छंद एवं छंद के अंग (Chhand aur chhand ke ang) Chhand in Hindi

छंद एवं  छंद के अंग
छंद एवं छंद के अंग

छंद एवं छंद के अंग (Chhand aur chhand ke ang) Chhand in Hindi

(छंद और रमेश -रमेश चौहान का छंद)

छंद एवं छंद के अंग

छंद की परिभाषा-

सामान्यतः वर्ण और मात्राओं के उपयोग से कविताओं में गेयता के लिये किये गये प्रयास को छंद कहते हैं । जगन्नाथ भानु जी छंद को इस प्रकार परिभाषित करते हैं-

मत्त बरण गति यति नियम, अन्तहिं समता बंद ।
जा पद रचना में मिले, ‘भानु’ भनत स्वइ छंद ।।

अर्थात जिस पद्य रचना में मात्रा, वर्ण, गति, यति का नियम और पद के अंत में सम बंद अर्थात समतुक पाया जाता है, भानुजी के अनुसार वही छंद कहते हैं । मेरे अनुसार-

वर्ण भार कल यति नियम, जिस कविता के बंद ।
अनुशासन की डोर में, बंधे पद ही छंद ।।

छंद क्‍या है ?

उपरोक्‍त परिभाषा के आधार पर कह सकते हैं-

  • गति, यति, वर्ण और मात्रा के विचार करके लिखे गये कविता को छंद कहते हैं ।
  • जिस कविता में मात्रा, वर्ण, गति, यति के नियम और चरणान्त में समता के नियम का पालन किया जाता है उसे छंद कहते हैं ।
  • कविता में अनुशासन को ही छंद कहते हैं ।

इसमें अनुशासन सर्वोपरी है । जिस प्रकार जीवन में अनुशासन हमें संयमित मर्यादित बनाये रखता है, उसी प्रकार छंद कविता को संयमित मर्यादित बनाये रखता है ।

छंद के अंग-

किसी भी छंद में गति, यति, मात्रा, वर्ण, तुक, लय (गेयता का ढंग), गण, पद और चरण ये 9 अंग होते हैं ।

गति यति मात्रा वर्ण तुक, और गेयता ढंग ।
गण पद अरू होते चरण, यही छंद के अंग ।।
छंद एवं छंद के अंग

1.गति-

छंद पढ़ने का अपने स्वयं का एक उतार-चढ़ाव होता है । कविता पाठ करने का जो प्रवाह होता है उसे ही छंद की गति कहते हैं ।

छंद पाठ की रीत में, होते जो चढ़ उतार ।
छंद पाठ का ढंग ही, करते गति संचार ।।

2.यति-

कविता पाठ करते समय जो गति में अल्पकालिक विराम आता है, उसे ही यति कहते हैं । छंद के प्रत्येक पद में चरणों के मध्य यति होता है ।

काव्य-पाठ के मध्य में, आता अल्प विराम ।
चरण-चरण के मध्य में, यति इसका ही नाम ।।

3.वर्ण (अक्षर)-

ध्वनि के छोटी से छोटी इकाई जिसे लिपि से व्यक्त किया जाता है, वर्ण कहलाता है ।‘‘ मुँह से निकलने वाले किसी भी ध्वनि को व्यक्त करने हेतु प्रत्येक भाषा की अपनी लिपि होती है । इस लिपि के माध्यम से ही ध्वनि को व्यक्त किया जाता है । इसे ही वर्ण कहते हैं ।

4. मात्रा-

किसी वर्ण काो बोलने में कुछ न कुछ समय लगता है । इसी समय को मात्रा कहते है। । जिस वर्ण के बोलने में एक चुटकी बजाने में लगे समय के बराबर का समय लगता है, उसे लघु वर्ण कहते हैं, जिसका मात्रा भार 1 होता है । जिस वणे के बोलने में लघु वर्ण से अधिक समय लगता है उसे दीर्घ वर्ण कहते हैं, इसका मात्रा भार 2 होता है ।

