता गतांक से आगे
घरघुँदिया भाग-2
-कन्हैया साहू ‘अमित’
छत्तीसगढ़ी बाल कविता: घरघुँदिया
23- मड़ई
गाँव-गाँव मा होथे मड़ई।
महिमा आगर, बहुते बड़ई।।
देव साँहड़ा के हे मातर।
सब सकलाथें भाँठा चातर।।
खेती के जब बुता थिराथे।
मातर मड़ई तभे जगाथे।।
ठौर-ठौर मा सजथे मेला।
मनखे के तब रेलम-पेला।।
नाचा गम्मत बड़ रौताही।
खई खजाना हाहीमाही।।
(रौताही=मड़ई)
24- फेरीवाला
फेरी वाला मारय फेरी।
बीच-बीच मा पारत रेरी।।
कभू सायकिल ठेलागाड़ी।
बेंच जिनिस पाथे देहाड़ी।।
कभू फूल तरकारी भाजी।
सबो बिसाथें होके राजी।।
कभू खिलौना आनी-बानी।
पुतरा पुतरी राजा रानी।।
कभू धरे सुग्घर मनिहारी।
कूद परैं बहिनी महतारी।।
25- सड़क
देखव सड़क हरँव मैं करिया।
गाँव-शहर जाये के जरिया।।
डामर गिट्टी के ये तन हे।
परहित मा बीतत जीवन हे।।
निशदिन दउँड़त रहिथे गाड़ी।
जीप कार बस कभू कबाड़ी।।
माढ़े रहिथँव एक जघा मैं।
नइ तो देवँव कभू दगा मैं।।
मैं पहुँचावँव सब ला मंजिल।
मोर बिना हे चलना मुश्किल।।
26- मोटर गाड़ी
मोटर गाड़ी आवत जावत।
पीं पीं-पीं पीं रथे बजावत।।
सरसर-सरसर भरभर-भरभर।
उत्ता धुर्रा रहिथें भागत।।
जगमिग-जगमिग चकचिक-चककिच।
भागँय रतिहा शेखी मारत।।
पेट्रोल डीजल पी के दउड़ै।
करिया-करिया धुआँ उड़ावत।।
पोट-पोट ले भरे कोचकिच।
चलथे नँगते इन मटकावत।।
27- घर कुरिया
माटी ले सिरजय घर कुरिया।
माई पिल्ला राहँन जुरिया।।
भिथिया थाम्हे खपरा छानी।
बाँचन घाम, जाड़ अउ पानी।।
घर दुवार अब कच्चा-पक्का।
सहय समय के लावाधक्का।।
ईंटा छड़िया सिरमिट रेती।
‘अमित’ ठोसलग इँखरे सेती।।
परछी अँगना कोलाबारी।
मया पिरित असली निस्तारी।।
28- सरदी
सरसर-सरसर सरपट सरदी।
लागय सब ला असकट सरदी।।
छिन-छिन तड़फड़ बीतै दिन हा।
रतिहा कटथे लटपट सरदी।
ओढ़े कथरी कमरा रजई।
ताड़य उघरा कनपट सरदी।।
घाम रौनियाँ भुर्री तापव।
भागय काँपत झटपट सरदी।।
भले डराथे, देंह बनाथे।
बहुते तिरझन तिरपट सरदी।।
29- फिलफिली
चलय फिलफिली फरफर-फरफर।
अपने सुर मा सरसर-सरसर।।
रिंगी-चिंगी रंग म रंगे।
चक्कर खाय हवा के संगे।।
सनन-सनन ये बड़ इतरावय।
लइकामन ला पोठ लुहावय।।
चिन्हारी हे पाना कागज।
घुमते रहना एखर कारज।।
खुलखुल-खुलखुल लइका हाँसय।
चलय फिलफिली मन ला फाँसय।।
30- अखबार
बड़े फजर आथे अखबार।
घर बइठे जानव संसार।।
समाचार सबके सुध लेत।
जन-जन ला ये करय सचेत।।
