छत्‍तीसगढ़ के देवारी तिहार -रमेश चौहान

छत्‍तीसगढ़ के देवारी तिहार

-रमेश चौहान

गोवर्धन पूजा छत्‍तीसगढ़ के देवारी तिहार
छत्‍तीसगढ़ के देवारी तिहार

छत्‍तीसगढ़ के देवारी तिहार

भारत म आनी-बानी के बोली-भाषा होय के संगे-संग आनी-बानी के संस्‍क़ति घला हवय । जइसे एकेठन देह म हाथ-गोड़, मुँह-नाक, ऑंखी-कान होथे ओइसने एके संस्‍कृति अउ परम्‍परा ल आने-आने ढंग ले मनाये के ढंग अउ नाम हे । ओइसने एकेठन तिहार ल घला देश के आने-आने जगह आने-आने ढंग अउ नाम ले घला मनाये जाथे । अइसने एक तिहार हे छत्‍तीसगढ़ के देवारी जेन ल देश-विदेश म दीपावली के नाम ले जाने जाथे ।

छत्‍तीसगढ़ के देवारी तिहार अउ देश के दीपावली म अंतर-

छत्‍तीसगढ़ के देवारी तिहार देश म मनाये जाने वाला दीपावली तिहारे आय फेर पॉंच दिन के ये तिहार म जिहॉं देशभर म तीसरा दिन के तिहार लक्ष्‍मीपूजा ल दीपावली के नाम दे जाथे अउ येही ल प्रमुख तिहार माने जाथे ऊँहे छत्‍तीसगढ़ म ये तिहार के चौथा दिन जेन ला पूरा देश म अन्‍नकूट अउ गोवर्धन पूजा के नाम से जाने जाथे, येही ल छत्‍तीसगढ़ म देवारी कहे जाथे ।  येही गोवर्धन पूजा के तिहार छत्‍तीसगढ़ म सबले बड़े तिहार देवारी के नाम ले जाने जाथे ।

छत्‍तीसगढ़ के देवारी दीपावाली या दिवाली के अपभ्रंश नो हय-

बहुत झन म देवारी  ल दिवाली के अपभ्रंश मान लेथे जेन दीपावली के पर्यावाची शब्‍द आय । फेर देवारी दिवाली के अपभ्रंश नो हय हॉं एके समय ये तिहार मनाये जाय ले येखर अपभ्रंश होय के धोखा जरूर होथे । छत्‍तीसगढ़ कोनो सियानमन ल पूछ के देख लव लक्ष्‍मी पूजा के दिने ला दिवाली या दीपावली कहे जाथे वोला  छत्‍तीसगढ़ म सुरहुत्‍ती तिहार कहे जाथे देवारी नहीं ।  देवारी तो गोवर्धन पूजा के दिन ला कहे जाथे । हॉं ये जरूर हे जइसे पांच के दिन तिहार ल देश म दीपावली कहे जाथे ओइसन ये पॉंच दिन के तिहार ल छत्‍तीसगढ़ म देवारी कहे जाथे । अंतर केवल कोन दिन ल बड़का माने जाथे के हे । जिहॉं आन जगह लक्ष्‍मी पूजा बड़े तिहार के रूप माने जाथे ऊँंहे छत्‍तीसगढ़ म गोवर्धन पूजा ला बड़का माने जाथे ।

छत्‍तीसगढ़ के देवारी तिहार कब मनाये जाथे-

छत्‍तीसगढ़ के देवारी तिहार अइसे तो पांच दिन ले मनाय जाथे फेर दूये दिन सुरहुत्‍ती अउ देवारी ल विशेष ढंग ले बनाये के परम्‍परा देखे ल मिलथे । देश के दीपावली के तिथि के संगे-संग ये तिहार ल कातिक महिना के अंधियारी पाख के तेरस ले लेके कातिक महिना के अंजोरी पाख के दूज तक ये तिहारी मनाये जाथे-

