शारदा मेम सेवाभावी,मृदुभाषी, मिलनसार और दयालू महिला थी। रोज सुबह से शाम तक उनकी दिनचर्या व्यवस्थित रहती। कॉलोनी के लोगों में उनके प्रति सम्मान भाव था । दुनिया में ऐसे कई लोग होते हैं, जिनकी दिनचर्या व्यवस्थित रहती है। व्यवस्थित दिनचर्या के लोगों की जिंदगी अन्य लोगों के लिये प्रेरक होती है। ऐसी ही थी शारदा मेम, जो भी उन्हें जानते थे श्रद्धा से सम्मान भाव से मन भर उठता।
महाविद्यालय में प्रोफेसर की सरकारी नौकरी के बाद समाज सेवा उसका जुनून था। पास पड़ोस के बच्चे उनके घर फूल या फल लेने आते तो जी भर कर उनका स्वागत होता । आखिर क्यों न हो, उसका अपना एक बहुत ही प्यारा सा बेटा है जो उसके पति के पास रहता है । जीवन की लीला भी बड़ी विकट होती है। हम जो चाहते हैं वो होता नहीं, वही हो जाता है जो होना होता है। शारदा मेम अपने कॉलेज सहपाठी रोशन से अपने परिवार के विरोध के बाद भी कोर्ट मैरिज कर लिया तो दोनों ही परिवार ने उन्हें अपनाने से इनकार कर दिया। प्राइवेट स्कूल में शिक्षिका के रूप में शुरू किया सफर शासकीय महाविद्यालय के प्रोफेसर तक जारी है।
दीन-हीन, बुजुर्ग, अपाहिज, विधवा, अनाथ बच्चों की जरूरत के लिए उनकी संस्था सहारा बेशक सराहनीय कार्य करती है। उनकी संस्था का कार्य नाम के अनुरूप ही चलता है। सारा दिन व्यस्त रहने के बाद जब रात में वह बिस्तर में पहुँचती, तब उसे उसका बिस्तर काटने को दौड़ता, करवट बदल- बदल के वक्त गुजारते रोज बड़ी मुश्किल से नींद पड़ती। टकटकी लगी आँखों में रोज उसके अतीत के पन्ने खुलते और उसकी एक गलती से जीवन नैया के डूबने की पीड़ा उसके अंतस में पड़े जख्म रोज हरा कर देती। सोचती आहें भरती और अपनी विकट भूल का प्रायश्चित करती, कि काश मैं उस दिन मैं अपने पति से क्षमा माँग लेती। अहम् के टकराव ने उसकी हँसती खेलती जिंदगी खराब कर दी, ना वह झुके न ये।
दरअसल शारदा मेम शादी के बाद से लगातार अपनी पढ़ाई करती रही । कई प्रतियोगी परीक्षा दिलाई लेकिन कहीं सफलता नहीं मिली। शादी के बाद पारिवारिक बहिष्कार के कारण घर चलाने रोशन को पढ़ाई छोड़कर ट्रक परिवहन कार्यालय में क्लर्क की नौकरी करनी पड़ी, इसी से उसके घर का खर्चा ले देकर चलता। अंततः शारदा मेम को मजबूरन मैदान में उतरना पड़ा। प्राइवेट स्कूल में शिक्षिका के विज्ञापन देख अपना भाग्य आजमाया तो शारदा मेम शिक्षिका के रूप में चयनित हो गईं । अब तो रोज रोशन उसे स्कूल छोड़ देता और अपने कार्यालय चला जाता। इस तरह दिन कटते रहे इस बीच उसके घर नन्हे मेहमान का आगमन हुआ तब करीब साल भर तक शारदा को घर बैठना पड़ा । घर की खराब माली हालत से कलह के हालात बन गए। दैनिक उपयोग की वस्तु फल सब्जी दवाई आदि के लिए रोज की किच-किच से बचने शारदा मेम को पुन: स्कूल ज्वाइन करना पड़ा। रोज अपने एक साल के मुन्ना के साथ स्कूल जाती।
जीवन रण में जूझकर सफलता की ऊँचाई छूने वाले लोगों को अपने संघर्ष के दिनों के हालात हमेशा याद आते हैं । सब दिन होत न एक समान यह कहावत सब के जीवन में चरितार्थ होती है । शारदा एम ए करके नेट पास कर ली तो रोशन घर परिवार की जिम्मेदारी के कारण ज्यादा नहीं पढ़ पाया और क्लर्क ही बना रह गया। समय गुजरा शारदा मेम शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय में व्याख्याता हो गई । घर के हालात सुधर गए अब उसे रोशन का स्कूल छोड़ने जाना अच्छा नहीं लगता था । उसे ट्रक परिवहन के कार्यालय के क्लर्क की पत्नी कहलाने में शरम महसूस होने लगी ।
इधर उसका मुन्ना रविंद्र आंगनबाड़ी जाने लगा । रोशन उसकी खूब देखभाल और प्यार करता सुबह-सुबह तैयार कर स्कूल छोड़ आता,शाम को छुट्टी के बाद घर ले आता। उसे हमेशा पापा के नजदीक होने के कारण माँ शारदा से डाँट पड़ती इस तरह पति-पत्नी और बेटे के बीच एक अदृश्य दीवार खड़ी हो गई। एक दिन घर खर्चे में योगदान को लेकर दोनों में बहस हो गई, शारदा ने अपने पति रोशन को अपशब्द कह दिया, इससे झगड़ा बढ़ गया गुस्से में रोशन ने कह दिया तुम अपना बोरिया बिस्तर अलग कर लो, मैं अपने मुन्ना को पाल लुँगा । गुस्से में शारदा मेम मुन्ना और घर छोड़कर अपनी सहेली वीणा के घर किराए में रहने लगी। उसकी सहेली वीणा ने माफी मांग कर अपने घर वापस जाने का निवेदन किया लेकिन वह नहीं मानी इस तरह समय बीतते रहे।
छै साल के अंतराल बाद उसके पास अपना घर है,बैंक बैलेंस है, शॉपिंग काँपलेक्स है, नहीं है तो उसका अपना पति रोशन देव अपना मुन्ना रविंद्र ।
बहुत दिन बाद आज उसकी संस्था सहारा से सहयोग के लिए आए आवेदन पर विचार करने बैठक आयोजित थी संस्था के सारे सदस्य उपस्थित थे आवेदक एक-एक कर उपस्थित होते गए संस्था अध्यक्ष शारदा मेम ने एक आवेदक से उसके अनाथ होने पर सहायता के आवेदन पर उसका नाम पूछा, जवाब मिला रविंद्र देव शारदा मेम ने चौक कर उसे सर से पॉंव तक देखा, फिर पूछा पिता का नाम, स्वर्गीय रोशन देव, शारदा मेम तड़प उठी, उसकी आँखें डबडबा आई, होठ कॉंप उठे, बलात खींचकर उसने दूर खड़े लड़के को अपने सीने से लगाकर कहा- बेटा तू अनाथ नहीं है रे!
लेखक- डॉ.अशोक आकाश
ग्राम कोहंगाटोला जिला बालोद छत्तीसगढ़ 491226
मो.नं. 9755889199
बहुत सुंदर संवेदनशील कहानी बधाई भईया
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