मानव जीवन में ज्योतिष का महत्व
-रमेश चौहान
मानव जीवन में ज्योतिष का महत्व-रमेश चौहान
भारतीय ज्योतिष शास्त्र क्या है ?
‘ज्योतिष’ शब्द का अभिप्राय ज्योति युक्त होना है । ज्योति अर्थात प्रकाश , जिसके बिना जीवन अधूरा होता है । ऑुख प्रकाश की उपस्थिति में ही दृश्य को देख सकता है, अंधेरे में नहीं । इस अभिप्राय से ज्योतिष शास्त्र वह शास्त्र है जो अप्राप्य-अदृश्य को आलोकित करता है । आदिकाल से ही मनुष्य अप्राप्य को प्राप्त करने अथवा उसके बारे में जानने के लिये ललायित रहते आया है । इसी इच्छा के प्रतिपूर्ति का विकल्प ज्योतिष के रूप सृजित हुआ जिसमें भविष्य में होने वाली घटनाओं का फलादेश करने का उपक्रम किया जाता है । ज्योतिष शास्त्र मूलत: काल गणनाओं पर आधारित एक ऐसा सांख्यिकी विज्ञान है, जिसमें गणना जितना अधिक शुद्ध होगा उनके सत्य होने की प्रायिकता उतनी ही अधिक होगी ।
ज्योतिष शास्त्र की परिभाषा-
- वैदिक परिभाषा- ‘ज्योतिष सूर्यादि ग्रहाणां बोधकं शास्त्रम्’ अर्थात सूर्य आदि ग्रहों के बोध कराने वाले शास्त्र को ज्योतिष शास्त्र कहते हैं ।
- डॉ. उमेश पुरी ज्ञानेश्वर के अनुसार – ‘ज्योतिष शास्त्र वह शास्त्र है वह शास्त्र है, जिसमें शरीर स्थित सौर मंडल का वाह्य सौर मंडल से पारस्परिक संबंध विश्लेषित करके ग्रहों की स्थिति एवं गति के अनुसार फलाफल निर्देशित किया जाता है ।’
भारतीय ज्योतिष की अवधारणा –
‘यथा पिण्डे तथा ब्रह्माण्डे’ अर्थात जिस प्रकार पिण्ड अर्थात मानव देह होता है उसी प्रकार ब्रह्माण्ड होता है । विलोमत: जिस प्रकार वाह्य सौरमण्डल होता उसी प्रकार मानव देह में भी ग्रह मण्डल होते हैं । मनोविज्ञान के अनुसार मनुष्यों की व्यक्तित्व को जिस प्रकार दो भागों वाह्य व्यक्तित्व और आंतरिक व्यक्तित्व में बांटा जाता है ठीक उसी प्रकारज्योतिर्विदों के अनुसार मनुष्यों के इन व्यक्तित्व को तीन रूपों में व्यक्त किया जाता है । पहला वाह्य रूप जो गुरू, मंगल और चंद्र ग्रह द्वारा व्यक्त होता है । दूसरा आंतरिक रूप जो शुक्र, बुध एवं सूर्य ग्रह द्वारा व्यक्त होता है और तीसरा अंत:करण जो शनि ग्रह द्वारा व्यक्त होता हे । ग्रहों द्वारा मानव जीवन, उनके सुख-दुख और व्यक्तित्व पर पड़ने वाले प्रभावों को जानने की विधा ही ज्योतिष है ।
मानव शरीर में स्थित सौर मण्डल-
आचार्य वराहमिहिर के सिद्धांतों के अनुसार मानव देह एक कक्षावृत जिसमें मानव देह के बारह अंगों से बारह राशियों को व्यक्त करती हैं । इन्हीं बारहवों भागों में सात ग्रह की भांति मानव के सात आंतरिक गुण परिभ्रमण करते हैं ।
मानव देह में बारह राशियां-
ज्योतिष के अनुसार 12 राशियां होती हैं, ये राशियां मानव देह के इन अंगों द्वारा व्यक्त माना जाता है-
