बाल साहित्य नाटक: खुशियाँ-प्रो रवीन्द्र प्रताप सिंह

बाल साहित्य नाटक:

खुशियाँ

-प्रो रवीन्द्र प्रताप सिंह

बाल साहित्य नाटक: खुशियाँ-प्रो रवीन्द्र प्रताप सिंह
बाल साहित्य नाटक: खुशियाँ-प्रो रवीन्द्र प्रताप सिंह

पात्र

मिनी : छोटी चुहिया
डेज़ी : छोटी चुहिया
मित्सी: छोटी चुहिया
कोकंब : कुत्ता
डॉ मेधा : मेढक , जंगल की डॉक्टर

दृश्य एक : स्टोर रूम

(स्टोर रूम का एक कोना। मिनी डेज़ी और मित्सी मेक अप की किट लिए किसी फैंसी ड्रेस कम्पटीशन की तैयारी कर रही हैं। )

मित्सी : डेज़ी , आप बहुत देर कर रही हो , देखो ग्यारह बजने वाले हैं। अभी हमारा कुछ काम हुआ नहीं।
मिनी : भाई , फैशन की बात हो और चुहिया डेज़ी का साथ ह तो देर तो लगेगी ही ! क्या नया है इसमें।
डेज़ी : हाँ वो तो है। डेज़ी को दिखना है विश्व की सबसे खूबसूरत चुहिया !
मित्सी : और मित्सी को भी सबसे बुद्धिमान चुहिया।
मिनी : जब तुम लोग चलोगे वहां तक तभी तो। समय पर रहना , समय पर काम करना सफलता और सुंदरता के लिये बहुत जरूरी है।
मित्सी : हाँ- हाँ मैडम, हम सभी जानते हैं। हम जानते हैं।
डेज़ी : भाई जब हमारे पास मिनी जैसा मेंटॉर हो तो हमें किसकी चिंता।
मिनी : नहीं ऐसा कुछ नहीं। मैंने तो साधारण सी बात बताई।
मित्सी : इन्ही साधारण बातों में ही तो कुछ खास है दोस्त !
मिनी : अच्छा ठीक है अब तुम लोग चलोगे भी या यही कांफ्रेंस होगी !
(तीनो चुहिया निकल पड़ती हैं , सजी धजी सी। पीछे गीत सुनाई देता है। )
अपनी धुन में हम बढ़ते
चलते रहते ,कहते रहते
आगे बढ़ने की आज़ादी
कदम हमारे
सड़क हमारी।
इसकी रक्षा जिम्मेदारी
इसकी रक्षा जिम्मेदारी
सबकी है अब भागीदारी
हम सबकी है भागीदारी।

दृश्य : दो

(सड़क पर मिनी , डेज़ी और मित्सी तीनो पैदल चलती हुयी चली जा रही हैं। आपस में बातें कर रही हैं। )
डेज़ी : (अचानक तेज़ आवाज़ में ) वो देखो ! देखो तो कौन कराह रहा है ! अरे किसी की कराहने की आवाज़ !
मित्सी : अरे कहाँ कहाँ !
(किसी के कराहने की आवाज़ आ रही है। )
मित्सी : वो देखो वहां उधर…..
(तीनो रास्ते की किनारे पड़े हुये कुत्ते कोकंब को देखती हैं। )
डेज़ी : चलो चलते हैं उधर , ये तो कोकंब भाई हैं।
मित्सी : हाँ , हैं तो कोकंब भाई ही !
डेज़ी : क्या हुआ इन्हे , क्या करें ! चलो देखते हैं।
मित्सी : हाँ…. क्या करें , देखें चलो कोकब भाई को। आओ चलें !
डेज़ी : मैं तो सोच नहीं पा रही हूँ।
मिनी : सोचना क्या बहन !
डेज़ी : हाँ मिनी , हम तुम्हारी बात समझ गये।
मित्सी : हाँ चलो चलें।
मिनी : मुसीबत में दुसरे की सहायता करके आप सबसे खूबसूरत हो जाते हैं।
मिनी और मित्सी : (एक साथ ) : बिलकुल !
(अगले पल तीनो दोस्त कोकंब के पास पहुंच जाती हैं।
( कोकंब कराह रहा है । )
मिनी , मित्सी , डेज़ी : (साथ साथ ) क्या हुआ भाई कोकंब ?
कोकंब : (कराहते हुये ) बहनो… पानी पी लिया…. उस तालाब का…. कल…. और अब !
मिनी : कोई इन्फेक्शन हो गया है आपको कोकंब भाई !
मित्सी : डॉक्टर मेधा को बुलाइये।।।।
मिनी : हाँ -हाँ ! (डॉक्टर मेधा को फ़ोन करती है। तीनो दोस्त कोकंब के पास बैठे हैं। )

