छत्तीसगढ़ के तिज-तिहार भाग-1 अषाढ़-सावन के तिहार
-रमेश चौहान
छत्तीसगढ़ के तिज-तिहार –
भारतीय संस्कृति के नाना प्रकार के रंग हे । तिज-तिहार खुशी-उछाह मनाये के आड़ आय जेखर ले हमर जिनगी म कुछ तो उत्साह बने रहय, दुख-तकलीफ के एहसास कुछ तो कम होवय । छत्तीसगढ़ म घला तिज-तिहार के छत्तीस रंग हे । ध्यान ले देखी त हम पाथन के हमर छत्तीसगढ़ म साल बर तिहार के क्रम चलत रहिथे । अषाढ़ म रसदुतिया (रथयात्रा), सावन म सावन सोमवार, हरेली, राखी भादो म खमरछठ, जन्माष्टमी, तिजा-पोरा, गणेश चतुर्थी, कुवार म पितरपाख, नवरात्रि, दशहरा, कार्तिक म देवारी अगहन म अगहन गुरूवार, पुस म छेरछेरा पुन्नी, माघ म बसंत पंचमी, फाागुन म होली, चइत जोत-जवारा, रामनवमी, बइसाख म अक्ती अइसे करके हर महिना कोनो न कोनो तिहार-बार होथे ।
छत्तीसगढ़ म बारो महिना के तिहार –
हमर-तिहार बार मन हिन्दी महिना के अनुसार मनाए जाथे न कि अंग्रेजी महिना के अनुसार । हालाकी हिन्दी महिना चइत ले शुरू होथे फेर हम छत्तीसगढि़यामन अषाढ़, सावन, भादो कहिके अषाढ़ ले गिने ल शुरू करथन । छत्तीसगढ़ म बारो महिना के तिहार ए प्रकार हे-
. | महिना | तिथि | तिज-तिहार |
1. | अषाढ़ | अंजोरी दूज | रसदूतिया |
पुन्नी | गुरूपूर्णिमा | ||
2. | सावन | हर सोमवार के | सावन सोमवार |
अम्मावस | हरेली | ||
अंजोरी पंचमी | नागपंचमी | ||
पुन्नी | राखी | ||
3. | भादो | अंधियारी एकम | भोजली |
अंधियारी छठ | कमरछठ (खमरछठ) | ||
अंधियारी आठे | आठेकन्हैया (जन्माष्टमी) | ||
अम्मावस | पोरा (पोला) | ||
अंजोरी तिज | तिजा | ||
अंजोरी चउथ ले चउदश तक | गणेश पक्ष | ||
4. | कुंवार | अंधियारी एकम ले अम्मावस तक | पितरपाख |
अंजोरी एकम ले नवमी तक | नवरात्री | ||
अंजोरी दशमी | दशहरा | ||
पुन्नी | शरदपुन्नी | ||
5. | कातिक | पूरा महिना भर | कातिक स्नान |
अंधियारी तेरह | धनतेरहस | ||
अंधियारी चउदश | नरक चउदश | ||
अम्मावस | सुरहुत्ती | ||
अंजोरी एकम | देवारी | ||
अंजोरी दूज | भाई दूज | ||
अंजोरी एकादशी | देवउठनी (तुलसी बिहाव) | ||
6. | अगहन | हर गुरूवार के | अगहन गुरूवार |
7. | पुस | पुन्नी | छेरछेरा पुन्नी |
अंग्रेजी तारिख 18 दिसम्बर | घासीदास जयंती | ||
8. | माघ | अंजोर पंचमी | बसंतपंचमी |
पुन्नी | माघ मेला, पुन्नी मेला | ||
9. | फागुन | अंधियारी तेरस | महाशिवरात्रि |
पुन्नी | होलिका दहन | ||
10. | चइत | अंधियारी एकम | होली |
अंजोरी एकम ले नवमी तक | नवरात्रि | ||
अंजोरी नवमी | रामनवमी | ||
11. | बइसाख | अंजोरी तिज | अक्ती |
12. | जेठ | अंजोरी एकादशी | भीमसेनी एकादशी |