धनतेरस-

कातिक महिना के अंधियारी पाख के तेरस के दिन ये तिहार ल मनाये जाथे । छत्‍तीसगढ़ म ये तिहार देश के संगे-संग ओही ढंग ले आज मनाये जाथे फेर सियान मन बताथे येखर जादा चलन अभी-अभी दसे-बीस साल म जादा होय हे पहिली ये दिन अतका उत्‍साह नई होत रहिस । ये दिन दिनबुड़े के बाद घर के दुवारी म तेराठन दीया बारत रहिन । ये बुता आजो होथ हे फेर अब ये दिन गाड़ी-मोटर खरीदना, भड़वा-बरतन खरीदना अउ आनी-बानी के जिनिस खरीदे के चलन जादा देखे जात हे ।

यम के दीया नरकचउदश-

कातिक महिना के अंधियारी पाख के चउदश के दिन यम के दीया के तिहार मनाये जाथे । ये दिन दिनबुड़े के बाद घर के मोहाटी खोर म गोबर पानी ले लीप के चाउर पिसान ले चउक पूर के चउदाठन दीया बारे जाथे अउ यमराज ले गोहार करे जाथे के हमला नरक के पीरा ले बचाहूँ कहिके ।

सुहुत्‍ती-

कातिक महिना के अम्‍मावस के दिन सुरहुत्‍ती तिहार माने जाथे । ये दिन किसान मन अपन खेत-खार म दीया बारथे, अँगना के तुलसी चौरा, कोठी-डोली इहॉं तक के घुरवा तक म दीया बारे जाथे । सबले खास बात अपन गॉंव-परोस के हर घर मा जाके ओखर तुलसी चौरा दीया रखे जाथे । गॉंव के मंदिर-देवालय जाके दीया जलाये जाथे । घर म लक्ष्‍मीपूजा के चलन अभी-अभी दस-बीस ले देखे म मिलत हे पहली कोखरो-कोखरो घर म लक्ष्‍मी पूजा होत रहिस हे ।

देवारी-

कातिक महिना के अंजोरी पाख के एकम के दिन मनाये के ये तिहार छत्‍तीसगढ़ के सबले बड़ तिहार आय । ये दिन बिहनिया घर के गाय-गरूवा, माल-मत्‍ता (बइला-भइसा) ला धोय-मांजे जाथे । फेर कोठा म गोबर ले पुतरा-पुतरी बनाये जाथे जेन ल गोवर्धन कहे जाथे । जब गाय-गरूवा बरदी ले आथे त गोवर्धन  ल खुंदवा के गोवर्धन अउ गाय-गरूवा के पूजा करे जाथे । पॉंच जिनिस ले बने पँचमिझरा खिचरी  गाय-गरूवा मन ला खवाये जाथे । येही दिन घर म तेलाही चढ़थे मने रोटी-पीठा बनाये जाथे ।

भाई-दूज-

कातिक महिना के अंजोरी पाख के दूज के दिन भाई-दूज तिहार मनाये जाथे । ये दिन घर म बहिना मन अपन भाई के पूजा करके घर म बने रोटी-पीठा परोसथें । छत्‍तीसगढ़ म भाई दूज के एक खास बात देखे ल मिलथे पारा-परोस के हित-मीत संग मितानी निभात एक-दूसर के भाई ल अपन घर म बला के खवाय-पियाय जाथे । आन गॉंव बहिनी घर भाई-दूज खाय ला जायके रिवाज आजे-काल देखे ल मिलत हे पहिली आन गॉंव बहुते कम आदमी मन जात रहिन ।

छत्‍तीसगढ़ के देवारी तिहार के दूठन आधार सुरहुत्‍ती अउ देवारी-

अइसे तो देवारी पॉंच दिन के तिहार आय अउ कइसने होय पॉंच दिन के तिहार ल माने जाथे फेर दूठन तिहार सुरहुत्‍ती अउ देवारी ल विशेष ढंग ले मानये जाथे । ये दूनों तिहार के छत्‍तीसगढि़या परम्‍परा बहुते पोठ हे अउ पूरा देश म अपन-आप म विशेष अलगे ढंग के हे । ये परम्‍परा म छत्‍तीसगढ़ के भाई-चारा अउ मिलजुल के काम करे के बात ह अपन-आप म खास हे ।