5.तुक-

जिन शब्‍दों के उच्चारण में समानता होती है, उसे तुक शब्‍द कहा जाता है । छंद या कविता के पद के अंत के शब्‍दों के उच्चारण एक समान होते हैं, इसे ही तुक कहा जाता है ।

जिन शब्‍दों के अंत में, स्वर व्यंजन हो एक ।
सुनने में जो सम लगे, तुक बन जाते नेक ।।

6.लय-

गति, यति के मेल को लय कहते है। । गति,यति को ध्‍यान में रखते हुये शब्‍द बोलने के प्रवाह को अथवा सुर (सा रे ग म प ध नी) के साथ तारतम्‍य ि‍बठाते हुये संगत करना लय कहलाता है ।

गति अरू यति के मेल से, होते लय साकार ।
मीठी बोली लय रचे, मोहे जो संसार ।।

7. गण-

वर्णो के समूह को गण कहते हैं । छंद में तीन वर्णों के समूह को गण कहा जाता है । वर्ण दो प्रकार का होता है लघु और गुरू । इन्हीं वर्णो के समूह को गण कहते हैं । इस समूह को 8 प्रकार के क्रम में लिखा जा सकत है। इसे ‘यमाताराजभानसलगा‘ सूत्र से तीन-तीन के समूह से निर्धारित कर इसके प्रथम नाम को गण का नाम दिया जाता है ।

जैसे-
यमाता-यगण-लघु-दीर्घ-दीर्घ
मातारा-मगण-दीर्ध-दीर्ध-दीर्ध
ताराज-तगण-दीर्घ-दीर्घ-लघु

8.पद-

छंद को जितनी पंक्ति में लिखा जाता है, उस पंक्ति को ही पद कहते हैं । इस पंक्ति के आधार पर ही इसे दो पदीय या चारपदीय कहते हैं ।

9.चरण-

प्रत्येकपदों के मध्य एक या एक से अधिक यति आता है । यति से विभाजित पद को ही चरण कहते हैं । प्रत्येक पद में कम से कम दो चरण होतें हैं ।

छंद दो प्रकार के होते हैं –

  1. वर्णिक छंद
  2. मात्रिक छंद

छंद के प्रकार-

वर्णिक छंद-

जिस छंद में अक्षरों, वर्णो की गिनती करके कविता लिखी जाती है, उसे वार्णिक छंद कहते हैं । संस्कृत साहित्य के काव्य इसी छंद में लिखी गई है । जैसे गायात्री छंद, अनुष्‍टुप छंद, आदि । आजकल वार्णिक छंद में सबसे ज्यादा प्रचलित छंद है घनाक्षरी । घनाक्षरी छंद में ही प्राय- काव्यमंच में कवि छंद पढ़ते हैं ।

मात्रिक छंद-

जिस छंद में वर्णो के मात्रा भार की गिनती करके कविता रची जाती है, उसे मात्रिक छंद कहते हैं । मात्रिक छंदों को तीन प्रकारों में विभाजित किया गया है-

  1. सम मात्रिक छंद
  2. विषम मात्रिका छंद
  3. अर्ध सम मात्रिक छंद

सममात्रिक छंद-

जिस छंद के सभी चरणों में एक समान मात्रा होती है, उसे सममात्रिक छंद कहते हैं । जैसे सर्वाधिक प्रचलित सममात्रिक छंद चौपाई के प्रत्येक चरणों में 16-16 मात्रायें होती हैं ।

विषम मात्रिक छंद-

प्रायः छंदों में चार चरण होते हैं । विषम मात्रिक छंद में चरणों की संख्या या तो चार से कम होती है अथवा चार से अधिक । विषम मात्रिक छंदों के चरणों की मात्रा अथवा नियम भिन्न-भिन्न होती हैं । जैसे सर्वाधिक प्रचलित छंद कुण्डलियाँ जिसमें 6 पद, 12 चरण होते है । प्रत्येक पद में मात्रा की संख्या 24 तो होती है किन्तु पहले दो पद में दोहा की भांति 13,11 होती है शेष चार पदों में रोला के समान 11,13 मात्रा होती है ।