छत्तीसगढ़ के तिज-तिहार बर गीत-कविता
छत्तीसगढ़ म बारो महिना कुछ न कुछ तिहार-बार जरूर होथे ऐही पाए के हमार छत्तीसगढि़या गीतकार-साहित्यकार मन अलग-अलग तिहार के गीत कविता के अलावा बारहमासी गीत के रचना करें हें । ऐही क्रम म महूं ह कोशिश करे हंव-
बारामासी गीत-हमर छत्तीसगढ़ म तो साल भर तिहार हे-
(1)
हमर छत्तीसगढ़ मा, तो साल भर तिहार हे
लगे जइसे दाई हा, करे गा सिंगार हे।
हम आषाढ महिना, रथयात्रा मनाथन
घर घर कथा पूजा, देव ला जोहार हे ।।
पधारे जगन्नाथ हा, सजे सुघ्घर रथ मा
गांव गांव गली गली, करे विहार हे ।
भोले बाबा सहूंहे हे, सावन महिना भर
करलव गा उपास, सावन सोम्मार हे ।।
(2)
येही मा हरेली आथे, किसान हा हरसाथे
लइका खापे गा गेड़ी, मजा भरमार हे ।
भाई बहिनी के मया, सावन हा सजोवय
बहिनी बांधय राखी, देत दुलार हे ।।
भादो मा खमरछठ, पसहर के चाऊर
खाके रहय उपास, दाई हमार हे ।
आठे कन्हैया मनाय, जनमदिन कृश्णा के
दही लूट के गांव मा, बड़ खुमार हे ।।
(3)
दाई माई बहिनी के, आगे अब तिजा पोरा
जोहत लेनहार ला, करे वो सिंगार हे ।
लइकापन के जम्मो, संगी सहेली ह मिले
पटके जब तो पोरा, परत गोहार हे ।
घर घर करू भात, जा जा मया मा तो खाथें
आज तिजा के उपास, काली फरहार हे ।
ठेठरी खुरमी फरा, आनी बानी के कलेवा
नवा नवा लुगरा ले, नोनी गुलजार हे ।
(4)
ठेठरी-खुरमी पागे, मइके दुलार हे ।
आगे भादो के महिना, गणराजा हा पधारे
गणेश भक्ति मा डूबे, अब तो संसार हे।
कुलकत लइकामन, खूब नाचय कूदय
जय गणेश कहि के, करे जयकार हे ।
खमरछठ सगरी, आठे कन्हैया उपास
ए भादा महिना तोरे, महिमा अपार हे ।
(5)
कुवांर महिना संग, पितर पाख आवय
देवता बन पधारे, पुरखा हमार हे ।
तरपन करथन, बरा चिला चढ़ाथन
मरे बर मया कर, येही हा संस्कार हे ।
दूसर पाख मा आथे, दुर्गा दाई घर घर
करय जम्मो भगत, दाई ला जोहार हे ।
नव दिन नव रात, अखंड जोत जलय
मन मा खुशी उमंग, भरे भरमार हे ।
(6)
कातिक देवारी लाथे, घर लिपव पोतव
खोर-गली झारे-लिपे, कहय तिहार हे ।
पंच दिन पांच रात, रिगबिग दिया बारे
लड़का फोरे फटका, खुशी असम्हार हे ।।
सुरहुत्ती के दिया ल, एक दूसर घर धर
गोवर्धन पूजा कोठा, गौ-धन हमार हे ।
राउत मातर जागे, गुदुम बाजा नाचय
भाई-दूज के कलेवा, बहिनी के प्यार हे ।।
(7)
सुवा नाच नाचत हे, गांव के दीदी बहिनी
गउरा-गउरी बिहाव ह, हमर चिन्हार हे ।
एकादशी देव जागे, देवउठनी कहाये
घर-घर तुलसी म, मड़वा कुशियार ।
दुवारी लक्ष्मी गोड के, चौका-चउक पुराये
हे अगहन महिना, दिन गुरूवार हे ।
पुस छेरछेरा पुन्नी, अन्न दान के महत्ता
संग लाथे मेला-ठेला, रहचुली झार हे ।