आखर-आखर सार लिखाय।
नित अँजोर जग मा बगराय।।
हँसी ठिठोली सुख-दुख सार।
ये सियान-लइका सँगवार।।
पढ़य ददा हा पीयत चाय।
आँखी चश्मा मा चढ़हाय।।
31- कबाड़ीवाला
रेरी पारत आय कबाड़ी।
अउ कबाड़ ले जाय कबाड़ी।।
लोहा-टीना रद्दी बेंचव।
जौन काम नइ आवय दे दव।।
ओन्टा-कोन्टा दीखय रदबद।
सरहा-गलहा लागय खदबद।।
सुग्घर सफ्फा झट हो जावय।
टरय कबाड़ी, घर मनभावय।।
करथे काज कबाड़ीवाला।
सुघर सफाई के रखवाला।।
32- पेपरवाला
पेपर वाला बिहना आथे।
अपन संग मा पेपर लाथे।।
सरदी, गरमी, बरसा बादर।
बड़े बिहनिया बूता आगर।।
धरे सायकिल बड़ भिनसरहा।
लागय जइसे खर-खर खरहा।।
जावय सबके रोज दुवारी।
करय न नाँगा, समय खुवारी।।
समाचार के चुलुक लगाये।
पेपर वाला धन्य कहाये।।
33- दूधवाला
डब्बा भरके लाय दूधवाला।
घर-घर बाँटे जाय दूधवाला।।
धरे कसेली, नोई झूलाये।
नँगत मगन हे गाय दूधवाला।
मटर-मटर मेछेरावय बछरू।
पाँव छाँध ठहराय दूधवाला।।
दिनभर खेत-खार जंगल झाड़ी।
चारा अबड़ चराय दूधवाला।।
कनिहा मा बँसरी, ओढ़े खुमरी।
जय गोपाल कहाय दूधवाला।।
34- रिक्शावाला
रिक्शावाला सिधवा सोज।
लेगय हम ला इस्कूल रोज।।
अपन ठौर खच्चित पहुँचाय।
रद्दा भर सुग्घर बतियाय।।
जाँगर पेरय करके काम।
पावय तब महिनत के दाम।।
फुटय पछीना के जब धार।
तभे कमावय पइसा चार।।
आवय-जावय नित इस्कूल।
पछतावय वो करके भूल।।
35- गुल्फी
गरमी मा बड़ मन ला भाथे।
खाबे ता जुड़ चिटिक जनाथे।।
रिंगी-चिंगी रंग रंगाये।
लइकामन ला पोठ रिझाये।।
पोंप-पोंप सुन दउँड़े आवँँय।
चुहक-चुहक के नँगते खावँय।।
गुरतुर-गुरतुर गुल्फी गुरतुर।
नइ तो लागय एक्को चुरपुर।।
ये सियान लइका ला भाथे।
गरमी मा सब गुल्फी खाथे।।
36- रेलगाड़ी
चलय रेल हा छुकछुक-छुकछुक।
धुँआ उड़ावय भुकभुक-भुकभुक।।
आगू इंजन पाछू डब्बा।
आ गे टेशन रुकरुक-रुकरुक।।
सरसर-सरसर भागय गाड़ी।
देखत मा दिल धुकधुक-धुकधुक।।
पातर-पातर पटिया पटरी।
पोटा काँपय पुकपुक-पुकपुक।।
छिन मा छप, छू लंबा गाड़ी।
देखत राहव टुकटुक-टुकटुक।।
37- रेडियो
जादू के डब्बा लगय रेडियो।
गुरतुर-गुरतुर बजय रेडियो।
गीत भजन कहिनी कविता नाटक।
सुग्घर महफिल कस सजय रेडियो।।
समाचार अउ गोठ गुड़ी के।
रोय कभू ता हँसय रेडियो।।
धर के ले चल अपन संग मा।
आँट पठेरा बसय रेडियो।।
ज्ञान खजाना भरे परे हे।
सबके हितवा लगय रेडियो।।
38- टी.वी.