क्रमांक | मानव अंग | राशि |
---|---|---|
1. | मस्तक | मेष राशि |
2. | मुख | वृष राशि |
3. | वक्षस्थल | मिथुन राशि |
4. | हृदय | कर्क राशि |
5. | उदर | सिंह राशि |
6. | कटि | कन्या राशि |
7. | वस्ति | तुला राशि |
8. | लिंग | वृश्चिक राशि |
9.. | जंघा | धनु राशि |
10. | घुटना | मकर राशि |
11. | पिंडली | कुंभ राशि |
12. | पैर | मीन राशि |
मानव देह में ग्रह-मण्डल-
ज्योतिष शास्त्र के 9 ग्रह होते हैं जिसमें 7 मूल ग्रह और 2 छाया ग्रह होते हैं । छाया ग्रह राहू और केतू को छोड़ कर ग्रह मानव देह में इस प्रकार व्यक्त होता है-
क्रमांक | आंतरिक गुण | ग्रह |
---|---|---|
1. | आत्मा | सूर्य |
2. | मन | चन्द्रमा |
3. | धैर्य | मंगल |
4. | वाणी | बुध |
5. | विवेक | गुरू |
6. | वीर्य | शुक्र |
7. | संवेदना | शनि |
ज्योतिष की आवश्यकता क्यों ?
मनुष्य अपनी जिज्ञासा पिपासा को शांत करने का सतत प्रयास करते रहा है । सृष्टि की उलझनों को सुलझाने का सतत प्रयास करते रहा है, इसी प्रयास को आज विज्ञान की संज्ञा दी गई है । ठीक इसी प्रकार मनुष्य अपने जीवन में आगे क्या हो सकता है ? जीवन में जो हो रहा वह क्यों हो रहा है ? इन प्रश्नों के उत्तर जानने की जिज्ञासा रखता है । इन प्रश्नों के उत्तर ज्योतिष के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है । मानव देह में स्थित ग्रह मण्डल का संबंध वाह्य सौर मण्डल से सीधा संबंध होता है । अत: इनके अध्ययन से पड़ने वाले प्रभावों की व्याख्या की जा सकती है ।
दैनिक जीवन में ज्योतिष का महत्व-
हमारे दैनिक जीवन में ज्योतिष के महत्व को स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है । तीज-त्यौहार, उत्सव-पर्व आदि का ज्ञान हमें ज्योतिष गणना से ही प्राप्त होता है । भारत के ग्रामीण जीवन में ज्योतिष के व्यापक प्रभाव को देखा जा सकता है यही कारण है कि एक अनपढ़ किसान भी यह जानता है कि किस नक्षत्र में वर्षा अच्छी होती है । उन्हें बीजों की बोवाई कब करनी चाहिये । ज्योतिष शास्त्र के उपयोग से जीवन में होने वाले कष्टों को कम किया जा सकता है, जीवन की बाधाओं को दूर किया जा सकता है । कम प्रयास से अधिक सफलता प्राप्त की जा सकती है ।
फलित ज्योतिष-
मनुष्य पर ग्रहों के शुभ अशुभ फलों का अध्ययन किया जाना फलित ज्योतिष कहलाता है । प्रकृति को सतो गुणी, रजो गुणी, और तमो गुणी त्रिगुणात्मक माना गया है । ज्योतिष ने भी ग्रहों को त्रिगुणात्मक माना है । सतो गुणी ग्रह, रजो गुणी ग्रह और तमो गुणी ग्रह । सूर्य, चन्द्रमा, और गुरू सतो गुणी ग्रह होते हैं । बुध और शुक्र ग्रह रजोगुणी ग्रह और मंगल, शनि और राहू-केतु तमोगुणी ग्रह