छत्‍तीसगढ़ के देवारी तिहार म सुरहुत्‍ती-

छत्‍तीसगढ़ के देवारी तिहार म सुरहुत्‍ती जेन ल देशभर म दिवाली या दीपावली के नाम जाने जाथे, बहुते खास ढंग ले मनाये जाथे ।  सुरहुत्‍ती के ये परम्‍परा जेमा डॉंड़ खींचे के जरूरत हे ये प्रकार हे-

एक-दूसर के घर म दीया पहुँचाना-

सुरहुत्‍ती तिहार के सबले बढि़या परम्‍परा ये देखे ल मिलथे के गॉंव के मनखेमन सुरहुत्‍ती के दिन, दिन बुडे के बाद एक-दूसर घर दीया पहुँचाय ल जाथें । एक घर के आदमी दूसर घर जाके ओखर अँगना के तुलसी चौरा म दीया राख के आथे । जब आदमीमन एक-दूसर घर दीया पहुँचाय ल जाथे त एक-दूसर के मया-पीरा ल जरूर पूछथें । ये परम्‍परा हमर भाई-चारा ल बनाये रखे बर बहुते बढि़या अउ बहुते जरूरी हवय ।

मंदिर-देवालय म दीया जलाना-

सुरहुत्‍ती के दिन गॉंव म गॉंव जतका मंदिर देवालय हे ऊँहा हर घर के कम से कम एक आदमी दीया बार के आथे । जब दीया बारे बर मंदिर जाथे त एक-दूसर ले गोठ-बात घलो होथे । ये काम देवधामी के पूजा के संगे-संग एक-दूसर ले भेट-भलई करे के साधन घलो आय ।

मठ-मरघटिया म दीया जलाना-

सुरहुत्‍ती के दिन अपन घर के मरे सियान मन के मठ चौरा म दीया जलाये के परम्‍परा हे । ये बुता ह अपन पूर्वज के सुरता करे अउ ओखर आशीर्वाद ले के उदिम आय । हमर आज के खुशी म हमर पूर्वज मन के हाथ हे, ये बात ल माने के अउ जताये के ये दिन आय ।

खेत-खार, घुरुवा म दीया जलाना-

छत्‍तीसगढ़ बर खेती-खार मनखे के जिनगानी आय । बिना खेती-खार के मनखे प्राणी जीवन ह बिरथा हे । त कइसे अतका बड़े तिहार म खेत-खार के बिना पूरा होही । सुरहुत्‍ती के दिन किसान अपन खेत म जाके पूरा मन लगा के पूजा करथे अउ धरती माता ले गोहार करथे के बने उपज देबे दाई कहिके अउ खेत म दीया बार के आथे । अपन खेत म दीया बारे के संगे-संग किसान मन अपन घुरुवा म घला दीया बारे बर नई भुलावय । घुरुवा जिहां अपन खेत बर गोबर खातू बनाये जाथे, जेन खातू ले उपज जादा होथे । ओखरो आज के दिन पूजा करे जाथे  ।

छत्‍तीसगढ़ के देवारी तिहार गौरा-गौरी-

 छत्‍तीसगढ़ के देवारी तिहार गौरा गौरी
छत्‍तीसगढ़ के देवारी तिहार गौरा गौरी

आदिवासी ले अटे परे हमर छत्‍तीसगढ़ म आदिवासी परम्‍परा पूरा छत्‍तीसगढ़ म देखे ल मिलथे । जिहां पूरा देश ये दिन घर म लक्ष्‍मीमाता के पूजा करथे ऊँहे छत्‍तीसगढ़ ये दिन गउरा (गौरा) मने भगवान शंकर भोलेनाथ आ गउरी (गौरी) मने पार्वती के माटी के छोटे मूर्ति बनाके ऊँन्‍खर बिहाव के उत्‍सव मनाये जाथे । ये अवसर म विशेष प्रकार के गीत गाये जाथे, जेन ला गौरा-गौरी गीत कहे जाथे ।