(8)
माघ म बसंत पंचमी, सरस्वती ल सुमर
होली-डांग आज गढ़े, फगुवा खुमार हे ।
फागुन म फाग गाये, थाप नगाड़ा गमके
रंग गुलाल के पोते, मुॅंह न चिन्हार हे ।
चइत महिना पावन, दमके जोत जवारा
जसगीत म झुमरत, श्रद्धा दिखे हमार हे ।
रामनवमी राम के, जनमदिन मनाव
राम के रेंगे रद्दा, रद्दा चतवार हे ।
(9)
बइसाख अक्ती आए, सजे पुतरा-पुतरी
नोनी बांटे चना दाना, बिहाव तिहार हे ।
जेठ के गोठ अलग, चले गरम तफ्फर्रा
धधके लू के धधका, निच्चट असम्हार हे ।
पानी पीया दौव प्यासे, छानही बांधे पोरहा
चिरई चिरगुन ह, घला तो हमार हे ।
छत्तीसगढ़ के हवे, नगत रंग छत्तीसा
मोर छत्तीसगढ़ मा, साल भर तिहार हे ।
छत्तीसगढ़ी छंद कविता के कोठी ले
छत्तीसगढ़ म अषाढ़ महिना के तिहार-
छत्तीसगढ़ म अषाढ़ महिना रसदूतिया अउ गुरूपूर्णिमा परब ल मनाए जाथे । ए दूनों तिहार ल चमाचम घर पाछू नई मनावय जेन मानथे तेन मानथे ।
रसदूतिया-
रसदूतिया ल पूरा देश म रथयात्रा के नाम ले जाने जाथे । रथयात्रा उडिसा के पुरी म स्थित भगवान जगन्नाथ म उत्साह पूर्वक मनाए जाथे । छत्तीसगढ़, उडिसा के परोसी राज्य आय एखर सेती ऐखर प्रभाव हमरो इहां देखे बर मिलथे । छत्तीसगढ़ के बहुत अकन गॉंव-शहर म रथयात्रा निकाले जाथे । रसदूतिया ल अषाढ़ महिना के अंजोरी पाख के दूज के दिन मनाए जाथे ।
रसदूतिया म घर पूजा अउ कथा के चलन-
छत्तीसगढ़ म रसदूतिया के दिन भगवान सत्यनारायण के कथा कराए जाथे । एपरम्परा ह छत्तीसगढ़ रथयात्रा निकाले के परम्परा ले जुन्ना हे । रसदूतिया के दिन उछाह म कथा कराए जाथे । नवा घर के पूजा-पाठ (गृह प्रवेश) पर रसदूतिया ल शुभ मुर्हुत मान ले जाथे । रसदूतिया के दिन नवा घर के पूजा पाठ कराए जाथे ।
गुरूपूर्णिमा-
अषाढ़ पुन्नी के दिन पूरा देश के संगेसंग हमर छत्तीसगढ़ म घला गुरूपूर्णिमा मनाए जाथे । ए परब ल दान के परब कहे जाथे । ए दिन मनखे अपन कनफुक्का गुरू ल अपन समरथ अनुसार दान-पुन करके अपन गुरू के सम्मान करथें ।
छत्तीसगढ़ म सावन महिना के तिहार-
सावन महिना छत्तीसगढ़ बर बड़ महत्वपूर्ण होथे । पूरा सावन महिना बाबा भोलेनाथ के पूजा पाठ करे जाथे । महिना के हर सोमवार के उपवास रखे जाथे । ए महिना म हरेली, नागपंचमी अउ राखी के तिहार मनाए जाथे ।
छत्तीसगढ़ के पहिली तिहार हरेली –
छत्तीसगढ़ के परम्परा, रीति-रिवाज, तिहार-बार के अपन अपने मजा हे । छत्तीसगढ़ के तिहार के शुरूवात हरेली तिहार ले माने जाथे । काबर के ऐअइसे पहिली तिहार आय जेमा पहिली बार तेलाही चढ़ाए जाथे, मतलब पहिली बार कलेवा बनाए जाथे । हरेली तिहार किसानी प्रधान छत्तीसगढ़ के प्रमुख तिहार आए । हरेली तिहार के नाम ले ही बता चलत हे के ए हरियर-हरियर लहरावत धनहा-डोली ल देख के किसान मन के खुशी मनाए के तिहार आय ।
