बाल साहित्य (नाटक): पिंजरा
-प्रो रवीन्द्र प्रताप सिंह
पात्र
मयूख : बच्चा
रंजन : बच्चा
लोमा : चिड़िया विक्रेता
खूबा: लोमा का सहायक
अरमू : फल विक्रेता
दोमा : दुकानदार
साधु
पुलिस
अपराधी
दुकानदार
दृश्य -एक
स्थान : नक्खास बाजार , लखनऊ
समय : दोपहर बाद
(लखनऊ की विक्टोरिया स्ट्रीट में नक्खास बाजार । एक अनोखा बाजार है , तरह तरह की दुकाने लगी हुयी हैं ।विक्रेता लोग तरह तरह की आवाज़ें निकाल कर अपने सामान बेच रहे हैं । यहीं पर एक फल की दुकान है । फल विक्रेता बड़ा सक्रिय दिख रहा है ।दो बच्चे उस दुकान से अमरुद खरीद रहे हैं । एक का नाम मयूख है , दूसरे का नाम रंजन ।)
मयूख : आपको मालूम है रंजन , अमरुद कितना पोषक होता है ! हमने कल ही अपने स्कूल में टीचर से यह बात सुनी !
रंजन : हाँ , हाँ , हम तो पहले से ही यह जानते हैं मयूख ! इसमें …..(बातें चलती रहती हैं …)
अरमू : बच्चों , कुछ अमरुद खरीदोगे या यूँ ही हमे अमरुद के बारे में बातें बताते रहोगे ? (मुस्कराकर ) वैसे बच्चों , किसी ने पहली बार अमरुद के बारे में इतनी अच्छी बातें की … लोग तो आते हैं ,अमरुद खरीदा और चलते बने !
रंजन : सच में चाचा ?
अरमू : और क्या , ये देखो मैंने नोट कर लिया है , कागज़ पर ! हाँ , अगर आप कल आओ तो हम इसे कविता बना कर सुनयेंगे ! और अमरुद बेचेंगे , गाना गाते हुए !…अच्छा ये लो आप लोग अमरुद चखो …(पानी में धोकर अमरुद देता है ।)
मयूख : चाचा ,कितने पैसे हुये ?
अरमू : अरे पैसे की क्या बात भतीजे !
रंजन : अरे नहीं चाचा , ये 250 होगा , लीजिये दस रुपये !
मयूख : हाँ ,चाचा , रखिये !
अरमू : लाओ, तो बच्चे रख ही लेते हैं फिर !
(मयूख और रंजन अमरुद लेते हैं , फिर चल देते हैं । धीरे धीरे बाजार में टहलते, इधर उधर को दुकानों देखते हुये चल रहे हैं । कुछ ही सेकंड बाद अरमू दौड़ता हुआ उनको देखने आता है।) अरमू की आँखें बच्चों को ढूंढ रही हैं ।अचानक दोनों बच्चे दिख जाते हैं ।)
अरमू : (बच्चों को देख कर ख़ुशी से ) अरे प्यारे बच्चो , मुझे तुम लोगों से कुछ कहना था , इसीलिए ढूंढते हुये आ गया ! अरे मेरे बच्चों , जानते हो , अमरुद के बारे में जो आपने मुझे बताया , मेरे शायर दिमाग ने तुरंत उस पर एक कविता बना डाली। सोचा क्यों न चलकर सबसे पहले आपको ही सुनाऊँ !
मयूख और रंजन : (मुस्कराते हुये ) हाँ -हाँ , क्यों नहीं चाचा !
अरमू : लीजिये फिर , ( अभिनयपूर्वक कविता सुनाता है ।)
हरी भरी जैसे धरती
अपनी ,प्यारी -प्यारी ,
उसी को छोटा कर के देखो ,
ये अमरुद हमारे !
जैसे धरती से मिलता है शक्ति हमें
बल हमको ,
ठीक उसी की तरह जानिये,
ये अमरुद हमारे !
धरती ही देती फल हमको
हमको खुशियां , जीवन।
खुशियां , भैया ये भी देते ,
ये अमरुद हमारे !
भैया , ये कविता बना डाली ,मैंने अभी। क्या जादुई बात बताई है बच्चों आप दोनों लोगों ने !
रंजन और मयूख : (मुस्कराते हुये ) जादुई बात ! अरे वाह चाचा , क्या बात है ! क्या सुन्दर कविता है आपकी ! आप तो काफी बड़े कवि लगते हैं !
(पास का एक दुकानदार सुन रहा है। उसका नाम दोमा है।)
दोमा : (बीच में बोलते हुये ) हाँ , हाँ , क्यों नहीं , ये तो शायर विलायती के पडोसी हैं !
