बात हे अभिमान के…छत्तीसगढ़ी स्वाभिमान के
-अजय अमृतांशु
बात हे अभिमान के…छत्तीसगढ़ी स्वाभिमान के
हर बछर 21 फरवरी के दिन ला विश्व महतारी भाखा दिवस के रूप म मनाये जाथे। येकर पाछू कारण महतारी भाखा ल विलुप्ति ले बचाना हे। इतिहास गवाह हे प्रयोग म नइ लाय के कारण हजारों भाखा/बोली विलुप्त होगे। यदि हम अपन महतारी भाखा छत्तीसगढ़ी ला नइ बउरबों त एक दिन येहू विलुप्त हो जाही। छत्तीसगढ़ी के बढ़वार बर बड़े बड़े बात करे जाथे। छत्तीसगढ़ी ला आठवीं अनुसूची म शामिल करे के बात पूर्णतः छलावा आय। इँहा हम अपने राज म छत्तीसगढ़ी ल राज काज के भाखा नइ बना पाये हन अउ आठवीं अनुसूची के बात करथन। राजनेता मन भटकाय बर आम छत्तीसगढ़िया ला छत्तीसगढ़ी ला आठवीं अनुसूची म शामिल करे के लाली पॉप देखाथे। ये केवल भरमाये के अलावा कुछु नोहय। पहिली अपने राज म राज काज के भाखा बना लव वोकर बाद आठवीं अनुसूची के बात करिहौ।
भाखा कोनो भी राज के अस्मिता के पहचान होथे। यदि दू आदमी पंजाबी म गोठियावत देखहू आप समझ जाहू कि येमन पंजाब प्रांत के आय। अउ कुछु परिचय दे के जरूरते नइ हे। हमर राज म दूसर प्रदेश ले आय मनखे मन अपन अपन भाखा म गुठियाथे फेर हमन अपन महतारी भाखा छत्तीसगढ़ी ल बउरे म कतराथन/लजाथन ये अनुचित हे। लजाय म काम नइ बनय ।
हमर भाखा छत्तीसगढ़ी आखिर कब बनही राज काज के भाखा..? येहू ज्वलंत प्रश्न आय। राज काज जा भाखा जब बनही तब बनही फेर आम छत्तीसगढ़िया मन ला अपन जिम्मेदारी निभाये ला परही। आज छत्तीसगढ़ी ल कोन जिंदा राखे हवय ये सवाल के सीधा सीधा उत्तर हे गाँव के किसान, मजदूर, शहर म झाड़ू पोंछा,बर्तन भाड़ा करइया, ट्रेन म फल्लीदाना बेचइया, रिक्शावाला, सड़क म झाडू लगाने वाला,देहाड़ी कुली ,रेजा इही मन छत्तीसगढ़ी ला बचा के राखे हवय। काबर जेन थोरिक पढ़ लिख गे अउ बाबू बन गे त ओकर पावर कलेक्टर ले ओ पार हो जथे, वो अपन महतारी भाखा ल न तो खुद बोलय अउ न लइका मन ला बोलन दँय। तब अइसना मा हमर भाखा कतका दिन जिंदा रइही..? खाली साहित्य के प्रकाशन करके खरही गाँजे ले भाखा ल जिंदा नइ रखे जा सकय।
छत्तीसगढ़ी अब राजभाखा बन गे हवय। राजभाखा बने के मतलब ये होथे के हम आफिस म दरखास, छुट्टी के आवेदन, समस्या के निराकरण खातिर आवेदन ये सब छत्तीसगढ़ी भाखा म लिख के दे सकत हन। अधिकारी ल येला स्वीकार करे ल परही वो नहीं नइ कहे सकय। फेर मोला ये बताव हमर में से कतका झन छत्तीसगढ़ी म आवेदन लिखे हन ..?? येकर जवाब आही निरंक। एक डहर हम छत्तीसगढ़ी ल राज काज के भाखा बनाये के बात करथन दूसर डहर हमीं मन शासकीय काम काज म छत्तीसगढ़ी के प्रयोग नइ करन अउ दोष सरकार ल देथन तब अइसना म कइसे बनही..?
सरकार के भी अपन जिम्मेदारी हे फेर सरकार ल अपन बात मनवाये खातिर पहल तो हमीं मन ल करे ला परही। खाली सरकार ल दोष दे म बात नइ बनय। दूसर डहर संवैधानिक पद म बइठे नेता मंत्री विधायक अउ सांसद मन काबर छत्तीसगढ़ी के प्रयोग नइ करय ? विधानसभा के कार्यवाही के बेरा म प्रश्नोत्तरी ल छत्तीसगढ़ी म काबर नइ करँय ? केवल वोट माँगे के बेरा छत्तीसगढ़ी, बाद म भुला जाथे । ये दुहरी मानसिकता के परिचायक हे। अपन महतारी भाखा के संग छलावा के सिवाय कुछु नोहय। अइसन दुहरी मानसिकता ले उबरे ल परही। अब तो लोगन येहू बात ल स्वीकार करे ल धर ले हे कि छत्तीसगढ़ी वोट माँगे के भाखा बन के रहिगे हवय। कहीं न कहीं छत्तीसगढ़िया मन अपन महतारी भाखा के प्रति हीनता के शिकार हे।
भाखा अउ संस्कृति दूनो एक दूसर के पूरक आय। यदि कोनो अंचल के भाखा मर जाही त उँहा के संस्कृति घलो नइ बाँचय,येकर सेती भाखा ल बचाना जरुरी हवय। भाखा ल बचाय के एके विकल्प हवय कि येकर जादा से ज्यादा प्रयोग। बोलचाल मा छत्तीसगढ़ी जतका जादा प्रयोग होही वोतके जादा भाखा समृद्ध होही।
अभी छत्तीसगढ़ी मा नँगत अकन फिलिम बनत हवय फेर ओकर दर्शक कतका झन हवय.?येहू सोचे कि विषय हवय। छत्तीसगढ़ी फिलिम ल गैर छत्तीसगढ़िया मन नइ देखय वोला हमी मन देखबों। छत्तीसगढ़ी फिलिम निर्माता मन ला चाही कि स्तरीय फ़िल्म के निर्माण करयँ ताकि दर्शक खुद ब खुद देखे चले आवय। फिलिम में छत्तीसगढ़ के संस्कृति अउ लोक जीवन के झलक होही तभे फिलिम ह चल पाही। उँहे राज शासन ल चाही कि छत्तीसगढ़ी भाखा कलाकार,रंगकर्मी साहित्यकार मन ल बढ़ावा दय जेकर ले छत्तीसगढ़ी भाखा के प्रयोग बाढ़य। छत्तीसगढ़ी भाखा के बढ़वार या विलुप्ति हमर हाथ म हे। हम का चाहत हन ? विलुप्ति या बढ़वार ?
अजय अमृतांशु
भाटापारा (छत्तीसगढ़ )
मो.9926160451