बाल कविता श्रृंखला भाग-9:
पुष्प
-प्रो रवीन्द्र प्रताप सिंह
1. पंखुड़ी और बूँद
आकर बैठी बूँद पंखुड़ी पर
आज सवेरे छुपकर ,
अभी पंखुड़ी अलसायी थी
और बूँद आयी थी छुपकर।
कली ने देखा छुपी बूँद को
बोली, “बूँद सुनो
चुप कर बैठी रहो वहीँ पर
कुछ सरप्राइज सुनो गुनो। “
2. गुड़हल का झबरीला फूल
गुड़हल का झबरीला फूल
हरी डालियों पर झूला।
बादल छाये , उमड़े घुमड़े
उन्हें देख कर वह बोला ,
“क्यों उमड़े घुमड़े अटके हो
आओ मिलकर खेलें ,
बरसो आकर नीचे झूमो
हम भी तो कुछ खेलें। “
3. छोटा फूल घास का पीला
छोटा फूल घास का पीला
चींटी से बोला ,
“आलस से बाहर आओ ,
चींटे आकर गीत सुनाओ। “
चींटा बोला ,” गीत बहुत हैं ,
बैठ अभी हम गायेंगे,
लेकिन शर्त एक है भाई ,
संग में दोनों गायेंगे। “
4. फूल कैक्टस में उग आये
फूल कैक्टस में उग आये,
आते कितनी खुशियां लाये।
देख उन्हें आशा बँध आयी ,
गरमी बीती वर्षा आयी।
छोटी छोटी चिड़ियाँ आयीं ,
भँवरे भी आकर मंडराये।
फूल कैक्टस में उग आये ,
आते कितनी खुशियां लाये।
5. फूल बजाते हैं संगीत
फूल बजाते हैं संगीत ,
भँवरे गाते अपने गीत।
हरियाली भी फैल रही है ,
वर्षा खुश होकर आयी है।
पत्ते हरे भरे धुलकर,
नये – नये बन चमक रहे हैं।
धरती खुश है , हरियाली है,
फूल बजाते हैं संगीत।
-प्रो रवीन्द्र प्रताप सिंह
(प्रो डॉ रवीन्द्र प्रताप सिंह लखनऊ विश्वविद्यालय में अंग्रेजी के प्रोफेसर हैं। वे हिंदी और अंग्रेजी में समान अधिकार से लिखने वाले जाने माने नाटककार , कवि एवं समीक्षक हैं। )