फ़िल्म समीक्षा: “भूलन द मेज”

फ़िल्म समीक्षा: “भूलन द मेज”

समीक्षक: अजय ‘अमृतांशु’

फ़िल्म समीक्षा: “भूलन द मेज”

सुप्रसिद्ध उपन्यासकार संजीव बख्शी के उपन्यास “भूलन कांदा” आधारित छत्तीसगढ़ी फ़िल्म “भूलन द मेज” के शानदार सफलता उँकर मुँह मा करारा तमाचा हवय जेन मन बॉलीवुड ले आ के छत्तीसगढ़ ल ये कहिके अपमानित करथे कि इँहा ढंग के स्क्रिप्ट/ साहित्य /कहानी के कमी हवय। अपन कमजोरी ल छुपाय बर अइसन स्टेटमेंट दे के साहस अब कोनो नइ कर सकय। डायरेक्टर मनोज वर्मा अउ उँकर टीम के मेहनत ही आय कि “भूलन द मेज” ल राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार 2021 में सर्वश्रेष्ठ क्षेत्रीय फिल्म के अवार्ड मिलिस। येकर संगे संग कुछ केटेगरी म अंतराष्ट्रीय अवार्ड घलो मिले हवय। छत्तीसगढ़ में भूलन कांदा के बारे म ये मान्यता हवय कि जेन येकर पौधा ल खूंद डारथे वोहा रस्ता भटक जाथे। वोला तब तक रस्ता नइ मिलय जब तक कि कोनो दूसर मनखे वोला रस्ता नइ बताही। वो मनखे उही उही मेर घूमत रहिथे। इही ल आधार मान के ये फ़िल्म बने हवय कि कइसे हमर देश के कानून व्यवस्था भटकगे हवय, मानो की भूलन कांदा ल खूंद डरे हो।

कहानी एक अइसन आदिवासी बाहुल्य गाँव के आय जिहाँ सबो झन आपस म जुरमिल के रहिथें। गाँव के मुखिया के सम्मान हवय पंचायत के हर निर्णय ग्रामवासी मन ल मान्य हवय। गाँव म शिक्षा के कमी तो हवय फेर उँकर जिनगी आराम से चलत हवय जेमा आज के कानून व्यवस्था इहाँ के गाँव वाले मन उपर भारी परथे। जमीन के विवाद में भकला संग धक्का मुक्की म बिरझू नागर के नास उपर गिर के मर जाथे । मुखिया अउ गाँव वाले मन जानथे कि येमा भकला गलती नइ हे वोहा खून नइ करे हवय। भकला के दू झन लइका अउ पत्नी हवय जेला बचाय बर गंजहाँ ह खून के इल्जाम अपन उपर ले लेथे काबर गंजहा सियान होगे हवय अउ ओकर देख रेख करइया घलो कोनो नइ हे। पंचायत म सहमति अनुसार गंजहा खुशी खुशी जेल चल देथे।

समस्या तब शुरू होथे जब गाँव वाले मन गंजहा ल जेल ले छोडाय बर अर्जी लगाथे । ये चक्कर म पूरा घटना के राज खुल जाथे अउ गंजहा के जघा भकला ल जेल हो जथे। अब दू प्रकरण चले लगथे एक भकला के ऊपर अउ दूसर गाँव वाले मन ऊपर साक्ष्य ला छुपाय ख़ातिर। पूरा गाँव के पेशी रायपुर म लगे लगथे। अदालती कार्यवाही म देरी अउ वकील मन के द्वारा कोर्ट के कटघरा म पुछताछ ल बड़ा संजीदगी ले दिखाय गे हवय। इही पूछताछ म भकला फँस जाथे अउ बहुत बड़े सजा फाँसी/ उम्रकैद के दोषी हो जाथे। भोला-भाला आदिवासी मन आज के कानूनी व्यवस्था म कइसे पेराथे येकर बढ़िया चित्रण डायरेक्टर करे हवय, काबर कानून गाँव के सामाजिक न्याय के हिसाब से काम नइ करय। कानून अपन हिसाब से काम करथे अउ साक्ष्य ऊपर फैसला देथे। अंत मे कानूनी दाँवपेंच म भकला के वकील हा भकला ला बचा लेथे संगे संग गाँव वाले मन ल घलो पेशी ले छुटकारा मिल जाथे । फेर ये प्रक्रिया मा पूरा के पूरा गाँव कइसे पेराथे येला डायरेक्टर मनोज वर्मा पूरा क्षमता के दिखाय हवय। दूरस्थ आदिवासी अंचल ले पूरा गांव के गांव रायपुर आना और कई दिन रुक के पेशी म हाजिर होय म जेन परेशानी होथे ये आज के न्याय व्यवस्था उपर सवाल खड़ा करथे।

फ़िल्म म छत्तीसगढ़ के लोक संस्कृति के सुग्घर झलक मिलथे। आदिवासी मन के रहन सहन देख के अन्तस ल सुकून मिलथे।

ओंकार दास मानिकपुरी (भकला) ,प्रेमिन (अणिता पगारे ) लीड रोल म हवय।
सलीम अंसारी (गंजहा), संजय महानंद (कोटवार), आशीष शेंडे ( मुखिया)
राजेन्द्र गुप्ता(वकील) सहित सबो कलाकार मन अपन अपन किरदार ल बखूबी निभाय हवय। फ़िल्म म हास्य अउ व्यवस्था ऊपर धारदार व्यंग्य दर्शक ल आखिर तक बांधे रखथे।

गरियाबंद के मउहाभाठा गांव म ये फ़िल्म के शूटिंग होय हवय। फिल्म के टाइटल गीत कैलाश खेर के हवय जेन बीच बीच म चलत रहिथे। सुनील सोनी के मधुर संगीत ये फ़िल्म म हवय। फ़िल्म म कोनो बड़े स्टार कलाकार नइ हे वोकर बावजूद फ़िल्म के अपार सफलता फ़िल्म के स्क्रिप्ट अउ डायरेक्टर जबर मेहनत के प्रतिफल आय।

पूरा फ़िल्म मा भकला जो कि लीड रोल म हवय वोकर संवाद केवल अतके हवय –
ह..ह.. हहो…. बस अतके बोलवा के ही किरदार से काम ले लेना ये डायरेक्टर के कुशलता के परिचायक हवय।
फ़िल्म म मास्टरजी के रूप में लेखक अंत तक मौजूद रहिथे।
छत्तीसगढ़ राज बने के बाद 22 बछर म ये तरह के पहिली फ़िल्म आइस जेन मील के पथरा बनगे। सरकार ये फ़िल्म ल टैक्स फ्री कर दे हवय संगे संग 1 करोड़ के इनाम घलो दे हवय। निश्चित रूप से छत्तीसगढ़ के बाकी निर्माता निर्देशक मन घलाव ये फ़िल्म से प्रेरित हो के रिस्क उठाही अउ कुछु नवा बनाही। यदि मन से कुछु करे जाय तो निश्चित रूप से सफलता मिलथे। ये फ़िल्म एहू बात ल साबित कर दिस कि छत्तीसगढ़ म फ़िल्म निर्माण खातिर न तो स्क्रिप्ट कमी हे अउ न कलाकार के। फिल्म के डायरेक्टर मनोज वर्मा ला गाड़ा गाड़ा बधाई।

-अजय अमृतांशु

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