चवपैया एवं त्रिभंगी छंद का संपूर्ण परिचय
-रमेश चौहान
चवपैया एवं त्रिभंगी छंद –
चपपैया और त्रिभंगी छंद सुनने में एक समान लगता है । ये दोनों ही छंद बहुप्रचलित और लोकप्रिय छंद है । इन दोनों छंदों समानता और अंतर को यहां सोदाहरण स्पष्ट करने का प्रयास किया गया है ।
चवपैया एवं त्रिभंगी छंद में समानता-
- दोनों ही सममात्रिक छंद हैं ।
- दोनों की गति तीन बार भंग होती है ।
- दोनों के पहले और दूसरे पद में समान तुक होता है।
- दोनों का अंत गुरू से होता है ।
चवपैया एवं त्रिभंगी छंद में असमानता-
- चवपैया 30 मात्रा की होती है जबकि त्रिभंगी 32 मात्रा की ।
- चवपैया के प्रत्येक चरण में तीन पद (10,8,12) होते हैं जबकि त्रिभंगी छंद में चार पद (10,8,8,6) होते हैं ।
- चवपैया छं का अंत सगण गुरु से होता है जबकि त्रिभंगी छंद का अंत लघु गुरु से होता है ।
चवपैया छंद-
चवपैया छंद की परिभाषा चवपैया छंद में-
दस आठ भार भर, फिर बारह कर, बन जाये चवपैया ।
चार चरण आये, सबको भाये, बटे तीन यति भैया ।
पहले दूसर पद, सम तुक का हद, अंत सगण गुरू राखो ।
सुंदर आखर भर, सोच सुगढ़ कर, अपने अंतस झाको ।।
चवपैया छंद की परिभाषा और नियम-
जिस छंद के चारो चरण में तीस-तीस मात्रा आवे, जिसके चारों चरण 10-8-12 मात्रा पर यति आये । 10 मात्रा भार और 8 मात्रा भार वाले पद में समान तुक आये । 12 मात्रा भार के अंत सगण गुरू आवे, चवपैया छंद कहलाता है ।
कलविन्यास-
- प्रथम पद-10 मात्रा भार-‘‘ (चौकल+चौकल + द्विकल ‘‘ या ‘‘षटकल + चौकल‘‘ या द्विकल +षटकल+ द्विकल
- द्वितीय पद- 8 मात्रा भार -‘‘चौकल + चौकल‘‘ या ‘‘षटकल + द्विकल‘‘
- तृतीय पद-12 मात्रा भार-‘‘षटकल + सगण + गुरू‘‘ या ”चौकल + भगण + गुरू गुरू”
- विशेष- यदि एक चौकल जगण में हुआ तो यह त्रिभंगी न होकर शुद्धध्वनि छंद हो जाएगा ।
चवपैया छंद के कल विन्यास का उदाहरण-
पहला पद-10 मात्रा भार | दूसरा पद- 8 मात्रा भार | तीसरा पद- 12 मात्रा भार |
दस +आठ भार +भर (द्विकल +षटकल+ द्विकल) | फिर बा+रह कर (चौकल + चौकल) | बन जाये + चवपै + या (षटकल + सगण + गुरू) |
चार चरण + आये ( षटकल+ चौकल ) | सबको + भाये (चौकल + चौकल) | बटे तीन + यति भै + या (षटकल + सगण + गुरू) |
पहले + दूसर + पद (चौकल+चौकल + द्विकल ) | सम तुक + का हद (चौकल + चौकल) | अंत सगण + गुरू रा + खो (षटकल + सगण + गुरू) |
सुंदर + आखर + भर (चौकल+चौकल + द्विकल ) | सोच सुगढ़ + कर (षटकल + द्विकल) | अपने अं + तस झा + को (षटकल + सगण + गुरू) |
चवपैया छंद में तुकांतता-
चवपैया छंद के प्रत्येक चरण के पहले और दूसरे पद में समान तुक होता है-
दस आठ भार भर, फिर बारह कर,
चार चरण आये, सबको भाये,
पहले दूसर पद, सम तुक का हद,
सुंदर आखर भर, सोच सुगढ़ कर,
चवपैया छंद के चारो चरण के दो-दो चरणों में समान तुक होता है-
दस आठ भार भर, फिर बारह कर, बन जाये चवपैया ।
चार चरण आये, सबको भाये, बटे तीन यति भैया ।
पहले दूसर पद, सम तुक का हद, अंत सगण गुरू राखो ।
सुंदर आखर भर, सोच सुगढ़ कर, अपने अंतस झाको ।।
चवपैया छंद का उदाहरण-
(1)
सुर मुनि गंधर्बा, मिलि करि सर्बा, गे बिरंचि के लोका ।
सँग गोतनुधारी, भूमि बिचारी, परम विकल भय सोका ।।
ब्रह्मा सब जाना, मन अनुमाना, मोर कछू न बसाई ।।
जा करि तैं दासी, सो अबिनासी, हमरेउ तोर सहाई ।
(रामचरित मानस)
(2)
जय जय सुरनायक, जन सुखदायक, प्रनतपाल भगवंता ।
गो द्विज हितकारी, जय असुरारी, सिंधु सुता प्रिय कंता ।।
पालन सुर धरनी, अद्भुत करनी, मरम न जाइ न कोई ।
जो सहज कृपाला, दीनदयाला, करउ अनुग्रह सोई ।।
(रामचरित मानस)
(3)
ए हँसी-ठिठोली, मीठी बोली, मेरे अंतस खोले ।
ऐ नैना काली, है मतवाली, मेरा अंतस डोले ।।
यथा चांद टुकड़ा, सजनी मुखड़ा, मेरे पूरणमासी ।