(अरमू आँख तरेर कर मुस्कराते हुये देखता है। सभी मुस्कराते हैं। तभी उधर से गीत की आवाज़ सुनाई देती है। गाते हुये एक साधु आ जाते हैं । सभी लोगों का ध्यान उधर जाता है।)
गीत :
ये कैसा जग का बंधन ,
कैसी रीति यहाँ पर ,
ईश्वर ने हमको भेजा है ,
एक बराबर -एक बराबर !
(धीरे धीरे साधु टहलता हुआ इन लोगों के सामने आ जाता है।)
गीत :
एक बराबर , एक बराबर
हर प्राणी इस जग में ,
चलें किन्तु जब पथ पर ,
कठिनाई दिखती मग में !
ये कैसा जग का बंधन ,
कैसी रीति यहाँ पर ,
ईश्वर ने हमको भेजा है ,
एक बराबर -एक बराबर !
(मयूख तेज़ी से साधु की तरफ बढ़ता है। रंजन उसे हाथ पकड़ कर रोक लेता है।)
रंजन : (धीरे से, मयूख से ) कितनी बार बताया गया है की अनजान लोगों की तरफ ऐसे नहीं बढ़ते !
मयूख : (अपने को सम्हालते हुये ) हाँ , हाँ , लेकिन अब हम लोग बड़े हो रहे हैं !
रंजन : हाँ ,हाँ , इतने भी नहीं !
मयूख : (मुस्करा कर )अच्छा ! लेकिन तुम तो इतने बड़े हो की सब कुछ याद रखो !
रंजन : (गर्व का अनुभव करते हुये) हाँ -हाँ , क्यों नहीं , क्यों नहीं , दोस्त !
अरमू :(साधु को सम्बोधित करते हुये ) बाबाजी नमस्ते ! कैसे हैं आप !
साधु : भगवान कल्याण करें बच्चा !
दूसरा दूकानदार : नमस्ते बाबाजी , किधर जा रहे हैं !
साधु :मैं तो अपने आश्रम की ओर जा रहा था ! मंगल हो बच्चा ! अपने आश्रम की ओर जा रहा था, मन विचलित हो गया !
रंजन : प्रणाम बाबाजी ! यदि आपको बुरा न लगे तो हमें भी बताईये , क्यों विचलित हो गया मन !
साधु : कल्याण हो बच्चों !
मयूख : हाँ -हाँ बाबाजी , क्यों विचलित हुआ मन !
(तब तक एक दुकानदार कुछ फल लाकर साधु को भेंट देने लगता है।)
साधु : कल्याण हो बच्चा ! हम इतने फल लेकर क्या करेंगे ! आश्रम में सब कुछ है ! ईश्वर आपका कल्याण करें!
दुकानदार: भेंट स्वीकार करें महापुरुष !
साधु : (एक फल लेते हुये )एक ही काफी है ! धन्यवाद ! कल्याण हो !(बच्चों को सम्बोधित करते हुये ) बच्चों ,आपने पुछा क्यों विचलित हुये ? बड़ा गंभीर प्रश्न है !
मयूख और रंजन : गलती हेतु क्षमा चाहते हैं ,महात्मा ! आप बहुत दर्द भरा गीत गा रहे थे, इसलिए पूछ लिया।
साधु : बच्चों , इस्वर आपकी सोच और अच्छाई बनाये रखें , आप आगे बड़े होकर संसार में अच्छे कार्य करते रहें. बच्चों !… इस बाजार में बिकते हुये तोते और चिड़िया नीले आकाश , वन , कानन , में विचरण करने वाले पक्षियों को कैद में देखकर मन भर आया !
मयूख और रंजन : ऐसा है बाबाजी ! ऐसा क्यों ? अब तो कोई वन्य प्राणी को कैद नहीं कर सकता !
रंजन : वन्य प्राणी संरक्षण अधिनियम है हमारे देश में ….
साधु : किन्तु वहां उस कोने में , वहां (बाजार के एक कोने को इंगित करते हुये ) पक्षी बेचे जा रहे हैं…
दृश्य -दो
स्थान : पक्षी बाजार
समय : दोपहर बाद
(एक दुकानदार तीन चार पिंजरे लटकाये है , उसमे पक्षी बंद हैं ।मयूख रंजन और साधु पंहुचते हैं । दुकानदार का नाम लोमा है ।)
लोमा : (गाना गा रहा है और पक्षी बेच रहा है ।)
लो चिड़िया प्यारी प्यारी
हरे हरे ये प्यारे तोते ,
चिड़िया प्यारी- प्यारी !
