बाल साहित्य (बाल नाटक):
बदलाव राग
-प्रो रवीन्द्र प्रताप सिंह
बाल नाटक-बदलाव राग
पात्र
बदलू : भेड़िया
मगन : बन्दर का बच्चा
गगन : बन्दर का बच्चा
केलू : कौआ सूत्रधार
दृश्य : एक
स्थान : जंगल का एक भाग
समय : दोपहर बाद
(बदलू भेड़िया गुनगुनाते हुए चला जा रहा है। )
बदलू : जंगल में है जला अलाव
आग सेंक कर जोश में आयें
भालू बंदर और बिलाव
तरह तरह की चर्चायें हैं
जिल्लू लायेंगे बदलाव ।
(अचानक मगन बन्दर उसे टोकता है। )
मगन : बदलू चाचा क्या गुनगुनाते हुये चले जा रहे हो ? बड़े खुश लग रहे हो !
बदलू : हाँ -हाँ भतीजे , तुम कैसे हो , बताओ बहुत दिन बाद मिले ! कैसे रहे , कहाँ रहे !
मगन : मैं तो बोर्डिंग स्कूल में रह रहा हूँ न, आज -कल , तो कभी कभी ही आना होता है।
बदलू : कहाँ ?
मगन : भाग्योदय स्कूल है न , वहीँ मेरा एडमिशन हुआ है।
बदलू : नाम तो बड़ा अच्छा है भतीजे , भाग्योदय ! भाग्योदय स्कूल। और बताओ अपने स्कूल के बारे में !
मगन : बस घर और स्कूल दोनों को जोड़ जोड़ दीजिये और ज सामने आये , वही भाग्योदय स्कूल कह दीजिये।
बदलू : (हा – हा – हा ) भतीजे हम तो पढ़े लिखे हैं नहीं ! जी …. बचपन से ही काम धाम में लग गये…. थोड़ा बड़े हुये तो , जानते हो , दुकान शुरू कर दी।
मगन : हाँ चाचा।
बदलू : भतीजे , वैसे बहुत अच्छा लगता है हमें , आप जैसे बच्चों को स्कूल जाते देख कर और तुम्हारे मुँह से ज्ञान -विज्ञान की बातें सुन- सुन कर।
मगन : अच्छा चाचा !
बदलू : हाँ बेटा, बच्चो से सीख सीख कर हम भी विद्वान बन गये। (मुस्कराता है )
(गगन आता है । )
गगन : बदलू चाचा , नमस्ते ! एक बात बोलें ,
बदलू : अरे बेटा गगन , कैसे हो ? हाँ हाँ बोलो !
गगन : किसी ने कहाँ है , “चाइल्ड इस द फ़ादर ऑफ़ मैन “।
मगन : गगन भैया , अंग्रेजी कवि वर्ड्सवर्थ ने कहा है।
बदलू : ये वर्ड्सवर्थ कौन रहे हैं ?
गगन : चाचा , ये इंग्लैंड से थे।
मगन : अंग्रेजी के कवि हैं। , इनका कहना है , “ बच्चा आदमी का पिता होता है।”
(बदलू जोर से हंस पड़ता है , सभी हँसते हैं )
बदलू : बहुत बड़ी बात कह दी , इन्होंने ! अच्छा , बेटे क्या तुम इंग्लैंड गए थे ?
मगन और गगन : (साथ साथ ) : नहीं चाचा , हम गए नहीं थे।
बदलू : तो कैसे सीखे ?
मगन : ( हँसते हुये) पढ़ के सीखा चाचा , पढ़ के। इसमें इंग्लैंड जाने की जरुरत क्या चाचा !
बदलू : मेरा भी मन करता है बच्चो, कि कुछ हम भी पढ़ें।
गगन : क्यों नहीं ! बड़े लोगों के लिए भी स्कूल होते हैं। प्रौढ़ शिक्षा , आप नहीं जानते क्या !
बदलू : क्या , बड़े लोगों के लिये स्कूल !
मगन : हाँ , बड़े लोगों के लिये स्कूल , आप हो के आईये , आपको बहुत अच्छा लगेगा।
गगन : चलो ले चलते हैं चाचा को प्रौढ़ शिक्षा केंद्र।
बदलू : जरूर ! क्या बात बच्चों , क्या कहना चलो , चलो , चलते हैं।
मगन : चाचा एक बात है..
बदलू : हाँ- हाँ, जरूर !
मगन : आप क्या गा रहे थे ! (मुस्कराता है )
बदलू : अरे भतीजे ! मैं तो मस्ती में यूँ ही गाता चला जा रहा था ! लो सुनो –
जंगल में है जला अलाव
आग सेंक कर जोश में आयें
भालू बंदर और बिलाव
तरह तरह की चर्चायें हैं
जिल्लू लायेंगे बदलाव।
मगन : चाचा , जिल्लू नहीं , बदलू चाचा लायेंगे बदलाव।
गगन : तो फिर क्या , चलो फिर इस गीत में सुधर करके गाते हैं।
तीनो का सामूहिक स्वर : (तीनो गाते हैं )
जंगल में है जला अलाव
आग सेंक कर जोश में आयें
भालू बंदर और बिलाव
तरह तरह की चर्चायें हैं
बदलू लायेंगे बदलाव।
केलू सूत्रधार की आवाज़ : वास्तव में सबसे बड़ा बदलाव शिक्षा से आता है। शिक्षा सबसे बड़ी शक्ति है। सबसे बड़ा हथियार हमारे हाथ में , जिससे हम आने वाली किसी परेशानी का अंत कर सकते हैं।
-प्रो रवीन्द्र प्रताप सिंह
(प्रो रवीन्द्र प्रताप सिंह लखनऊ विश्वविद्यालय में अंग्रेजी के प्रोफेसर हैं। वे अंग्रेजी और हिंदी लेखन में समान रूप से सक्रिय हैं । फ़्ली मार्किट एंड अदर प्लेज़ (2014), इकोलॉग(2014) , व्हेन ब्रांचो फ्लाईज़ (2014), शेक्सपियर की सात रातें(2015) , अंतर्द्वंद (2016), चौदह फरवरी(2019) , चैन कहाँ अब नैन हमारे (2018)उनके प्रसिद्ध नाटक हैं । बंजारन द म्यूज(2008) , क्लाउड मून एंड अ लिटल गर्ल (2017) ,पथिक और प्रवाह(2016) , नीली आँखों वाली लड़की (2017), एडवेंचर्स ऑफ़ फनी एंड बना (2018),द वर्ल्ड ऑव मावी(2020), टू वायलेट फ्लावर्स(2020) उनके काव्य का प्रतिनिधित्व करते हैं। उनके लेखन एवं शिक्षण हेतु उन्हें स्वामी विवेकानंद यूथ अवार्ड लाइफ टाइम अचीवमेंट , शिक्षक श्री सम्मान ,मोहन राकेश पुरस्कार, भारतेन्दु हरिश्चंद्र पुरस्कार एस एम सिन्हा स्मृति अवार्ड जैसे सोलह पुरस्कार प्राप्त हैं ।)