बाल साहित्य-बाल नाटक: डाबे और सिन्ना-प्रो रवीन्द्र प्रताप सिंह

बाल साहित्य-बाल नाटक: डाबे और सिन्ना

-प्रो रवीन्द्र प्रताप सिंह

बाल साहित्य-बाल नाटक: डाबे और सिन्ना-प्रो रवीन्द्र प्रताप सिंह
बाल साहित्य-बाल नाटक: डाबे और सिन्ना-प्रो रवीन्द्र प्रताप सिंह

पात्र

रोशन : जंगली कुत्ता
डाबे : तीतर
सिन्ना : शिकारी कुत्ता
डॉक्टर बिल्लू : जंगल का डॉक्टर
शैली : लोमड़ी
सन्देश : लकड़बग्घा
मिली : चिड़िया

दृश्य-एक

सूत्रधार – रोशन : लखनऊ की पश्चिमी सीमा के पास ,1857 के स्वतंत्रता संग्राम की कई निशानियां, कई खंडहर , ऐतिहासिक स्थान और स्मारक लिए एक स्थान है मूसाबाग। आज कई स्मारक और पार्क बन गए हैं। जंगल ने नया रूप ले लिया है। थोड़ी दूर पर गोमती नदी बहती है। यह शहर के बहार का भाग है। गोमती लगभग यहीं से शहर में प्रवेश करती है , यानी लखनऊ की शहरी बस्ती यहीं से शुरू होती है। नदी में साफ़ पानी रहता है। नदी के किनारे किनारे जंगल है। मेरा नाम रोशन है। मई जंगल में भी रहता हों और शहर भी हो आता हूँ। आपने देखा होगा , कभी कभी मेरे दोस्त भौंकते रहते हैं। मेरे प्यारे नन्हे दोस्तों , हम लोग हमेशा भौंक कर लड़ते नहीं हैं , अभिवादन करते हैं। हाँ , क्या कहते हो आप लोग -ग्रीटिंग्स , नमस्ते , अभिवादन ! हम लोग मिलकर एक दूसरे को ग्रीट करते हैं।
(रोशन जोर जोर से भौंकता है । फिर हँसता है। )

हाँ तो मैं आपको क्या बता रहा हूँ ? अपने इस जंगल के बारे में , मेरे प्यारे बच्चो। कभी आओ इधर। आपको घुमाएंगे इस छोटे से प्यारे से जंगल में। जंगल के एक कोने में कुछ जंगली फल भी हैं , बेरी भी। फूल भी … हाँ -हाँ , वह भी चखना दोस्तों ! नदियों के किनारे प्यारी प्यारी मछलियां , हाँ बिलकुल साफ़ पानी है इधर। आपके शहर की गन्दगी से थोड़ा पहले ही है न ये वाला भाग। दोस्तों आपके यहाँ पहुंचते पहुंचते नदी प्रदूषित हो चुकी होती है। गंदे नाले गिरते हैं। सीवर का गन्दा पानी भी। आपके स्कूल में वॉटर पललुशन पढ़ाया गया होगा , हाँ देखना , आप लोग तो नहीं फैलाते हो गन्दगी , पानी में ! नहीं नहीं बिलकुल नहीं , बिलकुल न करना।

(अचानक जानवरों की भगदड़ की आवाज। दो लोमड़ियाँ भगति हुयी दिखाई देती हैं। पीछे से जानवरों की भागदौड़ , चीख पुकार और कोलाहल सुनाई देता है। रोशन अचानक रुक जाता है , और आवाज़ लगाता है। )

रोशन : अरे कौन है वहां ! कौन है वहां ! कौन परेशान कर रहा है प्यारे – प्यारे जानवरों को ! हमारे जंगल के दोस्तों को !
(अचानक दौड़ती हुयी शैली आती है। )

शैली : अरे रोशन तुम्हे मालूम है , शिकारी आये हैं , कई सारे , अपने शिकारी कुत्तों के साथ।

रोशन : (गुस्से में ) शिकारी आये हैं ! क्यों , आखिर ! क्या वो भूल गए हमने उन्हें मज़ा चखा दिया था , पिछली बार !

शैली : भूल गए होंगे… अरे ये डॉक्टर बिल्लू किधर दौड़ते हुए चले जा रहे हैं ! जरा उन्हें आवाज़ तो लगाइये , किधर जा रहे है वह , कहाँ जा रहे हैं ! भई डॉक्टर बिल्लू ! डॉक्टर बिल्लू !

रोशन :(चीखते हुए) डॉक्टर बिल्लू ! डॉक्टर बिल्लू ! किधर जा रहे हो दोस्त , देखो इधर मैं रोशन , रोशन !

डॉक्टरबिल्लू : अरे हाँ सुन रहा हूँ ! रोशन क्यों गाला फाड़ रहे हो ? चीखते क्यों हो ?

रोशन : जरा रुकिये !

डॉक्टर बिल्लू : क्या करना है तुम्हे ? तुम्हे क्या हुआ ?
(शैली और रोशन दौर कर डॉक्टर बिल्लू के पास पहुंच जाते हैं। वे दोनों डॉक्टर बिल्लू से कुछ पूछना चाहते हैं। )

शैली : डॉक्टर बिल्लू ..

डॉक्टर बिल्लू : हाँ हाँ। तुम लोग पूछना चाहते हो की हम कहाँ दौड़े जा रहे हैं , किधर जा रहे हैं ! (डॉक्टर बिल्लू मुस्कराते हैं। )

रोशन : कैसे मालूम हुयी ,आपको हमारी बात डॉक्टर !

