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बाल नाटक:जंगल के कट रहे सहारे-प्रो रवीन्द्र प्रताप सिंह

बाल नाटक:जंगल के कट रहे सहारे-प्रो रवीन्द्र प्रताप सिंह

बाल नाटक:जंगल के कट रहे सहारे

-प्रो रवीन्द्र प्रताप सिंह

बाल नाटक:जंगल के कट रहे सहारे-प्रो रवीन्द्र प्रताप सिंह
बाल नाटक:जंगल के कट रहे सहारे-प्रो रवीन्द्र प्रताप सिंह

पात्र

क्लाम : भालू
वेमू : हिरन
नेमू : बन्दर
पौरी : सियार
तीली : लोमड़ी
खोम : खरगोश

दृश्य : एक

स्थान : जंगल

समय : सुबह , सूर्योदय के आस पास

(चिड़ियों की चहचहाहट। जानवरों की प्रसन्नता भरी आवाज़ें , हाल चाल पूछते हुये , अभिवादन करते हुये। भालू क्लाम जॉगिंग कर रहे है। साथ में उनके कई दोस्त है जैसे वेम और नेमू। )

क्लाम: आज सुबह जंगल में धुंध थोड़ी ज्यादा ही है। चलो बहुत दूर नहीं चलते। इसी जगह थोड़ी सी दूरी में कई चक्कर लगा लेते है।

पौरी : हाँ , हाँ , क्यों नहीं। हमें तो कोई कहीं जाना थोड़े ही है। कसरत करनी है भाई।
वेमू : कसरत भी करेंगे , दौड़ेंगे भी !
नेमू : भाई , पौरी हमेशा शॉर्टकट चाहता रहता है ! (हा -हा -हा )
(सभी हंसने लगते है। )
पौरी : वेम बड़ा चंचल लग रहा है , सुबह सुबह ! क्या बात है वेम !
वेमू : आपको देखा तो लगा ! (हा -हा -हा ) ऐसा कुछ नहीं पौरी भाई। कोई परेशान होने की बात नहीं।
नेमू : भाई मुँह बंद रखने से अच्छा की कुछ भी बोले !
क्लाम : नेमू , क्या बक रहा है , बच्चे ! ये आपकी कहाँ की सीख है नेमू ! कहते तो यह है की जब भी मुँह खोलो कुछ अच्छा ही बोलो।
नेमू : क्लाम चाचा ऐसी बात नहीं ! आप हरेक बात में गंभीर न हो जाएँ चाचाजी !
वेमू : वो भी …
पौरी : क्या भाई , वो भी !
वेमू : वो भी सुबह सुबह , यही हम कहने वाले थे भाईयो !
नेमू : अरे , अरे , शांत ! शांत ! शांत !
वेमू : अब इसे क्या हुआ ?
क्लाम: बस तुम लोग तुकबंदी करते रहो।
नेमू : थक गये चाचा जी !