हरेली कब मनाथे-
हमर-तिहार बार मन हिन्दी महिना के अनुसार मनाए जाथे न कि अंग्रेजी महिना के अनुसार । हालाकी हिन्दी महिना चइत ले शुरू होथे फेर हम छत्तीसगढि़यामन अषाढ़, सावन, भादो कहिके अषाढ़ ले गिने ल शुरू करथन ऐही पाए हरेली ल साल के पहिली तिहार माने जाथे काबर के हरेली के तिहार ल हर साल सावन महिना के अमावस्या के मनाए जाथे । अंग्रजी महिना मा जुलाई म परथे ।
कइसे मनाए जाथे-
हरेली तिहार के दिन सबले पहिली गाय-गरूवा ल लोंदी खवाए जाथे । लोंदी बनाए बर गहूं पिसान म नून डार के सान के हथेली भर के गोला बनाए जाथे, ऐही ल लोंदी कहिथें । एखर पाछू किसानी के जम्मो औजार ल धो-मांज के अंगना नवा मुरुम बिछा के रखे जाथे । ए औजार मन के पूजा पाठ करके गुरहा चिला चढ़ाए जाथे । किसानी औजार के संगे-संग लोहा के औजार के घला पूजा करे जाथे । ए पूजा पाठ म गेड़ी के घला पूजा करे जाथे । लइका मन गेडी के बहुत मजा लेथे ए पाए के ऐला गेडी तिहार घला कहि देथें ।
हरेली म परम्परा के चलन-
हरेली म कई प्रकार के परम्परा के चलन देखे ल मिलथे । आज के दिन पौनी-पसारी राउत, केवट, लोहार मन आथे । राउत मन घर-घर लिम के डारा खोंचे बर आथें, केवट मन अपन जाली ले के आथें अउ घर के कोनो सदस्य ल ऐला ओढ़ा के अपन शुभकामना देथें । लोहार मन छोटे खिला अउ हथौड़ी लेके आथें अउ घर के चौखट म खिला ठोक के अपना शुभकामना देथें । ए दिन नरियर फेक के खेल के परम्परा घलो हवय ए दिन गांव के लइका-सियान नरियर फेंके के खेल घला खेलथें । हरेली के दिन ल तंत्र-मंत्र साधे बर शुभ माने जाथे ।
हरेली बर कविता-
हरेली परब ऊँपर मैं दू-चारठन गीत कविता के रचना करे हंव येमा कुछ ल आप संग साझा करत हंव-
हरेली: हॅसी खुशी ला बांटत हावय –
सुख के बीजा बिरवा होके, संसो फिकर ल मेटय ।
धनहा डोली हरियर हरियर, मनखे मन जब देखय ।।
धरती दाई रूप सजावय, जब आये चउमासा ।
हरियर हरियर चारो कोती, बगरावत हे आसा ।।
सावन अम्मावस हा लावय, अपने संग हरेली ।
हॅसी खुशी ला बांटत हावय, घर घर मा बरपेली ।
कुदरी रपली हॅसिया नागर, खेती के हथियारे ।
आज देव धामी कस होये, हमरे भाग सवारे ।।
नोनी बाबू गेड़ी मच-मच, कूद-कूद के नाचय ।।
बबा खोर मा बइठे बइठे, देख देख के हाॅसय ।।
छन्न पकइया छन्न पकइया, आज हरेली हाबे
छन्न पकइया छन्न पकइया, आज हरेली हाबे ।
गउ माता ला लोंदी दे के, बइला धोये जाबे ।
छन्न पकइया छन्न पकइया, दतिया नांगर धोले ।
झउहा भर नदिया के कुधरी, अपने अॅगना बो ले ।।
