भारतीय कालगणना और संवत्‍सर

भारतीय कालगणना और संवत्‍सर –

भारतीय कालगणना और संवत्‍सर

भारतीय कालगणना और संवत्‍सर
भारतीय कालगणना और संवत्‍सर

भारतीय कालगणना और संवत्‍सर

जिस प्रकार में देश के अलग-अलग क्षेत्रों में अलग-अलग भाषा बोली जाती है, भिन्‍न-भिन्‍न क्षेत्रों का रहन-सहन, खान-पान और पहनावा भिन्‍न-भिन्‍न है उसी प्रकार कालगणना भी भिन्‍न‍-भिन्‍न है । किसी राज्‍य में कभी नववर्ष मनाया जाता है तो किसी राज्‍य में कभी । जिस प्रकार हमारी सांस्‍कृतिक विविधता ही हमारी शक्ति है उसी प्रकार काल गणना में नववर्ष के आरंभ की भिन्‍नता है । यह भिन्‍नता विभिन्‍न प्रकार की वर्ष गणना जिसे संवत्‍सर कहते हैं के कारण है । इस भिन्‍नता के बाद भी कालगणना की मौलिकता एक समान है । यह हमारी  भारतीय कालगणना पद्यति की प्राचीनता और गहनता को व्‍यक्‍त करता है । आइये भारतीय कालगणना पद्यति का सिंहावलोकन करें ।

भारतीय कालगणना-

ऐसा माना जाता है कि इस सृष्टि का आरंभ जब से हुआ है तभी से कालगणना का भी विकास हुआ है । समय की छोटी से छोटी इकाई से लेकर बड़ी से बड़ी इकाई का सृजन हुआ । भारतीय समय की गणना हमारे पलक झपकने में लगे समय  से हुआ जिसे निमेष कहा गया । इससे  निमेष के चाैथे  समय को त्रुटि कहा गया जो समय की सबसे छोटी इकाई है । प्राचीन कालगणना इकाईयों का आज भी व्‍यवहारिक जीवन में है । ऐसे ही कुछ काल इकाई इस प्रकार हैं-

प्राचीन समय की इकाईप्राचीन समय की इकाई से संबंधआधुनिक समय की इकाई से संबंध
1 विपल2 मात्रा2/5 सेकण्‍ड
1 पल60 विपल 24 सेकण्‍ड
1 घटी60 पल24 मीनट
1 मुहुर्त2 घटी48 मीनट
1 प्रहर7.5 घटी3 घंटा
1 अहोरात8 प्रहर या 30 मुहुर्त (सूर्योदय से सूर्योदय तक)एक दिन-रात 24 घंटा
1 पक्ष15 अहोरातपखवाड़ा 15 दिन
1 मास30 अहोरात1 महिना
1 संवत्‍सर12 मास1 वर्ष
1 दिव्‍य दिन1 वर्ष1 वर्ष
1 दिव्‍य वर्ष360 वर्ष360 वर्ष
महायुग (युग)4320000 वर्ष4320000 वर्ष
कल्‍प1000 महायुग4320000000 वर्ष
भारतीय काल गणना -समय की प्राचीन इकाई

भारतीय काल गणना का आधार सूर्योदय-

भारतीय कालगणना के आधार पर समय का मापन सूर्योदय से होता है  ।  एक अहोरात का मापन एक सूर्योदय से अपर सूर्योदय तक होता है । अर्धरात्री से नहीं जैसे अंग्रेजी महिना में होता है । भारतीय काल गणना के अनुसार नये दिन, नई तिथि का प्रारंभ सूर्योदय से ही होता है ।

सूर्योदयप्रमाणेन अहःप्रामाणिको भवेत्।
अर्धरात्रप्रमाणेन प्रपश्यन्तीतरे जनाः ॥

इसलिये धार्मिक पूजा पाठ के मानने वाले अर्धरात्रि को दिन परिवर्तन नहीं मानते । नये दिन का प्रारंभ सूर्योदय काल से ही होता है ।

भारतीय संवत्‍सर (संवत) की प्राचीनता-

जब से इस सृष्टि की रचना हुई है तभी से कालगणना के साथ-साथ संवत्‍सर का भी अस्तित्‍व है । प्राचीन ग्रंथ महाभारत,राजतरंगिणी और श्रीलंका की प्रसिद्ध ग्रंथ महावंश आदि के अनुसार सबसे पहले सप्‍तर्षि संवत्‍सर  प्रयोग हुआ ।