क्लाम : ओये बांदरे , क्या कहा ? थक गया और मैं ? भाई क्या बकवास कर रहा है ! अभी बोल पूरे जंगल का चक्कर लगा के आऊं ! बोल भाई बोल !
वेमू : चाचाजी ज्यादा ही गंभीर होते जा रहे है ।
(गाने के स्वर तेज़ होते जा रहे है। )
गीत के स्वर :
सूख रही है नमी
सूख रहा है पानी
अजनवी मौसम सारे।
छोड़ रहे है , जो थे मेरे
जंगल के कट रहे सहारे।
सूरज जाता दूर कभी ,
कभी आ जाता पास हमारे।
मौसम बदल रहे तेजी से
जंगल के कट रहे सहारे
जंगल के कट रहे सहारे।
वेमू : अरे ये तो पागल लोमड़ी की आवाज़ है।
पौरी : हाँ , हाँ , बिलकुल पागल लोमड़ी की आवाज़ है।
वेमू : पौरी , तुझे क्या हुआ। जंगल तीली नहीं बोल सकता। जरुरत है जानवरों के समुदाय बताने की। नाम भी तो कोई चीज़ है आखिर ! तीली कहना क्या बुरा है , बोल ! बोल भाई !
पौरी : आज सभी लोग सीरियस चाय पी कर आये हैं। ठीक है… ठीक है।। ये आवाज़ तीली बहन की है।
क्लाम : तीली की ही आवाज़ है। चल कर देखते हैं।
दृश्य : दो
स्थान : जंगल
(एक मैदान में कोने पर बैठी तीली गीत गा रही है। गिटार भी बजा रही है। गीत के स्वर हैं। )
सूख रही है नमी
सूख रहा है पानी
अजनवी मौसम सारे।
छोड़ रहे है , जो थे मेरे
जंगल के कट रहे सहारे।
सूरज जाता दूर कभी ,
कभी आ जाता पास हमारे।
मौसम बदल रहे तेजी से
जंगल के कट रहे सहारे
जंगल के कट रहे सहारे।
(सभी जाकर तीली को घेर कर बैठ जाते है। )
तीली : (गीत समाप्त करने के बाद जैसे नींद से जागती हुयी। ) अरे तुम लोग कब आये ?
पौरी : वो तो बड़ी देर हुयी !
तीली : वो तो बड़ी देर हुयी !
तीली : बड़ी देर पहले तो मैं भी नहीं आयी थी यहाँ !
(पीछे से खोमा खरगोश की आवाज़ आती है। )
खोमा : अरे ये बैठी रहीं होंगी , यहीं पर सारी रात !
वेमू : अब लो भैया , अपना खोमा भी बोलै !
(सब हंस पड़ते है। )
क्लाम : (तीली से )बहन तुम्हारे गीत में वैसे बड़ा वास्तविक चित्रण है , इस समय की स्थिति और दशा का। सूख रही है नमी … सूख रहा है पानी।
पौरी : जंगल के कट रहे सहारे !
नेमू : (बहुत धीमे स्वर में ) चाचाजी और पागल ! (गलती का अहसास करते हुये अपनी जीभ को दबाता है। ) अरे मेरा मतलब … तीली जी भाइयो !
क्लाम : हाँ -हाँ , हम समझ गये क्या चाहता है तू ! अब हम लोग यहीं तीली जी के चारो और बैठते है , और इस गीत को सामूहिक स्वर में समूह गान जैसा गायेंगे।
(सभी गीत गाते है सामूहिक स्वर में। )
सूख रही है नमी
सूख रहा है पानी
अजनवी मौसम सारे।
छोड़ रहे है , जो थे मेरे
जंगल के कट रहे सहारे।
सूरज जाता दूर कभी ,
कभी आ जाता पास हमारे।
मौसम बदल रहे तेजी से
जंगल के कट रहे सहारे
जंगल के कट रहे सहारे।

समाप्‍त

-प्रो रवीन्द्र प्रताप सिंह

(प्रो रवीन्द्र प्रताप सिंह लखनऊ विश्वविद्यालय में अंग्रेजी के प्रोफेसर हैं। वे अंग्रेजी और हिंदी लेखन में समान रूप से सक्रिय हैं । फ़्ली मार्किट एंड अदर प्लेज़ (2014), इकोलॉग(2014) , व्हेन ब्रांचो फ्लाईज़ (2014), शेक्सपियर की सात रातें(2015) , अंतर्द्वंद (2016), चौदह फरवरी(2019) , चैन कहाँ अब नैन हमारे (2018)उनके प्रसिद्ध नाटक हैं । बंजारन द म्यूज(2008) , क्लाउड मून एंड अ लिटल गर्ल (2017) ,पथिक और प्रवाह(2016) , नीली आँखों वाली लड़की (2017), एडवेंचर्स ऑफ़ फनी एंड बना (2018),द वर्ल्ड ऑव मावी(2020), टू वायलेट फ्लावर्स(2020) उनके काव्य का प्रतिनिधित्व करते हैं। उन्होंने विभिन्न मीडिया माध्यमों के लिये सैकड़ों नाटक , कवितायेँ , समीक्षा एवं लेख लिखे हैं। लगभग दो दर्जन संकलनों में भी उनकी कवितायेँ प्रकाशित हुयी हैं। उनके लेखन एवं शिक्षण हेतु उन्हें स्वामी विवेकानंद यूथ अवार्ड लाइफ टाइम अचीवमेंट , शिक्षक श्री सम्मान ,मोहन राकेश पुरस्कार, भारतेन्दु हरिश्चंद्र पुरस्कार एस एम सिन्हा स्मृति अवार्ड जैसे सोलह पुरस्कार प्राप्त हैं ।)

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