घर भर के हे गजब दुलारा टी.वी.।
अब तो बनगे प्रान अधारा टी.वी.।।
घर बइठे ये दुनिया सरी देखाथे।
मनरंजन के सुघर सहारा टी.वी.।।
लइका सियान सबके मन ला भाथे।
बिन तोरे हे कहाँ गुजारा टी.वी.।।
रिंगी-चिंगी फुल फुलवारी लागय।
देखाथे बड़ नीक नजारा टी.वी.।।
खेलकूद, पढ़ई-लिखई अउ जेवन।
नँगत ज्ञान के हे भंडारा टी.वी.।।
39- हमर स्कूल
कतका बढ़िया हमर स्कूल हे।
साफ सफाई सुघर स्कूल हे।।
रोज बिहनिया पढ़े ल जाथन।
आँखी मा बस डहर स्कूल हे।।
भाव मेटथे जात-पात के।
बरोबरी के खबर स्कूल हे।।
करथन जुरमिल खूब पढ़ाई।
आथन अव्वल, असर स्कूल हे।।
पाथन आखर ज्ञान समझ सब।
मंदिर विद्या अमर स्कूल हे।।
40- हमर गुरूजी
मन ला भाथे हमर गुरूजी।
पाठ पढ़ाथे हमर गुरूजी।।
सतवंता गुणवंता बहुँते।
सार बताथे हमर गुरूजी।
कथा कंथली कविता कतको।
गीत सुनाथे हमर गुरूजी।।
पर्यावरण अंग्रेजी हिन्दी।
गणित सिखाथे हमर गुरूजी।।
पहिली कहना इँखरे मानन।
देव जनाथे हमर गुरूजी।।
41- इतवार
हवय आज तो हमर तिहार।
कहिथे येला सब इतवार।।
सुतबो हाथ-गोड़ ला तान।
आवय आँधी या तूफान।।
दाई बस्ता झन तैं जोर।
सपना सुग्घर झन तैं टोर।।
अलथी-कलथी मारँव पोठ।
आज करव झन पढ़ई गोठ।।
थके-थके हँव मैं दिन सात।
खावँव खेलँव मनभर घात।।
42- रौनियाँ जड़काला के
घाम तापलव जड़काला के।
सूरुज आये उजियाला के।।
बिहना-बिहना जुड़ जब लागय।
देख रौनियाँ तुरते भागय।।
अँगना परछी चौंरा बइठव।
बात मानलव झन तुम अँइठव।।
खूब विटामिन हम ला मिलथे।
जड़काला मा तन-मन खिलथे।।
‘अमित’ रौनियाँ हे सुखदाई।
घाम ताप ले, होय भलाई।।
43- गरमी के दिन
गरमी के दिन झंझट लागय।
घर मा खुसरे असकट लागय।।
तात-तात बाहिर पुरवाही।
बंद परे सब आवाजाही।।
लकलक-लकलक तिपथे धरती।
अमरइया मा गिरथे गरती।।
गजब गरेरा, बिकट बड़ोरा।
संझौती के होय अगोरा।।
टपटप-टपटप चुहय पछीना।
कइसे कटही गरम महीना।।
44-बिजली बचाओ
बिजली हावय बड़ अनमोल।
हमू बचाबो बिजली, बोल।।
बनय कोइला पानी धार।
थोरिक हे एखर भंडार।।
अणु परमाणु होय बेकार।
एखर खतरा हवय हजार।।
सोच-समझ के बल्ब जलान।
थोक-थोक हम रोज बचान।।
करव बचत अब अपने ढ़ंग।
रहय सदा खुशहाली संग।।
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कन्हैया साहू ‘अमित’
शिक्षक-भाटापारा छत्तीसगढ
गोठबात ~ 9200252055
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