बाल नाटक-पॉलीथीन को न, हरियाली को हाँ-प्रो रवीन्द्र प्रताप सिंह

बाल नाटक (बाल साहित्य)

पॉलीथीन को न, हरियाली को हाँ

-प्रो रवीन्द्र प्रताप सिंह

बाल नाटक-पॉलीथीन को न, हरियाली को हाँ

बाल नाटक-पॉलीथीन को न, हरियाली को हाँ-प्रो रवीन्द्र प्रताप सिंह

पात्र

मिशन : मड स्किपर मछली
मिलक : मेढक का छोटा बच्चा
पलक : एक छोटी लड़की
नैन :मेढक
बैन :मेढक
चैन : मेढक

दृश्य एक :

समय- दोपहर बाद लगभग दो बजे
स्थान : शहर के बाहरी भाग में एक छोटा सा तालाब

(तालाब में पानी कम है। शहर की कॉलोनी से एक रास्ता इधर तालाब की तरफ आता है। तालाब के किनारों पर पॉलिथीन के पैक दिखाई दे रहे हैं। इनमे कूड़ा भरा है। कुछ थर्माकोल और कार्टोन पैक भी तालाब के किनारे फेंके पड़े हैं। अचानक मिशन की चीख। मिशन पूरी ताकत से पूरी आवाज़ में चिल्लाती है। मिशन छोटी मडस्किपर मछली है। उसकी आवाज़ ज्यादा दूर तक नहीं जाती। पास में ही मेढकों की कोई पार्टी हो रही है। उसमे मिलक मेढक गाना गा रहा है।)

मिलक : (गीत गाता हुआ )
बरसेंगे अब बादल ,
होगी धरती तर- बतर।
आयेगा पानी बहकर,
आएगा पानी बहकर।
गरम बड़ा है मौसम देखो ,
फिर भी अपना गांव सुहाना ,
तालाब हमारा कितना प्यारा
हम जीवों का यही सहारा।
नैन : बीत रही है रात हमारी
सुबह सवेरा होने वाला

बैन : (जोर जोर से हँसते हुए ) कैसी बातें कर रहा है नैन ! रात है कि दिन !

चैन : हा -हा ये रही बात ! इसको देखो ये बैन क्या बोलता रहता है। वैसे इसको देखना भी क्या , स्कूल तो कभी गया नहीं ….रात का मतलब हमारी परेशानियां। परेशानियां ख़त्म होने वाली हैं बच्चे ! हमारी प्यारी बरसात आने वाली है।

मिलक : हाँ -हाँ बारिश होगी । हम लोग पत्तियों की नाव बनाकर तैराते हैं न ! हम लोग इस बार दूर दूर तक चलेंगे। नदी तक होकर आएंगे।
(फिर मिशन की चीख। मिशन लगातार चिल्ला रही है। सभी मेढको का ध्यान उसकी तरफ जाता है। पास में छोटी सी पलक कुछ पत्तियां तोड़ रही है। वह भी चीख की तरफ बढ़ती है लेकिन डर से उसके पेअर ठिठक जाते हैं। मेढक जल्दी जल्दी उसके पास पहुँचते हैं। )

मिलक : अरे अरे ये कौन है ? कोई मछली जैसी।

चैन : अरे हाँ , यह बिना मछली के यहाँ आयी थी कल। शाम को मैंने देखा था इसे। गोमती नदी से आयी है । उसकी किसी दोस्त की बेटी है यह… अरे क्या हुआ इसे ! अरे हाँ , मिशन नाम है इसका ,इसने कल बताया था मुझे।

(मिशन की सांसे धीमी चल रहीं हैं। अचानक पलक आ जाती है। )
पलक : अरे मेढकों , तुम लोग कैसे हो , इसे साँस लेने में परेशानी हो रही है। देख नहीं रहे हो , इसका शरीर ऐंठा जा रहा है।

मिलक : अरे हाँ , परेशां है यह बहुत !

बैन : तो यह कर क्या रही है यहाँ ?

चैन : (खीझता हुआ ) तुम्हारा सर चाट रही है !

नैन : भाईयों इसकी जान बचाओ………।

(पलक एक बड़े से पत्ते पर बैठा कर मिलक को पानी में डाल देती है। सभी पंक्तिबद्ध होकर उसे देखने लगते हैं। मिशन जल में शांत पड़ी है। अचानक बैन हाथ जोड़कर धीरे धीरे कोई गीत गाने लगता है। )
चैन : क्या गा रहा है बैन , थोड़ा तेज़ बोल हम लोग भी तो सुनें !

