पारिवारिक सामाजिक प्रगाढ़ता का पर्व भाई-दूज
-रमेश चौहान
पारिवारिक सामाजिक प्रगाढ़ता का पर्व भाई-दूज
पारिवारिक सामजिक प्रगाढ़ता भारतीय संस्कृति का उदद्देश्य-
भारतीय संस्कृति में व्यापकता, सहिष्णुता, अखण्डता, एकात्मकता, त्याग, तपस्या और अध्यात्मिकता का व्यापक समावेश है । पर्व, त्यौहार, उत्सव, खान-पान, रीति-रिवाज और आस्था संस्कार के योग से संस्कृति का निर्माण होता है । भारतीय संस्कृति में गहराई है । तीज-त्यौहार हमारी संस्कृति का आधार स्तंभ है । संस्कृति का उद्देश्य मानव में मानवीय गुण भरना है । मनुष्य एक सामाजिक प्राणी इसलिये सामाजिक प्रगाढ़ता ही समाज को संरक्षित रख सकता है । समाज की नींव परिवार है परिवार की प्रगाढ़ता ही समाज को प्रगाढ़ता दे सकता है । इस प्रकार कह सकते हैं पारिवारिक सामाजिक प्रगाढ़ता हमारी संस्कृति का उद्देश्य है ।
पारिवारिक सामाजिक प्रगाढ़ता का संदेश देते हमारे तीज-त्यौहार-
तीज-त्यौहार हमारी संस्कृति का आधार स्तंभ है । हर खुशी, हर प्रसंग, हर संबंध, जड़-चेतन के लिये कोई ना कोई पर्व निश्चित है । हर अवसर के लिये कोई ना कोई पर्व है । खुशी का पर्व हरियाली या हरेली, दीपावली, होली आदि, संबंध का पर्व करवा-चौथ, तीजा-पोला, रक्षा बंधन, हलषष्टी, भाई-दूजआदि, जड़-चेतन के लिये वट-सावित्री, नाग-पंचमी आदि । जहॉं हरेली, होली, दीपावली जैसे पर्व सामाजिक प्रगाढ़ता बढ़ाने में सहायक वहीं करवा-चौथ, हलषष्ठी, रक्षाबंधन, भाईदूज जैसे पर्व पारिवारिक संबंधों में प्रगाढ़ता भरते हैं ।
पारिवारिक सामाजिक प्रगाढ़ता का पर्व भाई-दूज-
भारतीय तीज-त्यौहार में पारिवारिक संबंध को प्रगाढ़, मजबूत करने के कई पर्व हैं जैसे पति के लिये वट-सावित्री, करवा-चौथ, तीजा (हरितालिका) आदि, पुत्र के लिये हल षष्ठी प्रसिद्ध है, इसी कड़ी में भाई-बहन के लिये दो त्यौहार प्रचलित है । एक रक्षा बंधन एवं दूसरा भैया दूज । भारतीय संस्कृति में भाई-बहन का संबंध अतिविस्तारित है । इसी कारण भाई बहन के संबंध में प्रगाढ़ता बनाये रखने के लिये दो-दो पर्व रखे गये हैं । भाई-दूज का पर्व केवल सहोदर भाई बहनों के मध्य नहीं मनाया जाता अपितु चचेरे, ममेरे, फूफेरों भाई-बहनों से होते हुये पड़ोसियों,मोहल्लेवासियों, ग्रामवासियों की पगडंडयों से होते हुये प्रदेश और देश तक व्याप्त है । इसलिये भाई-दूज का पर्व पारिवारिक सामाजिक प्रगाढ़ता का पर्व है ।
पारिवारिक सामाजिक प्रगाढ़ता का पर्व भाई-दूज कब मनाते हैं ?
