बाल कविता श्रृंखला भाग-10:
संस्कृति
-प्रो रवीन्द्र प्रताप सिंह
1. सद्भाव हमारी संस्कृति
सद्भाव हमारी संस्कृति ,
हम शांतिप्रिय ,
हम वीर धीर,
शील हमारी संस्कृति ।
शौर्य हमारी सस्कृति।
भारत देश हमारा प्यारा ,
हम शांति प्रिय ,
हम शीलवान।
सद्भाव हमारी संस्कृति।
2. भारत राष्ट्र हमारा उर्जित
भारत राष्ट्र हमारा उर्जित
विज्ञान , ज्ञान , दर्शन कौशल से।
सृष्टि के आरम्भ काल से
इतिहासों को रचा धरा पर।
हमने अन्वेषण कर कितने ,
कीर्ति ध्वजा लहराई।
पूर्व काल से सदा निरंतर ,
भारत की गाथा गायी।
भारत राष्ट्र हमारा उर्जित
विज्ञान , ज्ञान , दर्शन कौशल से
3. यह ऋषियों मुनियों की धरती
हम जीवन को सद्गुण से ,
श्रेष्ठ , महान बनाते।
हम भारत के मूल्यों को ले ,
जीवन पथ पर बढ़ते जाते।
यह ऋषियों मुनियों की धरती ,
भारत वीरों की धरती।
ज्ञान यहाँ कण कण में दिखता
यह राष्ट्र महापुरुषों की धरती।
4. विश्व प्रेम के आदर्शों से
विश्व प्रेम के आदर्शों से ,
ओजमयी अपनी संस्कृति।
मूल्यों के नवसृजन लिये ,
तेजमयी अपनी संस्कृति।
आदर्श बनाते हर पथ पर
हम चलते सत्य मार्ग पर
विश्वप्रेम के आदर्शों से
तेजमयी अपनी संस्कृति।
5. भारत मूल्यों की धरती
भारतीय संस्कृति की अविरल धारा
सदियों से बहती आयी है।
इसके दर्शन , इसके मानक
सभ्यता बनाते रचते आये।
भारत मूल्यों की धरती ,
शौर्य, शांति, दर्शन कितने।
साहित्य ग्रन्थ वर्णन कितने
इस संस्कृति में चिंतन कितने।
भारतीय संस्कृति की अविरल धारा
सदियों से बहती आयी है।
-डॉ रवीन्द्र प्रताप सिंह
(डॉ रवीन्द्र प्रताप सिंह लखनऊ विश्वविद्यालय में अंग्रेजी के प्रोफेसर हैं। वे हिंदी और अंग्रेजी में समान अधिकार से लिखने वाले जाने माने नाटककार , कवि एवं समीक्षक हैं। )