(बैन की आवाज़ थोड़ा तेज़ होती है। )
बैन : (गीत )
जल राशि अनंत
जल देवी
जल देवी
जल राशि !
छोटी मछली तड़फ रही है
कोई विपदाखड़ी हुयी है ,
जल राशि ,
जल देवी ,
इसका कल्याण करो !

(सभी शांत हैं। शांत भाव से सुन रहें हैं। पलक भी शायद भगवन से प्रार्थना कर रही है की मिशन जल्दी स्वस्थ हो जाये। मिशन अचानक तैरने लगती है। स्वस्थ हो गयी है। पहले जैसी। सब लोग तालियां बजाने लगते हैं , सभी खुश हैं। )
मिशन : धन्यवाद दोस्तों ! आपलोगों ने मेरी जान बचायी।

सभी की एक साथ आवाज़ : अरे इसमें क्या , आप हमारी दोस्त हैं।

चैन : वैसे हुआ क्या था तुम्हे ?

मिशन : मैं मड स्किपर हूँ , थोड़ थोड़ा तुम्हारे जैसी -मेढक जैसी ! (हँसते हुए ) हम थोड़ी देर बीस मिनट पानी के बहार भी रह सकते हैं। कल आयी थी यहाँ अपनी नदी से। सोचा थोड़ा बाहर मिट्टी में लोट आऊं। कीचड तो था ही वो भी बहुत अच्छा।

बैन : तो क्या हुआ ?

नैन : सुनो तो पूरी बात , बीच में क्यों बोल रहे हो बैन !

बैन : सॉरी !(मुस्कराता है ।)

मिशन : कीचड में पॉलिथीन फँसी थी , मैं उसी में फंस गयी। मेरा दम घुटने लगा। हम लोग पानी के बाहर यानी बिना पानी के , कीचड में बीस पच्चीस मिनट रह लेते हैं। हाँ बिना पानी के!

पलक : तो ये बात है !

नैन : पलक पॉलिथीन आप लोग ही डालते हो हमारे तालाब में !
(पलक चुप है। )

मिलक : कोई बात नहीं पलक ! उदास मत हो। यहाँ आप का मतलब आप जैसे कुछ बच्चे। आप तो बिलकुल ही नहीं डालती हैं। हम सब लोग इसे जानते हैं।

पलक : आप लोग सही हो। पॉलिथीन को न ! अब पॉलिथीन बिलकुल नहीं।

मिशन : जरूर !पॉलिथीन को न ! हमने अपने स्कूल में एक कहानी भी सुनाई थी – हरा भरा हो जीवन अपना , पॉलिथीन को न कहके।
मिशन : तो क्या , अब सब जोर से बोलो – पॉलिथीन को न , हरियाली को हाँ !
(सब जोर जोर से चिल्लाते हैं। सभी खुश हैं )

समाप्त

प्रो रवीन्द्र प्रताप सिंह

(प्रो रवीन्द्र प्रताप सिंह लखनऊ विश्वविद्यालय में अंग्रेजी के प्रोफेसर हैं। वे अंग्रेजी और हिंदी लेखन में समान रूप से सक्रिय हैं । फ़्ली मार्किट एंड अदर प्लेज़ (2014), इकोलॉग(2014) , व्हेन ब्रांचो फ्लाईज़ (2014), शेक्सपियर की सात रातें(2015) , अंतर्द्वंद (2016), चौदह फरवरी(2019) , चैन कहाँ अब नैन हमारे (2018)उनके प्रसिद्ध नाटक हंी , बंजारन द म्यूज(2008) , क्लाउड मून एंड अ लिटल गर्ल (2017) ,पथिक और प्रवाह(2016) , नीली आँखों वाली लड़की (2017), एडवेंचर्स ऑफ़ फनी एंड बना (2018),द वर्ल्ड ऑव मावी(2020), टू वायलेट फ्लावर्स(2020) उनके काव्य का प्रतिनिधित्व करते हैं। उनकी हिंदी अंग्रेजी कवितायेँ लगभग बीस साझा संकलनों में भी संग्रहीत हैं । लेखन एवं शिक्षण हेतु उन्हें स्वामी विवेकानंद यूथ अवार्ड लाइफ टाइम अचीवमेंट , शिक्षक श्री सम्मान ,मोहन राकेश पुरस्कार, भारतेन्दु हरिश्चंद्र पुरस्कार एस एम सिन्हा स्मृति अवार्ड जैसे सोलह पुरस्कार प्राप्त हैं । )

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