अर्धसममात्रिक छंद-

इस प्रकार के छंदों में सम-सम चरणों की मात्रा एक समान एवं विषम-विषम चरणों की मात्रा एक समान होती हैं किन्तु सम और विषम चरणों की मात्रा एक समान नही होती । दोहा इसी प्रकार का छंद है जिसके विषम चरणों में 13-13 मात्रायें और सम चरणों 11-11 मात्रायें होती हैं ।

मात्रा-

लघु या हास्व-

किसी वर्ण अथवा अक्षर को बोलने में जितना समय लगता है, उस समय को उस वर्ण का भार या मात्रा कहते हैं । बोलने में लगे समय के आधार पर इसे दो भागों में बांटा गया है-

जिन अक्षरों, वर्णो के उच्चारण करने अर्थात बोलने में लगा समय, हाथ से एक चुटकी बजाने में लगे समय के बराबर या उससे कम समय लगे तो उस वर्ण को लघु या हास्व कहते हैं । लघु भार की गणना करते समय इसे ‘।’ चिन्ह से प्रदर्शित करते हैं ।

  1. लघु या हास्व
  2. गुरू या दीर्घ

गुरू या दीर्घ-

जिन अक्षरों, वर्णो के उच्चारण करने अर्थात बोलने में लगा समय, हाथ से एक चुटकी बजाने में लगे समय से अधिक समय लगे तो उस वर्ण को गुरू या दीर्घ कहते हैं । दीर्घ भार की गणना करते समय इसे ‘ऽ’ चिन्ह से प्रदर्शित करते हैं ।

वर्ण

मुख से बोली जानी वाली लघुतम ध्वनि इकाईयों को जिन संकेतों से व्यक्त किया जाता है, उसे वर्ण कहते हैं । वर्णो को दो भागों में बांटा गया है- स्वर और व्यंजन

स्वर-

अ, आ, इ, उ, ऊ, ऋ, ए, ऐ, ओ औ, अं अः

व्यंजन-

क, ख, ग, घ, ङ
च, छ, ज, झ ´
ट, ठ, ड, ढ, ण
त, थ, द, ध, न
प, फ, ब, य, र
ल, व,श, ष,  स ह
ढ़, ड़

संयुक्त व्यंजन-

क्ष, त्र, ज्ञ, श्र

लघु दीर्घ वर्ण का निर्धारण-

इन्हीं वर्णो को को उनके उच्चारित करने में लगे समय के आधार पर दो भागों में बांटा गया है- लघु वर्ण और दीर्घ वर्ण

लघु वर्ण-

अ, इ, उ और ऋ इन स्वरों और इन स्वरों से बने व्यंजनों को लघु वर्ण कहते हैं । इनका मात्रा भार 1 होता है । साथ ही साथ चँद्र बिन्दु युक्त व्यंजन को भी लघु वर्ण कहते हैं ।

लघु स्वर-

अ, इ, उ, ऋ

लघु व्यंजन-
क, कि, कु, कृ, कँ
ख, खि, खृ, खृ, खँ
ग, गि, गु, गृ, गँ
घ, घि, घु, घृ, घँ
……………….
………………. आदि

दीर्घ वर्ण-

आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ, अं, अः स्वर और इन स्वरों से बने व्यंजनों को बड़े वर्ण कहते हैं । इन का मात्रा भार 2 होता है ।

दीर्घ स्वर-

आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ, अं, अः

दीर्घ व्यंजन-
का, की, कू, के, कै, को, कं, कः
खा, खी, खू, खे, खै, खो, खं, खः
……………………………………….. आदि

छंद में वर्ण गणना करने का नियम-

वर्ण गणना करते समय केवल पूूूूूर्णवर्ण की गिनती करते चाहे वह लघु वर्ण हो दीर्घ दोनों को केवल एक वर्ण गिनते हैंं। अर्धवर्ण की उपेक्षा कर देते हैं ।