चिड़ियों से आती हैं खुशियां ,
चिड़ियों से है भरी हुयी
ये दुकान हमारी !
लो चिड़िया प्यारी प्यारी !
(बच्चों को सम्बोधित करते हुये ) अरे बच्चे , कौन से चिड़िया लेगा ! आ आ बच्चे ,देख ! ये हैं ये तोते ये लव बर्ड्स ये कनारी , ये सन कोनोर ये बुजरुगा , और ये देखो …
मयूख : बस …!
लोमा : रुपया लाया है ? (साधु की तरफ देख कर ,मुस्कराते हुये ) देखा बाबाजी , अभी आप क्या क्या बोलकर चले गये थे ! देखा , आ गये हमारे ग्राहक !
बाबा : दुकानदार , हमें क्रोध मत दिलाओ !मुझे क्रोध नहीं आता , लेकिन दुकानदार तुम्हे लज्जा आनी चाहिये !
कितने पिंजरे बदल चुका है ,
नील गगन का पक्षी है यह ,
किसने कारा में इसको डाला ,
यह मुक्त पवन में उड़ने वाला !
लोमा : (बेशर्मी से हँसते हुये ) अरे बाबाजी , कहे को इतना परेशान हैं आप ? यह हमारा धंधा है , पुश्तैनी धंधा ! न जाने कितनी पीढ़ियों से हम चिड़िया पकड़ते , बेचते आये हैं !
मयूख : अच्छा यह बात है !
साधु : (शांत भाव से गीत गाते हुये )
पिंजरा -पिंजरा तुम भी बदलो ,
तो बोलो ,कैसा सोचोगे ?
बोलो बंधन में रखना क्या .
कैसा लगता है , सोचो तो !
रंजन : दुकानदार जी , गलत परम्पराओं को समय के साथ बदल देना अच्छी आदत है।
लोमा : बच्चो , सामान खरीदो , चलते बनो ! (धीमे से ) आज कल थोड़ा डर है पुलिस का ! (स्वयं से , झुंझुलाहट के साथ ) ऐसे बाबाजी जैसे लोग रहे होंगे ,जिन्होंने कोई कानून बनवा दिया है …हम तो …(सर खुजाते हुये )अब चिड़िया पकड़ कर बेच भी नहीं पाते , ख़ुशी ख़ुशी !
मयूख : आपका नाम क्या है , दुकानदार जी ?
लोमा : क्यों पुलिस को देना है ,क्या ?
रंजन : अरे नहीं !
लोमा : अरे डर भी है किसको ! (गर्व से सीना तानते हुये ) लोमा ! लोमा कहते हैं मुझे दुनियावाले ! और हाँ , लोमा के डर से पूरा जंगल काँपता है ! थर्राती हैं पक्षी , मेरे नाम से , चिड़िया पकड़ लेता हूँ तुरंत , उड़ती चिड़िया ! हा – हा- हा (जोर से हँसता है, बच्चो को सम्बोधित करते हुये , आवाज़ बदलते हुये …) डर गये क्या बच्चों ?मैं तो मज़ाक कर रहा था !
साधु : कैसे दुकानदार हो ,लोमा तुम ! पक्षियों को बेचते हुये तुम्हे दर्द नहीं होता , पीड़ा नहीं होती मन में !
रंजन : लोमा जी , कभी आपने सोचा है , अगर कोई आपको कैद कर ले पिंजरे में !
लोमा : हा – हा- हा (जोर से हँसता है) वो कैसे ? अच्छा अपना काम करिये आप लोग , हमे अपना काम करने दीजिए ! आप लोग कुछ लेने नहीं आये हैं ! आपलोग खरीदार हैं ही नहीं ! सिर्फ बातें बनाने आये हैं !
मयूख : नहीं- नहीं , हम लोग आप को बनाने आये हैं !
लोमा : (हँसते हुये ) बच्चे तुम्हारी उम्र से पांच गुना ज्यादा होंगे हम !
रंजन : (मुस्कराते हुये )और बुद्धि में ?
लोमा : (गुस्से में आता हुआ ) चलो निकलो यहाँ से ,हमारे काम में दखल न दो !(बाजार में भगदड़ , कोलाहल सुनाई देता है। दुकानदार दोमा दौड़ते हुये आता है ।)
दोमा : लोमा चाचा , लोमा चाचा , बंद करो दूकान , उधर कुछ बदमाश पकडे गये हैं , पुलिस का छापा पड़ा है ।)
लोमा : ( लापरवाही से ) हमें क्या , हम तो ….