होते हैं । सतोगुणी ग्रहों की रश्मियों को अमृतमयी, रजोगुणी ग्रहों की रश्मियों को तेजमयी और तमोगुणी ग्रहों की रश्मियों को विषमयी माना जाता है । मनुष्य जिस ग्रह के प्रभाव में जन्म लेता है, उसकी वृत्ति उस ग्रह गुण के अनुरूप होता है । कोई निश्चित समय जिस ग्रह के प्रभाव में होता वह समय उसी के अनुरूप शुभ अथवा अशुभ होता है । ग्रहों की गति का व्यापक अध्ययन एवं गणना के आधार पर किसी व्यक्ति, किसी स्थान, किसी समय के संबंध जो परिणाम प्राप्त किये जाते हैं वही फलित ज्योतिष है ।
ज्योतिष राशिफल-
फलित ज्योतिष का फलादेश जब राशियों के आधार पर किया जाता है तो इसे ज्योतिष राशिफल कहते हैं । वस्तुत: ज्योतिष शास्त्र में 12 राशियां होती है। इन बारह राशियों 27 नक्षत्र गति करते हैं । प्रत्येक नक्षत्र के चार चरण होते हैं । इस प्रकार कुल 108 चरणों को 12 राशियों में विभाजित करने पर प्रत्येक राशि पर 9 चरण होते हैं ।इन प्रत्येक चरणों के लिये एक निश्चित वर्ण निर्धारित किये गये हैं । वास्तव में नामकरण संस्कार जातक के जन्म समय के नक्षत्र एवं उनके चरण के आधार पर प्रथम अक्षर प्राप्त करना होता है, उस प्रथम अक्षर के आधार पर ही जातक का नामकरण किया जाता है । इसी के आधार के व्यक्ति के नाम प्रथम अक्षर के आधार पर उनकी राशि का निर्धारण किया जाता है ।
राशि निर्धारक सारणी-
क्रमांक | राशि | नक्षत्र | प्रथम अक्षर |
---|---|---|---|
1. | मेष | अश्विनी व भरणी का चारों चरण एवं कृतिका का प्रथम चरण | चू, चे, चो, ला, ली, लू, ले, लो, आ |
2. | वृष | कृतिका का दूसरा, तीसरा एवं चौथा चरण, रोहणी का चारो चरण, मृगशिरा का पहला एवं दूसरा चरण | इ, उ, ए, ओ, बा, बी, बू, बे, बो |
3. | मिथुन | मृगशिरा का तीसरा व चौथा चरण आर्द्रा का चारो चरण पुनर्वसु का पहले का तीन चरण | फा, फी, कू, घ, ड., छ, के, को, हा |
4. | कर्क | पुनर्वसु का अंतिम चरण, पुष्य का चारों चरण व आश्लेष का चारों चरण | ही, हू, हे, हा,डा, डी, डू, डे, डो |
5. | सिंह | मघा एवं पूर्वाफाल्गुनी का चारों चरण एवं उत्तराफाल्गुनी का प्रथम चरण | मा, मी, मू, मू, मो, टा, टी, टू, टे |
6. | कन्या | उत्तरा फाल्गुनी का शेष तीन चरण, हस्त का चारों चरण एवं चित्रा का प्रथम दो चरण | टो, पा, पी, पू, ष, झा, ठ, पे, पो |
7. | तुला | चित्रा के शेष दो चरण, स्वाति का चारों चरण, विशाखा का प्रथम तीन चरण | रा, री, रू, रे, रो, ता,ती, तू, ते |
8. | वृश्चिक | विशाखा का अंतिम चरण एवं अनुराधा व ज्येष्ठा का चारों चरण | तो, ना, नी, नू, ने, नो, य, यी, यू |
9. | धनु | मूल एवं पूर्वाषाढ़ का चारों चरण, उत्ताराषाढ़ का पहला चरण | ये, यो, भा, भी, भू, धा, फा, ढा, भे |