डॉक्टर बिल्लू : डॉक्टर हैं हम , मन की बात भी जान लेते हैं। बस मेरे साथ चलते चलो , रुकने का समय नहीं है मेरे पास। जानते हो बेचारा सिन्ना घायल हो गया है। … समय नहीं है हमारे पास।… मैं चला।
(डॉक्टर बिल्लू के पीछे पीछे रोशन और शैली भी तेज गति से चल पड़ते हैं। )

दृश्य : दो


(जंगल का दूसरा भाग। घास पर तीतर डाबे घायल पड़ा है। उससे थोड़ी दूर पर शिकारी कुत्ता सिन्ना घायल पड़ा है। पास में लकड़बग्घा सन्देश खड़ा है , सिन्ना की देखभाल करता हुआ। डॉक्टर बिल्लू , रोशन और शैली पहुंचते हैं। )

सन्देश : नमस्ते डॉक्टर बिल्लू ! धन्यवाद आप आ गये !

डॉक्टर बिल्लू : क्या हुआ इन दोनों को ?

शैली : ओह , तो ये बात है। दुबारा यह फिर हुआ !

सन्देश : अरे क्या बतायें।। कहिये तो मैं पहुंच गया मौके पर और शिकारी को मार भगाया , नहीं आप अपना डाबे हम लोगों से दूर चला जाता। पकड़ा जाता।
(सिन्ना के कराहने की आवाज़ )

सिन्ना : माफ़ करना मुझे दोस्तों , मुझे डर लग रहा है। लेकिन आपका यह दोस्त है बड़ा बहादुर !
(अचानक चिड़िया मिली आती है। )

सन्देश :मिली , बतायेगी , क्या हुआ ?

मिली : क्यों नहीं, क्यों नहीं ! भई डाबे बहुत बहादुर हैं। इस सिन्ने ने उन्हें दौड़ाया । वह भागे नहीं , इसकी आँखों में ऑंखें डाल कर खड़े हो गये। उसने झपटने की कोशिश की तो इन्होने उड़ उड़ कर इतनी चोंचे मारी उसके सिर पर की उसका हाल खुद ही देख लो।
(सिन्ना फिर कराहता है। )

सिन्ना : बहुत बहादुर है तुम्हारा दोस्त !
(सभी सिन्ना की बात को अनसुनी करते हैं। )

रोशन : तीतरों की यह विशेषता है की जब दुश्मन उन्हें दौड़ाते हैं तो वे डरते नहीं हैं। बिलकुल भी नहीं। दुश्मन की आँखों में आंख डाल कर मुकाबला करना उनकी विशेषता होती है।

मिली : बिलकुल सही कहा ,आपने। वही भाई डाबे ने किया।
(डॉक्टर बिल्लू कुछ इंजेक्शन लगते हैं। थोड़ी देर में डाबे को होश आ जाता है। )

सिन्ना : मुझे माफ़ कर दो डाबे और मेरे जंगली दोस्तों ! मैंने अपने पशु पक्षी समुदाय को ही हानि पहुचायी है। मुझे माफ़ कर दो।
(सभी के चेहरे पर मुस्कान है। )

सभी समवेत स्वर में : ठीक है , डाबे ही माफ़ करेगें !
(डाबे मुस्कराता है। पीछे से गीत सुनाई देता है।)

अपनी धरती अपना जंगल ,
अपनी हवा और हरियाली।
इसे बचायें , इसे संजोयें ,
इसमें ही रहती खुशहाली।
अपनी धरी अपना जंगल !

–समाप्त —–

-प्रो रवीन्द्र प्रताप सिंह


(प्रो रवीन्द्र प्रताप सिंह लखनऊ विश्वविद्यालय में अंग्रेजी के प्रोफेसर हैं। वे अंग्रेजी और हिंदी लेखन में समान रूप से सक्रिय हैं । फ़्ली मार्किट एंड अदर प्लेज़ (2014), इकोलॉग(2014) , व्हेन ब्रांचो फ्लाईज़ (2014), शेक्सपियर की सात रातें(2015) , अंतर्द्वंद (2016), चौदह फरवरी(2019) , चैन कहाँ अब नैन हमारे (2018)उनके प्रसिद्ध नाटक हैं । बंजारन द म्यूज(2008) , क्लाउड मून एंड अ लिटल गर्ल (2017) ,पथिक और प्रवाह(2016) , नीली आँखों वाली लड़की (2017), एडवेंचर्स ऑफ़ फनी एंड बना (2018),द वर्ल्ड ऑव मावी(2020), टू वायलेट फ्लावर्स(2020) उनके काव्य का प्रतिनिधित्व करते हैं। उन्होंने विभिन्न मीडिया माध्यमों के लिये सैकड़ों नाटक , कवितायेँ , समीक्षा एवं लेख लिखे हैं। लगभग दो दर्जन संकलनों में भी उनकी कवितायेँ प्रकाशित हुयी हैं। उनके लेखन एवं शिक्षण हेतु उन्हें स्वामी विवेकानंद यूथ अवार्ड लाइफ टाइम अचीवमेंट , शिक्षक श्री सम्मान ,मोहन राकेश पुरस्कार, भारतेन्दु हरिश्चंद्र पुरस्कार एस एम सिन्हा स्मृति अवार्ड जैसे सोलह पुरस्कार प्राप्त हैं ।)

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