(तब तक पुलिस के सिपाही , अपराधियों को हथकड़ी में बांधे ले जाते हुये दिखाई देते हैं । अपराधियों के दोनों हाथ बंधे हुये हैं। मयूख , रंजन और साधु भी अपने रास्ते पर जाने के लिये निकलते हैं । लोमा खड़ा है , सोच में मग्न )
साधु : अच्छा भाई चलते हैं लोमा , हमारी बात को ध्यान से सोचना !
लोमा : (जैसे नींद से जागते हुये …साधु के चरणों में झुकता हुआ …मयूख और रंजन भी इसे देख कर रुक जाते हैं।)
लोमा : बच्चों , जरा रुक कर …
मयूख (मुस्कराते हुये , रंजन से ) क्या हुआ , रंजन , लोमा को !
रंजन : अरे हाँ …
लोमा : आपकी बातों में जादू है बाबाजी , जादू ! मेरे मन में कुछ हो रहा है …कुछ बड़ा बदलाव …बदल रहा है मेरा मन बाबाजी ! बच्चो , आओ ! आओ बच्चो !
साधु : (प्रसन्नता से ) बच्चा लोमा , आपको कुछ अहसास हो गया क्या ?
लोमा : मुझे अहसास हो गया है , इस पिंजरे का ! मैं बदलना चाहता हूँ ….ये प्यारे मुक्त गगन के पक्षी ..मैंने इनको कैद कर लिया है …नहीं -नहीं …
साधु : बच्चा , कभी देर नहीं होती अच्छे कार्य के लिये ! अच्छी बातें मन में आयें तो देर नहीं करनी चाहिये !
रंजन : (साधु को सम्बोधित करते हुये ) महात्मा जी , शायद लोमा पर आपकी बात का असर हो गया है …
मयूख : लोमा जी , सरल व्यक्ति हैं आप ! अच्छे व्यक्ति हैं आप दिल से !
लोमा : आपलोगों की बात का असर हुआ है हम पर , चलो आपके साथ ही चलकर इन्हे जंगल में छोड़ कर आते हैं …मूसाबाग के जंगल में (अपने सहायक को आवाज़ देते हुये ) अरे खूबा , जरा रिक्शा बुलाकर ला !
(पार्श्व में गीत बजता है।)
नीले नभ में उड़ने वाले
प्यारे प्यारे जीव धरा पर
इनको क्यों बंधन में रखें ,
तोड़ो सारे पिंजरे जो हों !
किसने है यह कड़ी बनायीं ,
किसने इनको रखा कैदकर !
जीवन की खुशहाली चिड़िया ,
धरती की हरियाली इनकी ,
नील गगन की सीमा इनकी ।
नीले नभ में उड़ने वाले ,
प्यारे प्यारे जीव धरा पर !
(धीरे धीरे परदा गिरता है । पीछे पक्षियों का कलरव सुनाई देता है। हंसी और प्रसन्नता के स्वर )
(समाप्त )
(नोट : यह नाटक प्रथम बार वर्ष 2018 में लिखा गया है ।)
(प्रो रवीन्द्र प्रताप सिंह लखनऊ विश्वविद्यालय में अंग्रेजी के प्रोफेसर हैं। वे अंग्रेजी और हिंदी लेखन में समान रूप से सक्रिय हैं । फ़्ली मार्केट एंड अदर प्लेज़ (2014), इकोलॉग(2014) , व्हेन ब्रांचो फ्लाईज़ (2014), शेक्सपियर की सात रातें (2015) , अंतर्द्वंद (2016), चौदह फरवरी (2019),चैन कहाँ अब नैन हमारे (2018)उनके प्रसिद्ध नाटक हैं। बंजारन द म्यूज(2008) , क्लाउड मून एंड अ लिटल गर्ल (2017),पथिक और प्रवाह (2016) , नीली आँखों वाली लड़की (2017), एडवेंचर्स ऑव फनी एंड बना (2018),द वर्ल्ड ऑव मावी(2020), टू वायलेट फ्लावर्स(2020) प्रोजेक्ट पेनल्टीमेट (2021) उनके काव्य का प्रतिनिधित्व करते हैं। उन्होंने विभिन्न मीडिया माध्यमों के लिये सैकड़ों नाटक , कवितायेँ , समीक्षा एवं लेख लिखे हैं। लगभग दो दर्जन संकलनों में भी उनकी कवितायेँ प्रकाशित हुयी हैं। उनके लेखन एवं शिक्षण हेतु उन्हें स्वामी विवेकानंद यूथ अवार्ड लाइफ टाइम अचीवमेंट , शिक्षक श्री सम्मान ,मोहन राकेश पुरस्कार, भारतेन्दु हरिश्चंद्र पुरस्कार एस एम सिन्हा स्मृति अवार्ड जैसे सत्रह पुरस्कार प्राप्त हैं ।)
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