बाल कविता श्रृंखला भाग-1: जल जीवन
-प्रो रवीन्द्र प्रताप सिंह
1. सरिता
नीर लिये चलती रहती है
सरिता की निर्मल धारा
इसे देखकर लगता है
जीवन ने इसे पुकारा।
सबको जल देती हैं नदियां
पशु हों , पक्षी हों , मानव हों
जल है जीवन , जल भरकर ये
चलती सरिता धारा।
2. धरती हंसती है झीलों में
धरती हंसती है झीलों में
नदियों में , तालाबों में ,
जल इनमे संचित रहता है
जीवन का आधार लिये।
लाखों पशु पक्षी खुश होते
खुश होते हैं मानव
जल ही है जीवन का सम्बल
जल राशि स्वयं ही तीर्थ स्थल।
3.मेघ संदेशे लेकर आते
मेघ संदेशे लेकर आते
खुशियों का लिये संदेशा
वर्षा के हैं दूत मेघ सब
खुशियों का लिये संदेशा।
वर्षा जीवन देती है
पौधों को पेड़ों को ,
वर्षा खुशियां ला देती है
जन- जन के मन को।
4. छाये फिर से बादल
छाये फिर से बादल
एक माह से भीषण गर्मी
मन दुखी और था बेकल
छाये फिर से बादल।
बादल आशा लेकर आये ,
बादल झूल रहे हैं बाहर
देखो अंकुर फूटेंगे
जो दबे पड़े मिटटी के अंदर।
-प्रो रवीन्द्र प्रताप सिंह
(डॉ रवीन्द्र प्रताप सिंह लखनऊ विश्वविद्यालय के अंग्रेजी एवं आधुनिक यूरोपीय भाषा विभाग में प्रोफेसर हैं। उन्होंने नाट्य , काव्य एवं समीक्षा विधाओं में ख्याति प्राप्त रचनाओं का सृजन किया है। लेखन एवं शिक्षण हेतु उन्हें सोलह पुरस्कार प्राप्त हैं। )
अगले अंक में – भाग-2 वायु जीवन