वर्ण गणना करने का उदाहरण-

कल - 2 वर्ण, राम-2 वर्ण, रामा-2 वर्ण
कमल - 3 वर्ण, सूरज-3 वर्ण, राजश्री-3 वर्ण
अचरज - 4 वर्ण, दोपहर-4 वर्ण, राजदार-4 वर्ण
अनवरत -5 वर्ण तमिलनाडु-5 वर्ण,
अर्धवर्ण युक्‍त शब्‍दों वर्ण गणना –
सत्य--2 वर्ण
काव्य-. 2वर्ण
असत्‍य-3 वर्ण
कम्प्यूटर .4 कम्प्यूटर
व्‍यवस्‍थापक-5 वर्ण
 (अर्धवर्णो को छोड़ दिया जाता है)

छंद में मात्रा गिनने का नियम :-

  1. अ, इ, उ, ऋ स्वर छोटे स्वर (लघु या हास्व) होते हैं । छोटे स्वर से युक्त व्यंजन भी छोटे हाते हैं । चन्द्र बिन्दु लगे व्यंजन भी छोटे होते है । इसका मात्रा भार 1 होता है ।
  2. आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ अं अः बड़े स्वर (दीर्घ) होते हैं । दीर्घ स्वर युक्त व्यंजन भी दीर्घ होते हैं । इसका मात्रा भार 2 होता है ।
  3. अर्ध वर्ण का अपने आप में कोई भार नहीं होता । यदि कोई अर्ध वर्ण किसी शब्‍द के प्रारंभ में आवे तो उसका कोई भार ही नहीं बनता किन्तु यह अर्ध वर्ण किसी शब्‍द के मध्य में आवे तो उस वर्ण को दीर्घ कर देता है जिस पर उसका उच्चारण का भार होता है । यदि इस अर्ध वर्ण का भार दीर्घ वर्ण पर पड़ता है तो वह वर्ण दीर्घ ही रहेगा । प्राय- अर्ध वर्ण का भार बाई ओर के वर्ण पर होता है । केवल ‘ह’ वर्ण के पूर्व अर्ध ‘म’ और अर्ध ‘न’ आवे तो इसका भार ‘ह’ पर होता है ।
  4. संयुक्त वर्ण अर्ध वर्ण और एक पूर्ण वर्ण से बना होता है । जैसे ‘त्र’ अर्ध त और पूर्ण ‘र’ के मेल से बना है । इस कारण संयुक्त वर्ण में मात्रा की गणना उपरोक्तानुसार ही करते हैं । जब संयुक्त वर्ण शब्‍द के प्रारंभ में आवे तो वह एक मात्रा का होता है किन्तु अन्य स्थान पर संयुक्त वर्ण का अर्ध वर्ण का भार बाई ओर के वर्ण पर पड़ता है इसलिये बाई ओर के वर्ण के भार को दीर्घ कर देता है । यदि वह पहले से दीर्घ है, तो वह दीर्घ ही रहेगा । किसी भी स्थिति में किसी भी वर्ण का मात्रा भार 3 नहीं हो सकता ।

मात्रा गिनने का अभ्‍यास-

1.लघु स्वार (1 मात्रा वाले)-

अ, इ, उ, ऋ, ॅं (चन्द्र बिन्दु)

लघु व्यंजन (1 मात्रा वाले)-

‘अ‘ स्वर वाले व्यंजन-क,ख,ग,घ, …………
‘इ‘ स्वर वाले व्यंजन-कि,खि,घि,………….
‘उ‘ स्वर वाले व्यंजन-कु,खु,गु,घु……….
‘ऋ’ स्वर वाले व्यंजन- कृ, खृ, गृ……….
‘ ॅं‘ चन्द्र बिन्दु वाले व्यंजन-कॅं,खॅं,गॅ,धॅ, ……..