अभी तक प्रचलित संवत्‍सर-

  1. सप्‍तर्षि संवत्‍सर
  2. कलियुग संवत्सर
  3. विक्रम संवत (57 ई.पू. से)
  4. शक संवत (57 ई. से)

सप्‍तर्षि संवत –

जैसे कि नाम से ही स्पष्ट है कि इस संवत् का नामकरण सप्तर्षि तारों के नाम पर किया गया है। ब्राह्मांड में कुल 27 नक्षत्र हैं। सप्तर्षि प्रत्येक नक्षत्र में 100-100 वर्ष ठहरते हैं। इस तरह 2700 साल पर सप्तर्षि एक चक्र पूरा करते हैं। इस चक्र का सौर गणना के साथ तालमेल रखने के लिए इसके साथ 18 वर्ष और जोड़े जाते हैं। अर्थात् 2718 वर्षों का एक चक्र होता है। एक चक्र की समाप्ति पर फिर से नई गणना प्रारंभ होती है। इन 18 वर्षों को संसर्पकाल कहते हैं। सप्‍तर्षि संवत आज भी कश्‍मीत में लौकिक संवत्‍सर के नाम से और हिमांचल प्रेदश  में शास्‍त्र संवत्‍सर के नाम से प्रचलित है । इन दोनों राज्‍यों को सप्‍तर्षि संवत को लुप्‍त होने से बचाने का श्रेय प्राप्‍त है ।

कलयुग संवत-

इस संवत्‍सर का प्रारंभ श्रीकृष्‍ण के इस धराधाम को त्‍याग कर बैकुण्‍ड जाने की तिथि से मानी जाती है । इसी समय के आसपास पाझडवों के पौत्र परीक्षित का राज्‍याभिषेक हुआ । काल गणना के अनुसार इसका प्रारंभ 3102 वर्ष ईसा पूर्व माना जाता है ।

विक्रम संवत –

व्रिकम संवत आज का सर्वाधिक प्रचलित संवत्‍सर है । यह नेपाल देश का अधिकारिक संवत्‍सर है । भारत के अधिकांश भू-भाग पर विक्रम संवत्‍सर के काल गणना के अनुसार तिज-त्‍यौहार मनाया जाता शुभ मुहुर्तो की गणना की जाती है । इस संवत्‍सर का प्रारंभं सम्राट विक्रम के राज्‍याभिषेक से माना जाता है । यह ईसवी सन् से 57 वर्ष पूर्व प्रारंभ हुआ है ।

विक्रम संवत नववर्ष का प्रारंभ –

गुजरात  में इसका आरंभ कार्तिक शुक्‍ल प्रतिपदा को माना जाता है जबकि उत्‍तर भारत में चैत्र शुक्‍ल प्रतिपदा को इस संवत्‍सर का प्रारंभ माना जाता है । इसलिये गुजरात में शुक्‍लप्रतिपदा को नववर्ष मनाते हैं जबकि उत्‍तर भारत में चैत्रशुक्‍ल प्रतिपदा को नववर्ष मनाया जाता है ।

शक संवत-

इसे शालीवाहन संवत के नाम से भी जाना जाता है । इस संवत का प्रारंभ का श्रेय कुषाण राजा कनिष्‍क को दिया जाता है । यह 78 ईसवी से अस्तित्‍व में आया । यह भारत का अधिकारिक संवत है । 22 मार्च 1957 को  शक संवत पर आधारित पंचांग को भारत का राष्‍ट्रीय पंचांग स्‍वीकार किया गया । किन्‍तु  यह केवल औपचारिकता बन कर रह गई ।  भारत का राजपत्र, आकाशवाणी आदि में इसका प्रयोग ग्रेग्रोरियन अंग्रेजी कलेण्‍डर के साथ किया जाता है । 

विक्रम संवत भारत का व्‍यवहारिक संवत-

यद्यपि भारत का राष्‍ट्रीय पंचांग शक संवत को स्‍वीकार किया गया है किन्‍तु यह न तो समाज के व्‍यवहार में दिखता न ही सरकार के । भारतीय समाज के तिज-त्‍यौहार, पर्व तो विक्रम संवत पंचांग के आधार पर ही मनाया जाता है । इसलिये विक्रम संवत भारत का व्‍यवहारिक संवत है ।

मानव जीवन में ज्‍योतिष का महत्‍व

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