बस्‍तर अंचल  म गौरा-गौरी परम्‍परा-

छत्‍तीसगढ़ के बस्‍तर  अंचल के पहिचान गोड़, बइगा आदि आदिवासी जनजाति ले हे जिन्‍खर अपन एक अलग संस्‍कृति अउ परम्‍परा हे । जेन प्रकार ले बस्‍तर के दशहरा देश के बाकी दशहरा ले अलग होथे ओइसने देवारी तिहार घला देश के दिवाली ले अलग होथे । बस्‍तर के पूरा उत्‍सव, तिहार-बार सब भगवान शंकर अउ माता पार्वती क ल समर्पित होथे । दशहरा म माता दंतेश्‍वरी के रथ यात्रा निकाले जाथे त देवारी म गौरा-गौरी के पूजा करे जाथे ।

गौरी-गौरी के जगार-

गौरा-गौरी तिहार के शुरूवात देवारी के संगे संग होथे । धनतेरस के दिन ये जनजाति गौरा-गौरी के जगार करथे । जगार के शाब्दिक अर्थ जगाना होथे अउ येखर भावार्थ यज्ञ होथे । जगार म होवइया अनुष्‍ठान यज्ञ म आय बर देवी-देवता ल नेवता दे जाथे । गौरा-गौरी रखे के पहिली जगार करे ल जाथें जेमा महिला मन एकसंघरा सामूहिक रूप म जगार-गीत गाथें । पुरुष वर्ग मन डमऊ, दफड़ा अउ गुदुम जइसे बाजा लेके नाचथें-गाथें ।

माटी कूचरना-

नरक चतुरदशी के दिन गौरा-गौरी के मूर्ति बनाय बर पूरा रीतिरिवाज ले माटी लाये जाथे और माटी ल साफ करे जाथे ओमा कपसा घला मिलाये जाथे । पूरा तइयारी करे जाथे ये माटी ले मूर्ति बनाना हे फेर आज के दिन मूर्ति नई बनाय जाय ।

गौरा-गौरी के बिहाव-

सुरहुत्‍ती के दिन पाछू दिन के तइयार करे गे माटी ल भिंगा के मूर्ति बनाये के लइक बनाये जाथे फेर ओही माटी ल बड़ जतन अउ श्रद्धा ले गौरा-गौरी के मूर्ति बनाये जाथे ओला सजाये-सँवारे जाथे जइसे आदमी के बिहाव म दुलहा-दुलहन ल सजाये जाथे । गॉंव म थोक-थोक दुरिहा म अलग जगह गौरा अउ अलग जगह गौरी ल रखे जाथे मूर्ति ल सजाये-सवारे के बाद गौरा के बरात निकाले जाथे फेर दूनों मूर्ति एक जगह के परघौनी करे जाथे । पूरा कार्यक्रम म गौरा-गौरी गीत गाये जाथे । परघौनी के अखाड़ा वाले मन अपन-अपन करतब देखाथे । ये पूरा दृश्‍य ल देखबे त अइसे लगथे के आजकल मनखेमन के बिहाव म जतका उछाह-उमंग होथे ओखर ले कहूँ जाथा ये गौरा-गौरी के बिहाव म होथे । ये परब श्रद्धा के संगे-संग जोश अउ उमंग के घला आय ।