उदाहरण-

कल - 11
कमल - 111
कपि - 11
अचरज - 1111
अनवरत -11111

2. दीर्घ स्वर (2 मात्रा वाले)-

आ, ई ऊ, ए, ऐ, ओ, अं

दीर्घ व्यंजन (2 मात्रा वाले)-

‘आ‘ स्वर वाले व्यंजन-का,खा,गा,घा, …………..
‘ई‘ स्वर वाले व्यंजन-की,खी,गी,घी,………….
‘ऊ‘ स्वर वाले व्यंजन-कू,खू,गू,घू,…………
‘ए‘ स्वर वाले व्यंजन-के,खे,गे,घे,………….
‘ऐ‘ स्वर वाले व्यंजन-कै,खै,गै,घै,………..
‘ओ‘ स्वर वाले व्यंजन-को,खो,गो,घो,……….
‘औ‘ स्वर वाले व्यंजन-कौ,खौ,गौ,घौ,…………
‘अं‘ स्वर वाले व्यंजन-कं,खं,गं,घं,……………

उदाहरण-

का – 2
काला – 22
बेचारा – 222

अर्ध वर्णो की मात्रा गणना-

(अ)

कोई शब्‍द जब आर्ध वर्ण ले शुरू हो तो उसका स्वयं का कोई मात्रा भार नहीं होता-

जैसे-

श्‍याम -‘श्‍‘ का कोई भार नहीं होगा इसे छोड़ने पर- या-2, म-1 कुल 3 मात्रा
व्यायाम- ‘व्‘ का कोई मात्रा भार नहीं होगा इसे छोडने पर- या-2, या-2, म-1 कुल 5 मात्रा

(आ)

जब अर्ध वर्ण शब्‍द के मध्य में आवे तो उसका मात्रा भार जिस वर्ण पर पड़ता है उसे वह दीर्ध कर देता है, यदि वह पहले से दीर्घ है तो वह दीर्घ ही रहेगा जिसका मात्रा भार 2 होगा किसी भी स्थिति इसका मात्रा भार 2 से अधिक नहीं हो सकता ।

उदाहरण- ‘

भव्य‘ में ‘व्’ का भार बाई ओर के ‘भ’ पर पड़ता है क्योंकि ‘भव्य’ का उच्चारण ‘भ्व्+य’ होता है । इस प्रकार जो ‘भ’ लघु था ‘व्’ के भार पड़ने पर दीर्घ हो जाता है । भव्य-भव्-2, य-1 कुल 3 मात्रा ।

इसीप्रकार-

सत्य-सत् -2, य-1 कुल-3
काव्य-काव् -2, य-1 कुल-3

उदाहरण- ‘

कन्हैया‘ का उच्चारण ‘कन् -हैया’ ना होकर ‘क-न्हैया’ होता है इसकारण ‘न्‘ का भार ‘क‘ के साथ ना होकर ‘है‘ के साथ होता है । ‘है‘ पहले से ही दीर्घ है ‘न्’ का भार पड़ने पर भी यह दीर्घ रहेगा 2 मात्रा का । ‘कन्हैया‘ में क-1, न्है-2, या-2 कुल 5 मात्रा ।

इसीप्रकार-

‘तुम्हारा‘-तु-1, म्हा-2, रा-2 कुल 5 मात्रा

एक अधिक अर्ध वर्ण आने पर-

इसे इस उदाहरण से समझ सकते हैं-

‘कम्प्यूटर’ में ‘कम्‘ 2 मात्रा का हुआ, ‘प्‘ इसे ही दीर्घ करेगा जो पहले से दीर्घ हो गया जो ‘प्’ का भार पड़ने पर भी दीर्घ ही रहेगा-‘कम्प्यूटर‘ –

कम्प् -2, यू-2, ट-1, र-1 कुल 6 मात्रा होगी ।

संयुक्‍त वर्ण का मात्रा गणना-

(अ)

कोई शब्‍द जब संयुक्त वर्ण से शुरू हो तो इसका भार 1 होगा-

जैसे- ‘क्षमा‘ -‘क्ष‘ -1, मा-2 कुल 3 मात्रा
श्रम- श्र-1, म-1 कुल 2 मात्रा

(आ)

संयुक्त वर्ण षुरू को छोड़ कर अन्य स्थान पर आवे तो वह अपने बाई ओर के वर्ण को दीर्घ कर देता है-
जैसे- ‘यक्ष‘ में ‘य‘, ‘क्ष‘ के कारण दीर्घ हो जाता है ।
यक्ष-‘यक्‘-2, श-1 कुल 3 मात्रा

