बाल कविता श्रृंखला भाग-6:
कीट पतंग
-प्रो रवीन्द्र प्रताप सिंह
केरो
केरो कीड़ा हरा भरा सा ,
पत्ती में आधा लिपटा ।
पत्ती में ही है घर उसका ,
वहीँ से बैठा बातें करता।
उसे देख भंवरा मुस्काया ,
फिर प्यारा सा गीत सुनाया ,
केरो ने अपनी बातें की ,
भँवरे ने अपनी बातें की।
डैना
डैना कीड़ा भूरा काला ,
दो चार नहीं छह टांगो वाला।
कूद रहा फूलों पत्तों पर,
अपनी धुन में मतवाला ,
डैना कीड़ा भूरा काला।
उसे देख कर छोटी तितली
बोली , ” कैसे हो डैना भाई ?
कहाँ गये थे चले ,बताओ
बाद महीनो पड़े दिखाई !”
डैना बोला , ” बहन हमारी ,
प्यारी तितली , कैसी हो?
हम तो आते ही रहते हैं
तुम भी तो न पड़ी दिखाई !
चिल
चिल पतिंगा झूम रहा था ,
मन ही मन कुछ सोच रहा था,
“शाम जल्द ही होने वाली
बल्ब जलेंगे चमकीले
हम कूदेंगे देख रोशनी। “
इतने में बिल उड़ता आया
बोला, देखो तुम हरियाली
कितने सुन्दर डंठल पत्ते
हवा चली है ,झूमी डाली,
क्यों बैठे हो सोच में भाई
भूल रहे हो तुम हरियाली।
बिल
बिल कीड़ा है कितना प्यारा ,
सबको अच्छी बात बताता।
काम सभी के वह आता है ,
कितना भी कैसा हो मौसम ,
बिल रहता सेवा में तत्पर।
बिल कीड़ा है कितना प्यारा ,
छह टांगों पर चलता रहता ,
बिल कीड़ा है कितना प्यारा।
जोजो
जोजो रहता लकड़ी खाता ,
आलस में है भरा मकोड़ा।
सूखी लकड़ी काट – काट
उसमे ही वह घुस जाता।
लकड़ी खा कर खुश होता है
गर्मी पड़ने पर रोता है
बारिश में गाता रहता है,
जोजो रहता लकड़ी खाता।
निब
छोटा निब जाता स्कूल ,
आम की ऊंची डाली पर
उसका प्यारा सा स्कूल।
उसके विद्यालय में मिलते।
दोस्त उसे कुछ प्यारे -प्यारे
गोगो , ग्लोरी वन विहान
मिलते उसको , गाना गाते।
सिब
छोटा सिब है ढोल बजाता ,
उसकी ढोल बड़ी ही प्यारी।
हरे भरे पत्तों से मढ़कर ,
रंग बिरंगी ढोलक प्यारी।
मोहक सी आवाज़ निकलती ,
हिलती डुलती रहती डाली।
छोटा सिब बस ढोल बजाता
उसकी ढोल बड़ी ही प्यारी।
सबकी अपनी अलग कहानी
ग्लोरी ,विहान, पेजो वनबागो,
सबकी अपनी अलग कहानी।
रोज़ सुनाते सभी कहानी।
ग्लोरी को है जल प्यारा ,
पेजो को है नभ प्यारा।
विहान लिये आती उड़ती,
जंगल की रोचक घटनायें।
वनवागो की अलग कहानी ,
सबकी अपनी अलग कहानी।
ग्लोरी ,विहान, पेजो वनबागो,
रोज़ सुनते सभी कहानी।
गोगो
गोगो प्यारा मखमल कीट
लाल रंग का वीर बहूटी।
प्यारे प्यारे फूलों जैसा
फूलों में ही चलता फिरता।
उसे देख बच्चे कहते है ,
वो देखो , पंखुड़ी पड़ी है।
पास पहुंचते तो कहते हैं
ये तो गोगा मखमल कीट।
ग्लोरी
ग्लोरी सतरंगी तितली ,
उसको तालाबों का ज्ञान।
जल के सभी जीव हैं प्यारे ,
उसके प्यारे दोस्त सभी।
मेढक से सीखा है गाना ,
मछली से सीखा इतराना।
ग्लोरी सतरंगी तितली ,
जल है उसको कितना प्यारा।
विहान
है विहान नन्ही सी तितली ,
पीली नारंगी तितली ,
उड़ती रहती है फूलों पर
हरा रंग है उसको प्यारा ,
उसका गीत अलग है न्यारा।
उसके दोस्त बहुत से कीड़े
उससे अच्छी बातें करते।
उड़ उड़ कर फूलों डालों पर
तितली अपनी बात बताती ,
गीत सुनाती , उड़ती जाती।
पेजो
पेजो उडी नीम के ऊपर
देखा छोटे फूल अनोख।
नीम की ठंडी छाया में
फूलों के गुच्छे मन भाये।
पेजो की यह सोच नयी थी
उसने विहान को बात बताई।
उड़ती तब वनवागो आयी
वह भी खुश होकर मंडराई।
वनवागो
वनवागो कितनी छोटी तितली
नीली थोड़ी , हरी बैगनी।
गुड़हल के फूलों पर उड़ती
कभी कनेरों पर मंडराती ।
वनवागो कितनी प्यारी तितली ,
उसको उड़ना अच्छा लगता।
दूर दूर तक उड़ कर जाती,
लौट के कितनी बात बताती।
मौज़
मिटटी में रहता है मौज़
उसको धरती लगती प्यारी।
चींटी -चींटो का स्वागत करता
फूल घास के लाकर देता।
कीड़ों का राजा लगता है
कहता उसकी बड़ी सी फौज
मिटटी में रहता है मौज़,
उसको धरती लगती प्यारी।
फेरो
फेरो कीड़ा आया उड़ता
हरे भरे पौधों पर
बोला हमको भी छाया दो
बाहर उमस बहुत है।
जो बाहर उधर चारदीवारी
उस पर ही हम रहते ,
देखा पहली बार आपको
वैसे हम आया करते।
पौधा बोला , ” फेरो आओ ,
छाया में आकर बैठो
थोड़ी देर वहां सुस्ता लो
फिर चाहो तो खेलो। “
नेमो
निकल गये जब सभी पतिंगे
नेमो रोता आया।
छोटा था नेमो शायद
इसीलिए वह जान न पाया ,
कीड़ों की थी पिकनिक आज ,
नेमो रोता आया।
रोते देख वहां नेमो को
गौरैया उड़ते आयी
नेमो को पास बुलाकर
अपने पंखे पर बैठाया।
लेकर नेमो को उड़ी गौरैया
पिकनिक पर पहुंचाया
नेमो खुश था बहुत आज
उसने गौरैया का गाना गाया।
किप
किप उड़ता आया
बैठ गाया टी वी पर।
टी .वी. पर गाना सुनते ही।
ख़ुशी -ख़ुशी वह झूमा।
पल भर को वह शांत रहा ,
फिर अपनी तान छेड़ दी।
खुश होकर उसने नृत्य किया
फिर अपना गाना गाया।
-डॉ रवीन्द्र प्रताप सिंह
(डॉ रवीन्द्र प्रताप सिंह लखनऊ विश्वविद्यालय के अंग्रेजी एवं आधुनिक यूरोपीय भाषा विभाग में प्रोफेसर हैं। उन्होंने नाट्य , काव्य एवं समीक्षा विधाओं में ख्याति प्राप्त रचनाओं का सृजन किया है। लेखन एवं शिक्षण हेतु उन्हें सोलह पुरस्कार प्राप्त हैं। )