मन कुहकत रहता, चहकत रहता, तेरी सुन-सुन हाँसी ।।
(रमेश चौहान)
त्रिभंगी छंद-
त्रिभंगी छंद की परिभाषा त्रिभंगी छंद में-
आगे में दस लै, आठ-आठ छै, चार चरण कै, भार धरे ।
बन जाते संगी, छंद त्रिभंगी, पाठक के मन, मोद भरे ।।
पहले दूसर पद, सम तुक का हद, सोच समझ कर, एक करें ।
अंतिम गुरू आवे, लघु गुरू भावे, ताल बनाये, गान करें ।।
त्रिभंगी छंद की परिभाषा और नियम-
जिस छंद के चारां चरण में बत्तीस-बत्तीस मात्रा भार आये जिसके चारों चरण में 10,8,8,6 मात्रा पर यति आये, त्रिभंगी छंद कहलाता है । पहले दो पद 10 मात्रा भार और 8 मात्रा भार को समतुकांत होना आवष्यक है, तीसरे पद में भी समतुंकात हो तो यह ज्यादा अच्छा लगता है किन्तु यह आवष्यक नहीं है । अंतिम पद का अंत गुरू से होना आवष्यक है किन्तु त्रिभंगी छंद का अंत लघु गुरू से होने पर ज्यादा अच्छा लगता है । एक विषेश बात त्रिभंगी छंद में बनने वाले चौकल कभी भी जगण नहीं होना चाहिए ।
त्रिभंगी छंद का कलविन्यास-
- प्रथम पद- 10 मात्रा भार- ‘अष्टकल + द्विकल’ या ‘द्विकल + अष्टकल’ या ‘षटकल + चौकल’
- द्वितीय पद- मात्रा भार- ‘षटकल + द्विकल’ या ‘चौकल + चौकल’ (कोई भी चौकल जगण न हो)
- तृतीय पद-8 मात्रा भार- ‘षटकल + द्विकल’ या ‘चौकल + चौकल’ (कोई भी चौकल जगण न हो)
- चतुर्थ पद- मात्रा भार- ‘त्रिकल + लघु गुरू’
त्रिभंगी छंद के कल विन्यास का उदाहरण-
पहला पद- 10 मात्रा भार | दूसरा पद-8 मात्रा भार | तीसरा पद-8 मात्रा भार | चौथा पद-6 मात्रा भार |
आगे + में दस + लै (चौकल + चौकल + द्विकल) | आठ-आठ + छै (षटकल + द्विकल) | चार चरण + कै (षटकल + द्विकल) | भार + ध + रे (त्रिकल + लघु + गुरु) |
बन + जाते + संगी (द्विकल + चौकल +चौकल ) | छंद त्रिभं + गी (षटकल + द्विकल) | पाठक के मन (चौकल + चौकल) | मोद + भ + रे (त्रिकल + लघु + गुरु) |
पहले + दूसर + पद (चौकल + चौकल + द्विकल) | सम तुक का हद (चौकल + चौकल) | सोच समझ + कर (षटकल + द्विकल) | एक + क + रें (त्रिकल + लघु + गुरु) |
अंतिम गुरू आवे (चौकल + द्विकल + चौकल) | लघु गुरू भावे (चौकल + चौकल) | ताल बना + ये (षटकल + द्विकल) | गान + क + रें (त्रिकल + लघु + गुरु) |
त्रिभंगी छंद में तुकांतता-
त्रिभंगी छंद के प्रत्येक चरणों के पहले और दूसरे पद में समान तुक होना आवश्यक है, यदि तीसरा पद भी इसी के समान तुक में हो अतिउत्तम किन्तु तीसरे पद का इसके समान तुक में होना आवश्यक नहीं है –
आगे में दस लै, आठ-आठ छै, चार चरण कै,
बन जाते संगी, छंद त्रिभंगी, पाठक के मन,
पहले दूसर पद, सम तुक का हद, सोच समझ कर,
अंतिम गुरू आवे, लघु गुरू भावे, ताल बनाये,
त्रिभंगी छंद के चारों चरण का अंत एक समान तुक से होना चाहिए-
आगे में दस लै, आठ-आठ छै, चार चरण कै, भार धरे ।
बन जाते संगी, छंद त्रिभंगी, पाठक के मन, मोद भरे ।।
पहले दूसर पद, सम तुक का हद, सोच समझ कर, एक करें ।
अंतिम गुरू आवे, लघु गुरू भावे, ताल बनाये, गान करें ।।
त्रिभंगी छंद का उदाहरण-
(1)
परसत पद पावन, सोक नसावन, प्रगट भई तप-पुँज सही ।
देखत रघुनायक, जन सुख दायक, सनमुख होइ कर, जोरि रही ।।
अति प्रेम अधीरा, पुलक सरीरा, मुख नहिं आवइ, बचन कही ।
अतिसय बड़ भागी, चरनन्हि लागी, जुगल नयन जल-धार बही ।।
(रामचरित मानस)
(2)
दस बसु बसु संगी, जन रसरंगी, छंद त्रिभंगी, गंत भलो।
सब संत सुजाना, जाहि बखाना, सोइ पुराना, पन्थ चलो।।
मोहन बनवारी, गिरवरधारी, कुञ्जबिहारी, पग परिये।
सब घट घट वासी मंगल रासी, रासविलासी उर धरिये।।
(छंद प्रभाकर)
(3)
माटी में सनकर, मनभर तनकर, होकर मानव, बाँह धरे ।
अपने सम जानें, गैर न मानें, मनुवा-मनुवा, एक करे ।।
ईष्वर के जाये, हम तन पाये, मोह भुलाये, भेद करे ।
खुद अलग जानकर, अलग मानकर, अहम पाल क्यों, अलग खड़े ।।
(रमेश चौहान)