अन्‍य उदाहरण-
पत्र= 21 
वक्र = 21, 
यक्ष = 21, 
कक्ष - 21, 
यज्ञ = 21, 
शुद्ध =21
 क्रुद्ध =21 
गोत्र = 21, 
मूत्र = 21, 
त्रिशूल = 121,
 क्रमांक = 121, 
क्षितिज = 111
छंद के अंग

कल-

शब्‍दों के उच्चारण से बनने वाले उनके मात्रा के कुल भार को कल कहते हैं । यदि शब्‍दका भार 1 मात्रा का हो तो उसे एकल, यदि शब्‍द का कुल भार 2 हो तो द्विकल, यदि शब्‍दका कुल भार 3 हो तो उसे त्रिकल, इसी प्रकार 4 मात्रा पर चौकल, 5 मात्रा पर पंचकल, 6 मात्रा पर षष्‍टकल आदिकहते हैं ।

कल का उदाहरण-

  • अ, इ, उ, क, ख,…. ये सभी एक मात्रा के हैं इसलिये एकल होगा ।
  • में, को, पर, का, तट ये सभी 2 मात्रा के हैं इसलिये द्विकल होंगे ।
  • राम, श्‍याम, अली, असर,.. आदि 3 मात्रा के हैं अतः ये सभी त्रिकल होंगे ।
  • काला, रमेश, उसको, साबर, अजरज आदि 4 मात्रा के हैं इसलिये ये चौकल होंगे ।
  • इसी प्रकार पंचकल, षष्‍टकल ।

कल संयोजन या गेयता का नियम-

गेयता छंद का प्राण है । गेयता को सहज बनाने के लिये कलों का उचित संयोजन आवश्‍यक है । कलों को दो भागों में बांटा जा सकता है समकल और विषम कल । एकल, त्रिकल, पंचकल आदि विष्‍म कल होंगे तो द्विकल, चौकल, षष्‍टकल आदि समकल होंगे ।
समान्यतः छंद समकल स्वभाव का होता है (छंदों के विशेष शिल्‍प क्रम को छोड़कर) अतः कलों का संयोजन इस प्रकार करना चाहिये जिससे वह स्वभाविक रूप से समकल बना रहे हो। यदि छंद समकल से प्रारंभ हो तो समकल के तुरंत बाद समकल ही आना चाहिये । विषमकल के तुरत बाद एक और विषम कल लेकर उसे समकल कर लेना चाहिये । इस प्रकार कल संयोजन से छंद में गेयता स्वभाविक होती है ।

कल संयोजन का उदाहरण-

‘बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर ।
पंछी को छाया नहीं, फल लागे अति दूर ।।

इस दोहा में कल संयोजन इस प्रकार है-
‘बड़ा’ त्रिकल के तुरंत बाद ‘हुआ’ त्रिकल आया है । ‘पंछी’ चौकल के तुरंत बाद द्विकल आया है ।

तुक-

हिन्दी छंदों में तुक का ि‍विशेष महत्व है । छंद के पदोंं के अंत जो एक समान उच्चारण के समांत शब्‍द आते हैं उसे ही तुक कहा जाता है ।

तुक का उदाहरण-

‘‘बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर ।
पंछी को छाया नहीं, फल लागे अति दूर ।।

यहाँ दोनों पद के अंत में ‘ऊर’ उच्चारण समांत है, इसे ही तुक कहते हैं ।

छंद एवं  छंद के अंग आलेख-रमेश चौहान

इसे भी देखे- दोहा छंद विधान

घनाक्षरी छंद

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7 thoughts on “छंद एवं छंद के अंग (Chhand aur chhand ke ang) Chhand in Hindi

  1. ज्ञानवर्धक संग्रहनीय लेख👍👍👍

  2. बहुत सुंदर सार्थक कदम चौहान जी… रचनाकारों के लिये बहुत उपयोगी साबित होगी , हार्दिक बधाई शुभकामनाएं………

  3. बहुत ही उपयोगी ज्ञानवर्धक संग्रहणीय लेख बड़े भैया जी

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