बाल साहित्य (काव्‍यसंग्रह): कई दिनों से चिड़िया रूठी-प्रो रवीन्द्र प्रताप सिंह

bal kavita sangrah
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16.चिड़िया का घोंसला

चिड़िया लायी तिनके बिनकर
और बनाया एक घोंसला
कई महीने उसमे बैठी ,
तब आया बच्चा प्यारा सा।
एक नहीं दो बच्चे उसमे ,
एक बहुत ही शांत दिख रहा
और दूसरा चूँ- चूँ करता ,
चिड़िया के ही साथ रह रहा।
चिड़िया उन्हें सिखाती उड़ना ,
चोंच में भर कर देती खाना।

17.नहीं किसी को डरना

जब चली हवायें तेज़
घोंसला थर- थर काँपा।
डर के मारे चिड़िया भागी ,
कोई रास्ता न सूझा।
तभी अचानक उसने सोचा
क्यों ही हमको डरना है
हम तो उड़ने वाले हैं ,
पकड़े हमें घोंसला रहना।
उसने अपना पर फैलाया ,
बच्चों को उसमे डाल छिपाया।
अब सब साथ साथ बैठे थे ,
नहीं किसी को हवा से डरना ।

18.गीत वीर रस के गाता

गाना गाता आया कौआ,
गीत वीर रस के गाता।
तेज़ स्वरों में बोल बोल कर
जंगल की कथा सुनाता।
बता रहा है कैसे उसने
किसी शिकारी को काटा ,
चोंच मारकर उसे डराकर
चिड़ियों के प्राण बचाया ।
गाना गाता आया कौआ,
गीत वीर रास के गाता।

19.गीत गा रहीं कोयल

गीत गा रहीं कोयल बैठी ,
नये – नये पत्तों में छिपकर
पीपल पाकड़ के वृक्ष सजे हैं ,
नयी नयी कोपल पाकर।

कोयल कहती है इठलाकर
प्रकृति, देखिये, कितनी सुंदर ,
बच्चो तुमको रहना है ,
सदा प्रकृति से जुड़कर।

20.पपीहा

दिन में बोला आज पपीहा ,
याद कर रहे हम अपने दिन
एक बार की बात है बच्चो ,
हमने देखा वन सुंदर।
वो भी , जान रहे हो बच्चो ,
एक व्यक्ति ने उसे लगाया ,
जगह जगह से ला- ला पौधे ,
बंजर धरती को स्वर्ग बनाया।
बहुत दूर तक फैला जंगल
वहां हज़ारों पशु पक्षी ,
नदियां , झीलें , ताल सभी हैं ,
बड़ा शान्त वह वन दिखता।

21.मन की वीणा के तार

हम भी निकलें चलो बजायें ,
मन की वीणा के तार ,
चलो चलें हम प्रकृति देखने ,
जीव – जंतु से सम -व्यवहार।
वहां देख लेना तुम भी यूँ ,
कैसे मृदु स्वर में धरती गाती,
और वहां पर कल -कल ध्वनियाँ ,
नदियां कैसे अविरल बहतीं।
हम भी निकलें चलो बजायें ,
मन की वीणा के तार।

22.ऊगा नन्हा सा पौधा

एक ऊगा नन्हा सा पौधा ,
बॉलकनी के गमले में।
नहीं जानते थे हम सब यह
इसको हम क्या कहते हैं।
दो नन्ही सी बढ़ी पत्तियां ,
हरे और पीले डंठल ले।
यह क्या हफ्ते भर में यह
फैला कितना ऊपर उठकर।
हमने सोचा चलो इसे
हम करें व्यवस्थित ,
और सावधानी से हमने
किया बगीचे में रोपित।
आज यही है बड़ा हुआ ,
यह अनार का वृक्ष बन गया।
लाल रंग के सुंदर सुंदर
फल फूलों से लदा खड़ा।

23.मैंने गमले में एक बार

मैंने गमले में एक बार
पौधा एक उगाया।
नन्हा मीठी नीम का पौधा ,
बड़ा हुआ जब यह थोड़ा
ले जा मैंने बाहर इसे लगाया।
आज बड़ा यह हुआ देखिये ,
पेड़ बन गया झबरीला सा।
पत्ती फूलों से लदा खड़ा।
गोल- गोल से , हरे- हरे फल ,
लाल और काले पकते।
कितना सुंदर सुखद दृश्य यह ,
इसे देख हम खुश होते।
किया उसे मिटटी में रोपित।

24.भँवरा गुंजाता आया

भँवरा गुंजाता आया ,
अपनी धुन में खोया खोया
जाने क्या संगीत सुनाता ,
न कुछ कहता , बस गुँजाता ,
बस मस्ती में है गाता ,
अपनी धुन में खोया खोया
भँवरा गुंजाता आया ,
अपनी धुन में खोया खोया।

25.नन्हा कीड़ा

आकर बैठा नन्हा कीड़ा
नींबू की पत्ती पर ,
कहा ,बताओ इतनी अच्छी ,
कहाँ से खुशबू ले कर आये ?
वृक्ष बात यह सुनकर
यूँ ही धीरे से मुस्काया।
बोला , कीड़े मौज करो ,
रहो पत्तियों पर घूमो ,
क्या करना है तुमको हमसे ,
खुशबू कहाँ कहाँ से आती !
स्वागत है कीड़े , रहो यहाँ पर
जब तक जितना भी जी चाहे।
खुशबू मिलती यहाँ रहेगी ,
बिन माँगे ही , बिना बुलाये।

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