छन्न पकइया छन्न पकइया, कुधरी मा रख नागर ।
चीला रोटी भोग लगा के, खा दू कौरा आगर ।।
छन्न पकइया छन्न पकइया, ये पारा वो पारा ।
राउत भइया हरियर हरियर, खोचे लिमवा डारा ।
छन्न पकइया छन्न पकइया, घर के ओ मोहाटी ।
लोहारे जब खीला ठोके, लागे ओखर साटी ।।
छन्न पकइया छन्न पकइया, केवट भइया आगे ।
मुड़ मा डारे मछरी जाली, लइका मन डररागे ।।
छन्न पकइया छन्न पकइया, नरियर फेके जाबो ।
खेल खेल मा जीते नरियर, गुड़ मा भेला खाबो ।।
छन्न पकइया छन्न पकइया, गेड़ी चर-चर बाजे ।
चढ़य मोटियारी गेड़ी जब, आवय ओला लाजे ।।
छन्न पकइया छन्न पकइया, सबले पहिली आथे ।
परब हरेली हमरे गढ़ के, सब झन ला बड़ भाथे ।।
हरेली हे आज-
लइका सियान जुरमिल के खुशी मनाव हरेली हे आज ।
अब आही राखी तिजा पोरा अऊ जम्मो तिहार हो गे अगाज ।
चलव संगी धो आईय नागर कुदरा अऊ जम्मो औजार ।
बोवईय झर गे निदईय झर गे झर गे बिआसी के काज ।
हमर खेती बर देवता सरीखे नागर गैती हसिया,
इखर पूजा पाठ करके चढ़ाबो चिला रोटी के ताज ।
लिम के डारा ले पहटिया करत हे घर के सिंगार ।
लोहार बाबू खिला ले बनावत हे मुहाटी के साज ।।
ढाकत हे मुड़ी ल मछरी जाली ले गांव के मल्लार ।
ये छत्तीसगढ़ म हर तिहार के हे छत्तीस अंदाज ।।
बारी बखरी दिखय हरियर, हरियर दिखय खेत खार ।
चारो कोती हरियर देख के हमरो मन हरियर हे आज ।।
तरूवा के पानी गोड़इचा म आगे आज ।
माटी के सोंधी सोंधी महक के इही हे राज ।
गांव के अली गली म ईखला चिखला ।
चलव सजाबो गेडी के सुघ्घर साज ।।
जम्मो लइका जवान मचलहीं अब तो ,
बजा बजा के गेड़ी के चर चर आवाज ।।
चलो संगी खेली गेड़ी दउड अऊ खेली नरियर फेक,
जुर मिल के खेली मन रख के हरियर हरियर आज ।
नागपंचमी-
नागपंचमी घला छत्तीसगढ़ के एक प्रमुख तिहार हे । नाग पंचमी के तिहार सावन महिना के अंजोरी पाख के पंचमी के दिन मनाए जाथे । आज के दिन नाग देवता के पूजा करे जाथे । नाग के तांत्रिक-बइगा मन बर ए दिन बड़ काम के होथे । ए दिन ओमन जउन भार बांधे रहिथें, ओला छोरथें । नाग पंचमी के दिन शिव मंदिर या नाग मंदिर नही तनाग भिमौरा म नाग बर दूध चढ़ा के पूजा पाठ करे जाथे ।
नागपंचमी के जुन्ना परम्परा-
- नागपंचमी जुन्ना परम्परा के अनुसार ए दिन पहलवानी के दिन आए । आज के दिन अखाड़ा म मल युद्ध के प्रतियोगिता के आयोजन करे जात रहिस । आज भी कहूं-कहूं ए परम्परा केनिर्वाह करे जात हे ।
- नाग पंचमी के दिन पहिली स्कूल म भव्य आयोजन होत रहिस । लइका मन अपन स्लेट म नाग के फोटू बना के, दूध, लाई, नारियर अउ पूजा पाठ के समान धर के स्कूल जात रहिन । स्कूल म सामूहिक रूप ले नाग पूजा के आयोजन करे जात रहिस । पूजा-पाठ के बाद लइका मन के बीच म पहलवानी के प्रतियोगता आयोजित करे जात रहिस । अब ए परम्परा देखे ल नइ मिलत हे ।
