बाल साहित्य (काव्‍यसंग्रह): कई दिनों से चिड़िया रूठी-प्रो रवीन्द्र प्रताप सिंह

बाल साहित्य (काव्‍यसंग्रह): कई दिनों से चिड़िया रूठी

-प्रो रवीन्द्र प्रताप सिंह

प्रो रवीन्द्र प्रताप सिंह द्वारा रचित बाल साहित्‍य की अनूपम कृति बाल काव्‍य संग्रह ‘कई दिनों से चिडि़या रूठी’ समग्र रूप से यहां प्रकाशित की जा रही है । यह बाल काव्‍य संग्रह नए दौर के बच्‍चों के लिए पठनीय है ।

bal kavita sangrah
bal kavita sangrah

1.कई दिनों से चिड़िया रूठी

कई दिनों से चिड़िया रूठी
पास बुलायें , पास न आये।
इधर उड़ रही , उधर उड़ रही ,
कुछ बोलो मुंह फेर ले रही।
कई दिनों से चिड़िया रूठी।
कहती मैं विद्यालय की चिड़िया ,
छुट्टी में न मिलने आये ,
बोलो , क्यों न मिलने आये।
कई दिनों से चिड़िया रूठी
पास बुलायें , पास न आये।

2.नयी रश्मि

नयी सुबह की नयी रश्मि है
सभी दिशायें कांतिमान हैं ,
सभी दिशायें हुईं दीप्त हैं ,
नयी सुबह की नयी रश्मि है।

ठण्ड बहुत थी , कुहरा था ,
आसमान अब हुआ साफ़ है।
नयी सुबह है , नयी हवा है ,
सभी दिशायें कांतिमान हैं।
नयी सुबह की नयी रश्मि है ।

3चिड़िया सिखा रही बच्चों को उड़ना

चिड़िया सिखा रही बच्चों को उड़ना
खुश है देखो कितनी चिड़िया ,
सिखा रही बच्चों को उड़ना।
अभी महीने भर पहले यह
देख रही थी कहाँ जगह है ,
जहाँ बनायें एक घोंसला।

उड़ती बालकनी में आयी,
परदे पर डिब्बे की ऊपर
उसने जगह एक पायी।
तिनके , तिनके लेकर आयी
बना नीड़ तब निकले अंडे।
कितनी खुश है ,आज सामने
उसके अपने बच्चे आये।

4.नन्हा कीड़ा सोच रहा है

खुश है यूँ ही नन्हा कीड़ा ,
सोच रहा है , चलो घूमते ,
कितना प्यारा हुआ सवेरा।
प्यारी प्यारी धूप मखमली ,
हुईं खूब विकसित कलियाँ।
हवा बह रही ठंडी ठंडी ,
आया ले कितने रंग सवेरा।
कूद कूद कर कली फूल पर,
उड़ उड़ डाली डाली पर
सोच रहा है खेलेगा
खुश होगा हरियाली पर।

खुश है यूँ ही नन्हा कीड़ा ,
सोच रहा है , चलो घूमते ।

5.नन्ही गौरैया

फुदक रही नन्ही गौरैया
चावल के दाने ले आयी।
पूंछ हिलाती , पंख हिलाती ,
चमका -चमका अपनी आँखें
इधर कूदती , उधर कूदती ,
इधर उधर चिक -चिक करती ,
जैसे कितनी बातें करती
कितनी खुश नन्ही गौरैया
फुदक रही नन्ही गौरैया।

Loading

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *