छत्‍तीसगढ़ी कहानी: ‘भइया के मया’- देवनारायण नगरिया

छत्‍तीसगढ़ी कहानी:

भइया के मया

देवनारायण नगरिया

छत्‍तीसगढ़ी कहानी: 'भइया के मया'- देवनारायण नगरिया
छत्‍तीसगढ़ी कहानी: ‘भइया के मया’- देवनारायण नगरिया

गरुवा  ओईलत धुर्रा उड़त, सूरुज के बुड़त  संझउती के बेरा चईत के महीना बर बिहाव के सीजन म अपन जिंदगी के सपना ल सुरता करत झुंझुवाय घर के मुहाटी म  बिइठे गुनवंतीन गुनत रहय।

छत्तीसगढ़ के बालोद जिला के खरखारा के तीर मां बसे रायपुरा गांव हे। इही गांव के गुणवंतीन कथे मोर दादा ह बीमार म चार महीना पहिली मरगे। दाई ह तीन बछर के उमर म भऊजी के कोरा म छोड़ के आँखी मुंद लिस । तब भउजी अउ भईया आड़बड़ मया करय।

घड़ी कस काटा बेरा ह काकरो अगोरा नइ करय। भऊजी के मया दुलार के संग मय पंदरा बछर के उमर  म दसवी पास हो गेंव। भइया ह घेरी बेरी काहय गुनवंतीन ल बने बड़हर घर म बहु बना के भेजबो अउ रानी कस राज करही कहिके पढ़इ ल छोड़ा दिस। घर के हालत ह कमजोर राहय गरीबी रेखा के नुन चाउर वाले बबा के राशन म जिनगी  ले दे के चलत राहय । फेर भय्या ह अपन लइका ले जादा मोला  मया करे।

देखते देखत मोर उमर बीस बरस के होगे। बेरा बेरा म बिहाव के खातिर लड़का घलो आइस , फेर भइया ह अपन संजोय सपना ल धरे धरे बड़हर अउ नउकरी वाले के अगोरा के शिकार होगे।  

ए डहर भतीजिन के उमर पढ़ते पढ़त अठठारा म बारवी ल अव्व्ल नंबर ले पास होगे ।ओकर बाद तीन साल म बी ए पास होगे ।  इही बीच म भतीजिन बर बिहव के खातिर लड़का आइस ।

भउजी कर  भइया गोठियाइस जब तलक ले गुनवंतीन के बिहाव नइ होही तब तक दुसर के बिहाव नइ होवय।

 कुछ दिन के भीतर भतीजिन ह शिकक्षाकर्मी बनगे। समय के संगे संग मोर जिनगी के सफर बिन मोल होय लगिस।कभु सोचंव जहर महुरा खा लेतेवं,फांसी डोरी लगा लेतेवं।फेर भइया के मया कोनो डहर जावन नइ देवय।दिनो दिन  मन ल घुना खावत राहय । फेर मोर छोटे भतीजिन गिरजा अड़बड़ मया करय।सब डहर मोर सपना के रद्दा अंधीयार होगे।

 कोनो कोनो दिन भउजी के दाई ह समय पाके घर आवय त मोर डाहर ले उफनत दुध कस देखय। ओकर गोठ ह फूंकारत नागिन कस लागय ।कहय कि एला कोनो कनवा खोरवा गरीबहा के संग लगा देवव।।ए गोठ ह मोर जिवरा जरत भोंभरा कस लागय।

देख बेटी  बिमला एखर खातिर तोर दोनो नोनी कुंवारी झन रही जाय । अइसे बिच्छी के डंक मारे कस ताना कसत राहय। जिला बालोद के शिक्षा दफतर म भइया कुलदीप ह बड़का साहब बनगे। घर के चिंता थोरकीन दुर होगे। जमाना बदलत कोनो देर नइ लागिस , बड़े भतीजिन अपन संग काम करइया आने जाति के लड़का संग बिहाव कर  डारिस। तब भइया के तिजोरी लूटगे तइसे लागीस। ओ दिन काम  बुता म थोरको मन नइ लागिस।सोचते सोचत रतिहा होगे।

 दूसर दिन लोहारा के दफतर ले महिला बाल विकास के साहब मन मोर गांव आइस। जागरूक पढ़े लिखे लइका पुछिस , तब मोर नाव ल बनीहारिन पदमा बाई ह बताइस ।महिला साक्षारता, सिलाई, कढ़ाई , बुनाई काम बर मोला मास्टरनी बना दिसh । मय मने मन सोचेंव पद्मा दीदी के सुझाव ह मोर जिनगी के भाग जगा दिस ।ओ दिन अइसे लागिस कि मोर जिनगी के रतिहा पंगपंगागे भाग के मोर सुरुज उगे।

 कुलदीप ह समझाइस  ए काम म झन जा  बहिनी। फेर कुलदीप के मन में गुनवंतीन के बिहाव के सपना झकझोरत राहय।  तय मोर बोझा नोहस हमन एके डारा के दो फूल हरन कहत राहय।  समझ गएवं मैं गुणवंतीन, तोर अंतस के पीरा ला तोर जिंदगी जिए के सपना ला चोट लागे हे। धीरज धरावत साहेब अपन दफ्तर बर निकल गे। सब बात ल सुन के गुणवंतीन अपन काम म चल दिस। भैया भौजी भतीजीन  के गजब सुरता करय, मिले के मन घलो करय। फेर मन ला मार के काम म लगे राहय। मोर काम देख के  गांव वाले ल अड़बड़ खुशी होइस। मोला घलो शांति मिलीस।

 छोटे भतीजिन के बिहाव माड़गे, मोला नेवता घलो नइ दिस। भउजी बड़का साहेब के बीवी होगे। सोच बदलगे। मय उकर बिहाव म कइसे शरीक हो सकतेव?  ओ मन अपन हर शुभ काम मां मोला अशुभ मानय। चल जोन होइस अच्छा होइस। ए डहर मोर काम म खुश होके मोर साहेब मोला दूसर गांव भेजे के मन बना लिस। जिहा दूसर मन ल काम सिखाए बर राहय ।

मोर मन मा एक आस जागे लागीस गांव छोड़े के पहिली भैया भौजी संघ भेंट आतेव। काबर कि  ओहा  मोला अपन लइका कस  माया दुलार करें हे। मय  आखिरी दिन अपन स्कूल म  लईका मन ल पढ़ावत राहवं, तभेच 12:00 बजे के बेरा एक ठन जीप स्कूल के बाहिर खड़ा होगे।  जम्मो  लइका मन जिप ला देखे बर झुमगे। माय  कुछ समझ नइ  पायेव। जीप ल  उतर के भाई साहब, गुणवंतीन कहत आगू डहर  बड़हे   लागीस।

 उखर संग म  तीन झन अउ  रिहिस। ओखर जुबान ह कापत राहय।  मोर आँखी ले मया के आंसू झरत राहय। फेर अपन मन के भावना ल लइका मन तीर दबोच के राखे ला पड़गे। लइका मन ला छुट्टी दे के साहब ल घर डाहर लेगत राहव। तभेच साहेब कहींस हमन नइ  रुकन बहिनी तोर संग भेंटे  बर आये हंव।

 घर पहुंचत एक दूसर ला पा के अब्बड़  रोईन। भाई साहब कुलदीप ह कहिस बहिनी तोला गजब दुख देय हवंव।

 कोनो बिहार ल जिनगी नइ  समझे रहितेवं,त  तोला बने पढ़ाए लिखाए रहीतेव।अउ  बने नौकरी धाराएं रहितेवं,  इही नौकरी ह तोर जिंदगी के संगवारी बन जाय रहितीस। 

गुनवंतीन कहिस नहीं भैया सब बखत बखत के बात आय। कुलदीप मुस्कावत  कथे ,  वहिनी गांव ,समाज म तोर अड़बड़ बढ़ाई सुने हंव। मय अपन नाम के खातिर समाज म असलियत ल भुला गे रहंव। कोनो काम ह समाज म बड़े  छोटे नइ होवय। अपन सोच म  समाज गांव ल बदल देथे। अपन पहिचान ल हर दिल म बना डरे । 

गुनवंतीन कथे- भइया मय खुद चले आतेव। एकठन चिट्ठी लिख देतेव। 

 कुलदीप कथे-कइसे लिखतेवं  बहिनी मैं खुद शर्मिंदा हंव।  अपन भूल ल जान के पछतावत हंव। अपन विचार ल इजहार करत कुलदीप कहींस एदे  बहिनी ₹5000 रख ले। गुणवंतीन  कहिस नहीं भइया ये  रुपिया ल स्कूल में दान कर दे ।तोर नाव चलही। कुलदीप ह ओखर  बुद्धिमानी ल सहरावत राखी तिहार मे आंहूं  कहत अपन दफ्तर बर चल दिस।

  गुनवंतीन के काम ल देख के शासन-प्रशासन अउ  बाल विकास के प्रयास ले एक  दिन राज्यपाल पुरस्कार के खातिर ओखर नाव प्रस्तावित होगे ।

काबर कतको दीदी मन ल कढ़ाई, बुनाई, सिलाई जइसे कतको काम सिखा के ओ मन ला अपन पाँव में खड़ा होय के लायक बना दिस।

 एक दिन बड़का सभा होइस। जेमा गुणवंतीन ल राज्यपाल  लें सम्मानित करें गिस। ए दिन गुणवंतीन अड़बड़ खुश रिहिस अउ  मने मन म गजब सोचे लागीस । कोनो ए  दिन मोर भाई भौजी पुरस्कार सम्मेलन में मौजूद रहीतिस, अइसे सोचत आँखी ल आंसू ढरगे।

 गुणवंती के भइया भौजी सम्मान सभा के आखिरी छोर में बइठे राहय।  सम्मान के ₹200000 एक ठन नारियल ,लुगा ,अउ प्रमाण पत्र सुघ्घर प्रतीक चिह्न राज्यपाल डहर ले मिलिस। ये सभा के समापन के बाद म गुणवंती के भइया भौजी मिलिस। कुलदीप अपन बहिनी गुणवंतीन के लगन काम के बड़ाई करत आशीर्वाद देवत मया के बहिया म पोटार के बहिनी तोर सही समाज म हर महिला ल अपन पाँव म खड़ा होय के लायक आत्मनिर्भर होना चाहिए कहत घर डहर गुणवंतीन भइया भौजी के संग रेंगे लागीस। ओतकीच बेर कलेक्टर ऑफिस के बाबू राम भरोसा ह भरोसा देवावत कुलदीप ल काहत राहय ।गुनवंतीन के हाव  भाव कार्यकुशलता लगन परिश्रम ह दिल ल  भा गेहे ।

बाबू साहब कुलदीप मय  गुणवंतीन संघ बिहाव करना चाहत हंव।

गुनवंतीन के भइया भौजी गुनवंतीन के भाग ला सेहरावत। शुभ लग्न के बात करत अपन सुख के छइहा  डहर उमंग भरे हासत। रामनवमी म मडवा सजही ।उही दिन खुशी के बाजा बाजही। कइसे गुणवंतीन? कही  के कुलदीप संग सबो झन संझउती  के बेरा गरूवा ओइलत हासत ।सूरज के संग घर डाहर रेंगे  लागीस।

-जनकवि
 देवनारायण नगरिया 
ग्राम रायपुरा 
जिला बालोद (छत्तीसगढ़)

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One thought on “छत्‍तीसगढ़ी कहानी: ‘भइया के मया’- देवनारायण नगरिया

  1. बड़ सुग्घर कहानी नगरिया जी ला हार्दिक बधाई हे

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