भाई-दूज का पर्व दीपावली के दो दिन बाद कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष के द्वितीय तिथि को मनाया जाता है । छत्तीसगढ़ में भी अन्य राज्यों की भांति यह पर्व हर्ष उल्लास के साथ मनाया जाता है । इस पर्व में बहने अपने भाई के आनंदमयी दीर्घायु जीवन की कामना करतीं हैं ।
पारिवारिक सामाजिक प्रगाढ़ता का पर्व भाई-दूज मनाने के पौराणिक कारण-
पौराणिक प्रसंग के अनुसार भगवान सूर्य की पुत्री यमुना एवं पुत्र यमराज हुये । यमुना यमराज से बड़ा स्नेह करती थी। वह उससे बराबर निवेदन करती कि वह उसके घर आकर भोजन करे । अपने कार्य में व्यस्त यमराज बात को टालता रहा। कार्तिक शुक्ल द्वितिया का दिन आया । यमुना ने उस दिन फिर यमराज को भोजन के लिए निमंत्रण देकर, उसे अपने घर आने के लिए वचनबद्ध कर लिया। यमराज ने सोचा कि मैं तो प्राणों को हरने वाला हूं। मुझे कोई भी अपने घर नहीं बुलाना चाहता। बहन जिस सद्भावना से मुझे बुला रही है, उसका पालन करना मेरा धर्म है। यमराज को अपने घर आया देखकर यमुना की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। उसने स्नान कर पूजन करके व्यंजन परोसकर भोजन कराया । यमुना द्वारा किए गए आतिथ्य से यमराज ने प्रसन्न होकर बहन को वर मांगने को कहा । यमुना ने कहा कि भैया आप प्रति वर्ष इसी दिन मेरे घर आया करो । मेरी तरह जो बहन इस दिन अपने भाई को आदर सत्कार करके टीका करे, उसे तुम्हारा भय न रहे। यमराज ने तथास्तु कहकर यमुना को अमूल्य वस्त्राभूषण उपहार दिया । इसी दिन से पर्व की परम्परा बनी। ऐसी मान्यता है कि जो आतिथ्य स्वीकार करते हैं, उन्हें यम का भय नहीं रहता। इसीलिए भैयादूज को यमराज तथा यमुना का पूजन किया जाता है।
पारिवारिक सामाजिक प्रगाढ़ता का पर्व भाई-दूज पर यमुना स्नान की परम्परा-
उपरोक्त पौराणिक कथा के आधार पर ऐसा माना जाता है कि भाई-दूज के दिन यदि भाई-बहन एक साथ यमुना नदी में स्नान करते है तो उनके पाप का क्षय होता है । भाई-बहन दीर्घायु होते हैं, उन्हें यमराज का आशीष प्राप्त होता है । इसी मान्यता के आधार पर भाई-दूज के दिन असंख्य भाई-बहन यमुना नदी में स्नान करते हैं । यह अपने आप एक मात्र पर्व जहॉं भाई-बहन एक साथ स्नान करते हैं । इसके अतिरिक्त शेष स्नान पर्व सपत्निक करने का विधान है । इसलिये इस पर्व का विशेष महत्व है ।
पारिवारिक सामाजिक प्रगाढ़ता का पर्व भाई-दूज कैसे मनाया जाता है ?
इस दिन बहने भाई के लिये स्वादिष्ट एवं अपने भाई के पसंद का पकवान बनाती हैं । भाई अपने हर काम को छोड़कर इस दिन अपनी बहन के यहां जाते हैं । इस दिन बहन अपने भाई के माथे पर रोरी तिलक लगाती फिर पूजा अर्चन कर अपने हाथ से एक निवाला खिलातीं हैं । भाई भोजन करने के उपरांत बहन की रक्षा का शपथ करता है फिर सगुन के तौर पर कोई ना कोई उपहार अपनी बहन को भेट करता है ।
पारिवारिक सामाजिक प्रगाढ़ता का पर्व भाई-दूज धर्मनिरपेक्षता का जीवंत रूप-
भाई-दूज का त्यौहार हमारे भारतीय चिंतन का प्रतिक है, जिसमें प्रत्येक संबंध को मधुर बनाने, एक-दूजे के प्रति त्याग करने का संदेश निहित है । हमारी संस्कृति में केवल सहोदर भाई-बहनों के मध्य ही यह पर्व नही मनाया जाता अपितु चचेरी, ममेरी, फूफेरी बहनों के अतिरिक्त जातीय बंधन को तोड़कर मुहबोली बहन, शपथ पूर्वक मित्रता स्वीकार किये हुये (मितान, भोजली, महाप्रसाद आदि) संबंधों का निर्वहन किया जाता है । हमारे देशमें यह पर्व सर्वधर्म सौहाद्रर्य के रूप में भी दिखाई देता है, कई हिन्दू बहने मुस्लिम को भाई के रूप में स्वीकार कर भाई-दूज मनाती है तो वहीं कई मुस्लीम बहने हिन्दू भाई को स्नेह पूर्वक भोजन करा कर इस पर्व को मनाती है ।
पारिवारिक सामाजिक प्रगाढ़ता में भाई-दूज का महत्व-
यदि हम अपने समाज और परिवार के संबंधों का विश्लेषण करें तो हम पाते हैं कि संख्यात्मक एवं भवनात्मक रूप से भाई-बहनों का संबंध सबसे आगे है । हमारी संस्कृति में कहा गया है परपुरूष को भाई या पिता के रूप में देखें, परनारी को बहन और मॉं जानें और मानें । हमारी संस्कृति का यह ध्येय वाक्य भाई-बहनों के संबंध को और प्रगाढ़ बनाते हैं । समाज में भाई-बहन की संबंध की प्रगाढ़ता सामाजिक प्रगाढ़ता के लिये आवश्यक है । इन संबंधों की अभिव्यक्ति के लिये हमारी संस्कृति में रक्षाबंधन और भाई-दूज पर्व का विधान है । भाई-दूज का पर्व केवल सहोदर भाई बहनों के मध्य नहीं मनाया जाता अपितु चचेरे, ममेरे, फूफेरों भाई-बहनों से होते हुये पड़ोसियों,मोहल्लेवासियों, ग्रामवासियों की पगडंडयों से होते हुये प्रदेश और देश तक धर्म-जाति के बंधन को तोड़ते हुये व्याप्त है । इसलिये भाई-दूज का पर्व पारिवारिक सामाजिक प्रगाढ़ता का पर्व है ।
-रमेश चौहान
इसेे भी देखा जा सकता है- तीज-त्यौहार -भैया दूज
दीपावली का अध्यात्मिक एवं सांस्कृतिक महत्व
बहुत सुंदर।
भाई दूज की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं
सादर धन्यवाद चंद्राकर भाई
ज्ञान वर्धक आलेख बधाई हो