जम्‍मो छत्‍तीसगढ़ म गौरा-गौरी के धूम-

जउन प्रकार ले बस्‍तर अंचल म गौरा-गौरी के पर्व बनाये जाथे ओइसने उन्‍नीस-बीस पूरा छत्‍तीसगढ़ म मनाये जाथे । गौरा-गौरी के तिहार देवारी के विशेष पहिचान आय । सबले बड़े बात जेन गॉंव म एके घर के आदिवासी हे ऊँहा घला पूरा गॉंव वाले मिलके ये तिहार ल मनाथे । फेर ये तिहार आदिवासी भर मन के आय कहिना मुश्किल हो जथे । ये तिहार म सबो जात, सबो समाज के मनखे मन बढ़-चढ़ के भाग लेथें । सुरहुत्‍ती के पूरा रात भर गौरा-गौरी के बिहाव के उछाह-मंगल हाेथे, गौरा-गौरी गीत गढ़वा बाजा संग खूबे नीक लगथे । परघौनी करतब जिहाँ जवान मन म जोश भर देथे ऊँहे लइका मन डर्राय घला लगथे । गौरा-गौरी रखे के हफ्ताभर पहिली सुवागीत गा के सुवा नाच के गौरा-गौरी के कार्यक्रम बर सहयोग मांगे जाथे ।

गौरा-गौरी के पहिली सुवागीत के धूम-

छत्‍तीसगढ़ के देवारी तिहार सुवा गीत
छत्‍तीसगढ़ के देवारी तिहार सुवा गीत

सुवागीत अउ गौरा-गौरी उछाह संघरा चलथे । जेन प्रकार ले आजकल कोनो सार्वजनिक कार्यक्रम बर चंदा उगाहू करे जाथे ओही प्रकार के गौरा-गौरी रखे बर गॉंव वालेमन ले सहयोग ले जाथे । येही सहयोग ले खातीर महिलामन एक मंडली बना के एकठन चूरकी मा माटी के सुवा बनाके रखथें अउ ओखर चारों मुड़ा घूम-घूम के नाचथे । नाचत बखत एक विशेष प्रकार के गीत गाये जाथे जेला सुवा गीत कहिथें । ये सुवा गीत श्रृंगार प्रधान होथे जेमा वियोग श्रृंगार जाथा होथे ।

छत्‍तीसगढ़ के देवारी तिहार –

जिहां पूरा देश म अन्‍नकूट अउ गोवर्धन पूजा मनाये जाथे ओही दिन ल छत्‍तीसगढ़ देवारी कहिके गोवर्धन पूजा अउ गाय-गरुवा के पूजा करे जाथे । आज के दिन पूरा-पूरा गाय-गरुवा अउ बइला-भइसा ल समर्पित रहिथे । छत्‍तीसगढ़ खेती प्रधान राज्‍य आय अउ गाय-गरुवा अउ बइला-भइला खेती किसानी के जरूरी हिस्‍सा आय येही पायके  ये तिहार के महत्‍ता ल इहां जादा माने गे हे ।

गाय-गरुवा के साफ-सफाई अउ श्रृंगार-

 छत्‍तीसगढ़ के देवारी तिहार  गउ पूजा
छत्‍तीसगढ़ के देवारी तिहार गउ पूजा

देवारी तिहार के शुरूवात गाय-गरुवा के सेवा-जतन ले होथे । गाय-गरुवा के सेवा-जतन करे के बाद गाय-गरुवा ल बने धोये-मांजे जाथे । बने ढंग ले नहवा-धोव के उन्‍खर सिंग ल सजाये जाथे । अपन-अपन रूचि के अनुसार गाय-गरुवा के साज-सज्‍जा करे जाथे ।

गोवर्धन बनाना-

गाय के गोबर ले एक चवकोर खाना बना के ओखर बीच म पुतरा अउ पुतरी बनाये जाथे । येही ल गोवर्धन कहे जाथे । येला धान के बाली अउ विशेष प्रकार काशी सिलयारी अउ बलियारी ले सजाये जाथे बीच-बीच म गोंदा फूल घला खोचे जाथे । पूरा सजाये के बाद एक पोरहा म पानी भरके ऊपर नांदी रख के दीया जलाये जाथे ।

गोवर्धन खुंदवाना-

छत्‍तीसगढ़ के देवारी तिहार

गाय-गरुवा अउ गोवर्धन सजाये-सवारे के बाद गाय-गरुवा ले गोवर्धन खुंदवाय जाथे ओखर गाय-गरुवा अउ गाेवर्धन के संघरा पूजा करे जाथे । पूजा करे के बाद घर म बनाये गे पंचमिछरा खिचरी गाय-गरुवा मन ला खवाय जाथे ।

