बलराम ‘बल्लू-बल’ की गीतिकाएँ

बलराम ‘बल्लू-बल’ की गीतिकाएँ

बलराम 'बल्लू-बल' की गीतिकाएँ
बलराम ‘बल्लू-बल’ की गीतिकाएँ

प्रार्थना

हे प्रभो!अब हाथ दोनों जोड़ कर विनती करूँ,
साँस थामे आपके बस नाम की गिनती करूँ।
आपके परताप से अब पाप मन सीता करूँ,
लेखनी के शब्द सारे ज्ञान से गीता करूँ।।

भावना मैली न हो पाए प्रभु ये जान लो,
आप मेरे नाथ अपना दास मुझको मान लो।
चल सकूँ नित सत्य पथ पर मैं तुम्हारे वास्ते,
भारती के मान में झुक जायें सारे रास्ते।।

आज आकर देख ले के देश का क्या हाल है,
आदमी के कारणों से आदमी बदहाल है।
फूल सा जीवन बना पग धूल तेरा ही धरूँ,
हे प्रभो!अब हाथ दोनों जोड़कर विनती करूँ।।

आपदा

हम तुम्हारे लाश के माँ,पास भी ना जा सके।
देखते ही रह गए बस,आँसुयें ही ढा सके।।
जब हमें चिंघाड़ता है,पाक दामन की सदा।
सोचता हूँ सोचना था,क्या करेगी आपदा।।

टेढ़ी चाल

वो नकाबों में छुपी है,चाल टेढ़ी चल रही।
हर मना के साँस चलकर,दाल मूंगे दल रही।।
हाथ में वो हाथ थामे, संग संग विचर रही।
गीत हो जैसे गिरा में,राग ऐसे भर रही।।

आस का पंछी

आँमले की डार बैठी, एक पंछी गा रही,
साजना का प्रेम पाने, टेर- टेर बुला रही।
चोंच तिनके नोक थामें,बार- बार सता रही,
चल बनायें आशियाना, बारिशें भी आ रही।।

थाम ले अब डोर मन की,प्रीत मेरी मान ले,
कामना को दे बुझा रे,मीत अब ना जान ले।
मैं तुम्हारी ही सहेली , मैं बनूँ अर्धांगिनी,
साधना तेरी करूँ मैं साजना की स्वामिनी।।

साजना के नेह-मन को,प्यार से सहला रही,
ज़िंदगी से पल चुराने,ज़िंदगी समझा रही।
रात का वो मान रखने,आशियाँ ले जा रही,
आँमले की डार बैठी,एक पंछी गा रही।।

याचना

हे प्रभो ! मेरे विधाता, आपदा को टार दो,
ढूँढ़ता जो फिर रहा मैं,फिर वही संसार दो।
कह रहा हर आदमी पर,आदमी ने क्या किया,
आपने ही पाँव ऊपर,खुद कुल्हाड़ी धर दिया।

कर रहे विज्ञान खातिर,रोज आविष्कार में,
ला खड़ा करकेकिया अब,ज़िन्दगी मझधार में।
याचना तेरी करूँ तलवार ले उस पर चला,
आपके इक वार से क्या,बच सका कोई बला।

मौत की सौदागिरी

दहशतों में पल रहा ना,कौन सा वह देश है,
हर जहाँ में लोग देखो, रोग- रोधी वेश है।
हाथ था जीवन हमारा,हाथ हीअब क्लेश है,
मौत की सौदागिरी में,मौत ही अब शेष है।।

भींच करके लीजिए हर,साँस ढीली पड़ रही,
बाल, बूढ़े ,नौजवाँ हर,फेस पीली पड़ रही।
टकटकी में रात बीती,दिन सुभीता भी नहीं,
सीखना हो काल से तो काल रीता ही नहीं।।

चमगादड़ी की देह

वर्तमानी खेल सारा, मानवी करतूत है,
मानवों की नेक काया, दानवों का दूत है।
कौन सी माटी लगी चमगादड़ी की देह में,
कायनात रौंद डाली चायनाई लेह में।।
(लेह-चटनी)

धर्मयोगी ,कर्मभोगी ,सब यहॉं मजबूर हैं,
बाल,बूढ़े,नौजवाँ सब,मौत से ना दूर हैं।
दीन हो या हो धनी सब दायरे में खो रहे,
राजनेता लात ताने आशियाने सो रहे।।

राम को भूला वही तो आपदे में पल रहा,
छोड़ सीधी चाल धारी हासिये पे चल रहा।
राम का जो नाम ले वो हौसलों से जी सके,
फ़ासलों को दूरकरके,हरदुखों को पी सके।।

बेकसी का हाल पाला,हर गली हर गाँव ने,
आपणी हालत बिगाड़ी,आदमी के पाँव ने।
काट डाला आदमी को आदमी ने ही पिया,
सोचता है ईश ‘बल’ ये पूत कैसा जन दिया।।
(आपण-बाज़ार,अपनी)

-बलराम सिंह ठाकुर

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4 thoughts on “बलराम ‘बल्लू-बल’ की गीतिकाएँ

  1. आदरणीय,संपादक महोदय जी को बहुत बहुत धन्यवाद।🙏🙏🙏🙏🙏कविताओं को स्थान देने के लिए।

  2. आदरणीय,संपादक महोदय जी को बहुत बहुत धन्यवाद।🙏🙏🙏🙏🙏कविताओं को स्थान देने के लिए।मेरी कविताएँ लिखने एवम पढ़ने में बहुत रूचि है।

    1. सादर अभिनंदन बलरामजी आपके रूचि को पल्‍लतवित करने में हम सहायक बनने का प्रयास करेंगे अपनी रचनाएं हमें आप भेजते रहिए

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