नाग पंचमी बर कविता-
दूध ले गिलास भरे, हाथ मा पट्टी ला धरे,
नाग फोटु उकेर के, स्कूल जात लइका ।
फूल-पान ला चढ़ाये, नाग देवता मनाये ,
नरियर ला फोर के, रखे हवें सइता ।।
बारी-कोला खेत-खार, माटी दिया दूध डार,
भिमोरा ला खोज के, पूजे हवे किसाने ।
प्राणी प्राणी हर जीव, जेमा बिराजे हे षिव,
नाग हमर देवता, धरती के मिताने ।।
जांघ निगोट लपेट, धोती कुरता ला फेक,
बड़े पहलवान हा, देख तइयार हे ।
गांव मा खोजत हवे, चारो कोती घूम-घूम
लडे बर तो गांव मा, कोन होशियार हे ।
जांघ ला वो ठोक-ठोक, कहत हे घेरी-बेरी,
अतका जड़ गांव मा, लगथे सियार हे ।
आजा रे तैं जवान, आजा गा तैं किसान,
मलयुद्ध तो खेलबो, पंचमी तिहार हे ।।
राखी तिहार (रक्षा बंधन)-
रक्षा बंधन राखी के तिहार सावन महिना के पुन्नी के दिन पूरा देश के संगे-संग हमर छत्तीसगढ़ म मनाए जाथे जइसे के सबोझन जानथे के ए दिन बहिनी ह अपन भाई के हाथ म राखीं बांध के अपन मया-दुलार देखाथे अउ रक्षा बर अपन भाई ले आसा करथे । भाई घला अपन बहिनी ल उपहार देके ओखर वचन ल स्वीकार करथे । फेर मैं देखथव ए तिहार ल छोटे लइका मन जादा खुशी ले मनाथें बड़े-बड़े भाई बहिनी मन म ओतका उत्साह नई दिखय पोस्ट म राखी ल भेज देथें । कोनो कोनोच भाई राखी के दिन अपन बहिनी घर जाथें ।
रक्षा बंधन सामाजिक एकता के तिहार-
छत्तीसगढ़ के तिज-तिहार राखी (रक्षा बंधन) केवल पारिवारिक तिहार न होके सामाजिक तिहार आय । ए तिहार सामाजिक एकता बर बड़ महत्व हे । जाति, धर्म के बंधन ले मुक्त ए तिहार सामाजिक समरसता बगराथे काबर ए तिहार न केवल सगे भाई-बहनी मनाथे बल्कि ए तिहार ल हितु-पितु, संगी-संगवारी, मितान के लइका मन घला आपस म भाई बहिनी मान के मनाथे । एक जात बहिनी दूसर जात के भाई ल राखी बांधते ऐही प्रकार एक-दूसर धर्म के भाई बहिनी मन घला ए तिहार बड़ उछाल जे मनाथें ।
राखी तिहार बर कविता-
नवा समय के अनुसार राखी तिहार बर एक कविता आप मन ले साझा करत हंव-
ये राखी तिहार
ये राखी तिहार,
लागथे अब,
आवय नान्हे नान्हे मन के ।
भेजय राखी,
संग मा रोरी,
दाई माई लिफाफा मा भर के ।
माथा लगालेबे,
तै रोरी भइया,
बांध लेबे राखी मोला सुर कर के ।
नई जा सकंव,
मै हर मइके,
ना आवस तहू तन के ।
सुख के ससुरार भइया
दुख के मइके,
रखबे राखी के लाज
जब मै आवंह आंसू धर के ।
-रमेश चौहान
आघू भाग अगला अंक म- छत्तीसगढ़ के तिज-तिहार भाग-2: भोजली तिहार
सुंदर आलेख क लिए बधाई