पहले भोजन का प्रबंध करो, तब ईश्वर की बात करो। You can’t talk of God to a hungry man, give him food first. चाहे पश्चिम जगत की सोच हो अथवा पूरब की, भोजन सबसे महत्वपूर्ण है! बिना भोजन के कैसा ईश्वर! मतलब भोजन का प्रबंध हो गया ईश्वर मिल गया। हा, हा, हा। मानव और ईश्वर का संबंध मात्र भोजन पर आधारित है!
कोई भोजन का प्रबंध कर दे, यही कहने का न आशय है? आंय! नहीं तो और क्या! हमें कुछ नहीं करना पड़े, अन्य कोई कर दे भले ही वह राजा अथवा आज के आलोक में सरकार हो।
शरीर तुम्हारी, और वयवस्था राजा करे! क्यों नहीं करेगा? राजा क्यों बना है, शासन करने के लिए? नहीं शासन करेगा तो संसार समाप्त हो जायेगा क्या?
राजा के पास भोजन की समस्या नहीं है, तभी तो उसका ईश्वर से प्रत्यक्ष संवाद होता है। यह किसने कह दिया? कहा जाता है कि राजा ईश्वर का प्रतिनिधि होता है, राजा को देखो, ईश्वर को देख लिया, परम आनंद प्राप्त कर लिए!
देखो और सुनो! तुम क्यों इस बात पर जोर दे रहे हो कि राजा/सरकार तुम्हारे लिए भोजन का प्रबंध करे, तुम क्या करोगे? तुम अपने शरीर के लिए भोजन का प्रबंध नहीं करना चाहते हो? मैं चाहता तो हूँ पर कोई कहता ही नहीं कि चलो भोजन का प्रबंध किया जाये। कहने पर क्यों जाते हो, स्वयं करो! शिशु के लिए शिशु करने जाता है कि उसकी माँ और बाद में पिता। पिता, बाद में! हाँ, माँ अपने शरीर के दूध को जब तक शक्ति है बिना कहे शिशु को दूध रूपी भोजन कराती रहेगी। बाद में भिक्षा मांग कर भी भोजन का प्रबंध करेगी लेकिन त्याग नहीं सकती है!
तब तो राजा को भी भिक्षा मांगना चाहिए क्योंकि वह प्रजा का पिता है! तुम नहीं समझे, वह क्यों मांगेगा? वह माता के समान है?या तो वह छोड़ कर भाग जायेगा अथवा मत कहलवाओ वह किसी दूसरे राजा को सौंप देगा। क्या बात कर रहे हो? यदि ऐसा होने लगे तो सर्वत्र मार काट मच जायेगी। संभव है ऐसा होना!
देखो, विषयांतर हो गये थे तुम। भोजन मिले तो गोपाल का भजन होगा ,नहीं तो. ..! क्या होगा? इंधन खत्म, यात्रा में ठहराव। कैसे जाओगे आगे की यात्रा पर। कोई कितना इंधन देगा तुम्हें? नहीं देगा मुफ्त में! अब समझ में आया!
शरीर तुम्हारा है, इसके पोषण के लिए कर्म तो तुम्हें ही करना पड़ेगा न! कर्ज भी ले सकते हो पोषण के लिए, ऋणं कृत्वा घृतं पीबेत, पर कब तक जब तक ऋण लेने और चुकाने की क्षमता है! नहीं तो अपने शरीर को ऋणदाता का दास बना दो । दासप्रथा संभवतः ऋणदाता और शक्तिशाली व्यक्तियों की पूंजी थी, है और रहेगी भले ही स्वरूप में परिवर्तन हो जाये।
फिर विषयांतर हो गये। क्या करूँ, गोपाल भजन सरल है क्या? नमस्कार, पुनः परिचर्चा करूँगा।
प्रोफेसर अर्जुन दूबे
गोरखपुर
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