गर्मी से बेहाल (दोस्तों के दोस्त)-प्रो रवीन्द्र प्रताप सिंह
बाल साहित्य (जल संचय एवं इसकी महत्ता पर बाल नाटक)
स्थान : एक पहाड़ी जंगल
समय : दोपहर बाद तीन बजे
पात्र
हाहू : मकड़ा टैरेंटुला
विन : चीते का बच्चा
जेनी : हमिंग चिड़िया
काला : कौआ
दृश्य-1
गर्मी की दोपहर धीरे धीरे ढल रही है। चीते का एक छोटा बच्चा परेशान सा एक पेड़ के तने से आकर चिपक जाता है। तने के पास हमिंग चिड़िया एक गीत गा रही है-
गर्मी से बेहाल
जंगल सूख रहा है।
गर्मी से बेहाल
चिड़िया का मन ,
सब कुछ सूख रहा है।
कीड़े सिकुड़े पड़े हुए हैं
भाग रहे सब जीव जंतु
छाया भी कितनी हलकी है
मन तन सूख रहा है
गर्मी से बेहाल।
(विन बहुत ही ध्यान से गीत सुनता है।)
विन : चिड़िया जी , चिड़िया जी ! कहाँ हैं आप ?
जेनी : अरे विन। मई यहाँ हूँ , यहाँ ! इधर देखो ! मुझे बहुत प्यास लग रही है दोस्त !
(जेनी बाहर आ जाती है। अब वह विन के सामने है । )
विन : अरे चलो हम कुछ करते हैं
काला : जब तक काला टहल रहा है , कैसी किसको चिंता , अरे लो ये फल खाओ। मैंने अपने घोसले में बहुत सारे रखे हैं , झील के उस पर से लाकर।
(काला एक रसीला फल लाकर गिराता है। )
जेनी : धन्यवाद काला भाई ! बहुत ठीक समय पर आपने मेरी मदद किया है। बहुत बहुत धन्यवाद !
(जेनी बहुत तेज़ी से फल खाती है )
विन : काला जी आपसे मिलकर बहुत अच्छा लगा , और उससे भी अच्छा लगा आपकी मदद देख कर।
काला : अरे बेटे विन ,बड़ी ख़ुशी हुयी मुझे भी आपसे मिलकर ! शायद आप चीते देवल के सुपुत्र हैं। मेरे बहुत अच्छे दोस्त हैं वो ! आप जाकर पूछना !
विन : आप मेरे पापा को जानते हैं , आपको कभी देखा नहीं।
विन : बेटे , हमको घूमने का बहुत शौक है , जानते हो हर साल साइबेरियन पक्षी आते हैं अपने यहाँ। हुम पिछले साल प्रयागराज गए थे ,वहां पर एक जगह है नारायणपुर ,मैंने वहां कुछ अलग से पक्षी देखे। अपने मित्रों से पूछा ये कौन हैं भाई ..
विन : अरे वाह , बहुत रोचक बातें बता रहें हैं आप !
काला : हाँ – हाँ , सुनो तो ! वहां पर बहुत सारे पक्षी थे , बहुत बड़े बड़े , नाम पूछा तो बताया लिटिल ग्रीब , गैड वाल , कैटल इग्रेट ,पॉण्ड हेरॉन ,लार्ज इग्रेट , कोर्मोरेंट और न जाने कौन कौन से नाम !
जेनी : ये नाम यहाँ तो नहीं सुनाई देते काला जी।
काला : मैंने बताया तो ये सब ठन्डे साईबेरिआ प्रदेशों से आते हैं। वहां बर्फ जम जाती है , और ये हज़ारों किलोमीटर उड़ कर गर्म देशों की तरफ चले जाते हैं !
विन और जेनी (समूह स्वर ) : अच्छा !
काला : अरे और क्या ! बड़ा मनोरंजक दृश्य था वहां !
विन : तो क्या हुआ आगे !
काला : मैं इन सबों से बात किया , इनकी संस्कृति , रहन – सहन के बारे में जाना , और वहीँ रह गया , कई महीने ! अभी तो आया हूँ इधर !
विन : काश हम भी इनसे मिलते !
काला : अरे अरे क्यों नहीं , सब चलेंगे अगली बार , अक्टूबर के आस पास !
जेनी : बहुत अच्छी बात बताई आपने ! वैसे हमें रसीला फल देकर प्यास बुझाने के लिए धन्यवाद !
काला : हम सबका कर्त्तव्य है एक दुसरे की सहायता करना । जंगल हमारा घर है और जंगल के सभी निवासी हमारा परिवार।
विन : ठीक कहा आपने ! अब सोचते है , आईये बैठिये , सोचते हैं , पानी कहाँ से आये !
(तब तक झूमता हुआ हाहू आता है )
हाहू : हा- हा- हा -हा ,
हाहू मेरा नाम
टेरेन्डुला कुल के हम प्राणी
मकड़ा मेरा ही नाम
हा- हा- हा -हा ,
हाहू मेरा नाम !
बड़े बड़े जाले निर्मित कर
करते हम पूरी दुनिया पार
दोस्त हमारे देश- देश में
करते मेरा इंतज़ार !