हँसी-खुशी के तिहार-

पांच दिन के ये देवारी तिहार म केवल आजे के दिन घर रोटी-पीठा बनाये जाथे सोहारी-भजिया बनाये के जादा चलन हे । आज के दिन किसान मन के काम बंद रहिथे दुकानदार मन घला अपन दुकान ल बंद रखथें । ये तिहार हँसी-खुशी ले मनाये जाथे ।

छत्‍तीसगढ़ के देवारी तिहार मातर-

छत्‍तीसगढ़ के देवारी तिहार राउत नाचा
छत्‍तीसगढ़ के देवारी तिहार राउत नाचा

देवारी तिहार आखरी दिन जेला भाई-दूज कहिथन, येही दिन छत्‍तीसगढ़ के पहटिया ठेठवार समाज मातर तिहार मानथे । कहे बर तो मातर पहटिया ठेठवार समाज के तिहार आय फेर येमा पूरा गॉंव न केवल सहयोग देथें बल्कि हँसी-खुशी ले बढ़-चढ़ के भाग घला लेथें ।

मातर-

मातर के दिन पहिटया मन गॉंव के गउठान दइहान म  इक्‍कठा होके खुडहर देव, सांड़हा देव के पूजा करथें, नवा चाउर ले खीर बनाथें । दइहान म गोवर्धन बना के पूजा करके गउमाता के पूजा करथें  । मोर पंख सुहर पेड़ के छाल ले बने विशेष माला जेला सुहाई कहे जाथे गाय ला पहिराये जाथे । ये बीच पहटिया मन अपन पारम्‍परिक वेशभूषा म होथे । बॉंह म बॉंहकर, पेटी, कौड़ी ले सजे साजू अउ रंग-बिरंगी पागा पहिरे अउ हाथ म लाठी धरे पहिटया मन अलगे चिन्‍हावत रहिथें । ये पहटिया मन बीच-बीच म दोहा बोल के नाचथें ये नाच ल राउतनाचा अउ दोहा बोलब ल दोहा पारना कहे जाथे । आखिर म दईहान म बनाये गे गोवर्धन के गोबर ल सबो मनखे थोक-थोक लेके एक-दूसर के माथा म टिका लगाथें । पहटियामन गॉंव भर के सकलाये मनखे मन ल नवा चाउर ले बनाये गे खीर के परसाद बांटथें ।

छत्‍तीसगढ़ के देवारी तिहार के महत्‍व-

छत्‍तीसगढ़ के देवारी तिहार सामुदायिक हे हर रीति-रिवाज ह व्‍यक्तिगत नई होयके सार्वजनिक होथे जेखर पाय के ये तिहार म भाई-चारा खेती करथे । सुवा गीत, गौरा-गौरी अउ मातर म कोनो अकेल्‍ला नई करे जा सकय ये सब म चारझन के संग चाहिच चाही । ये तिहार के सुवागीत नाचे गाये के, गौरा-गौरी अउ मातर श्रद्धा अउ जोश देखाये के आय जउन जुरमिल के मनाये जाथे । ये प्रकार हमर समाज के एकता अउ मया ल बनाये रखे म ये तिहार के बहुत बड़े हाथ हवय ।

-रमेश चौहान


येहूँ ल देख सकत हव-

तिज-त्‍यौहार-भाई दूज

दीपावली का अध्‍यात्मिक एवं सांस्‍कृतिक महत्‍व

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2 thoughts on “छत्‍तीसगढ़ के देवारी तिहार -रमेश चौहान

  1. अतका सुघ्घर लेख अव पूर्ण जानकारी हे के पहिले अतका सुघ्घर जानकारी नही मिले रहीस

    1. सादर धन्यवाद मनीष भाई अपन प्रतिक्रिया दे बर । आपके उत्साहवर्धन बर आपके आभार

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