भूमि अतिक्रमण एक गंभीर चुनौती
-रमेश चौहान
जल संरक्षण और पर्यवरण संरक्षण हेतु सरकार के साथ -साथ कई-कई सामाजिक संस्थाओं के द्वारा सतत प्रयास किये जा रहे हैं । इसके साथ ही लाखों व्यक्ति व्यक्तिगत इस दिशा में प्रयास कर रहे हैं, जो वंदनीय है । किन्तु इस समस्या के मूल पर किसी के द्वारा कोई विशेष ध्यान नहीं दिया जा रहा है ।
जरा विचार करें इसके मूल में क्या है? प्रकृति के साथ छेड़-छाड़ कैसे हो रहा है? लाखों पेड़ कैसे समाप्त हो रहे हैं ? हजारों नदियों का अस्तित्व कैसे गुम हो रहा है ???
गंभीरता पूर्वक विचार करने पर आप पायेंगे इस सब के मूल में भूमि अतिक्रमण (बेजाकब्जा) हैं, अमीर अपने अमीरी से, गरीब अपने गरीबी से, दबंग अपने दबंगई से जगह-जगह सरकारी स्थानों को, प्राकृतिक स्थानों को, जंगलों पर, नदियों पर, तालाबो पर स्वामित्व बनाते जा रहे हैं, लेकिन बोलने वाला कोई नहीं है, आप अनुभव कीजिए भूमि अतिक्रमण एक गंभीर समस्या बन चुकी है ।
सरकार के कर्ता-धर्ता नेता चाहे वह किसी पार्टी से हो, वोट के लालच में अंधा, बहरा, गूंगा बना पड़ा हुआ है । उल्टे सरकार ऐसे लोगों को प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष सहयोग ही कर रही है । अतिक्रमण किये हुये भूमि में जल, प्रकाश, गली की व्यवस्था कर, प्राकृतिक आपदा पर मुवावजा दे कर । जबकि प्राकृतिक आपदा तो ऐसे ही लोगों के कारण उत्पन्न हो रहे हैं, नदियों के राह रोकने से बाढ़ का आना, जंगलों की कटाई से सूखा पड़ना । इन बेजाधारियों का ही परिणाम है ।
बेजाकब्जा से गाँव की पुरानी बस्ती का अस्तित्व खतरे में पड़ गया है । गाँव के निस्तारी गलियों का दिनों-दिन सकरा होना, गाँवों से निस्तारी के तालाब, गोचर का विलुप्त होना , यह सब बेजाकब्जा का ही परिणाम है ।
बेजाकब्जा के खिलाफ कोई आवाज बुलंद नहीं कर रहा है, और चिल्ला रहे हैं जल बचावों, मैं कहता हूँ जल स्रोत नदियों तालाबों, कुँओं को बचओं और नये जल स्रोत विकसित करो । तभी जल बचेगा । अपने घर से कोई एक लिटर पानी बचा ले और हजारों लिटर के जल स्रोत कुँआ, तालाब को ही पी जाये तो कहां की बुद्धिमानी है ।
आज आवश्यकता है भूमि अतिक्रमण को रोकने का, इसके खिलाफ युद्ध का शंखनाद करने का इसका एक प्लेटफार्म ये हमारा सोशल मिड़िया भी बन सकता है । आइये यहीं से श्रीगणेश करें । भूमि अतिक्रमण के विरूद्ध आवाज बुलंद करें । हम सब संकल्प लें कि हम खुद भूमि अतिक्रमण नहीं करेंगे और दूसरों को भूमि अतिक्रमण करने से रोकेंगे ।