दृश्य : तीन

( डॉक्टर मेधा का आगमन । वह कोकंब को देख रही हैं। चुहिया दोस्तों से बातें करते हुये। )
डॉ मेधा : बहुत ठीक समय पर बुला लिया आप लोगों ने। (कोकंब को कुछ दवायें देते हुये ) परेशान न होईये कोकंब जी। बहुत शीघ्र आपको आराम मिलेगा।
(मित्सी मिनी और डेज़ी को सम्बोधित करते हुये )
जानती हो बहनों , ये वॉटर इन्फेक्शन है। लोग पानी में प्रदूषण कर रहे हैं और इस प्रदूषण से न जाने कितने जीव -जंतु रोज़ दम तोड़ दे रहे हैं। तरह तरह की बीमारियां पनप रही हैं।
मिनी : जल ही तो जीवन है। हमें इस दिशा में कुछ कदम उठाने होंगे।
मित्सी : बिलकुल सही है !
डेज़ी : अपने वातावरण , अपने समाज की रक्षा करना सबसे सुन्दर काम है।
डॉ मेधा : आप लोग कहीं जा रहें हैं ? शायद ब्यूटी कांटेस्ट में !
डेज़ी : अब देर हो गयी … जा तो रहे थे।
डॉ मेधा : यह सबसे बड़ा पुरस्कार है , जो आप लोगों ने स्वयं पा लिया कोकंब की सहायता करके। हम उधर ही जा रहे हैं। आयोजकों को इसकी सूचना देंगे।
(अब चलते हैं , कहीं देर न हो जाये आपके काम की सूचना देने में। डॉ मेधा तेज़ कदमो से जाती हैं । )
कोकंब : धन्यवाद ( आंसू भरी आँखों से तीनो को देखते हैं। ख़ुशी के आंसू हैं । सभी खुश हैं। गाना सुनाई देता है। )

खुशियों की सौगातें देना
सबसे बड़े कर्म हैं।
वही शक्तिशाली बलशाली
खुशियां जो लाकर कुछ दे दे।
जो गैरों के खातिर खुशियां
भर दे , ला दे , ला कर दे दे।

समाप्त

(प्रो रवीन्द्र प्रताप सिंह लखनऊ विश्वविद्यालय में अंग्रेजी के प्रोफेसर हैं। वे अंग्रेजी और हिंदी लेखन में समान रूप से सक्रिय हैं । फ़्ली मार्किट एंड अदर प्लेज़ (2014), इकोलॉग(2014) , व्हेन ब्रांचो फ्लाईज़ (2014), शेक्सपियर की सात रातें(2015) , अंतर्द्वंद (2016), चौदह फरवरी(2019) , चैन कहाँ अब नैन हमारे (2018)उनके प्रसिद्ध नाटक हंी , बंजारन द म्यूज(2008) , क्लाउड मून एंड अ लिटल गर्ल (2017) ,पथिक और प्रवाह(2016) , नीली आँखों वाली लड़की (2017), एडवेंचर्स ऑफ़ फनी एंड बना (2018),द वर्ल्ड ऑव मावी(2020), टू वायलेट फ्लावर्स(2020) उनके काव्य का प्रतिनिधित्व करते हैं। उनकी हिंदी अंग्रेजी कवितायेँ लगभग बीस साझा संकलनों में भी संग्रहीत हैं । लेखन एवं शिक्षण हेतु उन्हें स्वामी विवेकानंद यूथ अवार्ड लाइफ टाइम अचीवमेंट , शिक्षक श्री सम्मान ,मोहन राकेश पुरस्कार, भारतेन्दु हरिश्चंद्र पुरस्कार एस एम सिन्हा स्मृति अवार्ड जैसे सोलह पुरस्कार प्राप्त हैं । )

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