10. | मकर | उत्तराषाढ़ का शेष तीन चरण, श्रवण का चारों चरण, धनिष्ठा का प्रथम दो चरण | भो, जा, जी, खी, खू, खे, खी, गा, गी |
11. | कुंभ | धनिष्ठा का शेष दो चरण, शतभिषा का चारों चरण , पूर्वाभाद्रपद का तीन चरण | गू, गे, गो, सा, सी, सू, से, सो, दा |
12. | मीन | पूर्वाभादप्रद का अंतिम चरण,उत्तराभाद्र पद व रेवती का चारों चरण | दी, इ थ, झ, दे, दो, चा, ची |
ज्योतिष कैसे सीखें-
किसी भी बात को सीखने के लिये पहली आवश्यकता इच्छाशक्ति की होती है । जहॉं चाह है वहॉं राह है । महाभारत के एकलव्य प्रसंग में इसी इच्छा शक्ति का मूर्त रूप दिखाई पड़ता है । जहॉं एकलव्य अपनी इच्छा शक्ति एवं एकमेव स्वअभ्यास से अर्जुन से भी श्रेष्ठ धुनुर्धर हो गये । ज्योतिष भी इसी आधार पर स्वाध्याय से सीखा जा सकता है ।
ज्योतिष सीखने के विकल्प-
यदि आप ज्योतिष सीखना चाहते हैं तो इसके दो ही विकल्प है पहला एक गुरू के सानिध्य में दूसरा स्वाध्याय से । यदि आप किसी गुरू से ज्योतिष सीखना चाहते हैं तो इसके लिये आपको ज्योतिष के एक अच्छे जानकार को ढूंढना होगा फिर उसके निर्देशानुसार काम करना होगा । यदि आप स्वाध्याय से ज्योतिष सीखना चाहते हैं तो इसका भी विकल्प है । इसी विकल्पर पर हम चर्चा करते हैं –
स्वाध्याय से ज्योतिष सीखना-
स्वाध्याय से ज्योतिष सीखने के लिये प्रथम आवश्यकता स्रोत की होती है । स्रोत अर्थात वह माध्यम जिससे आप ज्योतिष सीख सकते हैं । आज के समय में यह स्रोत दो तरह से उपलब्ध हैं-पठन-पाठन और दृश्य-श्रव्य ।
पठन-पाठन स्रोत –
इसके अंतर्गत ऐसे माध्यम को सम्मिलित किये जा सकते हैं जिसे केवल पढ़ कर ज्योतिष का ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है । यद्यपि प्राथमिक स्रोत ज्योतिष की किताबे ही हैं और किन्तु इंटरनेट उपलध विभिन्न ब्लॉग आर्टिकल्स को प्राथमिक स्रोत मानकर आप अध्ययन कर सकते हैं । प्राथमिक जानकारी होने के पश्चात इसके गहन अध्ययन के लिये ज्योतिष की किताबे सरल से कठिन के क्रम में पढ़े ।
दृश्य-श्रव्य स्रोत-
इस स्रोत के अंतर्ग ऐसे माध्यम है जिसे देख-सुन कर ज्योतिष सीखा जा सकता है । इस प्रकार सबसे बड़ा माध्यम आजकल इंटरनेट यूट्यूब में उलब्ध विडियों हैं । इन विडियों को देखकर ज्योतिष की प्रारंभिक जानकारी प्राप्त किया जा सकता है ।
पुस्तक और अभ्यास ही अंतिम साधन- –
अपने प्राथमिक जानकारी ग्रहण करते हुये आपको उन किताबों का परिचय निश्चित रूप से हो जायेगा जिनमें ज्योतिष संबंधी गहन जानकारी है । अंतत: आप इन किताबों के प्रयोगात्मक अध्ययन करके ज्योतिष सीख सकते हैं ।
-रमेश चौहान
इसे भी देखें-
ज्योतिष एवं आयुर्वेद में अंत:संबंध
पंचांग क्या है ? पंचांग कैसे देखा जाता है ?