बाल साहित्य (काव्‍यसंग्रह): कई दिनों से चिड़िया रूठी-प्रो रवीन्द्र प्रताप सिंह

bal kavita sangrah
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26.गंगा का तट

नये सुरों में गाती है
शीतल शीतल हवा यहाँ पर।
खुशियों की प्रदर्शनी लगाती
प्रकृति यहाँ पर खुश होकर ।
शांत नीर का सुखद किनारा ,
स्वच्छ धवल जल दिखता है ,
यह स्थल पावन लगता है।
जीव- जंतु का मेल यहाँ पर
खुशियां फैलाता धरती पर।
गंगा का तट दिखता पावन ,
पवन ऊर्जा का स्रोत यहाँ पर।

27.दशहरा

लोग आ रहे प्रसन्नता लिए हुये ,
लोग आ रहे चले ऊर्जा भरे हुये।
न दिख रही कोई थकान ,
न कहीं कोई और चाह।
गीत भी गा रहे , चल रहे , चल रहे।
एक लक्ष्य मेल का , एक भाव प्रेम का ,
पर्व है दशहरा , प्रसन्नता भरा हुआ।
लोग आ रहे प्रसन्नता लिए हुये ,
लोग आ रहे चले ऊर्जा भरे हुये।

28.दीवारों पर चलती चींटी

दीवारों पर चलती चींटी ,
जाने कहाँ से आयीं इतनी,
एक पंक्ति में बढ़ती जातीं
कुछ विपरीत दिशा से आतीं।
भरे हुये हैं मुँह में वे कुछ ,
शायद है चीनी का दाना।
देखो शायद बिखरे थे ये ,
पर चींटी ने कैसे पहचाना।
कितनी अच्छी संचार व्यवस्था ,
कितना अपनापन इनमे ,
काम कर रहीं मिलजुल कर
कितना अपनापन इनमे।

29.मोती मेढक

जल्दी जागा मोती मेढक ,
उसने सोचा रात में ये सब
रोज़ सवेरे जल्दी जागें ,
जल्दी सभी काम निबटायें।
न फिर चिंता रहे कोई भी
जब हम कहीं घूमने जायें।
अपना काम रहे पूरा तो
मन कितना रहता है शांत
और नहीं तो इधर उधर
काम बुलाते हमें पुकार।

30.दोपहर में बौछारें

गर्मी की दोपहर में बौछारें ,
ज्यों आसमान से लड़ी बनाती ,
हलके हलके छाये ये बादल
उनसे बूंदे छन -छन गिरतीं
हीरों जैसी लड़ी बनातीं
मनभावन फैली है खुशबू ,
धरती खुशियों से लहराई।
मिटटी पर गिर फैली बूँदें ,
मिटटी के संग ख़ुशी मनातीं ।
गर्मी की दोपहर में बूँदाबाँदी ,
ज्यों आसमान से लड़ी बनाती

31.जल्दी जल्दी दौड़ी आयी

जल्दी जल्दी दौड़ी आयी
मुझे देखकर एक गिलहरी।
शायद वह यह कहती है ,
अरे रुको कुछ बात करो।
किधर जा रहे हो जल्दी में
ये तो हैं छुट्टी के दिन ,
मैंने चिड़ियों से भी बोला है
आओ मिलकर बात करो।
हम सब मिलकर बैठेंगे
फिर सोचेंगे कई उपाय ,
जल प्रदूषण के मुद्दे पर ,
हम सोचेंगे कई उपाय।

32.कैसे रोकें हम प्रदूषण

ऊँघ रहीं शायद यह चिड़िया ,
या यूँ ही बैठी कुछ सोच रही।
इतनी शांत- शांत तो हमको
यह इसके पहले न कभी दिखी।
सोच रही है यह शायद यूँ यह,
क्यों घुटन भरी है हवा यहाँ पर ?
धुंआ छा रहा बहुत यहाँ पर
विष जैसे मिल रहा हवा में।
इसका कारण प्रदूषण है
यह शायद बाहर से आयी ,
इसीलिए आश्चर्यचकित है।
प्रदूषण अब तक जान न पायी।
आओ इसके संग बैठे हम
और नया कुछ सोच सकें।
कैसे रोकें हम प्रदूषण ,
इस पर चिंतन मनन करें।

33.बसंत

हैं बसंत के दिन आये ,
खुशियां फैल रहीं धरती पर ,
हर तरफ फूल, फूले सुंदर।
नव कोपल से वृक्ष लदे
हर ओर यहाँ खुशियां छायीं ,
पतझड़ बीता लेकर पत्ते
जो पीले ,रूखे सूखे थे।
कितनी सुखद पवन की लहरें ,
एक अनोखी आज महक है।
हैं बसंत के दिन आये
खुशियां फैल रहीं धरती पर।

34.नयी सुबह

नयी नयी सुबह
एक नयी सुबह आज।
नये नये काम की , सूचियाँ नयी।
और फिर नयी सुबह ,
नये नये जोश भरे
गीत भी नये।
आज की नयी सुबह ,
मृदुल पवन गा रहा ,
स्वागतों के गीत।
नयी नयी सुबह
एक नयी सुबह आज।

35.फुदक फुदक कर गौरैया

फुदक फुदक कर गौरैया भी
धूल में जा कर धूल उड़ाती।
मैंने पुछा तो वह बोली
यह धूल मुझे स्नान कराती।
उसे प्रकृति लगती है प्यारी ,
ये सब उसके खेल निराले
कभी फुदकती धूल में जाकर,
जल में फिर वह पंख भिगोती।
फुदक फुदक कर गौरैया भी
धूल में जा कर धूल उड़ाती।

36.दो अंडे

दो अंडे यूँ ही छोड़े हैं
नया घोंसला है पक्षी का।
कहाँ गया पक्षी न लौटा
सोच रहा मैं बैठा अब तक।
कैसे हो अण्डों की रक्षा ,
न इनको कोई हाथ लगाये।
पक्षी आये इनपर बैठे
तब तक न कोई क्षति पहुचाये ।
दो अंडे यूँ ही छोड़े हैं
नया घोंसला है पक्षी का।

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