(सभी हंसने लगते हैं ।)
हाहू : और दोस्तों कैसे हैं आप सब ! ये तो रहा मेरा परंपरागत कुल गीत ! वैसे कैसे हैं आप लोग ! हम सभी लोग वैसे एक ही परिवार हैं।
काला : हाँ हाँ क्यों नहीं ! वैसे रहते कहाँ हो दोस्त , आप !
हाहू : अरे आप जानते नहीं हो , क्या बात !
हाहू : हम रहते हैं जालों में
जंगल के कोने कोने में
हम हैं वैसे मकड़ा
ताकत मेरी बहुत बड़ी
पर कभी नहीं मैं रहता अकड़ा
ब्लैक विंडो स्पाइडर है मेरा भाई
रेड ब्लैक विंडो स्पाइडर बहन हमारी ,
कुल की मेरी शक्ति , जान रहे हो
कितनी भारी !
अरे कोई बात नहीं दोस्तों , हल्का करो माहौल , धूल उड़ रही बहुत तेज़ !
जेनी : अच्छा अच्छा , ठीक है , ठीक है
मकड़े भाई , ये बताओ , पानी कहाँ मिलेगा ?
हाहू : उधर दूर उत्तर में देखो
झील एक हैं पतली प्यारी
वहां बहुत मीठा पानी है
फूल फलों की बाड़ें न्यारी !
जेनी : चलो दोस्तों हम चलते हैं
पिकनिक करके आते
इस सूखे से समय में कुछ तो
मजे तो थोड़े कर ही लेते !
काला : हाँ – हाँ , क्यों नहीं !
विन : ठीक है , ठीक है , चलो ! चलते हैं।
जेनी काला तो उड़ लेंगे ,हाहू आप मेरी पीठ पर बैठ जाइए ! पानी में मस्ती करते , पानी के उस पार चलेंगे।
दृश्य 2
मीठे पानी की बहुत सुन्दर से झील है , चारों तरफ फूल और फलों की क्यारियां। सभी लोग वहां पहुंच जाते हैं। उस पार बहुत सुन्दर से फूल हैं। सब लोग पानी पीते हैं।
विन : चलो उस पार चलते हैं।
जेनी : लेकिन उस पार तक चलना कैसे होगा
काला : क्यों , हम उड़ लेंगे !
जेनी : आप तो उड़ लेंगे , हाहू और विन ?
विन : (मुस्कराता हुआ ) अरे ! शायद आप जानते नहीं दोस्तों
काला : क्या !
विन : हम चीते बहुत बड़े तैराक होते हैं। 6.5 किलोमीटर से ज्यादा दूरी तक हम किसी भी तेज़ बहाव में तैर सकते हैं !
(सभी आश्चर्यचकित हैं )
जेनी : अरे भैया !
विन : हाँ – हाँ ! आओ आप लोगों को भी सैर कराता हूँ !
हाहू : और हम जाले बुनकर जा सकते हैं , इतरा -इतरा कर !
(सब हंस देते हैं ! हाहू भी हंसने लगता है। )
विन : ( हाहू से) फिर कभी दोस्त , आज तो आप सभी हमारी पीठ अपर बैठो ! सैर करेंगे !
हाहू : और करेंगे मस्ती !
(धीरे धीरे पर्दा गिरता है , और पीछे से समूह गान सुनाई देता है )
जीव जंतु हम सब मिलकर
चलो करें अभियान
जल का संचय करें करायें,
जल से सबके प्राण !
जल से सबके प्राण !
जीवन हो खुशहाल
जीवन हो खुशहाल !
जल का संचय करें करायें,
चलो करें अभियान
(आर्या के लिए, जो कहती है कि संसार के सभी पक्षियों एवं मछलियों के नाम जानती है शायद !)
नाटकार से परिचय-
प्रो रवीन्द्र प्रताप सिंह के बारे में-
प्रो रवीन्द्र प्रताप सिंह लखनऊ विश्वविद्यालय में अंग्रेजी के प्रोफेसर हैं। वे अंग्रेजी और हिंदी लेखन में समान रूप से सक्रिय हैं । फ़्ली मार्किट एंड अदर प्लेज़ (2014), इकोलॉग(2014) , व्हेन ब्रांचो फ्लाईज़ (2014), शेक्सपियर की सात रातें(2015) , अंतर्द्वंद (2016), चौदह फरवरी(2019) , चैन कहाँ अब नैन हमारे (2018)उनके प्रसिद्ध नाटक हैं । बंजारन द म्यूज(2008) , क्लाउड मून एंड अ लिटल गर्ल (2017) ,पथिक और प्रवाह(2016) , नीली आँखों वाली लड़की (2017), एडवेंचर्स ऑफ़ फनी एंड बना (2018),द वर्ल्ड ऑव मावी(2020), टू वायलेट फ्लावर्स(2020) उनके काव्य का प्रतिनिधित्व करते हैं। उनके लेखन एवं शिक्षण हेतु उन्हें स्वामी विवेकानंद यूथ अवार्ड लाइफ टाइम अचीवमेंट , शिक्षक श्री सम्मान ,मोहन राकेश पुरस्कार, भारतेन्दु हरिश्चंद्र पुरस्कार एस एम सिन्हा स्मृति अवार्ड जैसे सोलह पुरस्कार प्राप्त हैं ।